Read this article in Hindi to learn about:- 1. नियंत्रण के क्षेत्र का अर्थ (Meaning of Span of Control) 2. नियंत्रण के क्षेत्र की अवधारणा (Concept of Span of Control) 3. तीन प्रकार के संबंध (Three Types of Relations) 4. विचारधारा (Ideologies) 5. सीमा (Limitations).
नियंत्रण के क्षेत्र का अर्थ (Meaning of Span of Control):
नियंत्रण के क्षेत्र को कई अन्य नाम भी विद्वानों ने दिये है, जैसे नियंत्रण का विस्तार (सर्वाधिक प्रयुक्त) नियंत्रण विस्तृति, प्रबंध का क्षेत्र या ध्यान का क्षेत्र । एम.पी. शर्मा ने इसे ”निगरानी की सीमा” कहा । सर्वप्रथम जनरल इयान हैमिल्टन ने अपने अनुभव के आधार पर प्रबंध के क्षेत्र के निर्धारण की जरूरत प्रतिपादित की थी । लेकिन यह ग्रेकूनास थे जिन्होंने सर्वप्रथम ध्यान के विस्तार को मनोविज्ञान के अंतर्गत प्रस्तुत किया था । एक अधिकारी के कितने अधीनस्थ हों, जिन पर वह प्रभावी निगरानी रख सके ।
परिभाषाएं:
ADVERTISEMENTS:
जिआउद्दीन खान – ”नियंत्रण के क्षेत्र से आशय है, मातहतों की वह संख्या, जिनका संचालन स्वयं प्रधान कार्यकारी कर सकता है ।”
डिमॉक – ”नियंत्रण-विस्तार से आशय उन प्रत्यक्ष और व्यवहारिक संचार-संपर्कों की संख्या और क्षेत्र से है, जो उधम के मुख्य कार्यपालिक और उसके अधीनस्थों के मध्य विद्यमान हैं ।”
एम.पी. शर्मा – ”नियंत्रण की सीमा, निगरानी की सीमा है ।”
नियंत्रण के क्षेत्र की अवधारणा (Concept of Span of Control):
ADVERTISEMENTS:
नियंत्रण के क्षेत्र की अवधारणा में दो अंतर्निहित तत्व है, एक नियंत्रण और दूसरा उसका क्षेत्र । नियंत्रण से आशय यह देखना है कि अधीनस्थ स्तरों पर कार्य का संपादन संगठन की योजनानुसार हो रहा है या नहीं । विस्तार या क्षेत्र के लिये अंग्रेजी का Span शब्द प्रयुक्त किया गया है जिसके आशय अनेक हैं – समयावधि, दो छोरों के मध्य की तय की गयी दूरी, पुल या मेहराब के आधार की दूरी, अंगुठे और कनिष्ठा को फैलाने से निर्मित दूरी । नियंत्रण के विस्तार में विस्तार या एका का संबंध नियंत्रण के दायरे से है अर्थात व्यक्तियों की उस संख्या से है जिन पर नियंत्रण रखा जाना है ।
अतः नियंत्रण के विस्तार का अर्थ – ”अधीनस्थों की वह संख्या जिन्हें उच्चाधिकारी प्रभावी ढंग से नियंत्रित कर सके ।” इस अर्थ में जो Italic शब्द है उन पर गौर करे । नियंत्रण के क्षेत्र में मुख्य मुद्दा नियंत्रण का है । यह नियंत्रण प्रभावी हो तो ही सार्थक है और इसीलिये इसकी सीमा जरूरी हो जाती है । यह सीमा अधीनस्थों की संख्या से ही तय हो सकती है ।
ग्रेकूनास की अवधारण:
