Read this article in Hindi to learn about:- 1. समन्वय का अर्थ (Meaning of Coordination) 2. समन्वय की आवश्यकता (Need for Coordination) 3. प्रकार (Types) 4. साधन (Tools) 5. बाधाएँ (Obstacles).

समन्वय का अर्थ (Meaning of Coordination):

संगठन में अनेक विभाग, उनकी इकाइयां और उनमें संलग्न कार्मिक निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त की दिशा में सक्रिय रहते हैं । सभी की गतिविधियों से ही संगठन के उद्देश्य की प्राप्ति होती है । अतः यह आवश्यक होता है कि उनमें परस्पर तालमेल स्थापित किया जायें जिससे की वे सामूहिक रूप से कार्य कर सकें और उनमें संघर्ष और ईर्ष्या को रोका जा सके, यह कार्य ही समन्वय कहलाता है ।

समन्वय का उत्तरदायित्व उच्च प्रबंधकीय वर्ग का होता है इसलिए प्रबंधक को समन्वयकर्ता भी कहते हैं । समन्वय मात्र कार्मिकों के मध्य ही नहीं उनके क्रियाकलापों और विभागों के मध्य भी किया जाता है ।

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मूने एवं रैले ने समन्वय को प्राथमिक सिद्धांत माना है और शेष सभी सिद्धांतों को गौण या सहायक मात्र कहा है ।

न्यूमैन समन्वय को संगठन में अन्तर्भूत (विहित) प्रक्रिया मानते हैं, उनके अनुसार समन्वय संगठन का कोई पृथक सिद्धांत या प्रक्रिया नहीं है अपितु यह प्रशासन के प्रत्येक चरण में व्याप्त रहती है । वस्तुतः जहां भी मानवीय संबंधों का व्यवस्थित रूप दिखायी दे, वहाँ समन्वय अनिवार्य रूप से होता है ।

परिभाषाएं:

सेकलर हडसन- ”कार्य के विभिन्न भागों को परस्पर जोड़ने का सर्वत्र महत्वपूर्ण दायित्व ही समन्वय है ।”

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चाल्सबर्थ- ”समन्वय का अर्थ है विभिन्न भागों का एक ”व्यवस्थित पूर्ण” में एकीकरण ताकि लक्ष्य प्राप्त हो सके ।”

व्हाइट- ”समन्वय एसी प्रक्रिया है जो विभिन्न भागों में समायोजन करती है, उनकी गतिविधियों और क्रियाओं में भी समायोजन करती है, ताकि सभी स्वतंत्र तत्व एकीकृत रूप में काम कर सकें ।”

टेरी- ”समन्वय विभिन्न भागों का परस्पर समायोजन है । यह गतिविधियों और क्रियाओं में समकालिक समायोजन है ताकि उनमें से प्रत्येक अपना अधिकतम योगदान उत्पादन में दे सके ।”

निग्रो- ”समन्वय से आशय है, विभिन्न अंगों का सम्मिलित प्रभावकारी कार्य जो पुनरावृत्ति, संघर्ष के बिना प्रवाहित होता है ।”

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मूने- ”समन्वय सामूहिक प्रयासों का व्यवस्थित प्रबंध है, ताकि उद्देश्य प्राप्ति में लगे कार्यों के मध्य एकता सुनिश्चित हो सके ।”

न्यूमैन- ”समन्वय प्रयत्नों की वह समकालिकता है जो कार्य निष्पादन में उचित दायित्व, समय और निर्देशन सुनिश्चित करती है और परिणामस्वरूप उद्देश्य प्राप्ति की दिशा में सामंजस्य पूर्ण और एकीकृत क्रियाये संभव होती हैं ।”

फेयोल ने समन्वय के अनेक अर्थ दिये हैं जिनमें से मुख्य हैं- ”संगठन की समस्त क्रियाओं में समरसता स्थापित करना ताकि संगठन का कार्य सुविधाजनक ढंग से सफलतापूर्वक हो सके ।”

मैकारलैण्ड- ‘समन्वय से अर्थ एसी प्रक्रिया से है जिसके द्वारा एक अधिकारी अपने अधीनस्थों के सामूहिक प्रयासों को सुनिश्चित स्वरूप देता है और सामूहिक उद्देश्य की प्राप्ति हेतु उनसे संबंधित क्रियाओं में एकता स्थापित करता है ।’

समन्वय और सहयोग (Coordination and Cooperation):

1. समन्वय और सहयोग को पर्यायवाची के रूप में भले ही प्रयुक्त करते हों, लेकिन दोनों में अंतर है ।

2. सहयोग और समन्वय दोनों में ”सामूहिक कार्य की भूमिका” आवश्यक है लेकिन सहयोग में जरूरी नहीं होता कि यह भूमिका समय और परिस्थितियों के अनुरूप हो । जबकि समन्वय के ये अनिवार्य तत्व हैं ।

3. टेरी ने समन्वय को सामूहिक कार्य से अधिक बताया ।

4. टेरी के अनुसार सामूहिक कार्यों में प्रयत्नों की समकालिता जुड़ जाती है, तो वह सहयोग से समन्वय का रूप ले लेते हैं ।

