समन्वय: अर्थ, प्रकार और तकनीकें | प्रबंध | Read this article in Hindi to learn about:- 1. समन्वय का अर्थ (Meaning of Coordination) 2. समन्वय के प्रकार (Types of Coordination) 3. महत्व (Importance) 4. तकनीकों (Techniques) 5. सैद्धांतिक योगदान (Theoretical Contributions) 6. सीमाएँ या बाधाएँ (Limits or Hindrances).
Contents:
- समन्वय का अर्थ (Meaning of Coordination)
- समन्वय के प्रकार (Types of Coordination)
- समन्वय के महत्व (Importance of Coordination)
- समन्वय के तकनीकों (Techniques of Coordination)
- समन्वय के सैद्धांतिक योगदान (Theoretical Contributions of Coordination)
- समन्वय के सीमाएँ या बाधाएँ (Limits or Hindrances of Coordination)
1. समन्वय का अर्थ (Meaning of Coordination):
समन्वय या तालमेल प्रशासन का एक अनिवार्य अंग होता है । मूनी के अनुसार- “समन्वय संगठन का पहला सिद्धांत है और इसमें वे सभी सिद्धांत शामिल हैं जो इसके अधीन हैं और जो इसके कार्य करते है ।”
लेकिन समन्वय महज एक जरिया है न कि स्वयं लक्ष्य । न्यूमैन कहते हैं- “यह (तालमेल) अलग गतिविधि नहीं है बल्कि एक नियति है जो प्रशासन के सभी चरणों में व्याप्त होनी चाहिए ।”
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तालमेल के सकारात्मक व नकारात्मक दोनों ही निहितार्थ होते हैं- सकारात्मक रुप में इसका अर्थ है- किसी संगठन के व्यक्तियों और इकाइयों के बीच सहयोग और टीमवर्क पैदा करना ।
नकारात्मक रूप में इसका अर्थ है- किसी संगठन के व्यक्तियों या इकाइयों के बीच विवादों, अनिरंतरताओं झगड़ों, परस्पर दुहराव और एक दूसरे को काटते उद्देश्यों पर काम करने को समाप्त करता है ।
परिभाषा (Definition):
डब्ल्यू. एच. न्युमैन- “तालमेल काम को पूरा करने की उचित मात्रा, समय और निर्देशन को देने के लिए किए गए प्रयासों क्रमबद्ध रूप से समकालीन बनाना है, जिसका परिणाम कथित उद्देश्य के लिए सामंजस्यपूर्ण और एकरूप कार्यों में सामने आना है ।”
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जी.आर. टेरी- ”समन्वय अंगों का एक-दूसरे के साथ व्यवस्थापन और अंगों के कार्य और गतिमानता का समय में व्यवस्थापन है ताकि प्रत्येक अंग संपूर्ण नतीजे में अपना सर्वाधिक योगदान दे सके ।” एल.डी.व्हाइट- ”समन्वय वह प्रक्रिया है जो अलग संघटकों को शक्तियों और प्रभाव की एक संशिलष्ट रचना पर संकेन्द्रित करती है जो परस्पर स्वतंत्र तत्वों को साथ काम करने योग्य बनाती है ।”
जे.सी. चार्ल्सवर्थ- ”समन्वय किसी उपक्रम के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए तमाम अंगों को एक व्यवस्थित में जोड़ता है ।” जे.डी.मूनी- ”समन्वय एक समान लक्ष्य की पूर्ति के प्रयास में कार्यों की एकरूपता लाने के लिए सामूहिक प्रयास क्रमबद्ध व्यवस्थापन है ।” सेकलर-हडसन- ”समन्वय काम के विविध अंगों में अंतर्सम्बंध स्थापित करने का बेहद महत्त्वपूर्ण कर्तव्य है ।”
उपरोक्त परिभाषाएं यह साफ कर देती हैं कि तालमेल आपसी सहयोग से कहीं अधिक बड़ा काम है । टेरी के अनुसार- ”तालमेल प्रयासों में मेल बिठाना है” जबकि ”आपसी सहयोग एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति या व्यक्तियों के साथ एक समान लक्ष्य की ओर उठाया गया सामूहिक कदम है ।”
2. समन्वय के प्रकार (Types of Coordination):
तालमेल इस प्रकार वर्गीकृत है:
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i. आंतरिक और बाह्य:
आंतरिक समन्वय का नाता एक संगठन में काम कर रहे व्यक्तियों की व्यक्तिगत गतिविधियों के साथ तालमेल बिठाने से है । इसे कार्यात्मक समन्वय के रुप में भी जाना जाता है । बाह्य समन्वय का सरोकार विभिन्न सांगठनिक इकाइयों की गतिविधियों के बीच तालमेल बिठाने से है । इसे संरचनात्मक समन्वय के रुप में भी जाना जाता है ।
ii. उर्ध्वाधर और क्षैतिज:
उर्ध्वाधर तालमेल का नाता एक खंड और दूसरे खंड, एक शाखा और दूसरी शाखा, एक प्रभाग और दूसरे प्रभाग या एक विभाग और दूसरे विभाग की गतिविधियों के बीच तालमेल बिठाने से है । क्षैतिज समन्वय का सरोकार एक अफसर और उसके कर्मचारी, एक शाखा और एक प्रभाग, एक प्रभाग और एक विभाग के बीच तालमेल बिठाने से है ।
iii. प्रक्रियात्मक और मौलिक:
यह श्रेणीकरण हरबर्ट ए. साइमन ने प्रतिपादित किए हैं । प्रक्रियात्मक समन्वय की मिसाल स्वयं संगठन की संरचना से मिलती है जो अपने सदस्यों के बीच के औपचारिक संबंधों के तरीके को निर्धारित करती है । मौलिक तालमेल का सरोकार संगठन की गतिविधियों की अंतर्वस्तु से है ।
3. समन्वय के महत्व (Importance of Coordination):
निम्न कारणों से तालमेल संगठन के सुचारू और सफल रूप से काम करते रहने के लिए अनिवार्य है:
(i) संगठन के कार्य के कामों में टकराव और दुहराव से बचना । यह खर्च को कम बनाए रखना सुनिश्चित करता है ।
(ii) कर्मचारियों के बीच अपने काम को बेहद महत्व देने और दूसरे के काम को हल्का दिखाने की प्रवृत्ति को कम करना ।
(iii) ‘साम्राज्य-निर्माण’ की प्रवृत्ति से बचना, यानी, अपनी गतिविधियों को ज्यादा ताकत हासिल करने के लिए विस्तृत करने की प्रवृत्ति से बचना ।
(iv) विशेषज्ञों के संकीर्ण परिप्रेक्ष्य को दुरुस्त करना जो काम के अलग और विशिष्ट हिस्सों में लगे होते हैं ।
(v) सांगठनिक इकाइयों की बढ़ती संख्या की जरुरतों को पूरा करना ।
4. समन्वय के तकनीकों (Techniques of Coordination):
तालमेल की तकनीकें या तरीके निम्न हैं:
(i) योजना (तालमेल का सबसे महत्वपूर्ण तरीका) ।
(ii) संस्थागत साधन या अंतर्विभागीय बैठकों, सम्मेलनों, कमेटियों स्टाफ इकाइयों, समन्वय अधिकारियों इत्यादि जैसे सांगठनिक साधन ।
(iii) आवेदनों, नियमावलियों और नियमों जैसी प्रक्रियाओं और पद्धतियों का मानकीकरण ।
(iv) केन्द्रीकृत गृहकार्य एजेंसियां जैसे आपूर्ति के निदेशक, केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग, इत्यादि ।
(v) मौखिक और लिखित संचार ।
(vi) कर्मचारियों के बीच संस्थागत भावना का प्रसार ।
(vii) वित्त मंत्रालय आदि के साथ परामर्श, संदर्भ और भुगतान ।
(viii) सांगठनिक उच्चानीचक्रम या स्केलीय श्रृंखला, जो मूनी के अनुसार तालमेल की सार्वभौमिक प्रक्रिया का गठन करती है ।
उपरोक्त औपचारिक साधनों के अलावा, तालमेल के कई अनौपचारिक तरीके भी हैं जैसे- व्यक्तिगत संपर्क, रात्रिभोज, कॉकटेल पार्टियां, पार्टी व्यवस्था आदि अन्य ।
5. समन्वय के सैद्धांतिक योगदान (Theoretical Contributions of Coordination):
लूथर गुलिक:
वे मानते थे कि जब कार्यों के उपविभाजन से बचा नहीं जा सकता, तब तालमेल अनिवार्य बन जाता है । उनके अनुसार, तालमेल का अर्थ है- कार्य के विभिन्न अंगों के बीच अंतर्संबंध स्थापित करना । उनकी राय है कि आकार और समय तालमेल के विकास में सीमाएँ खड़ी करने वाली प्रमुख शक्तियाँ हैं ।
इसलिए उन्होंने कहा कि- ”तालमेल कोई ऐसी वस्तु नहीं जो संयोग से विकसित हो जाए । इसे बुद्धिमान, जोरदार, निरंतर और संगठित प्रयास से ही हासिल किया जा सकता है ।”
