Read this article in Hindi to learn about:- 1. नियंत्रण का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Control) 2. नियंत्रण-क्षेत्र निर्धारित करने वाले तत्व (Elements of Control) 3. महत्व (Importance).
नियंत्रण का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Control):
बिना नियंत्रण के कोई भी प्रशासन समुचित रूप से संचालित नहीं किया जा सकता । नियंत्रण की व्यवस्था का उद्देश्य यह देखना होता है कि संगठन अथवा प्रशासन की इकाई से कर्मचारी को दिए गए आदेशों, निर्देशों और नियमों के अनुरूप काम कर रहे हैं अथवा नहीं । यदि इस प्रकार की देखभाल न की जाए तो स्वाभाविक है कि संगठन अथवा कार्यालय का काम अव्यवस्थित तथा शिथिल हो जाएगा ।
इस सिद्धांत का प्रमुख प्रश्न यह है कि एक उच्च अधिकारी कितने अधीनस्थ कर्मचारियों के कार्यों का क्षमतापूर्वक अधीक्षण कर सकता है, यह नियंत्रण-क्षेत्र की समस्या है ।
डिमॉक का मानना है कि – ”नियंत्रण का विस्तार किसी उद्यम के मुख्य निष्पादक तथा उसके मुख्य साथी कार्यालयों के बीच सीधे एवं स्वाभाविक संचार की संख्या एवं क्षेत्र है ।”
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नियंत्रण की सीमा के सिद्धांत के अनुसार किसी भी अधिकारी के नियंत्रण का क्षेत्र केवल उतना ही रखना चाहिए जितना वह कुशलतापूर्वक संभाल सके । अधिकारी की सामर्थ्य से अधिक या कम क्षेत्र का होना उचित नहीं है । चूँकि मानवीय ध्यान क्षेत्र (Span of Attention) सीमित होता है, अतः कोई भी एक पदाधिकारी कर्मचारियों की असीमित संख्या का भली-भांति निरीक्षण नहीं कर सकता है ।
जान डी॰ मिलेट की मान्यता है कि – ”अनुभव और मनोवैज्ञानिक अनुसंधान दोनों इस बात की पुष्टि करते है कि किसी भी प्रशासकीय अधिकारी की पर्यवेक्षण क्षमता की सीमा रहती है ।”
यदि किसी अधिकारी की सामर्थ्य से कम नियंत्रण क्षेत्र रखा जाए तो इसका मतलब होगा कि उसकी क्षमताओं और सामर्थ्य का पूरा लाभ नहीं उठाया जा रहा है । यदि उसकी क्षमता से अधिक नियंत्रण उसे सौंपा गया तो उसकी प्रशासकीय कठिनाईयां बहुत बढ़ जाएंगी । इससे संगठन को लाभ होने के स्थान पर हानि ही होगी ।
नियंत्रण क्षेत्र की सीमा क्या है?:
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नियंत्रण क्षेत्र की सीमा क्या होनी चाहिए यह एक विवाद का विषय रहा है । इस प्रश्न पर विद्वानों में मतभेद है । जहां नियंत्रण क्षेत्र का असंतुलित विस्तार हानिकारक है, वहां क्षेत्र का बहुत सीमित होना भी बुरा है । हेनरी फेयोल का मत है कि, ”एक बड़े उद्यम के शिखर पर स्थित प्रबंधक के नीचे पाँच या छ: से अधिक अधीनस्थ कर्मचारी नहीं होने चाहिए ।”
एल॰ उर्विक के विचार में – ”उच्च पदाधिकारियों के लिए आदर्श संख्या चार होगी और निम्न स्तर के कर्मचारियों के लिए आठ या बारह ।”
ग्रेक्यूनस लिखता है कि – ”कोई उच्च अधिकारी पाँच अथवा छ: अधीनस्थ कर्मचारियों से अधिक कार्य का उचित निरीक्षण नहीं कर सकता ।”
सैनिक संगठन के संबंध में सर हैमिल्टन ने लिखा है कि – ”एक औसत मानव मस्तिष्क तीन से छ: अन्य मस्तिष्कों का ही प्रभावशाली निरीक्षण कर सकता है ।” अतः इससे स्पष्ट है कि कोई उपयुक्त संख्या देने में सभी विद्वानों का एकमत नहीं है । फिर भी, विद्वान यह निश्चित करने के लिए अवश्य प्रयत्नशील है कि नियंत्रण के विस्तार क्षेत्र की लम्बाई क्या होनी चाहिए?