इसे सूत्र रूप में प्रस्तुत करें तो:

समन्वय = सहयोग + प्रयत्नों की समकालिकता ।

5. और अधिक स्पष्ट करें तो सहयोग परस्पर सहायता की एक स्वैच्छिक क्रिया है, जबकि समन्वय सोच समझकर, सूझबूझ के साथ और जान बूझकर की जाने वाली प्रबंधकीय क्रिया है ।

6. स्पष्ट है कि समन्वय स्वतः उत्पन्न नहीं होता, अपितु प्रबंध द्वारा योजनाबद्ध तरीके से सुनिश्चित किया जाता है ।

7. टेरी ने उदाहरण देकर समझाया है कि सहयोग समन्वय का भाग है तथा समन्वय उससे उच्च है । हैमेन ने भी समन्वय को सहयोग से उच्च माना है ।

समन्वय की आवश्यकता (Need for Coordination):

1. सकारात्मक अर्थ में समन्वय टीम भावना उत्पन्न करने का माध्यम है ।

2. नकारात्मक अर्थ में परस्पर संघर्ष को रोकने का माध्यम है ।

3. कार्यों के दुहराव को रोकना ।

4. गैर उद्देश्यात्मक गतिविधियों पर रोक लगाना ।

5. प्रत्येक गतिविधि को उद्देश्य की तरफ ले जाना ।

6. संगठन के आंतरिक स्वरूप का बाहरी दबाव के साथ सामंजस्य स्थापित करना ।

7. साम्राज्यवादी भावना के प्रसार को रोकना ।

8. विशेषज्ञों के संकीर्ण दृष्टिकोण को प्रतिबंधित करना ।

9. संगठन के विस्तार की आवश्यकताओं को पूरा करना ।

10. सूत्र और स्टाफ के मध्य उचित समायोजन करना ।

समन्वय के प्रकार (Types of Coordination):

1. आंतरिक समन्वय:

संगठन के भीतर के विभाग, कार्मिक व गतिविधियों के मध्य स्थापित ।

2. बाह्य समन्वय:

संगठन का बाहरी वातावरण जैसे जनता, जनमत, संस्थाओं के साथ सामंजस्य ।

3. समतल व लम्बवत समन्वय:

जब समन्वय एक ही स्तर के कार्मिकों के बीच होता है तो वह समतल समन्वय है । जैसे, दो डिप्टी कलेक्टरों के मध्य समन्वय । विभिन्न स्तर की इकाइयों या विभागों या अधिकारियों के मध्य समन्वय, लम्बवत समन्वय कहलाता है । जैसे, कलेक्टर और डिप्टी कलेक्टर के मध्य समन्वय ।

4. औपचारिक समन्वय:

औपचारिक साधनों से योजनाबद्ध किया जाने वाला समन्वय औपचारिक समन्वय कहलाता है । जैसे, बैठकें एवं सम्मेलन आयोजित करना । जब गैर औपचारिक रूप से समन्वय के प्रयास होते है तो वह गैर औपचारिक समन्वय कहलाता है । जैसे प्रशासक को अधीनस्थों से अपील करना कि वे एक जुट होकर कार्य करें या उन्हें सामूहिक भोज पर निमंत्रित करना ।

5. मिश्रित समन्वय:

विभिन्न दिशाओं (ऊपर, नीचे, समस्तरीय) में होने वाला समन्वय मिश्रित समन्वय कहलाता है ।

(i) एपीलबी ने समन्वय के दो प्रकार बताये हैं; लंबवत और समतल ।

(ii) साइमन ने भी समन्वय के दो प्रकार बताये हैं- प्रक्रियात्मक और वास्तविक । प्रक्रियात्मक समन्वय संगठन में औपचारिक संबंधों के साथ संलग्न कर दिया जाता है और इस प्रकार पूर्व निर्धारित होता है । वास्तविक समन्वय संगठन के कार्यों के साथ जुड़ा होता है । अर्थात वास्तविक समन्वय तात्कालिक और अनुभाविक होता है ।

समन्वय के साधन (Tools of Coordination):

1. औपचारिक साधन:

i. नियोजन:

योजना आयोग, राष्ट्रीय विकास परिषद, देश में समन्वय की महत्वपूर्ण संस्थाएं हैं ।

ii. संगठनात्मक तरीके:

इसके अंतर्गत अंतर-विभागीय बैठकें, सम्मेलन, गोष्ठी आदि आयोजित होते हैं । मूने के अनुसार – ”संगठन में समन्वय के सभी तत्व होते हैं ।”

iii. मंत्रिमण्डल, उसका सचिवालय और उसकी समितियां:

मंत्री-परिषद मंत्रालयों के मध्य समन्वय स्थापित करती है । मंत्रिमण्डल सचिवालय, केन्द्र-राज्यों के मध्य समन्वय का कार्य करता है ।

iv. वित्त मंत्रालय:

