Read this in article Hindi to learn about:- 1. निर्णयन का अर्थ (Meaning of Decision Making) 2. निर्णयन का महत्व (Importance of Decision Making) 3. प्रक्रिया (Process) 4. वर्गीकरण (Classifications) 5. तकनीकें (Techniques) 6. समस्यायें (Problems).
निर्णयन का अर्थ (Meaning of Decision Making):
निर्णयन प्रबंध का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है । डावर ने प्रबन्धक के जीवन को सतत निर्णय प्रक्रिया की संज्ञा दी । फेयोल तथा उर्विक के अनुसार निर्णयन मुख्य रूप से सत्ता और प्रत्यायोजन को प्रभावित करने वाली प्रक्रिया है ।
(a) निर्माण का व्यापक विश्लेषण सर्वप्रथम चेस्टर बर्नार्ड ने किया था । बर्नार्ड के अनुसार मौटे तौर पर चयन को संकुचित करने की तकनीकें है ।
(b) लेकिन निर्णयन का एक संगठनिक मॉडल के रूप में पहला हरबर्ट साइमन ने किया ।
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अर्थ:
निर्णयन का अर्थ है किसी समस्या के समाधान हेतु संभावित और उपलब्ध विकल्पों में से एक श्रेष्ठतम चयन करना ।
परिभाषाएं:
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जार्ज टैरी- “विभिन्न विकल्पों में से चुनाव की एक सरलतम विधि ।” या “कसौटी आधारित संभावित विकल्पों में से एक व्यवहारिक विकल्प का चयन करना ।”
ऐलन- ”निर्णय एक कार्य है, प्रबंधक द्वारा किसी निष्कर्ष पर पहुंचने का ।”
कैलियन्स- ”निर्णयन, विकल्पों में से एक के चुनाव की सर्वोत्तम है ।”
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निर्णयन और निर्णय:
निर्णयन एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक निश्चित निर्णय पर पहुंचा जाता है । अर्थात प्रत्येक निर्णय, निर्णयन प्रक्रिया का परिणाम होता है ।
नीति और निर्णय में संबंध:
नीति स्वयं में एक निर्णय है। उस तक पहुंचने के लिए अनेक निर्णय लेने पड़ते हैं । निर्णय संक्षिप्त होते है, नीति व्यापक होती है । टेरी के अनुसार एक निर्णय नीति के अन्तर्गत ही लिया जाता है । नीति व्यापक, अधिक प्रभावी और बारम्बार प्रयुक्त होती है ।
निर्णयन की विशेषताएं:
1. निर्णयन लक्ष्योमुन्ख होता है ।
2. निर्णय अपने पहले और बाद के निर्णय से प्रभावित होता है, इससे निर्णयन की शृंखला बन जाती है।
3. प्रत्येक निर्णय एक समय विशेष पर लिया जाता है (निर्णय की समसामयिकता) ।
निर्णयन का महत्व (Importance of Decision Making):
निर्णयन से ही समस्याओं का समाधान, योजनाओं का निर्माण और उनका क्रियान्वयन होता है । ऊपर से नीचे तक संगठन में निर्णयन व्याप्त रहते हैं । ऊपर अधिक महत्वपूर्ण निर्णय तथा नीचे कुछ कम महत्वपूर्ण निर्णय लिये जाते हैं । एक प्रशासक या प्रबंधक अपने प्रत्येक कार्य में निर्णय ही करता है ।
साइमन- निर्णय लेना ही प्रशासन है ।
पीटर ड्रकर- प्रबंध जो कुछ भी करता है निर्णय के द्वारा ही करता है ।
एपीलबी- नीति निर्धारण ही लोक प्रशासन का सार है ।
टैरी- प्रबंधकों का जीवन ही निर्णय लेना है, यह प्रशासकों की सार्वभौमिक विशेषता है ।
निर्णयन प्रक्रिया (Decision Making Process):
सेकलर-हड्सन ने निर्णयन को ”बहुल क्रिया” कहा है अर्थात इसमें बहुत सारे चरण, तत्व, मुद्दे होते है । साइमन ने निर्णय प्रक्रिया के 3 सोपान बताये हैं । पीटर ड्रकर ने 5, न्यूमैन-समर ने 4 चरण निर्धारित किये ।