फ्रांस के प्रसिद्ध प्रबंधकीय परामर्शदाता और मनौवैज्ञानिक ए.वी. ग्रेकूनास ने संगठन में उच्च-अधीनस्थ संबंधों का अध्ययन विश्लेषण करने के उपरांत एक गणितीय सूत्र प्रतिपादित किया जो ”संगठन में संबंध” (1933) नामक उनके लेख में प्रकाशित हुआ ।
ADVERTISEMENTS:
ध्यान का विस्तार क्षेत्र:
ग्रेकुनास ने नियंत्रण की सीमा को ”ध्यान का विस्तार क्षेत्र” कहा । उनके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति का एक निश्चित ध्यान क्षेत्र होता है, जिसके अन्तर्गत कार्यरत व्यक्तियों के कार्यों पर ही वह उचित ध्यान रख पाता है ।
संबंधों की जटिलता:
ग्रेकूनास ने बताया कि संगठन में संबंध इतने आसान नहीं होते हैं, जितने दिखायी देते हैं । उनके अनुसार अधीनस्थों की संख्या मात्र ही ”ध्यान के क्षेत्र” को निर्धारित नहीं करती अपितु इनसे निर्मित संबंध इसका निर्धारण करते हैं ग्रेकूनास कहते हैं कि, ”अधीनस्थों की संख्या में संगठन और उसके सिक्ख जा गणितीय दर से वृद्धि संबंधों की जटिलता में ज्यामितीय दर से वृद्धि कर देती है ।”
नियंत्रण के क्षेत्र की तीन प्रकार के संबंध (Three Types of Relations in Span of Control):
ग्रेकूनास ने उच्च-अधीनस्थ संबंधों को निर्धारित करने से संबंधित अपने प्रसिद्ध 3 संबंध दिये ।
उसके अनुसार उच्च और अधीनस्थ के मध्य कुल 3 प्रकार के संबंध पाये जाते हैं:
1. प्रत्यक्ष एकल संबंध:
यह प्रत्येक इकहरा संबंध है जिसकी दिशा एक है, उच्च से अधीनस्थ की ओर । यह उच्च अधिकारी के अपने अधीनस्थों के साथ पाये जाने वाले संबंध है । यदि किसी अधिकारी X के अधीनस्थों की संख्या (3 क्रमशः A, B और C हो तो प्रत्यक्ष एकल संबंध भी 3 होंगे ।
जो इस प्रकार हैं:
X का A से 1 संबंध
X का B से 1 संबंध
X का C से 1 संबंध
कुल 3 संबंध
स्पष्ट है कि इसमें A.B.C के X से संबंध शामिल नहीं है । न ही इसमें अधीनस्थों के परस्पर संबंध शामिल हैं ।
2. प्रतिसंबंध या प्रत्यक्ष आड़े-तिरछे संबंध:
इसके अंतर्गत मात्र अधीनस्थों के परस्पर अंतर्सबंध शामिल हैं ।
उपरोक्त उदाहरण लें तो अधीनस्थों की संख्या 3 होने पर प्रति संबंध 6 होंगे जिन्हें,
A का B से 1 संबंध
A का C से 1 संबंध
B का A से 1 संबंध
B का C से 1 संबंध
C का A से 1 संबंध
C का B से 1 संबंध
कुल 6 संबंध
स्पष्ट है कि इसमें प्रत्यक्ष एकल संबंध शामिल नहीं है । इसमें अधीनस्थों के आड़े और तिरछे अर्थात् दोनों दिशाओं में बनने वाले संबंध मात्र शामिल हैं ।
3. प्रत्यक्ष समूह संबंध:
उच्च के अपने अधीनस्थों के साथ पाये जाने वाले प्रत्येक संभावित संबंध इसमें शामिल है ।
उपरोक्त उदाहरण लें तो अधीनस्थों की संख्या 3 होने पर प्रत्यक्ष समूह संबंध 9 होंगे ।
जिन्हें इस प्रकार प्रदर्शित कर सकते हैं:
X का A,B से
X का A,C से
X का A,B,C से
X का B,A से
X का B,C से
X का B,C,A से
X का C से