विभिन्न विभागों के बजट में समन्वय स्थापित करना ।

v. प्रधानमंत्री और उसका कार्यालय:

देश के मुख्य समन्वयकर्ता हैं ।

vi. ग्रहपालन क्रियाएं:

फिफनर-प्रेस्थस ने सामग्री पूर्ति छपाई, डाक-तार सेवा आदि को भी विभिन्न विभागों के मध्य समन्वय के लिये आधार बताया है क्योंकि ये सभी विभागों के लिए सामूहिक रूप से सम्पन्न की जाती है ।

वस्तुतः सर्वप्रथम हुवर कमीशन (1949) ने यह सुझाव दिया था कि विभिन्न विभागों को लगने वाली उक्त सेवाओं को केन्द्रीय अभीकरणों के माध्यम से संचालित करवाने पर स्वमेव समन्वय का मार्ग प्रशस्त होता है ।

vii. सरल संगठन:

जिस संगठन में सत्ता और उत्तरदायित्व का प्रत्येक स्तर पर स्पष्ट और उचित निर्धारण हों ऐसा सरल संगठन समन्वय का अच्छा माध्यम होता है । इसके विपरीत जटिल संगठन समन्वय को कठिन बना देते हैं ।

viii. प्रभावशाली और उपयुक्त संचार व्यवस्था:

थियो हैमेने कहते हैं- ‘श्रेष्ठ संचार विभिन्न क्रियाओं के समन्वय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।’ वस्तुतः खुला और नियमित संचार संगठन के विभिन्न भागों को परस्पर अंतर्सम्बन्धित कर देता है क्योंकि उनके मध्य भ्रम उत्पन्न नहीं होते और परस्पर विश्वास दृढ़ हो जाता है ।

ix. नेतृत्व:

लुथर गुलिक के अनुसार अधिक प्रभावशाली नेतृत्व अधिक प्रभावशाली समन्वय की और ले जाता है । गुलिक कहते हैं कि समन्वय विचारों के माध्यम से प्राप्त किया जाता है और इसलिये नेतृत्व का दृष्टिकोण, व्यक्तित्व और योग्यता का समन्वय में विशेष महत्व है ।

x. प्रक्रिया और पद्धति का मानकीकरण:

संगठन में अपनायी जाने वाली कार्य-व्यवहार की प्रक्रिया और पद्धतियों का मानक स्तर तय कर दिया जाये तो समन्वय की दिशा में बढ़ने में सहायता मिलती है ।

xi. सामान्य स्टाफ की उपस्थिति:

विशाल संगठनों में स्टाफ अभिकरण पाये जाते हैं । ये विभिन्न विभागों को सूचना, परामर्श देते हैं, जिससे अंतर विभागीय या समस्तरीय समन्वय में सहायता मिलती है ।

xii. संपर्क कार्यालय और अधिकारी:

विशाल संगठनों में संपर्क कार्यालय और अधिकारियों की नियुक्ति की जाती है । ये अंतर-विभागीय और आंतरिक-विभागीय समन्वय करने में सहायक होते हैं ।

2. अनौपचारिक साधन:

1. सामूहिक भोज ।

2. नेता की भावुकता भरी अपील ।

3. राजनीतिक दल – सभी पार्टियों उनके हाई कमान से निर्देशित होती हैं ।

4. व्यक्तियों की एक दूसरे पर निर्भरता स्वाभाविक समन्वय को जन्म देती है ।

मैकफारलैण्ड ने समन्वय के चार साधन बताये हैं:

1. सत्ता और उत्तरदायित्वों का स्पष्ट निर्धारण

2. पर्यवेक्षण और अवलोकन

3. प्रभावी संचार और

4. प्रभावी नेतृत्व

थाग्पसन ने समन्वय के तीन साधन बताये हैं:

1. मानकीकरण

2. नियोजन और

3. परस्पर सहमति

लुथर गुलिक ने भी समन्वय के तीन साधनों का जिक्र किया है:

1. पद सोपान,

2. समितियां और

3. सचेत विचार (एक तरह से नेतृत्व) ।

समन्वय के मार्ग में बाधाएँ (Obstacles in the Way of Coordination):

1. संगठनों का बड़ा व जटिल आकार ।

2. विशेषज्ञों का बढ़ता प्रभाव ।

3. संचार की उपयुक्त सुविधाओं का अभाव ।

4. संगठन की इकाइयों का दूरस्थ स्थित होना ।

5. प्रबंधक में समन्वय की योग्यता का अभाव ।

6. विभागों के मध्य समन्वय या सहयोग की भावना का अभाव ।

7. संगठन में नेतृत्व का अभाव ।

8. प्रशासकीय निपुणता का अभाव ।

9. प्रशासकीय तकनीकों का अभाव ।

10. व्यक्ति और समूह के भावी व्यवहार के संबंध में अनिश्चितता ।

11. नये विचारों और कार्यक्रमों का विकास करने, उन्हें अपनाने की क्षमता या तकनीक का अभाव ।

12. प्रशिक्षण का अभाव ।