Read this article in Hindi to learn about the characteristics of bureaucracy as given by Karl Marx.
मार्क्स ने नौकरशाही की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है:
1. भेदभावपूर्ण श्रम विभाजन:
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नौकरशाही बौद्धिक कार्य करती है । मजदूर शारीरिक श्रम द्वारा वास्तविक उत्पादन करते है लेकिन उसका अधिकांश लाभ पूंजीपति और प्रबंधक वर्ग ले जाते हैं । इस प्रकार श्रम विभाजन से उत्पादन तो बढ़ता है लेकिन लाभ श्रमिकों के स्थान पर शासक-प्रशासक-पूंजीपति वर्ग को होता है ।
2. पदसोपान का दोष:
मार्क्स इस मत का खण्डन करते है कि पदसोपान से ”प्रभुत्व के बेजा इस्तेमाल” पर रोक लगती हैं । मार्क्स कहते है कि पदसोपान अनेक बुराईयों की जड़ है । जब कार्मिक नागरिकों से गलत व्यवहार करते है तो नौकरशाहों की प्रवृत्ति अपने कार्मिक के बचाव की होती है । और जब कार्मिक अपने अधिकारी के गलत कार्य का विरोध करता है तो नौकरशाह कार्मिक को दण्डित करते है । उच्चाधिकारी हमेशा शिकायत करते है कि नीति तो अच्छी थी, उसका क्रियान्वयन गलत था ।
3. अलगाव का सिद्धांत:
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अलगाव के सिद्धांत के अनुसार मजदूरों की स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है तथा प्रबंधक और मजदूर दोनों के मध्य अलगाव रहता है, इसी प्रकार मजदूरों को प्रबंध क्रिया में भागीदार नहीं बनाकर उनकी सृजनात्मकता समाप्त कर दी जाती है । यही नहीं स्वयं प्रबंधक भी इसके शिकार हो जाते है । मजदूरों को पुर्जा या मशीन मानकर काम लिया जाता है अर्थात् मानवीयता का अभाव इसकी एक विशेषता है । इन सब बातों का प्रभाव ”नैतिकता के पतन” के रूप में सामने आता है ।
4. परीक्षा और प्रशिक्षण:
मार्क्स प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से नौकरशाही के सदस्यों के चयन का भी विरोध करते है । उनका कहना है कि नौकरशाहों में नेतृत्व-गुण होना आवश्यक है, जिसकी जांच परीक्षाओं से नहीं हो पाती । ”हमने यह कभी नहीं सुना कि ग्रीस और रोम के महान नेताओं ने परीक्षाएं पास की थी ।”
मार्क्स के अनुसार परीक्षाएं इस प्रकार बनाई जाती है ताकि मात्र उच्च वर्ग के लोग ही नौकरशाही में आ सके । इसलिए नौकरशाही अपने को निम्न वर्ग से पृथक् समझती है और उसका शोषण करने में उसे कोई दुःख नहीं होता ।
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5. नियम बद्धता:
कार्ल मार्क्स के अनुसार नौकरशाही नियमों की इतनी अभ्यस्त हो जाती है कि उन्हें साधन के स्थान पर साध्य समझने लगती है । वह मनुष्य के स्थान पर नियमों को अधिक महत्व देती है ।
नौकरशाही का अंत:
मार्क्स ने ”एतिहासिक भौतिकवाद” के अंतर्गत बताया कि प्रत्येक युग का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास रहा है । यह संघर्ष शोषक और शोषित के मध्य होता है । आधुनिक पूंजीवादी युग में यह संघर्ष पूंजीपतियों (शोषक) और श्रमिकों (शोषित) के मध्य है ।
नौकरशाही जिसे पूंजीवाद को बनाये रखने के उपकरण के रूप में प्रयुक्त किया जाता है, वह इसके विनाश की परिस्थितियां भी पैदा कर देती है । क्योंकि इसके तहत निर्मित वृहदाकार संगठन मजदूरों में एकता पैदा कर देते है, नौकरशाही द्वारा निर्मित विकसित संचार साधन संगठनों में संपर्क तेज कर देते है ।
अंतत: मजदूरों की संगठित शक्ति क्रांति के जरिए पूंजीवादी व्यवस्था को उखाड फेंकने में सफल हो जाती है । चूँकि पूंजीवाद की समाप्ति के बाद मजदूरों पर नियंत्रण की जरूरत समाप्त हो जाती है, अतः नौकरशाही भी समाप्त हो जाती है । अतत: शासन की समाप्ति होकर वर्ग विहिन समाज जन्म लेता है ।