Read this article in Hindi to learn about:- 1. भर्ती का अर्थ एवं परिभाषाएं (Meaning and Definitions of Recruitment) 2. भर्ती की विचारधाराएं (Ideologies of Recruitment) 3. भर्ती और चयन (Recruitment and Selection) 4. चरण (Steps) and Other Details.

भर्ती का अर्थ एवं परिभाषाएं (Meaning and Definitions of Recruitment):

भर्ती का सरल अर्थ हैं- रिक्त पद पर कार्मिक की नियुक्ति । भर्ती प्रक्रिया में कौन सी गतिविधियाँ शामिल हो, इस आधार पर इसके संकुचित और व्यापक दो अर्थ आते हैं । संकुचित अर्थों में भर्ती, रिक्त पद योग्य उम्मीदवार की नियुक्ति तक सीमित है । व्यापक अर्थों में भर्ती रिक्त पद के लिए योग्य उम्मीदवार के चयन से लेकर उस पद पर उसकी सामर्थ्यपूर्ण स्थापना तक की कार्यवाहियों से संबंधित हैं ।

क्लिंगर- ”भर्ती योग्य आवेदकों को आकर्षित करने की प्रक्रिया है ।”

एल.डी.व्हाइट- ”रिक्त पदों के लिए आयोजित परीक्षाओं हेतु योग्य व्यक्तियों को आकर्षित करना ही भर्ती है ।”

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पी.शरण- ”भर्ती रोजगार प्रक्रिया का प्रथम चरण हैं, और सर्वत्र ही यह लोक सेवकों की भर्ती का पहला चरण स्वीकार किया जाता हैं ।”

एम.पी.शर्मा- ”भर्ती का सिधा अर्थ है, योग्य तथा उपयुक्त व्यक्ति की रिक्त स्थान पर नियुक्ति ।”

किंग्सले- ”भर्ती का अर्थ है, लोक सेवकों के लिए प्रार्थियों को प्रतियोगात्मक रूप से आकर्षित करना । यह व्यापक प्रक्रिया का एक अंग हैं । इसमें परीक्षा और प्रमाणन प्रक्रियाएं भी शामिल हैं ।”

भर्ती का सीधा अर्थ है, रिक्त सरकारी पदों पर उपयुक्त उम्मीदवारों को नियुक्त करना ।

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संकुचित अर्थों में भर्ती रिक्त पद पर योग्य उम्मीदवार की नियुक्ति तक सीमित है । व्यापक अर्थों में भर्ती रिक्त पद के लिए योग्य उम्मीदवार के चयन से लेकर उस पर उसकी सामर्थ्यपूर्ण स्थापना तक की कार्यवाहियों से संबंधित है ।

एल.डी. व्हाइट- ”रिक्त पदों एवं स्थानों के लिए प्रतियोगिता परीक्षा हेतु व्यक्तियों को आकर्षित करना ही भर्ती है ।

एम.पी. शर्मा- ”रिक्त पदों के लिए योग्य एवं उपयुक्त व्यक्ति की नियुक्ति ही भर्ती है ।”

पी. शरण- ”भर्ती रोजगार प्रक्रिया का प्रथम चरण ही है ।”

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क्लींगर- ”भर्ती योग्यता प्राप्त आवेदकों को आकर्षित करने की प्रक्रिया है ।”

भर्ती की विचारधाराएं (Ideologies of Recruitment):

i. नकारात्मक विचारधारा:

नकारात्मक भर्ती में अयोग्य और धूर्त व्यक्ति को बाहर रखने पर बल दिया जाता है । भले ही इसमें कोई योग्य भी शामिल होने से छूट जाए ।

अत: नकारात्मक भर्ती के अंग है:

1. अयोग्य और धूर्त व्यक्ति को बाहर रखना ।

2. राजनीतिक प्रभाव की समाप्ति ।

3. सिफारिश, पक्षपात और भ्रष्टाचार से लोकसेवा को बचाना ।

लोक सेवा आयोग की स्थापना का उद्देश्य तो लूट प्रक्रिया समाप्त करना था लेकिन इसकी भर्ती प्रक्रिया नकारात्मक भर्ती पर ही जोर देती है ।

किंग्सले- ”लोक सेवा आयोग द्वारा संभवत: जहां धूर्त बाहर हुए है वही कुछ दूर दृष्टि वाले योग्य भी बाहर हो गये है ।”

ii. सकारात्मक विचारधारा:

इसके विपरीत सकारात्मक भर्ती में सबसे योग्य की भर्ती पर बल दिया जाता है ।

सकारात्मक भर्ती के अंग है:

1. योग्यतम, प्रतिभासंपन्न और कार्यकुशल व्यक्ति की खोज ।

2. योग्य प्रतिभाओं को आकर्षित करने के विभिन्न प्रयास और उपाय करना । फिफनर-प्रेस्थस- ”इस शताब्दी की ”भर्ती” मानवीय समस्याओं के समाधान के लिए और मानवीय कुशलता की मांग करने वाले परमाण्विक भौतिक जगत के लिये होनी चाहिए ।”

भर्ती और चयन (Recruitment and Selection):

भर्ती और चयन को प्राय: संयुक्त रूप में प्रयुक्त किया जाता है । वस्तुत: भर्ती रोजगार का प्रथम चरण तथा चयन उसका दूसरा चरण है । माहेश्वरी के अनुसार भर्ती की प्रक्रिया में श्रम बाजार से संपर्क स्थापित किया जाता है अर्थात इसके माध्यम से आवेदकों से नियोक्ता संबंध स्थापित करता है । जबकि चयन प्रक्रिया के दौरान इन आवेदकों में से अयोग्य प्रत्याशियों की छंटनी की जाती है और योग्य व्यक्तियों का चुनाव किया जाता है ।

इस प्रकार लोक सेवा की दृष्टि से दोनों महत्वपूर्ण है । यदि उपयुक्त आवेदकों से संपर्क नहीं होगा तो श्रेष्ठतम चयन प्रक्रिया के बाद भी लोक सेवा में अपेक्षित प्रतिभावान नहीं आ सकेंगे और यदि चयन प्रक्रिया दूषित होगी तो भर्ती की मेहनत पर पानी फिर सकता है ।

भर्ती प्रणाली के चरण (Steps of Recruitment System):

भर्ती प्रक्रिया रिक्त पदों के विज्ञापन या उद्घोषणा के साथ ही शुरू हो जाती हैं । उच्चतर पदों पर लोक सेवा आयोग या विभिन्न अधीनस्थ पदों पर अन्य एजेन्सी द्वारा भर्ती विज्ञापन प्रकाशित करने के पूर्व संबंधित विभागों से रिक्त पदों की जानकारी प्राप्त की जाती हैं । अत: लोक सेवा में भर्ती का प्रथम चरण यही से शुरू माना जाना चाहिए ।

विज्ञापन जारी होने के पश्चात आवेदकों के आवेदन पत्रों की जांच अगला चरण होता है । उपयुक्त आवेदकों को परीक्षा या साक्षात्कार के लिए बुलावा भेजा जाता हैं । यदि परीक्षा आवेदक हुई तो उसके बाद रिक्त पदों के लिए निश्चित अनुपात (सामान्यतया 1 पद के विरूद्ध 3 उम्मीदवार) में साक्षात्कार हेतु प्रत्यशियों को आमंत्रित किया जाता है ।

मैरिट अंकों के आधार पर प्रत्याशियों को चयनित घोषित किया जाता है । नियुक्ति देने के पूर्व चयनितों का चरित्र- सत्यापन और चिकित्सकीय परीक्षण भी करवाया जाता है । अन्तत: उन्हें पद पर स्थापित कर दिया जाता हैं । यद्यपि अधिकांश पदों पर व्यवहारिक पद स्थापना के पूर्व उन्हें आवश्यक प्रशिक्षण दिया जाता हैं ।

अत: भर्ती प्रणाली के सामान्य चरण है:

1. संचार माध्यमों में परीक्षा का विज्ञापन ।

2. परीक्षा का आयोजन ।

3. नियुक्ति हेतु बुलावा भेजना ।

4. उन्हें पद पर नियुक्त करना ।

5. उचित स्थानों पर स्थापित करना ।

6. प्रशिक्षण देना ।

भर्ती की प्रणालियां (Types of Recruitment Systems):

प्रमुख प्रणालियां है:

1. केडेट प्रणाली:

रक्षा सेवाओं में अपनायी जाती है । कम आयु (16 से 20) में ही भर्ती, तथा लम्बे समय तक प्रशिक्षण दिया जाता है ।

2. सामान्य मानसिक योग्यता:

भारत व यूरोप में प्रचलित है । इसका उद्देश्य लोक सेवा में व्यापक शैक्षिक योग्यता और मानसिक योग्यता वाले उम्मीदवार को लेना है । इससे लोक सेवा वृत्ति का जन्म होता है ।

3. विशेषज्ञ भर्ती प्रणाली:

जब विशिष्ट तकनीकी ज्ञान व अनुभव वाले व्यक्ति को भर्ती करना हो । आयु सीमा 18-45 वर्ष होती है । अमेरिका व कनाडा में यही प्रचलित है । यहां लोक सेवा का वृत्तिक रूप नहीं है, पहले से कार्यरत व्यक्ति भी आवेदन कर सकता है ।

भर्ती की पद्धतियाँ (Methods of Recruitment):

परंपरागत भर्ती की पद्धतियां:

भर्ती के परंपरागत स्वरूप में कुलीनता, धनाड्यता, सिफारिश आदि का महत्व था ।

परंपरागत भर्ती पद्धतियों के निम्न स्वरूप प्रचलित रहे:

1. पदों का विक्रय या कार्यालयों का विक्रय:

यह क्रांति पूर्व फ्रांस में प्रचलित थी । यहां सरकारी पदों की नीलामी होती थी । ऊंची बोली लगाने वाले को संबंधित पद प्राप्त हो जाता था । स्पष्ट है कि धनी व्यक्ति ऐसे पदों को खरीद लेते थे ।

2. प्रश्रय पद्धति:

अपने-अपनों के बीच सरकारी पदों की बन्दर-बांट प्रश्रय पद्धति कहलाती है । 19वीं शताब्दी के भारत और यूरोप में यह पद्धति पहले 60 वर्षों तक व्याप्त रही । इसमें नियुक्ति अधिकारी कार्मिक की नियुक्ति रिश्तेदारी या व्यक्तिगत निष्ठा या राजनीतिक पूर्वाग्रहों के आधार पर करता है ।

3. लूट पद्धति:

अमेरिका इसका घर रहा । 1883 के पेण्डलटन अधिनियम के पूर्व तक अमेरिका में राजनीतिक दल सत्ता में आते ही अपने समर्थकों को विभिन्न पदों पर बैठा देते थे । पूर्व के कार्मिकों को बर्खास्त कर दिया जाता था ।

भर्ती प्राधिकारी (Recruitment Authority):

प्रत्येक देश के सरकारी ढांचे में दो प्रकृति के पद होते हैं, राजनीतिक प्रकृति और गैर राजनीतिक या प्रशासनिक प्रकृति के पद । राष्ट्रध्यक्ष, मंत्री, राज्यपाल जैसे पद राजनीतिक होते हैं, जबकि सचिव, लिपिक, चपरासी जैसे पद गैर राजनीतिक ।

दोनों पदों पर भर्ती की व्याख्या उस देश के संविधान के प्रावधानों के अधीन होती है । अधिकांशतया राजनीतिक पदों पर भर्ती जनता और उनके प्रतिनिधियों के द्वारा की जाती है तथा गैर राजनीतिक पदों पर भर्ती किसी सरकारी एजेन्सी या विभाग द्वारा ।

लोकतंत्र समर्थक कहते हैं, कि प्रमुख प्रशासनिक अधिकारियों का भी जनता द्वारा चुनाव होना चाहिए तथा जनता को उन्हें वापस बुलाने का अधिकार भी मिलना चाहिए । फ्रान्स की प्रिफेक्ट प्रणाली इसका उदाहरण हैं । बहरहाल यह विशाल राज्यों में अव्यवहारिक और समय साध्य तो हैं ही, प्रशासनिक कुशलता के लिए हानिकारक भी हैं ।

अत: प्रशासनिक पदों पर भती हेतु लोकसेवा आयोग, स्टाफ सिलेक्शन बोर्ड, मैरिट सिस्टम प्रोटेक्श्न बोर्ड, मैरिट सिस्टम प्रोटेक्श्न बोर्ड, लोक उद्दयम चयन परिषद जैसी संस्थाएं कायम की जाती हैं । ब्रिटेन में लोकसेवा आयोग (3 सदस्यीय) गठित हुआ था, जो 1968 से लोकसेवा विभाग (फुल्टन सिफारिश) का अंग बनकर कार्य कर रहा हैं, तथा इसमें अब 6 सदस्य हैं । अमेरिका में 1871-1872 में लोकसेवा अयोग बना था, जो 1875 में बंद करना पड़ा, लेकिन 1883 के पेण्डलटन अधिनियम द्वारा स्थापित होकर 1979 की पहली जनवरी तक कार्यशील रहा ।