X का C,A से
X का C,A,B से
कुल 9 संबंध स्पष्ट प्रत्यक्ष समूह संबंधों का केन्द्र उच्चाधिकारी है और अधीनस्थों के सभी परस्पर संबंध उच्चाधिकारी से होकर गुजरते हैं ।
ग्रेकूनास का प्रसिद्ध फार्मूला:
उल्लेखनीय है कि ग्रेकुनास ने नियंत्रण के क्षेत्र से संबंधित एक ही गणितीय सूत्र दिया है । इस सूत्र के अनुसार अधीनस्थों की संख्या गणितीय दर से बढ़ती है ।
ग्रेकुनास द्वारा दिया गया सूत्र है:
संबंधों की संख्या = n (2n-1+ n-1)
इसे इस प्रकार भी लिखा जा सकता है:
संबंधों की संख्या = n(2n/2) + n-1
यहां n अधीनस्थों की संख्या है ।
उदाहरण:
यदि अधीनस्थों की संख्या 2 हो ।
अर्थात
n=2 तब,
कुल संबंधों की संख्या = 2(22-1+2-1) = 2(2+1) = 6
उदाहरण:
अब अधीनस्थों की संख्या में गणितीय दर (अर्थात 2 के बाद 3) से वृद्धि करते हैं । अधीनस्थों की संख्या n=3 करते हैं ।
तब:
कुल संबंधों की संख्या = (23-1 + 3-1) = 18
निष्कर्ष:
अधीनस्थों की संख्या में मात्र 1 की वृद्धि की गयी लेकिन कुल संबंधों की संख्या में 18-6=12 की वृद्धि हो गयी । ग्रेकुनास ने स्पष्ट किया है कि अधीनस्थों की संख्या में 25 प्रतिशत वृद्धि कुल संबंधों की संख्या में 127 प्रतिशत की वृद्धि कर देती है ।
तीन पृथक सूत्र:
उल्लेखनीय है कि ग्रेकुनास ने मात्र एक ही गणितीय सूत्र दिया है जो कुल संबंधों की व्याख्या करता है । उसने इसके साथ तीन प्रकार के संबंधों का भी उल्लेख किया है लेकिन इनके लिये गणितीय सूत्र नहीं दिये हैं ।
प्रत्यक्ष एकल संबंध = n
प्रति संबंध या आड़े-तिरछे संबंध = n(n-1)
प्रत्यक्ष समूह संबंध = n(2n-1-1)
इनमें n= अधीनस्थों की संख्या है ।
A. जियाउद्दीन खान की अवधारणा:
वस्तुतः नियंत्रण की सीमा प्रबंध की एक समस्या है और यह जियाउद्दीन खान के शब्दों में दो तत्वों से संबंधित है:
1. प्रभावी नियंत्रण के लिए नियंत्रण की सीमा को संकुचित रखना ।
2. संगठन को जटिलता से बचाने के लिए पदसोपान के स्तरों को सीमित रखना ।
खान के अनुसार यदि नियंत्रण की सीमा सीमित रखते तो पदसोपान के स्तर बढ़ जाते हैं और पदसोपान के स्तर कम करते हैं तो नियंत्रण की सीमा बढ़ जाती है ।
नियंत्रण का क्षेत्र यह मानकर चलता है कि:
1. प्रत्येक व्यक्ति का एक सक्रिय नियंत्रण क्षेत्र होता है ।
2. अधीनस्थों की संख्या में वृद्धि करने पर सक्रिय नियंत्रण कमजोर होता है ।
3. ऊपर के स्तर पर नियंत्रण क्षेत्र सीमित होता है क्योंकि उच्च प्रशासकों को अन्य महत्वपूर्ण कार्यों में अधिक समय देना पड़ता है ।
B. उर्विक की अवधारणा:
