Read this article in Hindi to learn about the evaluation of weberian model of bureaucracy.
नौकरशाही का वेबर-मॉडल विभिन्न आलोचनाओं, कमियों के बावजूद एक सीमा तक स्वीकारा गया । वह प्रशासन का स्थापित सिद्धांत बन गया ।
उसकी बढ़ती स्वीकार्यता के साथ आलोचनाएं भी विभिन्न दृष्टिकोणों से की गयी जो इस प्रकार है:
(1) वेबर नौकरशाही के उन कार्यों का वर्णन नहीं करते जौ उसकी कार्यकुशलता को घटाते है । मर्टन, गोल्डनर, सेल्वनिक आदि ने नौकरशाही के ऐसे विपरित प्रकार्यो (Dys Funtions) का वर्णन किया है जो संगठन की कार्यकुशलता को घटाते है ।
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(2) वेबर-मॉडल “पदसोपान” में कठोरता से विश्वास करता है जिसमें सत्ता उच्च स्तरों पर और उत्तरदायित्व निम्न स्तरों पर केंद्रीत होता है । निम्न स्तरों पर समुचित सत्ता के अभाव में उत्तरदायित्व की पूर्ति कैसे हो सकेगी ? भारत में उच्च और निम्न तलों के अधिकारियों में यह अंतर स्पष्ट दिखायी देता है और इसलिए पदसोपान कुशलता के स्थान पर कुण्ठा का कारण बन जाता है ।
(3) वेबर की पुस्तक “रिचशाफ्ट और गेसेल शाफ्ट” के अंग्रेजी अनुवादक टालकाट पारसन्स ने भी वेबेरियन मॉडल की आलोचना तकनीकी आधार पर की है । पारसन्स के अनुसार वेबर प्रशासनिक स्टॉफ को तकनीकी स्टॉफ से बेहतर मानता है । ऐसी स्थिति में अधीनस्थों के लिये समस्या होगी कि वे किसके आदेश का पालन करें ।
(4) सबसे कटु आलोचना रैम्जेम्योर ने अपनी पुस्तक “हाउ ब्रिटेन इज गवर्नड” में की जब उन्होंने उसकी तुलना ‘अग्नि’ से करते हुए कहा कि यह सेवक के रूप में तो ठीक है, स्वामी बनकर तो सब कुछ नष्ट कर देती है । उन्हीं के शब्दों में- ”नौकरशाही मंत्री की आड़ में फलती-फूलती है ।”
(5) लार्ड हेवार्ट ”न्यू डिस्पोटिस्म” नामक अपनी पुस्तक में कहते है कि नौकरशाही एक नयी स्वैच्छाचारिता है ।
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(6) लास्की ने नौकरशाही को अर्थ दिया- ”सरकार पर अधिकारियों का पूर्ण नियंत्रण” और कहां कि यह नियंत्रण इतना अधिक होता है कि नागरिक स्वतंत्रता खतरे में पड़ जाती है ।
(7) मर्टन के शब्दों में- ”नियमों पर बल देने से नौकरशाही में कठोरता आती है ।”
(8) क्रोजीयर “ब्यूरोक्रेटिक फिनामिना (1964)” नामक अपनी पुस्तक में कहते है कि नौकरशाही ऐसा संगठन है जो अपनी भूलों से भी सीख नहीं लेता है ।
(9) राबर्ट मार्टिन (रीडर्स इन ब्यूराक्रेसी)- नियमों पर अत्यधिक जोर का परिणाम होता है- लक्ष्यों का विस्थापन । साधन मूल्य, लक्ष्य मूल्य का स्थान ले लेते है । यह तंत्र लोचहीनता, औपचारिकता और रूढ़िवादिता में विकसित होता है ।
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(10) फिलिप सेल्वनिक (टी.वी.ए. एण्ड दि ग्रास रूट्स): वे भी नौकरशाही को ”लक्ष्य विस्थापन” का दोषी मानते है । उसका कारण बताते है- सत्ता के विकेन्द्रीकरण या प्रत्यायोजन से उत्पन्न संगठन का विभाजन ।
(11) गोल्डनर (पेंटर्स आफ इंडस्ट्रियल ब्यूरोक्रेसी)- नौकरशाही में नियंत्रण हेतु नियमों का अत्यधिक विकास प्रबंधक-कार्मिक के मध्य तनाव पैदा करता है जिससे ”लक्ष्य-भटकाव” होता है । उन्होनें नौकरशाही के दो रूप बताये- कास्मोपोलिटन और लोकल ।
(12) वारेन बेनिस ”दि टेम्पारेरी सोसाइटी (समकालीन समाज)” में कहते है, नौकरशाही खत्म हो जाएगी । क्योंकि उसमें बदलती परिस्थितियों से अनुकूलन की क्षमता नहीं है । उद्भव सिद्धांत के आधार पर वेनिस कहता है कि इसका स्थान अन्य अस्थायी तंत्र लेगा ।
