संगठन में संचार: प्रकार और मीडिया | प्रबंध | Read this article in Hindi to learn about:- 1. संचार की परिभाषा (Definitions of Communication) 2. संचार के प्रकार (Types of Communication) 3. माध्यम (Media) 4. सैद्धांतिक योगदान (Theoretical Contributions).
संचार की परिभाषा (Definitions of Communication):
कीथ डेविस- ”संचार एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक सूचनाओं के गुजरने और समझने की प्रक्रिया है ।”
मिलेट- ”संचार साझा उद्देश्यों की साझा समझ है ।”
ऑर्डवे टीड- ”संचार का अंतर्निहित लक्ष्य सामान्य मुद्दों पर मस्तिष्कों को मिलाना है ।”
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न्यूटन और समर- ”संचार दो या अधिक व्यक्तियों के बीच तथ्यों, विचारों, मतों या भावनाओं का अदान-प्रदान हैं ।”
लुईस ए. एलेन- ”संचार उन सभी कामों का योग है जो एक व्यक्ति तब करता है जब वह दूसरे के दिमाग में कोई समझ पैदा करना चाहता है । इसमें बताने, सुनने और समझने की व्यवस्थित और निरंतर प्रक्रिया शामिल है ।”
चेस्टर बर्नार्ड- ”जो संचार समझा नहीं जा सकता है, उसका कोई प्राधिकार नहीं हो सकता ।”
पीटर ड्रकर- ”संचार किसी उद्यम के अंदर मौजूद विभिन्न कार्यात्मक समूहों की एक दूसरे को और एक दूसरे के कार्यों और सरोकारों को समझने की क्षमता है ।”
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इस तरह उपरोक्त परिभाषाएँ स्पष्ट कर देती हैं कि संचार का मर्म है- सूचना को समझना न कि सूचना को भेजना ।
संचार के प्रकार (Types of Communication):
संगठन संचार के तीन पहलू हैं- आंतरिक संचार, बाह्य संचार और अंतवैंयक्तिक संचार । आंतरिक संचार का सरोकार संगठन और इसके कर्मचारियों के बीच संबंध से होता है । यह ऊपर की ओर नीचे की और आर-पार हो सकता है ।
ऊपर की ओर के संचार का सरोकार कर्मचारियों के प्रबंधन के साथ संबंध और नीचे की ओर संचार का सरोकार प्रबंधन के कर्मचारियों के साथ संबंध से है । पहले में प्रदर्शन रिपोर्ट और कार्य समस्याएं होती हैं और दूसरे में आदेश व निर्देश होते हैं ।
आर-पार संचार का सरोकार संगठन में समान प्राधिकार के बीच संबंधों से है । इस प्रकार, उपरिमुखी या अधोमुखी संचार प्रकृति से ऊर्ध्वाधर होता है, जबकि आर-पार संचार प्रकृति से क्षैतिज होता है । बाह्य संचार का नाता संगठन और जनता के बीच संबंध से होता है । इसलिए इसे ‘जन संबंधों’ के नाम से जाना जाता है । अत: वैयक्तिक संचार का सरोकार कर्मचारियों के बीच के संबंधों से होता है ।
संचार के माध्यम (Media of Communication):
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संचार के माध्यम तीन प्रकार के होते हैं- दृश्य, श्रव्य और दृश्य-श्रव्य । दृश्य माध्यम में सम्मेलन, साक्षात्कार इत्यादि होता है । शृव्य माध्यम में सर्कुलर, रिपोर्ट, चित्रात्मक फॉर्म इत्यादि हैं । टेलीविजन, ध्वनि-गति, चित्र इत्यादि दृश्य- श्रव्य माध्यम होते हैं । लोक प्रशासन में सम्मेलन पद्धति ने लोकप्रियता हासिल कर ली है । यह पद्धति विलंब से बचाती है, लालफीताशाही को घटाती है और तदनुरूपता को कम करती है ।
मिलेट के अनुसार सम्मेलन पद्धति:
(i) किसी समस्या के बारे में जानकारी प्राप्त करने में सक्षम बनाती है ।
(ii) समस्या के समाधान में मदद करती है ।
(iii) निर्णयों की स्वीकृति और कार्यान्वयन हासिल करने में सक्षम बनाती है ।
(iv) संगठन में काम कर रहे अफसरों के बीच एकता का बोध पैदा करती है ।
(v) प्रशासनिक कर्मचारियों के बीच सूचना के आदान-प्रदान को बढ़ावा देती है ।
(vi) कर्मचारियों का मूल्यांकन करने में सहायता करती है ।
संचार के सैद्धांतिक योगदान (Theoretical Contributions of Communication):