टैरी ने निर्णय-निर्माण प्रक्रिया के 7 चरण बताये हैं:
1. समस्या का निर्धारण ।
2. समस्या की पृष्ठभूमि- इसकी सामान्य जानकारी और उससे संबंधित विभिन्न दृष्टिकोण का पता लगाना
3. कौनसी कार्यवाही सर्वोत्तम हो सकती है, इसे निर्धारित करना ।
4. साध्य और अस्थायी निर्णयों का मूल्यांकन करना ।
5. अस्थायी निर्णयों का मूल्यांकन करना ।
6. निर्णय लेना और उसे लागू करना ।
7. पुनरावलोकन करना तथा आवश्यक होने पर, परिणामों के संदर्भ में निर्णय में संशोधन करना ।
वैसे निर्णयन प्रक्रिया के सामान्यतया निम्न चरण होते हैं:
1. समस्या या उद्देश्य का होना ।
2. समस्या की व्याख्या या विश्लेषण ।
3. समस्या से संबंधित विभिन्न समाधानों (विकल्पों) की तलाश ।
4. प्रत्येक समाधान या विकल्प का परिणाम के संदर्भ में मूल्यांकन । इसे छंटनी प्रक्रिया भी कहते हैं।
5. श्रेष्ठतम विकल्प का चयन ।
6. लिये गये निर्णय का क्रियान्वयन।
7. प्रतिप्रेषण और नियंत्रण।
निर्णयन के प्रकार: निर्णयों का वर्गीकरण (Classifications of Decision Making):
1. कार्यात्मक और अकार्यात्मक ये साइमन ने बताये हैं । कैलियंस ने इन्हें नियोजित और अनियोजित निर्णय की संज्ञा दी । कार्यात्मक या नियोजित निर्णय निश्चित तथ्य या पूर्व नियोजित प्रक्रिया पर आधारित होते हैं । अकार्यात्मक या अनियोजित निर्णय किसी विशेष समस्या के उत्पन्न होने पर लिये जाते है ।
वे निर्णय अनियोजित होते है जिनको लेने के लिये कोई निश्चित सिद्धांत, प्रक्रिया या पद्धति नहीं होती है । निर्णय उस सीमा तक अनियोजित होते हैं जहां तक वे नये, असंरचनाबद्ध और परिणामात्मक होते हैं । पीटर ड्रकर ने इन्हें सामान्य (Generic) और विशेष (Unique) की संज्ञा दी है ।
2. दैनिक तथा अधारभूत रोजमर्रा के काम में लिये जाने वाले निर्णय दैनिक निर्णय होते है जबकि आधारभूत निर्णय अतिमहत्वपूर्ण होते है जो पूरे संगठन को प्रभावित करते है, अधिक समय तक बने रहते हैं, अतः कॉफी सोच विचारकर लिये जाते है ।
3. संगठनात्मक और व्यक्तिगत चेस्टर बर्नाड द्वारा बताये गये । किसी अधिकारी द्वारा पदेन कर्तव्य के संदर्भ में लिया गया निर्णय संगठनात्मक, जबकि व्यक्तिगत हैसियत से लिया गया निर्णय व्यक्तिगत निर्णय होता है । पहले का प्रत्यायोजन किया जा सकता है, दूसरे का नहीं ।
4. सामान्य और विशेष निर्णय ”दि प्रेक्टिस ऑफ मैनेजमेन्ट” में पीटर ड़कर ने दो प्रकार के निर्णय बताये; सामान्य (Generic) और विशेष (Unique) जिन्हे वर्गगत और अद्वितीय निर्णय भी कहा जाता है । ये साइमन के क्रमश: संयोजित और असंयोजित के ही अनुरूप है ।
5. व्यक्तिगत निर्णय और समूह निर्णय निर्णय निर्माण की प्रक्रिया में लगे व्यक्तियों की संख्या के आधार पर दो तरह के निर्णय होते हैं व्यक्तिगत निर्णय, जो प्रबन्धक द्वारा व्यक्तिगत जिम्मेदारी के साथ स्वयं लिया जाता है । समूह निर्णय, जो प्रबन्धकों के समूह द्वारा सामूहिक जिम्मेदारी के साथ लिया जाता है । मैक्कारलैण्ड के अनुसार सामूहिक निर्णय व्यक्तिगत निर्णय से अधिक श्रेष्ठ और बेहतर होते हैं ।
अर्नेस्ट डेल:
निर्णयन के तीन प्रकार होते है:
1 नीति निर्णय- जो संगठन के निर्माण और उसकी संरचना से संबंधित होते है ।