पारम्परिक सिद्धान्तकार एल उर्विक के अनुसार संगठन की कार्य कुशलता के लिये जरूरी है कि पदसोपान के स्तर और नियंत्रण की सीमा दोनों में संतुलन स्थापित हो । लेकिन इन दोनों में भी नियंत्रण की सीमा कम रखने को प्राथमिकता दी जानी चाहिये क्योंकि इसकी अधिक कर देने का मतलब होगा, उच्च-अधीनस्थ के मध्य प्रशासनिक और सामाजिक दूरी भी बढ़ा देना ।
उर्विक के अनुसार:
1. नियंत्रण का क्षेत्र संगठन में प्रशासनिक और सामाजिक दूरी के समानुपाती होता है । अधिक नियंत्रण का क्षेत्र अर्थात अधिक प्रशासनिक-सामाजिक दूरी ।
2. किसी अधिकारी के अधीनस्थों की संख्या में जितनी वृद्धि होती है, उससे कहीं अधिक वृद्धि अधीनस्थों के परस्पर संबंधों में हो जाती है ।
3. उर्विक ने उदाहरण देते हुऐ बताया कि 5 अधिनस्थों की संख्या में एक और बढ़ाया जाय तो कार्य में केवल 23 प्रतिशत वृद्धि होगी लेकिन नियंत्रण के क्षेत्र में 100 प्रतिशत (दुगुनी से भी अधिक) वृद्धि हो जाएगी ।
नियंत्रण के क्षेत्र की विचारधारा (Ideologies of Span of Control):
नियंत्रण के क्षेत्र की सीमा को लेकर विद्वानों ने जो मत दिये हैं, उन्हें दो विचारधाराओं में रखा जा सकता है:
(i) परंपरागत विचारधारा:
यह विचारधारा नियंत्रण के क्षेत्र को प्रबंध के क्षेत्र का एक अंग मानती है । वस्तुतः फेयोल, गुलिक, उर्विक, हेमिल्टन आदि ने नियंत्रण, पर्यवेक्षण, उत्तरदायित्व, सत्ता आदि सभी को प्रबंधकीय गतिविधियों के तहत रखा और उनको सैद्धांतिक जामा पहनाने का भी प्रयास किया ।
ब्रिटिश जनरल सर इयान हेमिल्टन पहले विद्वान थे जिन्होंने प्रबंध के सिद्धांत के रूप में ”नियंत्रण विस्तार” की और ध्यान दिया था ।
सभी परंपरागत विचारक ”नियंत्रण के क्षेत्र” को सीमित रखने पर बल देते हैं क्योंकि इससे उच्चाधिकारी को-
1. उनके ऊपर प्रभावी नियंत्रण रखने में मदद मिलेगी,
2. उनके मध्य उचित समन्वय सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी और
3. प्रबंध को अपने विभिन्न दायित्वों को पूरा करने के लिये समय मिल पाएगा ।
उल्लेखनीय है कि परंपरागत विचारकों ने ही नियंत्रण के क्षेत्र को संख्या के रूप में निर्धारित करने की शुरूवात की थी ।
(ii) आधुनिक विचारधारा:
आधुनिक विचारकों का मत है कि नियंत्रण विस्तार के लिये कोई निश्चित संख्या का निर्धारण नहीं किया जा सकता हैं । उनका तर्क है कि नियंत्रण का क्षेत्र व्यक्तिगत, तकनीकी, संगठनात्मक आदि अनेक तत्वों पर निर्भर करता है, जो परिस्थितिनुसार भिन्न-भिन्न होते हैं ।
उन्होंने परंपरागत विचारकों के ”आदर्शात्मक नियंत्रण क्षेत्र” के विचार को चुनौती दी । व्यवहारिक अनुभव यह बताता है कि जो प्रबंधक किसी एक संगठन में सफल होता है, दूसरे संगठन में विफल भी हो सकता है । इसी प्रकार सीमित नियंत्रण क्षेत्र समस्या का समाधान नहीं है अपितु स्वयं भी समस्या बन सकता है ।
