Read this article in Hindi to learn about the executive control over public administration.

वस्तुतः देखा जाये तो कार्यपालिका व्यवस्थापिका की एजेन्ट के रूप में प्रशासन कार्य चलाती है । प्रशासन स्थायी कार्यपालिका है जो अस्थायी राजनैतिक कार्यपालिका के नियंत्रण में रहकर कार्य करता है और उसके प्रति ही प्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी है ।

प्रशासन को में कार्य करने के कार्यपालिका दबाव बनाये रखती है । लेकिन यह कार्य कठिन है क्योंकि प्रशासनिक अधिकारी अधिक दक्ष, अनुभवी और योग्य होते हैं, इसके विपरीत राजनीतिज्ञों में इस क्षमता व गुणों का अभाव पाया जाता है ।

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कार्यपालिका द्वारा प्रशासन पर नियंत्रण रखने के निम्नलिखित साधन हैं:

1. नीति-निमार्ण द्वारा नियंत्रण:

मुख्य कार्यपालिका ही मुख्य प्रशासक होती है तथा नीति निर्माण में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है । वास्तव में शासन द्वारा निर्मित नीतियों को लोक-सेवकों द्वारा लागू किया जाता है और ये लोक सेवक कार्यपालिका के प्रति उत्तरदायी होते हैं ।

वस्तुतः विभागीय अधिकारी प्रत्यक्षतः और पूर्णतः मंत्री और प्रधानमंत्री के प्रति उत्तरदायी होते हैं । अमेरिका में यह उत्तरदायित्व राष्ट्रपति और उनके मंत्रियों (सचिव) के प्रति होता है । कार्यपालिका के पास लोक सेवकों के निर्देशन, निरीक्षण, पर्यवेक्षण एवं नियंत्रण की शक्ति होती है ।

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2. नियुक्ति तथा निष्कासन के द्वारा नियंत्रण:

यह सबसे महत्वपूर्ण/प्रभावी साधन है नियन्त्रण का । प्रत्येक मंत्री अपने विभाग का प्रमुख होता है तथा अपने सचिव और विभागाध्यक्ष का चुनाव वह खुद करता है जिससे उनके साथ सामंजस्यपूर्ण वातावरण में कार्य कर सके । लोक सेवकों की भर्ती लोक सेवा आयोग और राज्य के लोक सेवा द्वारा सम्पन्न की जाती है परंतु भर्ती के नियम, योग्यता आदि कार्यपालिका द्वारा निर्धारित होते है ।

कार्यपालिका को लोकसेवकों को निष्काषित करने का भी अधिकार है । अनुच्छेद 310 (1) के तहत लोकसेवक संघ में राष्ट्रपति और राज्यों में राज्यपाल के द्वारा नियुक्ति, पदमुक्त होते है । भारत में कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग सर्वोच्च कार्मिक एजेन्सी है ।

इसके अलावा वित्त मंत्रालय (वित्तीय पहलू के संदर्भ में) और संघ लोक सेवा आयोग (भर्ती, पदोन्नति और अनुशासनिक कार्यवाही की अनुशंसा द्वारा) भी भारत सरकार को कार्मिक प्रशासन में सहयोग करते है । वैसे सचिव, निदेशक जैसे उच्च पदों पर नियुक्ति में मंत्री की इच्छा भी महत्वपूर्ण होती है और इसी कारण उनका नियंत्रण भी प्रभावी माना जाता है ।

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अमेरिका में यद्यपि उच्च पदों पर नियुक्ति के लिये राष्ट्रपति को सीनेट की अनुमति लेना जरूरी है लेकिन उनको हटाने में वह स्वतंत्र है । वहाँ कार्मिक प्रबंधन कार्यालय (O.P.M.) कार्मिक प्रबंध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।

3. बजटीय नियन्त्रण:

प्रत्येक विभाग अपनी वित्तीय आवश्यकता के लिए कार्यपालिका पर निर्भर है । कार्यपालिका ही बजट तैयार करती है । कार्यपालिका द्वारा आबंटित धनराशि के अन्दर ही अधिकारी अपने कार्यों का संचालन करते हैं । उनके द्वारा किए गए आय-व्यय का हिसाब रखा जाता है और लेखा-परीक्षण भी होता है । इस दिशा में वित्त मंत्रालय महत्वपूर्ण और प्रभावी भूमिका में होता है ।

बजट द्वारा प्रशासन पर नियंत्रण के प्रमुख तत्व हैं:

(i) सैद्धांतिक रूप से नीतियों, कार्यक्रमों, योजनाओं का अनुमोदन बजट के अंतर्गत होता है ।

(ii) बजट में प्रावधानित पूर्वानुमानों की स्वीकृति ।

(iii) प्रत्यायोजित अधिकारों के तहत किये गये खर्चों की स्वीकृति ।

(iv) अनुदानों का पुनर्विनियोग करके अर्थात अनुदान राशि का शीर्ष बदलकर जिससे एक मद की राशि दूसरे मद में व्यय की जा सके ।