निम्नलिखित दो रास्ते गुलिक द्वारा तालमेल हासिल करने के लिए बताए गए हैं:
(i) संगठन यानी, सांगठनिक उच्चानीचक्रम द्वारा कार्य के विभिन्न अंगों को जोड़ना ।
(ii) एक विचार का प्रभुत्व अर्थात संगठन में साथ काम कर रहे लोगों के दिमाग में एक समान उद्देश्य को बैठाना ।
एम.पी. फॉलेट:
वे मानती थीं कि तालमेल प्रबंधन का मर्म है । उनके अनुसार, तालमेल का अर्थ है- ”विभिन्न अंगों की सामंजस्यपूर्ण व्यवस्था ।”
उन्होंने तालमेल के चार पहलुओं पर जोर दिया:
(i) तालमेल एक स्थिति के सभी कारकों को जोड़ने और उनके बीच के अंतर्संबंधों पर विचार करने के रूप में ।
(ii) सांगठनिक पदानुक्रम में स्थिति से असंबद्ध सीधे संपर्क द्वारा तालमेल ।
(iii) शुरुआती चरणों में तालमेल, यानी, नीति-निर्माण के चरण में ही संबंधित लोगों को शामिल कर लेना ।
(iv) एक निरंतर प्रक्रिया के रूप में तालमेल, यानी योजना से गतिविधि और गतिविधि से आगे की योजना तक ।
जे.डी. थॉम्पसन:
उन्होंने संगठन में तीन प्रकार की परस्पर निर्भरताओं की पहचान की:
(i) संग्रहीत अंतर्निर्भरता थॉम्पसन के अनुसार, एक संगठन की अनेक एकदम स्वायत्त इकाइयाँ हो सकती हैं, मगर संपूर्ण-सांगठनिक काम-काज ऐसी इकाइयों के कुल प्रदर्शन पर निर्भर है ।
(ii) क्रमिक अंतर्निर्भरता एक संगठन की इकाइयाँ इस तरह से संगठित होती हैं कि एक इकाई का परिणाम दूसरी इकाई का निवेश बन जाता है ।
(iii) परस्पर अंतर्निर्भरता किसी संगठन की इकाइयों इस तरह संगठित होती हैं कि हर इकाई के परिणाम दूसरी अन्य इकाइयों के लिए निवेश बन जाते हैं ।
उपरोक्त तीन अंतर्निर्भरताओं को जोड़ने के लिए थॉम्पसन ने तीन प्रकार की तालमेल तकनीकें बताई:
(i) मानकीकरण,
(ii) योजनानुसार तालमेल और
(iii) परस्पर व्यवस्थापन द्वारा तालमेल ।
हार्लान क्लीवलैंड:
इनकी ‘तनाव विचारधारा’ कहती है कि किसी संगठन में अधिकार क्षेत्र और विभिन्न इकाइयों के कार्यक्रम में विरोधों को पैदा करने के लिए सोची-समझी योजना बनाई जानी चाहिए ।
ऐसे अंतर्द्वद्व संगठन में जनहित के मुद्दों को केंद्रित कर देते हैं, जो अन्यथा दब जाते हैं । इस प्रकार उन्होंने कार्य के सुचारुपन को सुनिश्चित करने के लिए पूर्ण तालमेल प्राप्त करने हेतु संगठन की संरचना-निर्माण का विरोध किया ।
मैक फारलैण्ड:
उन्होंने तालमेल हासिल करने के चार रास्तों का सुझाव दिया:
(i) स्पष्टीकारक प्राधिकार और जिम्मेदारी,
(ii) जाँच और पर्यवेक्षण,
(iii) प्रभावी संचार की सहायता और
(iv) नेतृत्व के जरिए तालमेल ।
6. समन्वय के सीमाएँ या बाधाएँ (Limits or Hindrances of Coordination):
लूथर गुलिक के अनुसार– तालमेल प्राप्त करने में निम्न कारक सीमाएँ खड़ी करते हैं:
(i) व्यक्तियों और समूह के भावी व्यवहार की अनिश्चितता ।
(ii) नेताओं के बीच ज्ञान, अनुभव, विवेक और चरित्र की कमी और उनके भ्रमित और परस्पर विरोधी विचार और उद्देश्य ।
(iii) प्रशासनिक कौशल और तकनीकों की कमी ।
(iv) शामिल परिवर्ती कारकों की भारी संख्या और विशेष रूप से मनुष्यों और जीवन के बारे में मानवीय ज्ञान की अपूर्णता ।
(v) नए विचारों और कार्यक्रमों को विकसित, विचारित, बेहतर बनाने और अपनाने के लिए उचित पद्धतियों की कमी ।
सेकलर-हडसन ने निम्न बाधाओं को शामिल किया:
(i) लोक प्रशासन के आकार और जटिलता में भारी वृद्धि,
(ii) व्यक्तित्व और राजनीतिक कारक,
(iii) लोक प्रशासन के संबंध में विवेकवान और ज्ञानी नेताओं की कमी और
(iv) लोक प्रशासन का अंतर्राष्ट्रीय आयामों में त्वरित विस्तार ।