2. संचालक निर्णय- मध्य स्तर के प्रबंध मंडल द्वारा लिये जाते है, ये नीतियों के क्रियान्वयन के लिए जरूरी होते हैं ।
3. कार्यकारी निर्णय- जो अपने किसी कार्य को करने के लिए कार्मिक द्वारा लिये जाते है ।
एक अच्छे निर्णय के आधार:
1. मितव्ययी
2. विधि अनुकूल
3. नैतिक दृष्टिकोण से उचित
4. समाज के अनुकूल
5. सक्षम अधिकारी द्वारा लिया गया
6. उद्देश्योन्मुख
7. प्रासंगिक और समसामयिक
8. लगभग पूर्ण
9. स्वीकार्य योग्य
10. व्यवहारिक
11. वस्तुनिष्ठता
योजना का ग्रेशम नियम साइमन-मार्श के भुनसार यह देखने में आया है कि जो प्रशासक दैनंदिनी गतिविधियों (Routine Work) और दीर्घकालिक योजना दोनों के लिये जिम्मेदार होता है उसे दैनंदिनी कार्यों के लिये अधिक समय देना पड़ता है । इसका परिणाम यह होता है कि या तो वह दीर्घकालिक निर्णयों और योजनाओं को टालता है या उनसे बचने की कोशिश करता है ।
साइमन-मार्श ने इसे योजना का ग्रेशम नियम कहा जिसमे कम महत्वपूर्ण निर्णय प्रशासक की जिन्दगी से अधिक महत्वपूर्ण निर्णयों को बाहर कर देते हैं । निर्णय निर्माण में बाधाएं प्रत्येक संगठन में निर्णयन एक निरन्तर प्रक्रिया है और इस प्रक्रिया को अनेक बाधाओं से भी निरन्तर जूझना पड़ता है ।
निर्णयन की तकनीकें (Techniques of Decision Making):
निर्णयन की विधियां हुचिन्सन ने 8 तकनीकें बतायीं । प्रमुख तकनीकें निम्न हैं:
1. अनुमान आधारित निर्णय (अनुमानात्मक)- इसमें अनुभव का उपयोग होता है । यह मितव्ययी और शीघ्र निर्णय प्रक्रिया है ।
2. प्रबंध सिद्धांत आधारित- जैसे पर्ट, रेखीय कार्यक्रम, आपरेशन रिसर्च । इन्हें विशिष्ट निर्णयन प्रक्रिया भी कहा जाता है ।
3. मॉडल विधि- जिस वस्तु या सेवा का उत्पादन करना है उसका मॉडल बना लिया जाता है ।
4. सांख्यिकी तकनीकें- जैसे प्राबेलिटी का सिद्धांत ।
i. आधुनिक निर्णय तकनीकें:
(a) लीनियर प्रोग्रामिंग- यह आधुनिक निर्णय विधि है । इसमें गणितीय गणना के आधार पर जो परिणाम प्राप्त होते हैं उनसे निर्णय लिया जाता है ।
(b) आपरेशन रिसर्च (क्रियात्मक-अनुसंधान)- यह संभावित विकल्पों में से श्रेष्ठ विकल्प का चयन परिमाणात्मक आधार पर करती है ।
(c) पर्ट (प्रोग्राम इवेल्यूएशन एन्ड रिव्यू टेक्नीक)- समय एवं साधनों के श्रेष्ठतम नियोजन का परियोजना में उपयोग ।
(d) प्रतिक्षा रेखा सिद्धांत (क्यूरिंग थ्योरी)- इसका आधार है सेवाओं की तत्काल पूर्ति करनी चाहिए जिससे की प्रतीक्षा रेखा में ०’ अनिर्णय की स्थिति में न खडी रहें।
(e) क्रीड़ा सिद्धांत (गेम थ्योरी)- ऐसे निर्णय जिनके परिणाम की जानकारी या उस पर नियंत्रण सोच से परे होता है ।
(f) अनुरूपण विधि (सिम्युलेशन)- यह एक तरह से मॉडल विधि का ही प्रकार है जिसमें किसी मॉडल पर प्रयोग किया जाता है ।
(g) निर्णय वृक्ष विधि- जब सूचना अपर्याप्त हो तब इसका प्रयोग किया जाता है ।
ii. नाम मात्र समूह तकनीक (NGT-Nominal Group Technique):
सामाजिक-मनोवैज्ञानिकों द्वारा खोजी गई इस तकनीक में निर्णयकर्ताओं का समूह (प्राय: विशेषज्ञ) आमने-सामने लिखित में विचार करता है अर्थात मौखिक के बजाय सदस्यों के विचार लिखित में एक दूसरे तक राउंड राबिन पद्धति (एक-एक का एक-एक से सम्पर्क) से पहुँचते है ।
