संगठनों में संचार: प्रक्रिया, चैनल और समस्याएं | Read this article in Hindi to learn about:- 1. संचार का प्रक्रिया (Process of Communication) 2. संचार के मार्ग या नेटवर्क (Channels or Network of Communication) 3. बाधाएँ और समस्याएँ (Barriers and Problems) 4. सिद्धांत (Elements or Principles).
संचार का प्रक्रिया (Process of Communication):
क्लॉड शैनन और वॉरेन वीवर ने संचार प्रक्रिया का सर्वाधिक व्यापक रूप से इस्तेमाल होने वाला मॉडल विकसित किया ।
इस मॉडल के आठ संघटक होते हैं:
(i) स्रोत,
ADVERTISEMENTS:
(ii) एनकोडिंग,
(iii) संदेश,
(iv) मार्ग,
(v) डिकोडिंग,
ADVERTISEMENTS:
(vi) प्राप्तकर्ता,
(vii) फीडबैक,
(viii) शोरगुल ।
(i) स्रोत- संचार की शुरुआत करता है । यह विचारों, चिंतनों, आवश्यकताओं, इरादों या अन्य सूचनाओं को दूसरे व्यक्ति को भेजता है ।
ADVERTISEMENTS:
(ii) एनकोडिंग- अभिकूटन या एनकोडिंग वह प्रक्रिया है जिसमें भेजे जाने वाले विचार कूट या प्रतीकों के एक समुच्चय या अभिव्यक्ति के किसी और विन्यास में रूपांतरित कर दिए जाते हैं ।
(iii) संदेश- अभिकूटन से पैदा होने वाला वास्तविक भौतिक उत्पाद है । यह उस अर्थ का प्रतिनिधित्व करता है जो स्रोत देना चाहता है ।
(iv) मार्ग- मार्ग वह माध्यम है जिसके जरिए संदेश भेजा जाता है । यह प्रेषक (स्रोत) और प्राप्तकर्ता के बीच की जोड़ने वाली कड़ी है ।
(v) डिकोडिंग- अवकूटन या डिकोडिंग वह प्रक्रिया है जो संदेश को ऐसे रूप में बदल देती है जिसे प्राप्तकर्ता समझ सकें ।
(vi) प्राप्तकर्ता- प्राप्तकर्ता वह व्यक्ति है जिसे संदेश भेजा जाता (प्रेषित) है ।
(vii) फीडबैक- फीडबैक प्राप्तकर्ता का वह जवाब है जो प्रेषक (स्रोत) को यह जानने में सक्षम बनाता है कि संदेश उसी रूप में प्राप्तकर्ता को मिला और उसके द्वारा समझा गया जैसा कि वह वास्तव में था ।
(viii) शोरगुल- शोरगुल में संचार के हर अंग में मौजूद वे कारक शामिल हैं जो संदेश की उपयुक्तता या विश्वसनीयता को घटाते हैं । अत: यह संचार प्रक्रिया के किसी भी चरण में घटित हो सकता है ।
संचार के मार्ग या नेटवर्क (Channels or Network of Communication):
संचार के मार्ग (जिन्हें नेटवर्क के रूप में जाना जाता है) दो प्रकार के होते हैं-औपचारिक और अनौपचारिक । संचार का औपचारिक मार्ग प्रबंधन द्वारा अधिकारिक सूचना को भेजने के लिए सोचे-समझे तौर पर स्थापित किया गया होता है ।
दूसरी ओर, संचार का अनौपचारिक मार्ग एक अनाधिकारिक मार्ग है और कार्यस्थान पर सामाजिक शक्तियों के काम करने का परिणाम होता है । इसे ‘ग्रेपवाइन’ के नाम से भी जाना जाता है और यह औपचारिक संचार को संपूर्ण बनाता है । औपचारिक संचार नेटवर्कों के चार लोकप्रिय प्रकार हैं- शृंखला, तारा, वृत्त और सर्व संचार मार्गी ।
(i) श्रृंखला नेटवर्क (Chain Network) के अंतर्गत, सूचना व संदेश एक उच्चानीचक्रमिक निर्देश श्रृंखला में केवल ऊपर या नीचे जा सकते हैं । दूसरे शब्दों में, श्रृंखला नेटवर्क-संगठन में औपचारिक निर्देश श्रृंखला को कठोरता के साथ लागू करता है ।
(ii) नेटवर्क (Star Network) के अंतर्गत, सूचना व संदेश एक नेता, अर्थात् केंद्रित बिंदु के माध्यम से समूह सदस्यों के बीच प्रवाहित होते हैं । दूसरे शब्दों में, समूह सदस्य एक-दूसरे के साथ सीधे संचार नहीं स्थापित कर सकते बल्कि केंद्रीय नली के रूप में उन्हें नेता पर निर्भर रहना होगा । यह सर्वाधिक केंद्रीकृत औपचारिक संचार नेटवर्क है । इसे ‘चक्का’ नेटवर्क के रूप में भी जाना जाता है ।
