Read this article in Hindi to learn about:- 1. लोक प्रशासन में नियंत्रण का अर्थ (Meaning of Control on Public Administration) 2. लोक प्रशासन में नियंत्रण की आवश्यकता (Need) 3. उद्देश्य (Objectives) and Other Details.
लोक प्रशासन में नियंत्रण का अर्थ (Meaning of Control on Public Administration):
नियंत्रण से आशय है, विचलन का पता लगाना और उसे समय दूर कर लेना । लेकिन प्रशासनिक नियंत्रण वस्तुतः जवाबदेयता को तय करने के रूप में प्रयुक्त व्यापक अवधारणा है । अंतर्गत वे सब संस्थाएँ और उनके कार्य आते है जिनके माध्यम से प्रशासन को निगरानी और नियंत्रण में रखने के प्रयास किये जाते हैं । प्रशासन पर यह नियंत्रण बाहरी रुप से विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका द्वारा रखा जाता है प्रशासन में भी आंतरिक नियंत्रण के तरीके विद्यमान रहते हैं ।
लोक प्रशासन में नियंत्रण की आवश्यकता (Need for Control on Public Administration):
लोकतंत्र में प्रशासन को विस्तृत कार्यों के सम्पादन के लिए न सिर्फ अनेकानेक अधिकारों से लैस किया जाता है अपितु स्वविवेकीय शक्तियां भी प्रदान की जाती है । इसलिए यह सुनिश्चित करना अनिवार्य हो जाता है कि ये अधिकारी अपने अधिकारी और शक्तियों का विधि प्रदत्त सीमाओं में रहकर प्रयोग करें और इस प्रकार इनके दुरूपयोग की संभावना न्यूनतम की जा सके । ऐसा प्रशासन पर सजग और प्रभावी नियंत्रण रखकर किया जा सकता है ।
एल.डी. व्हाइट- ”लोकतंत्र में सत्ता पर नियंत्रण की जरूरत है । सत्ता जितनी है, उतने अधिक नियंत्रण भी जरूरत है । लोकप्रिय सरकारी के सामने यह समस्या सदैव है कि बिना नियंत्रण को ढीला किये, उद्देश्य पूर्ति के लिये आवश्यक अधिकार कैसे दिये जायें और समुचित नियंत्रण कैसे रखा जाये ।”
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लार्ड एक्टन – ”सत्ता भ्रष्ट करती है, और पूर्ण सत्ता पूर्णतः भ्रष्ट करती है ।”
लोक प्रशासन में नियंत्रण के उद्देश्य (Objectives of Control on Public Administration):
1. प्रशासन को उद्देश्योन्मुखी बनाये रखना ।
2. लोक कल्याणकारी राज्य ने प्रशासन को अनेक कार्य- अधिकारों से युक्त किया है अतः उनके दुरूपयोग की संभावना को रोकना ।
3. प्रशासकों को प्राप्त स्वविवेकिय शक्तियों के दुरूपयोग को रोकना ।
ADVERTISEMENTS:
4. सार्वजनिक धन के दुरूपयोग पर रोक लगाना ।
5. लोकतंत्र की अपेक्षा अर्थात जनता के प्रति प्रशासन का उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना ।
6. निरंकुशता, भ्रष्टाचार, स्वैच्छाचारिता पर अंकुश रखने के लिये ।
लोक प्रशासन पर नियंत्रण- स्वरुप और साधन (Control on Public Administration – Nature and Facilities):
प्रशासन पर नियंत्रण के दो स्वरूप प्रचलित हैं:
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1. बाह्य नियंत्रण और
2. आंतरिक नियंत्रण ।
1. बाह्य नियंत्रण:
लोक प्रशासन पर बाहरी नियंत्रण चार एजेन्सीयों के माध्यम से सुनिश्चित होता है:
(i) विधायिका
(ii) कार्यपालिका
(iii) न्यायपालिका
(iv) जनता या नागरिक
विधायी नियंत्रण:
विधायिका या व्यवस्थापिका लोकतांत्रिक सरकार का सबसे प्रमुख अंग है क्योंकि यह अपनी नीतियों से देश को दिशा देती है । इसी दिशा में प्रशासन को बनाये रखने के लिये वह अनेक नियंत्रणकारी उपाय भी करती है । उल्लेखनीय है कि प्रजातंत्र के दो स्वरूपों: संसदीय और अध्यक्षीय में विधायिका के नियंत्रण भी उतने ही भिन्न हैं ।
(i) व्यवस्थापिका द्वारा नीति निर्धारण:
व्यवस्थापिका प्रशासन के कार्यों के लिए नीतियों, अधिनियमों आदि की रचना कर देती है । प्रशासन को इन्हीं अधिनियमों और नीतियों की सीमा में रहकर कार्य करना पड़ता है ।
(ii) अभिकरणों या विभागों की रचना:
विधायिका द्वारा उन एजेन्सीयों की स्थापना की जाती है जो प्रशासनिक कार्यों को अंजाम देते हैं । इन एजेन्सियों, विभागों की स्थापना के समय इनके उद्देश्यों और कार्यों का भी उल्लेख कर दिया जाता है ।
(iii) पदों का निर्धारण:
यद्यपि अनेक पदों का उल्लेख संविधान में किया गया है, विधायिका भी नये अभिकरणों की स्थापना के समय इसके अंतर्गत कार्मिक पदों का निर्धारण करती है । इस प्रकार ये पदधारी अधिकारीगण अपनी जन्मदात्री संस्था के प्रति उत्तरदायी होते हैं ।
(iv) वित्तीय नियंत्रण:
व्यवस्थापिका प्रशासन को बजट के माध्यम से धन उपलब्ध कराते समय सावधानी बरतती है और प्रशासन की हर मांग पर बहस के बाद ही उसे धन देती है । इस धन को स्वीकृत करने के पश्चात उसके व्यय पर भी नियंत्रण रखती है । इस हेतु वह लोक लेखा समिति, अनुमान समिति, सार्वजनिक उद्यम समिति के साथ महालेखा नियंत्रक एवं लेखा परीक्षक की सहायता लेती है ।
(v) जांच समितियां:
प्रशासन द्वारा किसी प्रकार की अनियमितता या लापरवाही करने पर उसकी जांच अपनी समितियों के माध्यम से संसद करवा सकती है ।
2. आंतरिक नियंत्रण:
वस्तुतः आंतरिक नियंत्रण की प्रकृति द्विमुखी होती है- सकारात्मक और नकारात्मक । पहले का संबंध कार्मिकों को कार्य-संतुष्टि और अतिरिक्त प्रोत्साहन देने से है जबकि दूसरे का संबंध कार्मिकों को दण्ड देने से ।
लोक प्रशासन पर आंतरिक नियंत्रण के साधन इस प्रकार हैं:
(i) पदसौपानिक संरचना द्वारा उत्पन्न नियंत्रण । इसमें उच्च अधिकारी अधीनस्थ का नियंत्रण होता है ।
(ii) निरीक्षण
(iii) बजटरी नियंत्रण
(iv) कार्यकुशलता का सर्वेक्षण
(v) व्यवसायिक मानदंड जिनका पालन करना कार्मिकों के लिये जरूरी माना जाता है ।
(vi) प्रशासनिक नेतृत्व
(vii) पूछताछ और जांच-पड़ताल
(viii) गोपनीय प्रतिवेदन