इन विचारों को ब्लैक बोर्ड या चार्ट पर प्रदर्शित कर दिया जाता है और लिखित विश्लेषण, मौन कागजी चर्चा तथा सहमति से निर्णय तक पंहुचा जाता है । इस प्रकार ”NGT” लिखित सृजनात्मक विचारों को महत्व देती है, अंतहीन वाद-विवाद और परस्पर संघर्षों को कम करती है ।
iii. डेल्फी तकनीक (Delphi Technique):
अमेरिका के रैन्ड कॉर्पोरेशन में शुरू डेल्फी तकनीक (Delphi Technique) आधुनिक निर्णयन की लोकप्रिय तकनीक है । डेल्फी शब्द यूनान के प्राचीन धर्ममश्वों से लिया गया है । इस तकनीक में समूह द्वारा दूरगामी भविष्य के लिए निर्णय लिया जाता है । अमेरिका में यह तकनीक शिक्षा, स्वास्थ्य, सेना तथा व्यापार के साथ-साथ सरकारी संगठनों में प्रचलित है ।
डेल्फी तकनीक की सामान्य विशेषताएं है:
1. इसमें निर्णय एक समूह द्वारा होता है । समूह में प्रायः विशेषज्ञ होते हैं ।
2. समूह के सदस्य आमने-सामने चर्चा नहीं करते हैं । अपितु समस्या के बारे में प्रत्येक सदस्य गुप्त रूप से अपने विचार देता है अर्थात उसका नाम प्रकट नहीं होता है ।
3. सभी सदस्य एक दूसरे को गुप्त रूप से प्रत्युत्तयुर तथा सूचनाएं प्रेषित करते हैं ।
4. सभी सदस्यों द्वारा एक बार अपने-अपने विचार देने के पश्चात भी यह प्रक्रिया पुन: तब तक दोहराई जाती है, जब तक कि एक सामूहिक, सुविचारित तथा विश्लेषित निर्णय प्राप्त नहीं हो जाता । इस तकनीक में गोपनीयता के कारण हर कोई निर्भिक ढंग से अपना निर्णय देता है ।
बैठक की समस्या भी नहीं रहती । लेकिन पत्राचार में समय बहुत लगता है । इसमें वैज्ञानिकता का भी अभाव है । सदस्य विशेष के विचारों का भी पता नहीं चलता कि किसने क्या कहा ? इसीलिये डेल्फी तकनीक से निकले निर्णयों को मृत व्यक्तियों से प्राप्त होने वाले सन्देशों की संज्ञा दी जाती है, जिसे “Ouija Board Effect” कहा जाता है ।
निर्णयन के समस्यायें (Problems of Decision Making):
सेक्लर-हडसन ने उन 12 क्षेत्रों और तत्वों की पहचान की है जहाँ से समस्यायें उठती हैं:
1. कानूनी सीमाएँ
2. बजट
3. लोकाचार
4. तथ्य
5. इतिहास
6. मनोबल
7. भविष्य की संभावनाएं
8. उच्चाधिकारी
9. दबाव समूह
10. स्टाफ कार्मिक
11. अधीनस्थ कार्मिक
12. कार्यक्रम की प्रकृति
प्रो. मार्च ने निर्णयन की 3 समस्याओं की पहचान की है:
1. दिये गये प्रकरणों या उत्पन्न समस्याओं में से सर्वप्रथम किस पर निर्णय लें ?
2. किसी समस्या की अनिश्चितता को समाप्त करने के लिए कितना प्रयास, समय, धन लगाया जाए ?
3. समाधान के लिये किस विकल्प को चुनें ?
मिलेट ने निर्णयन में 3 बाधाओं का उल्लेख किया है:
1. व्यक्तिगत अंतर अर्थात कुछ व्यक्ति निर्णय लेने में सक्षम होते हैं तो कुछ निर्णय लेने से ही डरते हैं । कुछ अपने निर्णयों पर दृढ नहीं रहते ।
2. ज्ञान का अभाव अर्थात मूलभूत ज्ञान, सूचना और निर्णयन के कौशल का आभाव ।
3. व्यक्तिगत और संस्थागत सीमाएं ।
अन्य बाधाएं:
1. निर्णयन तन्त्र की आंतरिक दुर्बलताएं ।
2. मनुष्य व्यवहार की सीमाएं ।
3. अभिनति अर्थात पूर्वाग्रह, पक्षपात की समस्या ।
4. दिनचर्या की समस्या- मार्च साइमन के अनुसार व्यक्ति महत्वपूर्ण दूरगामी कार्यों को दैनिक कार्यों से कम महत्व दे सकता है । इसे उन्होंने ”ग्रेशम का योजना संबंधी” नियम कहा ।
5. बाहरी हस्तक्षेप जो लोक प्रशासन में निर्णयन की बडी समस्या है ।