1979 से उसका स्थान पृथक संस्थाओं ने ले लिया है । भारत में संघ, राज्य और राज्यों के संयुक्त लोकसेवा आयोग के प्रावधान अनु. 315 में किये गये हैं । साथ ही अधीनस्थों पदों पर भर्ती हेतु केन्द्र में स्टाफ सिलेक्शन बोर्ड, रेल्वे हेतु रेल्वे भर्ती बोर्ड आदि कार्यरत हैं ।

योग्यता निर्धारण की एजेंसी:

कार्मिक चयन में वस्तुनिष्ठता और निष्पक्षता लाने के लिये लोक सेवा के बाहर की एजेंसी आवश्यक समझी गयी और स्वतंत्र लोक सेवा आयोग का जन्म हुआ ।

(i) सर्वप्रथम ब्रिटेन में 1855 में लोकसेवा आयोग (3 सदस्यीय) गठित हुआ था, जो 1968 से लोकसेवा विभाग (फुल्टन सिफारिश) का अंग बनकर कार्य कर रहा है, तथा इसमें अब 6 सदस्य हैं ।

(ii) अमेरिका में 1871-1872 में लोकसेवा अयोग बना था, जो 1875 में बंद करना पड़ा, लेकिन 1883 के पेण्डलटन अधिनियम द्वारा स्थापित होकर 1979 की पहली जनवरी तक कार्यशील रहा । 1979 से उसका स्थान विभिन्न पृथक संस्थाओं ने ले लिया हैं ।

(iii) भारत में संघ, राज्य और राज्यों के संयुक्त लोकसेवा आयोग के प्रावधान अनुच्छेद 315 में किये गये हैं । साथ ही अधीनस्थ पदों पर भर्ती हेतु केन्द्र में स्टाफ सिलेक्शन बोर्ड कार्यरत है । इसके अलावा रेलवे बोर्ड और बैकिंग भर्ती बोर्ड हैं जो क्रमश: रेलवे और बैंक में भर्ती करते हैं ।

भारत में भर्ती प्रणाली (Recruitment System in India):

यह ब्रिटिश पद्धति पर आधारित है । लोक सेवा आयोग 2 चरणों में विभिन्न उच्च सेवाओं के लिए भर्ती करता है । इसके पहले चरण में प्रारंभिक परीक्षा वस्तुनिष्ठ परीक्षा के रूप में होती है । सामान्य अध्ययन का प्रश्न-पत्र 150 अंक का होता है जबकि ऐच्छिक विषय 300 अंक का होता है ।

यह छंटनी परीक्षा है इसके अंक मुख्य परीक्षा में नहीं जोड़े जाते है दूसरे चरण में लिखित परीक्षा और साक्षात्कार होता है । लिखित परीक्षा में 8 प्रश्न-पत्र होते हैं जो कि दीर्घ या लघु उत्तरीय प्रश्नों का बना होता है, प्रत्येक 300 अंक का ।

इसमें एक भारतीय भाषा, अंग्रेजी प्रश्न-पत्र और सामान्य अध्ययन के चार प्रश्न-पत्र अनिवार्य होते हैं, बाकी 4 ऐच्छिक विषयों के होते हैं । 1993 से निबंध का प्रश्न जोड़ा गया है । साक्षात्कार 300 अंक का होता है जो पहले 250 अंकों का था ।

भारत में भर्ती पद्धति की आलोचना (Criticism of Recruitment System in India):

1. कल्पना का अभाव । एपीलबी के शब्दों में, ऐसा लगता है कि रिक्त पदों के विज्ञापन वकीलों ने लिखे हैं ।

2. पुरानी घिसी-पिटी पद्धति तथा रटंत विधा पर आधारित ।

3. मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का अभाव । गोरेवाला ने साक्षात्कार के स्थान पर मनोवैज्ञानिक परीक्षणों की वकालत की ।

4. राजनीतिक दृष्टिकोण ।

5. पदोन्नति मात्र विभागों में ही होती है ।

6. साक्षात्कार पद्धति दोषपूर्ण है ।