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व्यवहारवाद के प्रमुख प्रवर्तक हरबर्ट साइमन ने अपनी पुस्तक “एडमिनिस्ट्रेटिव्ह बिहेविअर- ए डिसिजन मेकिंग साइंस” (1947) में व्यवहारवाद का निर्णय के संदर्भ में विस्तृत विवेचन और विश्लेषण प्रस्तुत किया । साइमन न निर्णयन प्रक्रिया का उच्च प्रशासकीय वर्ग तक सीमित रखा ।

हरबर्ट साइमन का जन्म 1916 में विस्कोंसिन (अमेरिका) में हुआ था । राजनीति विज्ञान में डाक्टरेट का उपाधि हासिल करने के पश्चात नगरपालिका प्रशासन पर उन्होंने प्रारंभिक रूप से अनेक किताबें लिखीं । बाद में प्रशासनिक व्यवहार, संगठन आदि पर अनेक पुस्तकें और रिसर्च पेपर्स उन्होंने लिखे ।

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उनकी प्रमुख रचनाएं हैं:

“प्रशासकीय व्यवहार (1947)” फंडामेंटल रिसर्च इन एडमिनिस्ट्रेशन (1953), “आर्गेनाइजेशस” (1958), “द न्यू साइंस ऑफ आटोमेशन” (1960), “साइंस ऑफ द आर्टीफिसियल” (1969), और ”ह्यूमन प्रॉब्लम सॉलविंग” (1972) इसके अलावा थामसन और स्मिथबर्ग के साथ मिलकर लोक प्रशासन और मार्च के साथ मिलकर आर्गेनाइजेशन नामक पुस्तकें लिखी ।

(a) साइमन लोक प्रशासन के एकमात्र विद्वान है जिन्हें अर्थशास्त्र का नोबल पुरस्कार १९७० दिया गया । यह उन्हें निर्णय निर्माण मॉडल पर दिया गया ।

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(b) वर्तमान में वे कारनेगी मेलोन विश्वविद्यालय में कम्प्यूटर व मनोविज्ञान के प्रोफेसर है ।

(c) वे फॉलेट, मेयो और बर्नार्ड से सर्वाधिक प्रभावित रहे हैं ।

प्रशासन और व्यवहार:

हरबर्ट साइमन ने प्रशासन को कार्य करने की कला माना । ऐसी कला माना जो संगठन में मनुष्य के व्यवहार को निदेर्शित, समन्वित और अन्तत: प्रभावित करती है । संगठन में मानवीय व्यवहार अनेक तत्वों से प्रभावित होता है । सांगठनिक उद्देश्य की प्राप्ति हेतु प्रशासन को इन व्यवहारों में सामंजस्य उत्पन्न करना आवश्यक है ।

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निर्णय अर्थात कार्यवाही की पूर्वावस्था:

प्रशासन विभिन्न व्यवहारों में तालमेल उत्पन्न करने के लिए निर्णय लेता है । निर्णय कार्यवाही के पहले की अवस्था है और यांत्रिक विचारकों ने इसकी उपेक्षा की है । निर्णय वस्तुतः चयन प्रक्रिया है, जिस पर भावी कार्यवाही आधारित होती है । साइमन ने व्यवहारवादी उपागम को इसी चयन प्रक्रिया या निर्णय से जोड़कर अर्थशास्त्र, दर्शन, प्रशासन आदि का समन्वय किया ।

निर्णय से अभिप्राय:

साइमन के अनुसार निर्णय से आशय है उपलब्ध विकल्पों में से एक का चयन । प्रत्येक निर्णय तथ्य और मूल्य का योग होता है । तथ्य से आशय किसी वस्तु के बारे में यथार्थ जानकारी । तथ्य वास्तविकता है, एक जमीनी सच्चाई (वस्तु क्या है, क्या रही है) । मूल्य से आशय है निर्णयकर्ता की निजी पसन्दगी या ना पसन्दगी ।

उदाहरण:

साइमन के अनुसार सेनापति का आक्रमण करने का विचार एक मूल्य है, जबकि शीघ्र आक्रमण अधिक सफल होते हैं, यह एक तथ्य है ।

निर्णय की वैज्ञानिकता:

साइमन कहता है कि निर्णय तभी अधिक तार्किक और वैज्ञानिक होंगे, जब वे तथ्य पर अधिक अवलम्बित होंगे । अत: निर्णयकर्ता को चाहिए कि वह अपने निर्णय को अधिकाधिक तथ्य आधारित करें। ”मूल्य निरपेक्षता” रखकर ही निर्णय वैज्ञानिकता के निकट पहुंच सकेंगे और इसी क्रम में प्रशासन विज्ञान की और बढ़ सकेगा ।

सीमित तार्किकता:

साइमन अर्थशास्त्र, दर्शनशास्त्र आदि से प्रभावित था । उसने निर्णय को तर्क पर आधारित बताया । निर्णयकर्ता प्रत्येक निर्णय से पहले विकल्पों पर तर्कपूर्ण विचार करता है । लेकिन यह तार्किकता असीमित या पूर्ण नहीं होती है अपितु सीमित होती है । इसका कारण निर्णयकर्ता की बौद्धिक क्षमता है । वस्तुत: पूर्ण तार्किकता किसी में नहीं होती, क्योंकि प्रत्येक मनुष्य की एक बौद्धिक सीमा होती है ।

संतोषजनक निर्णय:

न सिर्फ विकल्पों की तलाश ही एक सीमा तक हो पाती है, अपितु उनमें से एक सर्वोत्तम विकल्प का चयन भी सदैव सर्वोत्तम हो जरूरी नहीं होता । साइमन तो कहता है कि निर्णयकर्ता उस निर्णय (विकल्प-चयन) से संतुष्ट हो जाता है, जो उसे सर्वोत्तम लगता है। इसे साइमन ने “सेटिसफाइसिंग डिसीजन” की संज्ञा दी ।

सीमित तार्किकता के कारक:

साइमन ने उन कारकों का उल्लेख किया है, जो संतोषजनक निर्णयों को जन्म देने वाली सीमित तार्किकता को प्रोत्साहित करते हैं:

1. सांगठनिक उद्देश्यों की गतिशीलता ।

2. वर्तमान सूचना के उपयोग की सीमित क्षमता और अपर्याप्त सूचना ।

3. समय और कीमत संबंधी सीमाएं ।

4. पर्यावरणीय या बाहरी कारक ।

5. विकल्पों को सदैव ही गणन योग्य वरीयता क्रम में नहीं रखा जा सकता ।

6. निर्णयकर्ता सभी विकल्पों और उनके परिणामों से अनभिज्ञ हो सकता है ।

7. पूर्वाग्रह, आदतें आदि निर्णयकर्ता से संबंधित व्यैक्तिक कारक ।

8. प्रक्रिया नियम संचार-मार्ग आदि सांगठनिक कारक ।

तार्किकता के विभिन्न प्रकार या आधारः

साइमन के अनुसार कोई निर्णय:

(1) व्यैक्तिक रूप से तार्किक होगा यदि वह निर्णय व्यक्ति के उद्देश्यों से निर्देशित हो । व्यक्तिगत तार्किकता वस्तुतः पूर्वाग्रह से प्रेरित होती है और इसका दायरा सीमित होता है ।

(2) सांगठनिक रूप से तार्किक होगा यदि वह निर्णय संगठन के उद्देश्यों से निर्देशित हो । संगठनात्मक तार्किकता में संगठन के पूर्वाग्रह कार्य करते है । जैसे औपचारिक संगठन और अनौपचारिक संगठन के अपने पूर्वाग्रह होते हैं ।

(3) वस्तुनिष्ट रूप से तार्किक होगा यदि वह निर्णय उस परिस्थिति में मूल्यों को अधिकतम करने के लिये सही व्यवहार हो । साइमन के अनुसार वस्तुनिष्ठ तार्किकता सर्वाधिक व्यापक स्वरूप की होती है । यह वैज्ञानिक और गणितीय आधार पर टिकी होती है और स्वरूप में सार्वभौमिक होती है ।

(4) आत्मगत रूप से तार्किक होगा यदि वह विषय के वास्तविक ज्ञान की सापेक्ष प्राप्ति को सर्वाधिक बनाता है ।

(5) उस सीमा तक सचेतन रूप से तार्किक है जहां तक लक्ष्यों और साधनों में समायोजन एक सचेतन प्रक्रिया है ।

(6) उस सीमा तक जानबूझकर तार्किक है जहां तक लक्ष्यों और साधनों में समायोजन जानबूझकर लाया जाता है ।

साइमन के निर्णय निर्माण मॉडल के आधार:

(अ) साइमन की प्रशासनिक अवधारणा दो मुख्य बातों पर आधारित है:

(i) संरचनात्मक मूल्यमुक्तता:

शास्त्रीय संरचनात्मक उपागम (आदर्शात्मक दृष्टिकोण) के विकल्प के रूप में निर्णय निर्माण उपागम को प्रस्तुत करना ।

(ii) व्यैक्तिक मूल्यमुक्तता:

आदर्शात्मक दृष्टिकोण के स्थान पर आनुभाविक दृष्टिकोण (मूल्यमुक्त दृष्टिकोण) को तथा यांत्रिक दृष्टिकोण के स्थान पर व्यवहारिक दृष्टिकोण को लागू करना ।

(ब) साइमन के अनुसार निर्णय प्रक्रिया प्रत्येक स्तर से संबंधित है अर्थात संपूर्ण संगठन में व्याप्त रहती है ।

(i) प्रशासन और निर्णय निर्माण दोनों एक ही है । क्योंकि प्रशासन का प्रत्येक पहलू निर्णयन के आसपास केन्द्रीत होता है ।