(v) एक वित्तीय सलाहकार के माध्यम से वित्तीय सलाह उपलब्ध करवाना ।

(vi) व्यय-प्राधिकारियों के लिये वित्तीय आचार संहिता का निर्धारण करके ।

(vii) बजट के क्रियान्वयन का लेखांकन और लेखा परीक्षण करके ।

4. प्रदत्त विधायन द्वारा नियंत्रण:

विधायिका के कार्यों में वृद्धि होने से कई विषयों में विधिनिर्माण की शक्ति कार्यपालिका को सौंप दी जाती है जिसे प्रदत्त विधायन कहते हैं । कार्यपालिका विधायिका से प्राप्त ढाँचे के आधार पर विधि का निर्माण करती है जिसमें विभागों के संगठन, अधिकारियों की नियुक्ति और सेवा-शर्तें, उनके अधिकार क्षेत्र और कर्तव्यों व्यवस्थापन तथा अध्यादेश प्रशासन पर कार्यपालिका के नियंत्रण का एक महत्वपूर्ण साधन है ।

5. अध्यादेश:

संसद की मध्यावधि (जब दोनों या एक सदन सत्र में नहीं हो) के दौरान अनु. 123 के तहत कार्यपालिका (राष्ट्रपति) को अध्यादेश जारी करने का अधिकार है । इसके तहत निर्मित नीतियों का प्रभाव आम संसदीय विधान के समान ही होता है । इनके माध्यम से भी कार्यपालिका प्रशासन पर नियंत्रण अध्यारोपित करती है ।

6. लोक सेवा की आचार संहिता:

कार्यपालिका लोक सेवकों के आचरण नियम समय-समय पर तय करती है । इनका पालन करना उनके लिये अनिवार्य होता है अन्यथा उल्लंघनकर्ता पर आनुशासनिक कार्यवाही की जाती है ।

ऐसे महत्वपूर्ण केन्द्रीय आचरण नियम हैं:

(1) अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम, 1954

(2) केन्द्रीय लोक सेवा (आचरण) नियम, 1955

(3) रेलवे सेवा (आचरण) नियम, 1956

7. जनमत से अपील द्वारा:

प्रशासन पर नियंत्रण हेतु कार्यपालिका जनता की राय का इस्तेमाल भी कर सकती है । फिफनर-प्रस्थस के शब्दों में कहें तो प्रशासन के विभिन्न अंग कार्यपालिका विधायिका और दबाव समूहों को सांठ-गांठ करके दूसरी एजेन्सीयों की तुलना में अपनी स्थिति मजबूत करने का प्रयास करते हैं ।

वस्तुतः नौकरशाही नये कार्यक्रमों, योजनाओं का विरोध कर यथास्थिति बनाये रखने में विश्वास करती है क्योंकि इससे ही उनकी सत्ता सुरक्षित रहती है । एसी स्थिति में कार्यपालिका परिवर्तन पर जनमत आमंत्रित करती है ।

8. स्टाफ-अभिकरण द्वारा:

प्रशासन सुधार विभाग, योजना आयोग, मंत्रिमडलीय सचिवालय, प्रधानमंत्री कार्यालय आदि महत्वपूर्ण स्टाफ-अभिकरण भारत में कार्यरत हैं । इनकी सहायता से भी कार्यपालिका प्रशासन पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण आरोपित करती है और उनमें परस्पर समन्वय बनाने का प्रयत्न करती है ।

9. कर्मचारी निरीक्षण एकक:

प्रशासनिक कुशलता बनाए रखते कर्मचारियों की संख्या में कमी लाने तथा कार्य निष्पादन मानदंड और कार्य-मानक विकसित करने के उद्देश्य से कर्मचारी निरीक्षण एकक की स्थापना सन् 1964 में की गई थी । बदले माहौल में और सरकार द्वारा बेहतर शासन तथा सेवाओं के परिष्कृत वितरण पर जोर दिए जाने को देखते हुए कर्मचारी निरीक्षक एकक की भूमिका को पुनर्निधारित किया गया है । इस एकक को अब इस तरह से तैयार किया गया है कि वह संबंधित मंत्रालयों और स्वायत्त संगठनों को संगठनात्मक सुधार हेतु प्रेरित कर सकें ।

डॉ. अवस्थी एवं माहेश्वरी के मतानुसार कार्यपालिका द्वारा प्रशासन पर नियंत्रण रखने के लिए छह प्रकार के साधन हैं:

(i) नियुक्ति एवं निष्कासन का अधिकार ।

(ii) विधि-निर्माण एवं अध्यादेश आदि के अधिकार ।

(iii) लोक सेवा संहिता ।

(iv) कर्मचारी वर्ग के समुदाय का अभिकरण ।

(v) बजट ।

(vi) लोकमत से अपील ।