(iii) वृत्त नेटवर्क (Circle Network) के अंतर्गत, समूह सदस्य सिर्फ पड़ोसी सदस्य से बात कर सकते हैं । दूसरे शब्दों में, सूचना व संदेश समूह सदस्यों के बीच पार्श्विक रूप से भेजे जाते हैं ।
(iv) सर्व संचारमार्गी नेटवर्क (All Channel Network) के अंतर्गत, किसी समूह के सभी सदस्य एक-दूसरे से सक्रिय तौर पर मुक्त रूप से बात कर सकते हैं । यह औपचारिक संचार नेटवर्क का सबसे विकेंद्रीकृत प्रकार है । इसे पूर्णत: जुड़े हुए नेटवर्क के रूप में भी जाना जाता हैं ।
कीथ डेविस ने संगठनों में ग्रेपवाइन (अनौपचारिक संचार) की परिघटना की जाँच की है । उन्होंने कहा कि ग्रेपवाइन ”खत्म नहीं की जा सकती, इसे किनारे नहीं किया जा सकता, छिपाया नहीं जा सकता, काटा नहीं जा सकता, बाँधा या रोका नहीं जा सकता । अगर हम इसे एक जगह दबाएँगे तो यह दूसरी जगह पैदा हो जाएगी । अगर हम इसका एक स्रोत इससे काट दें तो यह दूसरे स्रोत पर चली जाती है- वैसे ही जैसे हम टेलीविजन सेट पर चैनल बदलते हैं…. एक प्रकार से, ग्रेपवाइन आदमी का जन्मजात अधिकार है, क्योंकि जहाँ भी आदमी समूहों में इकट्ठा होता है ग्रेपवाइन को पैदा होना ही होता है ।”
उन्होंने चार प्रकार के ग्रेपवाइन नेटवर्कों की पहचान की-एकल वलयक, गपशप, संभाव्यता और झुंड ।
(i) एकल वलयक नेटवर्क (Single Strand Network) के अंतर्गत सूचना एक से दूसरे तक जाती है, अर्थात् एक सदस्य दूसरे तक और दूसरा, तीसरे तक पहुँचाता है और यह सिलसिला जारी रहता है ।
(ii) गपशप नेटवर्क (Gossip Network) के तहत, सदस्य बिना चुनाव किए सूचना का प्रसार करता है । यानी, किसी सदस्य के पास सूचना है तो वह इसे जिससे भी मिलता है, उसे देता है ।
(iii) संभाव्यता नेटवर्क (Probability Network) में, सूचना संभाव्यता के नियम के अनुसार एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाती है । अर्थात्, एक सदस्य बेतरतीब ढंग से दूसरों को सूचना देता है, जो कुछ अन्य सदस्यों को सूचना देते हैं ।
(iv) झुंड नेटवर्क (Cluster Network) के अंतर्गत, सूचना चुने हुए लोगों के पास जाती है । अर्थात्, कोई सदस्य केवल उन्हीं सदस्यों को सूचना देता है जिन पर वह भरोसा करता है और वे इसे स्वयं कुछ अन्य चुने हुए सदस्यों तक पहुँचा देते हैं । कीथ डेविस के अनुसार, झुंड प्रकार का ग्रेपवाइन नेटवर्क सबसे लोकप्रिय है और संगठनों में काफी प्रचलित है ।
संचार के बाधाएँ और समस्याएँ (Barriers and Problems of Communication):
संगठनों में संचार प्रक्रिया को निम्न बाधाओं और समस्याओं का सामना करना पड़ता है:
i. अर्थ-विषयक बाधाएँ:
ये बाधाएँ भाषा-संबंधी दिक्कतों से जुड़ी हैं । ये बाधाएँ संचार प्रक्रिया में प्रयुक्त शब्दों और प्रतीकों की व्यक्तिगत व्याख्याओं में आने वाले अंतर के कारण पैदा होती हैं ।
रुडोल्फ फ्लेश ने अपने लेख मोर अबाउट गॉबलडिगूक (1945) में गौर किया कि ”सभी आधिकारिक संचार एक कानूनवादी घेरा विकसित कर लेते हैं जिसे मजाक में ‘गॉबलडीगूक’ भाषा कहा जाता है, जिसे समझना एक आम आदमी के लिए असंभव हो जाता है । अति-सटीक, अति-अमूर्त और अति-अवैयक्तिक होने की चाहत में आधिकारिक भाषा काफी रूखी और यहाँ तक कि असहमति योग्य बन सकती है ।”
इसी प्रकार टेरी ने कहा- ”इरादतन शब्दों का अर्थ किसी ऐसी चीज के संदर्भ में नहीं होता है जिसकी ओर इशारा किया जा सके । न तो उनका अर्थ हमेशा अलग-अलग व्यक्तियों के लिए समान होता है, न ही समान व्यक्ति के लिए हर वक्त समान रहता है ।”
ii. वैचारिक बाधाएँ:
संगठन के सदस्यों का वैचारिक परिप्रेक्ष्य और अभिमुखीकरण समान नहीं होता । यह प्रभावी संचार प्रक्रिया को प्रभावित करता है । फ़िफ़नर ने कहा- ”अगर मतांतरों को पृष्ठभूमि में रख दें, तो शिक्षा और अपेक्षा का परिणाम अलग-अलग सामाजिक और राजनीतिक विचारों में के रूप में आता है । शायद प्रभावी संचार में ये सबसे बड़ी बाधाएँ हैं और इनसे पार पाना भी सबसे मुश्किल है ।”
iii. निस्पंदन:
इसका अर्थ है- प्रेषक द्वारा प्राप्तकता को भेजी जाने वाली सूचना में जान-बूझकर और किसी उद्देश्य के साथ बदलाव । यह कई कारकों के कारण हो सकता है । लेकिन निस्पंदन की सीमा संगठन के ढाँचे के स्तरों की संख्या से तय होती है । इस प्रकार, किसी पदानुक्रम में जितने अधिक ऊर्ध्वाधर स्तर होंगे, छानने की उतनी अधिक गुंजायश होगी और जितने कम स्तर होंगे निस्पंदन की संभावना उतनी ही कम होगी ।
iv. मतांधता:
इसका अर्थ है कि किसी व्यक्ति के रुझान, राय और विश्वास उसे सही और अतिरिक्त सूचना स्वीकार करने से रोकते हैं क्योंकि यह मौजूदा स्थिति से टकराती है । यह स्पष्ट रूप से प्रभावी संचार को प्रभावित करता है ।
v. आभा मंडल प्रभाव:
जैसा कि हिक्स व गुलेट ने समझाया है- ”आभा मंडल प्रभाव द्विमूल्य चिंतन का परिणाम है । इस स्थिति में, हम चीजों को द्विभाजनों के रूप में देखते हैं । अच्छा व बुरा, सही और गलत, सफेद और काला इत्यादि । यहाँ खतरा यह है कि ज्यादातर स्थितियाँ द्विभाजन वाली नहीं होतीं और इसीलिए ऐसी सोच बेहद वास्तविक स्थितियों को अतिसरलीकृत कर सकती है ।”
vi. स्टीरियोटाड़पिंग:
इसका अर्थ है कि संचार की अंतर्वस्तु वस्तुओं और घटनाओं के अपर्याप्त विभेदों के कारण से पैदा हुई अपेक्षाओं से निर्धारित होती है । यह प्रभावी संचार में हस्तक्षेप करती है ।
vii. अन्य बाधाएँ:
उपरोक्त के अलावा संचार प्रक्रिया निम्न कारकों से प्रभावित होती है:
(i) श्रेष्ठतरों के रुख के कारण संचार की इच्छा का अभाव ।
(ii) निश्चित और मान्यता प्राप्त संचार के साधनों की अनुपस्थिति ।
(iii) संगठन का आकार और सदस्यों के बीच दूरी ।
(iv) सांस्कृतिक बाधाएँ ।
(v) फीडबैक बाधाएँ ।
संचार के तत्व या सिद्धांत (Elements or Principles of Communication):
टेरी के अनुसार, निम्न आठ कारक संचार को प्रभावी बनाते हैं:
(i) स्वयं को पूरी तरह सूचित करो ।
(ii) एक-दूसरे में परस्पर विश्वास पैदा करो ।
(iii) अनुभव की साझा जमीन तलाश करो ।
(iv) आपस में ज्ञात शब्दों को इस्तेमाल करो ।
(v) परिप्रेक्ष्य के प्रति सचेत रहो ।
(vi) प्राप्तकर्ता का ध्यान सुरक्षित करो और उसे केंद्रित किए रखो ।
(vii) उदाहरणों और दृष्टव्य सहायक सामग्रियों का प्रयोग करो ।
(viii) प्रतिक्रियाओं में देरी लाने का अभ्यास करें ।
मिलेट के लिए, किसी संचार को प्रभावी बनाने के लिए सात तत्व या सिद्धांत अनिवार्य हैं:
(i) स्पष्टता- संचार तत्व या सिद्धांत परिष्कृत व स्पष्ट होना चाहिए ।
(ii) निरंतरता- प्राप्तकर्ता की अपेक्षाओं के साथ निरंतर प्रवाह में होना चाहिए ।
(iii) पर्याप्तता- संचार पर्याप्त होना चाहिए ।
(iv) समयबद्धता- संचार सही वक्त पर होना चाहिए ।
(v) एकरूपता- संचार सभी समान व्यवहार करने वालों के लिए एक समान होना चाहिए ।
(vi) स्वीकार्यता- संचार प्राप्तकर्ता की स्वीकार्य होना चाहिए ।
(vii) लचीलापन- संचार का रूप या चरित्र में कठोर नहीं होना चाहिए ।
हाल में ही विकसित प्रबंधन सूचना तंत्र (MIS) ने संगठन संचार को बेहतर बनाया है । एमआईएस का अर्थ है- संगठन की संचार प्रक्रियाओं में सूचना तकनीक का प्रयोग । इसमें सूचना को पैदा करना, संश्लेषित करना और भेजना शामिल है । यह समस्या-समाधान, निर्णय-निर्माण और रणनीतिक नियोजन में प्रबंधकों की मदद करता है ।