Read this article in Hindi to learn about the meaning and role of coordination in an organization.
समन्वय संगठन का प्रथम सिद्धांत है, क्योंकि समन्वय के अभाव में कोई भी संगठन अपना कार्य सुचारु रूप से संपन्न नहीं कर सकता । अतः उसे कार्य में देरी और दोहरेपन की समस्या का सामना भी करना पड़ सकता है । मूनी का मत है कि समन्वय संगठन का सर्वप्रथम सिद्धांत है जिसके द्वारा संगठन के अन्य सिद्धांतों को क्रियान्वित किया जाता है ।
समन्वय द्वारा संगठन के आंतरिक उद्देश्यों को स्पष्ट किया जाता है । बडे रूप पर संगठनों के विकास से समन्वय की प्रक्रिया अत्यंत महत्वपूर्ण बन गई है । समन्वय के बिना कोई भी संगठन लगातार अपने ध्येय की ओर नहीं बढ सकता ।
क्योंकि उसके भिन्न-भिन्न सदस्यों की क्रियायें एक-दूसरे को काट देंगी और बेकार कर देंगी । समन्वय संगठन को साध्य की ओर ले जाने वाला साधन है । न्यूमैन के शब्दों में, ”यह कोई पृथक क्रिया नहीं है बल्कि एक ऐसी अवस्था है जो प्रशासन के सभी चरणों में रम गयी है ।”
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अर्थ और परिभाषा:
समन्वय अपने नकारात्मक रूप में संगठन में कार्यों के दोहरेपन को रोकता है, तथा सकारात्मक रूप में संगठन के कर्मचारियों में मिल-जुलकर सहयोगपूर्वक कार्य करने की प्रवृत्ति का विकास करता है ।
समन्वय की विभिन्न विद्वानों ने परिभाषा दी है:
हेनरी फेयोल ने समन्वय को प्रबंधक का एक कार्य माना है । उनके मतानुसार, ”समन्वय करने का अर्थ है एक संगठन की क्रियाओं में एकरूपता लाना ताकि उसका कार्य सरल हो जाए और वह सफलता प्राप्त कर सके ।”
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न्यूमैन के मतानुसार – ”समन्वय एक समन्वित कार्य है जिसमें कर्मचारियों की क्रियाएं एक समान लक्ष्य की ओर सामंजस्य पूर्ण तथा एकीकृत होती है ।”
चेस्टर बर्नार्ड ने तो यहां तक कहा है कि – ”अधिकांश परिस्थितियों में समन्वय का गुण संगठन के अस्तित्व का एक महत्वपूर्ण तत्व होता है ।”
टेरी ने लिखा है कि – ”समन्वय विभिन्न भागों को एक-दूसरे के साथ सामंजस्य है तथा उसकी गतिविधि एवं व्यवहार का समय के साथ ऐसा सामंजस्य है जिसमें प्रत्येक हिस्सा समग्र के उत्पादन के लिए अपना अधिक से अधिक योगदान कर सके ।”
संक्षेप में, समन्वय का अर्थ ऐसी व्यवस्थाओं से है जो किसी संगठन के सभी हिस्से निर्धारित लक्ष्यों की ओर बिना काम दुहराये, बिना खाली स्थान छोडे या बिना टकराये हुए कदम से कदम मिलाते साथ-साथ आगे बढे ।
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समन्वय और सहयोग:
समन्वय को कभी-कभी गलती से सहयोग समझ लिया जाता है, परंतु दोनों का एक अर्थ नहीं है । टेरी के शब्दों में, सहयोग ”किसी सामान्य लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक व्यक्ति का दूसरे या दूसरों के साथ सामूहिक कार्य है ।” समन्वय सामूहिक कार्य से कहीं अधिक है, और इसका अर्थ है, ”प्रयत्नों की समकालिता” अर्थात् प्रयत्न एक ही साथ एक समय पर होने चाहिए ।
टेरी समन्वय और सहयोग को एक विचित्र उदाहरण देकर स्पष्ट करता है, उन्होंने एक ऐसे लड़के का उदाहरण दिया है जो एक दिन सवेरे ही रेलगाड़ी पकड़ना चाहता था । इसके लिए सोने से पूर्व उसने अपनी घडी को आधा घटे आगे कर दिया ताकि वह जल्दी उठ सके । लड़के का पिता यह जानता था कि उसका लड़का सवेरे रेलगाड़ी पकड़ेगा इसलिए उसने भी घड़ी को आधा घटे और आगे कर दिया ।
इसके बाद लड़के की माँ उसके शयन कक्ष में गई और यह सोचकर कि सुबह लड़के को अधिक जल्दबाजी ना हो, उसने भी घड़ी को आधा घंटे और आगे कर दिया । इस सबके परिणामस्वरूप लड़के को डेढ़ घंटे पहले उठना पड़ा । टेरी के अनुसार यही माता-पिता तथा बेटे के कार्यों में सहयोग तो था, किंतु समन्वय नहीं था ।
इसका तात्पर्य यह नहीं है की सहयोग और समन्वय दोनों विरोधी हैं इनका संबंध स्पष्ट करते हुए हैमेन लिखता है कि, ”यद्यपि सहयोग सहायतापूर्ण रहता है और इसका अभाव समन्वय की प्रत्येक संभावना रोक सकता है, पर इसका अस्तित्व मात्र ही समन्वय का होना साबित नहीं करता । महत्व की दृष्टि से समन्वय सहयोग की अपेक्षा अधिक उच्च है ।”