Read this article in Hindi to learn about the financial control over public administration.

सरकार जनहित के अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अनेक कार्य-योजनाएं बनाती और क्रियान्वित करती है । इसके लिए जनता से ही धन अर्जन करती है और प्रशासन के माध्यम से कार्यों का अंजाम देती हैं । सार्वजनिक धन का प्रशासन द्वारा सदुपयोग हो तथा वे अपने कार्यों को जनहित में बनाये रखे, इसके लिए उस पर पर्याप्त नियन्त्रण लोकतन्त्र की सफलता के लिए अति आवश्यक है । इस हेतु संसद, कार्यपालिका; लेखापरीक्षक आदि प्रशासन पर अपने-अपने तरीकों से नियंत्रण रखते है । यद्यपि प्रशासनिक कार्यकुशलता के लिए यह भी आवश्यक है कि नियन्त्रण का प्रयोग काफी सतर्कता पूर्वक हो ।

वित्तीय नियंत्रण से आशय:

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प्रशासन पर वित्तीय नियन्त्रण से आशय है यह देखना और सुनिश्चित करना कि प्रशासन बजट द्वारा निर्धारित सीमा और प्रावधानों के अनुसार वित्त का व्यय करें तथा उसमें नियमों, प्रक्रियाओं और मितव्ययिता के औचित्य का ध्यान रखे ।

वित्तीय नियन्त्रण की आवश्यकता (Need for Financial Control):

प्रशासनिक कार्यों में तीव्र गति से वृद्धि ने प्रशासन की शक्तियों में भी भारी इजाफा किया है । उन्हें अपने कार्यों को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने हेतु उनके स्वविवेकीय शक्तियां दी गयी है, जिसके अन्तर्गत वित्तीय शक्तियां भी शामिल है ।

इन शक्तियों का उपयोग सही दिशा में सुनिश्चित करने के लिए प्रशासन पर नियन्त्रण भी उतना ही आवश्यक है । एल.डी. व्हाइट के अनुसार- ”प्रशासन पर नियन्त्रण आवश्यक है । शक्ति जितनी अधिक है, नियन्त्रण भी उतना ही आवश्यक है ।”

चूंकि प्रशासन को अपने वित्तीय दायित्वों की पूर्ति के लिए जो धन मिलता है, वह जनता की खून-पसीने की कमायी का हिस्सा होता है, अतएव प्रशासन पर वित्तीय दृष्टिकोण से नियन्त्रण और अधिक महत्वशाली हो जाता है ।

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कुल मिलाकर प्रशासन पर वित्तीय नियन्त्रण की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से होती है:

1. सार्वजनिक धन का सही उपयोग सुनिश्चित करने के लिए,

2. वित्तीय अनियमितताओं को रोकने हेतु,

3. प्रशासन को उसकी अधिकार-सीमा में बनाए रखने हेतु,

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4. बजट प्रावधानों के अनुरूप प्रशासनिक कार्यों के स्वरूप को बनाए रखने के लिए,

5. प्रशासन में मितव्ययिता और कार्यकुशलता सुनिश्चित करने के लिए,

6. भ्रष्टाचार, गबन, घोटाले की प्रवृत्तियों पर अंकुश रखने के लिए तथा

7. बेईमानी करने वाले प्रशासकों को दण्डीत करने के लिए ।

प्रशासन पर वित्तीय नियन्त्रण के साधन (Tools of Financial Control on Administration):

संसदीय प्रजातन्त्र में वित्तीय नियन्त्रण के लिए सरकार के चार अंग दृष्ट्रिव्य है- व्यवस्थापिका, कार्यपालिका, वित्त मंत्रालय और लेखा परीक्षक । इसमें व्यवस्थापिका को लोकतन्त्र की दृष्टि से सर्वोच्च नियन्त्रक का स्थान प्राप्त है, और वह स्वयं अपने तरीकों से तथा समितियों के माध्यम से वित्तीय नियन्त्रण रखती है ।

कार्यपालिका बजट के माध्यम से वित्तीय नियम प्रक्रियाओं के द्वारा तो नियन्त्रण रखती ही है, वह वेतन, भत्ते आदि के निर्धारण द्वारा भी यह कार्य करती है । कार्यपालिका का वित्तमंत्रालय मितव्ययिता की दृष्टि से अधिक प्रभावशाली नियन्त्रक की भूमिका में होता है । लेखा परीक्षक लेखों की जांचपरान्त वित्तीय अनियमितताओं को प्रकाश में लाता है । वस्तुत: प्रत्येक साधन की अपनी अहमियत और सीमाएं है ।

भारत में वित्तीय नियन्त्रण के चार सिद्धान्तों का भी पालन किया जाता है:

1. व्यवस्थापिका की अनुमति के बगैर कर, ऋण से धन की प्राप्ति सरकार नहीं कर सकती ।

2. संचित निधि से धन निकासी, उससे व्यय, करों से धन प्राप्त करना आदि का अधिकारी लोकसभा को है ।

3. मात्र सरकार (कार्यपालिका) ही अनुदान की मांग कर सकता है ।

4. नये कर या कर वृद्धि का प्रस्ताव भी सरकार ही कर सकते हैं ।