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सामान्य सहमति यह पाई जाती है कि:
1. प्रत्येक स्तर पर एक निश्चित नियंत्रण क्षेत्र होता है और यदि इस सीमा का उल्लंघन किया जाए तो कार्य के अवरूद्ध होने की संभावना उत्पन्न हो सकती है ।
2. नियंत्रण क्षेत्र में चार तत्वों के कारण विविधता उत्पन्न होती है- कार्य, व्यक्तित्व, काल या समय और स्थान ।
नियंत्रण-क्षेत्र निर्धारित करने वाले तत्व (Elements of Control):
नियंत्रण क्षेत्र को कुछ तत्वों पर निर्भर बताया जाता है जो इस प्रकार हैं:
1. कार्य:
अगर अधिकारी और कर्मचारियों के कार्यों की प्रकृति एक समान हो तो एक अधिकारी अधिक कर्मचारियों को नियंत्रित कर सकता है ।
2. व्यक्तित्व:
किसी भी संगठन में व्यक्तित्व एक बहुत ही महत्वपूर्ण तत्व होता है यदि अधीक्षक का व्यक्तित्व बहुत ऊँचा है, उसमें नेतृत्व की असाधारण क्षमता है उसके कार्य करने की गति तीव्र है तो वह कर्मचारियों की काफी बडी संख्या पर नियंत्रण रख सकता है ।
3. काल या समय:
यदि संगठन पुराना और जमा हुआ हो तो नियंत्रण का क्षेत्र सरलता से विस्तृत किया जा सकता है जबकि नये संगठनों के सामने नई-नई समस्याएं उत्पन्न होती रहती हैं । अतः नियंत्रण क्षेत्र सीमित होता है ।
4. स्थान:
अगर कार्यालय भौगोलिक दृष्टि से एक ही स्थान पर है तो नियंत्रण क्षेत्र विस्तृत होगा बजाय इसके कि कार्यालय दूर-दूर स्थित हों ।
नियंत्रण-क्षेत्र की धारणा में परिवर्तन:
नियंत्रण क्षेत्र की पुरानी धारणा आज तेजी से बदलती जा रही है । प्रशासन में स्वचालन का प्रयोग बढ़ रहा है और संचार के माध्यम विस्तृत बढ़ते जा रहे हैं । लोक-सेवा में विशेषज्ञों की संख्या में अधिकाधिक वृद्धि होती जा रही है । हाल ही के क्यों में तकनीकी ज्ञान में भारी प्रगति हुई है ।
अतः इन्हीं कारणों के फलस्वरूप नियंत्रण क्षेत्र को पहले की अपेक्षा काफी विस्तृत कर देना संभव हो गया है । आज विशेषज्ञ अपने काम में अनाड़ियों का हस्तक्षेप नहीं चाहते अतः संगठन के परंपरागत संस्थान में ही परिवर्तन हो रहा है ।
विशेषज्ञों के बढ़ते हुए महत्व और स्वतंत्रता के कारण मुख्य निष्पादक का कार्य नियंत्रण की सीमा की अपेक्षा समन्वय का अधिक महत्व होता जा रहा है ।
नियंत्रण-क्षेत्र की सीमा का महत्व (Importance of Control):
नियंत्रण के क्षेत्र की समस्या सोपान क्रम वाले संगठनों में पायी जाती है जहाँ एक के बाद एक कई स्तर और सीढियाँ होती हैं । प्रत्येक स्तर की जिम्मेदारी किसी एक व्यक्ति पर होती है । किसी संगठन में कितने स्तर होने चाहिए, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उस संगठन में निचले स्तर पर कर्मचारी कितने हैं जिनका निरीक्षण किया जाना है और प्रत्येक वरिष्ठ अधिकारी कितने अधीनस्थों का कारगर ढंग से निरीक्षण कर सकता है ।
इससे पता चलता है कि पद-सोपान एवं नियंत्रण के क्षेत्र में निकट का संबंध है । इसीलिए किसी संगठन में एक वरिष्ठ अधिकारी के नियंत्रण के क्षेत्र को ध्यान में रखकर पद सोपान में स्तरों की सीढ़ियों का निर्धारण किया जाना चाहिए ।
यदि किसी वरिष्ठ अधिकारी से उसकी क्षमता से अधिक संख्या में कर्मचारियों के नियंत्रण की उम्मीद की जाएगी तो उससे कार्य में विलंब होगा और अकुशलता बढ़ेगी । किसी संगठन के कार्य की गुणवत्ता उसके कारगर नियंत्रण और निरीक्षण पर निर्भर करती है ।