निम्न विद्वानों के सैद्धांतिक योगदानों ने संचार को सांगठनिक व्यवहार का एक महत्त्वपूर्ण अंग बना दिया:
हेनरी फेयॉल- वह किसी संगठन में संचार की समस्या का व्यापक विश्लेषण देने वाले पहले प्रशासनिक चिंतक हैं । उन्होंने तेज रफ्तार के महत्व पर जोर दिया और संचार की समस्या का एक अर्थपूर्ण-समाधान दिया । यह समाधान था, ‘गैंग प्लैंक’ के रुप में संचार प्रक्रिया को तेज करना । इस नई अवधारणा का अर्थ है- काम के निपटारे में देर से बचने के लिए क्षैतिज संचार की व्यवस्था ।
चेस्टर बर्नार्ड- उन्होंने संगठन को एक सहकारी व्यवस्था के रूप में देखा; जिसके तीन तत्त्व हैं- समान उद्देश्य, योगदान करने की इच्छा और संचार । इस प्रकार, उन्होंने संचार को सांगठनिक व्यवहार के एक जीवंत गतिदायक के रूप में देखा और माना कि यह संगठन में एक महत्वपूर्ण रूप देने वाली शक्ति है ।
उनके शब्दों में- संचार की उपयुक्त तकनीक की गैर-मौजूदगी संगठन के आधार के तौर पर किन्हीं उद्देश्यों को अपनाने की संभावना को समाप्त कर देती है । संचार तकनीकें ही किसी संगठन के रूप और आंतरिक अर्थ व्यवस्था को आकार देती है ।
हरबर्ट साइमन- वह संचार को ऐसी किसी भी प्रक्रिया के रूप में परिभाषित करते हैं जहाँ निर्णयात्मक आधार संगठन के एक सदस्य से दूसरे सदस्य तक पहुँचते हैं । वे कहते हैं, कि ”यह तो जाहिर है कि संचार के बिना कोई संगठन नहीं हो सकता, क्योंकि फिर समूह द्वारा व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करने की कोई संभावना नहीं होगी ।”
बर्नार्ड की तरह, साइमन ने भी सूचना को भेजने के लिए संचार के अनौपचारिक मार्गों (जिन्हें ‘ग्रेपवाइन’ के नाम से भी जानते हैं) पर बल दिया है । उनके अनुसार, अनौपचारिक संचार व्यवस्था संगठन के सदस्यों के सामाजिक संबंधों के इर्द-गिर्द निर्मित होती है ।
साइमन संचार के अनौपचारिक मार्गों पर बल देते हैं । वे कहते है- ”ग्रेपवाइन संगठन में ‘जनमत’ के बैरोमीटर के रूप में मूल्यवान है । अगर प्रशासक इसे सुनता है तो यह उसे उन मुद्दों से परिचित करा देता है जो संगठन के सदस्यों में दिलचस्पी का विषय बने हुए हैं और यह भी बता देता है कि उनका इन मुद्दों को लेकर रुख क्या है ।”
नॉबर्ट वीनर- ये ‘साइबरनेटिक्स’ की दुनिया में अग्रणी रहे । ‘साइबरनेटिक्स’ शब्द यूनानी शब्द ‘काइबरनीट्स’ (Kybernetes) से निकला है जिसका अर्थ है- नाविक या कर्णधार । इसने संचार के समकालीन उपागमों को काफी प्रभावित किया है ।
वीनर कहते हैं कि सांगठनिक व्यवस्थाएँ ‘सकारात्मक उत्क्रम माप’ की दिशा में जाती हैं । अर्थात संगठनों में अव्यवस्था, विघटन और आत्म-विध्वंस की एक नैसर्गिक प्रवृत्ति होती है । सांगठनिक व्यवस्थाओं की इस प्रवृत्ति पर विधिवत सूचना संश्लेषक द्वारा काबू पाया जा सकता है ।
इस प्रकार, सूचना सकारात्मक उत्क्रम माप की प्रतिकारक है और सांगठनिक व्यवस्थाओं को ‘नकारात्मक उत्क्रम माप’ स्थिति में पहुँचने में सक्षम बनाती है अर्थात् एक ऐसी स्थिति जो व्यवस्था और एकीकरण की ओर जाती है ।
जैसा कि हिक्स व गुलेट ने गौर किया है, वीनर के ”सूचना फीडबैक द्वारा व्यवस्था नियंत्रण की अवधारणाओं ने इलैक्ट्रानिक कम्प्यूटर के विकास में प्रत्यक्षत: योगदान दिया । उन्होंने किसी अनुकूलन वाली व्यवस्था (जिसमें कोई संगठन भी शामिल है) की व्याख्या सूचना फीडबैक द्वारा माप और सही किए जाने पर पूरी तरह निर्भर व्यवस्था के रूप में को है ।”
संचार संगठन का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है और इसके उद्देश्यों को प्राप्त करने के अनिवार्य है । मिलेट संचार की व्याख्या ”किसी प्रशासनिक संगठन के रुधिर प्रवाह” के रूप में करते हैं । फ़िफ़नर के अनुसार संचार ‘प्रबंधन का हृदय’ है ।