(13) थार्सटीन वेब्लेन- ”नौकरशाही प्रशिक्षित अयोग्यता है ।” क्योंकि ब्युरोक्रेटिक मॉडल नियमबद्धता के कारण उस अक्षमता को जन्म देता है जो बदलती परिस्थितियों से निपट सके ।
(14) विक्टर थाम्सन- इसने ब्यूरोक्रेसी के गैर इरादतन परिणामों को ब्यूसपेथॉलाजी अर्थात् नौकरशाही का रोग कहा । नौकरशाह ब्यूरोपैथिक व्यवहार करते है ।
(15) पीटर ब्लाऊ- ब्लाऊ ”ब्यूरोक्रेसी इन माडर्न सोसाइटी” में नौकरशाही की जड़ता पर प्रहार करते है । उनके अनुसार सांगठनिक उद्देश्यों की पूर्ति पर्यावरण के अनुरूप नौकरशाही में परिवर्तन पर निर्भर करती है, जिसका वेबेरियन मॉडल में घोर अभाव है ।
(16) लारेंस पीटर- नौकरशाही प्रणाली में प्रबंधक अयोग्य हो जाते है, उनका विकास तो बिल्कूल नहीं होता । इसे पीटर सिद्धांत कहा गया ।
(17) कार्ल फ्रेडरिक- “वेबर की आदर्श प्रकार की नौकरशाही में आदर्श और प्रकार दोनों एक दूसरे को खारिज करते है । जो आदर्श है वह प्रकार कैसे हो सकता है ।”
(18) लायड रूडोल्फ और सुजान रूडोल्फ- वेबरीयन मॉडल औपचारिक तार्किकता और तकनीक को बढाने के साथ सांगठनिक अकुशलता को भी बढ़ा सकती है । इसका कारण यह है कि नौकरशाही अलगाव और प्रतिरोध के स्रोत जन्म देती है और सत्ता के विरूद्ध शक्ति के संघर्ष को बढ़ाती है ।
(19) क्रील और स्पिटजर- इन्होनें वेबर के इस मत का खंडन किया कि उसकी तार्किक नौकरशाही आधुनिक परिघटना है । क्रील के अनुसार चीनी नौकरशाही (200 ईसा पूर्व) और स्पिटजर के अनुसार 19वीं सदी की फ्रांसीसी नौकरशाही में वेबर मॉडल के सभी तत्व देखे जा सकते है ।
(20) जोसेफ पालोम्बरा- अपने संपादकत्व में प्रकाशित ”नौकरशाही और राजनीतिक विकास” में पालोम्बरा नौकरशाही को परिवर्तन का कम प्रभावी साधन मानते है । उन्होंने तो विकासशील देशों में इसके स्थान पर चीनी या रूसी मॉडल को अधिक उपयोगी माना ।
(21) राबर्ट प्रेस्थस- बेबेरियन मॉडल पश्चिमी सभ्यता की देन है, अतएव विकासशील देशों में अनुपयुक्त है ।
(22) क्लाड्स ओफे- वेबर माडल सांगठनिक तार्किकता (नियमों की कठोरता) के अनुकूल है लेकिन व्यवस्थित तार्किकता (परिवेशीय अनुकूलन की क्षमता) के प्रतिकूल है ।
(23) विलियम दिलनी- इन्होंने भी वेबर-माडल को विकसित देशों के अनुकूल माना जबकि विकासशील देशों के लिये इसके स्थान पर पितृसत्तात्मक नौकरशाही को अनुकूल बताया ।
(24) फ्रेडरिग्स- इसके अनुसार वेबेरियन मॉडल अन्य सामाजिक संस्थाओं (राजनीति, अर्थव्यवस्था, समाज आदि) की तुलना में प्रशासनिक व्यवस्था को अधिक स्वायत्त मानता है और इसलिए विकसित देशों के संदर्भ में तो उपर्युक्त हो सकता है लेकिन विकासशील देशों में नहीं क्योंकि वहां प्रशासनिक व्यवस्था अन्य व्यवस्थाओं से गहरायी से अन्तर्सबंधित है ।
कुल मिलाकर वेबर-मॉडल की विशेषताएं आदर्शात्मक स्थिति में ही उपयुक्त है और चूंकि विकसित समाजों की परिस्थितियाँ आदर्श स्थिति के कुछ निकट होती है अत: वहाँ एक सीमा तक नौकरशाही मॉडल प्रासंगिकता रखता है । इसके ठीक विपरित वह पिछड़े और विकासशील देशों में उतना अनुपयुक्त है ।
यहां विकास हेतु परिवर्तन की जरूरत है लेकिन नौकरशाही तंत्र ”यथास्थितिवादी” होता है और इसलिए वह परिवर्तन का वाहक बनने के स्थान पर अवरोधक बन जाता है । अत: विकासशील देशों में नौकरशाही मॉडल को ”विकास प्रशासन” से प्रतिस्थापित करने की जरूरत पड़ती है ।