सेकलर हडसन के अनुसार- अत्यधिक संकुचित नियंत्रण क्षेत्र में अधीनस्थों के गहरे पर्यवेक्षण का खतरा है, जो उनकी योग्यता के पूर्ण उपयोग को बाधित करेगा । उनके अनुसार छोटे नियंत्रण क्षेत्र अर्थात संचालन की लंबी कड़ी ।
हरबर्ट साइमन ने नियंत्रण के क्षेत्र से संबंधित विरोधाभास को प्रकट किया है । उनके अनुसार कुछ विद्वान कहते हैं कि सीमित नियंत्रण का क्षेत्र कार्यकुशलता बढ़ाता है क्योंकि इसमें प्रभावी पर्यवेक्षण होता है । दूसरे ऐसे विद्वान भी हैं जो यह कहते हैं कि पदसोपान के स्तर कम करने से कार्य शीघ्र गति से होंगे । लेकिन ये दोनों ही परस्पर विरोधी बातें कैसे संभव है ।
नियंत्रण की सीमा कितनी हो:
जॉन मिलेट- ”मनोवैज्ञानिक अनुसंधान और अनुभव दोनों से यह सिद्ध हुआ कि हर मस्तिष्क की कुछ सीमाएं हैं । उससे अधिक मनुष्यों का वह नियंत्रण नहीं कर सकता ।”
लार्ड हाल्डेन ओर ग्राहाम वालास के अनुसार कोई भी मुख्य कार्यकारी आसानी से 10-12 अधीनस्थों का पर्यवेक्षण कर सकता है ।
अर्नेस्ट डेल ने अमेरिका के 100 उधमों के अध्ययन के पश्चात पाया कि मुख्य कार्यकारी के अधीन औसतन 8 अधीनस्थ थे, यद्यपि यह सीमा अधिकतम 20 थी । जे.सी.वर्थी ने नियंत्रण की सीमा 20 बतायी है ।
ग्रेकुनास- ”प्रत्येक अधिकारी की ध्यान की सीमा निश्चित होती है और औसतन यह 5 या 6 हो सकती है ।”
हेनरी फेयोल- ”इनके अनुसार उच्च स्तर पर नियंत्रण की सीमा 5 या 6 से अधिक नहीं होनी चाहिए ।”
उर्विक- ”उच्च स्तर पर 5 या 6 और निम्न स्तर पर 8 या 12 के बीच नियंत्रण की सीमा होनी चाहिए ।”
इयान हैमिल्टन- ”एक औसत मानव मस्तिष्क 3 से 6 अन्य मस्तिष्कों पर नियंत्रण कर सकता है ।”
ई. ब्रेच- ”नियंत्रण की सीमा 7 होनी चाहिए ।”
नियंत्रण के क्षेत्र की सीमा (Limitation of Control of Span):
(1) स्वचालन का प्रशासन में बढ़ता उपयोग जिसने एक ही स्थान पर बैठे-बैठे अनेक स्थानों पर नियंत्रण करने की सुविधा प्रदान की है ।
(2) आधुनिक टेक्नोलॉजी ने कार्य को मशीन आधारित कर कॉफी तीव्र कर दिया है, इससे नियंत्रण की सीमा की परामागत अवधारणा में आमूल परिवर्तन हो गया है ।
(3) माहेश्वरी-अवस्थी के शब्दों में उपर्युक्त कारणों से वह सीमाहीन हो गई है ।
(4) इसी प्रकार प्रबन्ध सूचना तन्त्र (MIS) और विशेषज्ञों की बढ़ती संख्या और प्रभाव ने भी नियंत्रण की सीमा को शिथिल किया है, क्योंकि विशेषज्ञ नियंत्रण को स्वीकार नहीं करते ।
(5) लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि इस सिद्धान्त की कोई उपयोगिता नहीं रह गयी है अपितु नवीन सन्दर्भ में इस सिद्धान्त का भी नवीकरण हो गया है ।
(6) शेरवुड और फिफनर कहते हैं कि विभिन्न लाभों से युक्त नियन्त्रण विस्तार का सिद्धान्त प्रत्येक पुस्तक में यथोचित स्थान का स्वामी है ।