(ii) निर्णय निर्माण शास्त्रीय विचारकों के सभी सिद्धांतों को समाहित करती है, चाहे गुलिक का पोस्डकार्ब हो या फेयोल का “POCCC” ।

(स) साइमन के अनुसार:

(i) नीति-निर्धारण मूल्य निर्णय होते हैं जबकि नीति-क्रियान्वयन तथ्य निर्णय होते है ।

(ii) अर्थात राजनीति का संबंध मूल्य प्रधान निर्णयों से है जबकि प्रशासन का संबंध तथ्य प्रधान निर्णयों से ।

सांगठनिक मानव और निर्णय के प्रकार:

लेकिन साइमन यह भी कहते हैं कि निर्णय में जिस तत्व की प्रधानता होगी निर्णय वही कहलाएगा । जैंसे मूल्य निर्णय या तथ्य निर्णय ।

(a) मूल्य निर्णय और सामाजिक मानव:

यह गैर नियोजित, अतार्किक निर्णय होते है । साइमन के अनुसार प्रशासनिक संगठन के ऊपरी सोपान पर यही निर्णय लिये जाते है । ऐसे निर्णय में तथ्यों का आभाव और पूर्वाग्रहों की प्रधानता होती है । इन पर पर्यावरणीय प्रभाव स्पष्ट देखे जा सकते हैं । ये वस्तुत: नीतिगत निर्णय हैं । इन निर्णय लेने वालों को साइमन ने ”सामाजिक मानव” कहा है ।

(b) तथ्य निर्णय और आर्थिक मानव:

साइमन के अनुसार संगठन के निचले स्तरों पर तथ्यात्मक निर्णय लिये जाते है जो वस्तुत: क्रियान्वयनकारी निर्णय है । इन्हें तार्किक ओर नियोजित निर्णय भी कहा जाता है । ये निणर्य, पूर्वाग्रह, पर्यावरण आदि से स्वतन्त्र और मुक्त होते है और इसीलिये प्रतिक्रियात्मक नहीं होते । इन निर्णयों से संबंधित निर्णयकर्ताओं को साइमन ने आर्थिक मानव कहा है ।

(c) मध्य स्तरीय निर्णय और प्रशासनिक मानव:

साइमन के अनुसार संगठन में मध्य स्तरीय सोपान पर जो निर्णय लिये जाते हैं उनमें मूल्यगत और तथ्यगत दोनों निर्णय लिये जाते है और इसलिये वे तार्किक और गैर तार्किक तथा नियोजित और अनियोजित सभी प्रकार के निर्णय होते हैं ।

इन निर्णयकर्ताओं को साइमन ने प्रशासनिक मानव कहा है । और हम देख सकते हैं कि इन्हें नीति परक और क्रियान्वनकारी दोनों निर्णय लेने होते है और इसीलिये इनकी भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण हो जाती है । वह इस रूप में समस्त परिस्थितियों से निपटने में समर्थ माना जाता है ।

(d) सांगठनिक मानव:

उक्त तीनों प्रकार के कार्मिक संगठन में होते हैं: सामाजिक, प्रशासनिक और आर्थिक। ये सब सांगठनिक मानव हैं । साइमन के अनुसार सांगठनिक मानव संगठन को समर्पित है अत: उसके प्रति प्रतिबद्ध होता है और उसे संगठन के लिये प्राशिक्षित किया जाता है और इस प्रकार से संगठन से ही सांगठनिक मानव की पहचान जुड़ी होती है, जैसे, रिलायन्स का सिईओ, टाटा का मैनेजर, सरकारी मुलाजिम ।

निर्णय प्रक्रिया:

साइमन ने निर्णय तक पहुंचने के लिए तीन चरणों वाली निर्णयन प्रक्रिया का उल्लेख किया है:

1. बौद्धिक चयन या परिकल्पना (Intelligence Activity):

बौद्धिकता (Intelligence) का सैन्य अर्थ लेते हुए साइमन निर्णन प्रक्रिया के पहले चरण को बौद्विक या सूचना चरण कहता है । इस पहले चरण में निर्णय की आवश्यकता अर्थात समस्या संबंधी बातों का अन्वेषण किया जाता है । इसके अन्तर्गत निर्णय की दशाओं का अध्ययन किया जाता है, जैसे संगठन की नीतियाँ, प्रबन्धकीय व्यवहार, सामाजिक मूल्य आदि । इस प्रकार इस चरण में समस्या का अनुसंधानात्मक दृष्टि से अध्ययन किया जाता है ।

इसके भी तीन चरण है:

(i) समस्त समस्याओं की जानकारी प्राप्त करना ।

(ii) इन समस्याओं की प्रगति और प्राथमिकता दोनों का निर्धारण ।

(iii) इनमें से सबसे महत्वपूर्ण समस्या का चयन जिसके बारे में निर्णय लिया जाना है ।

स्पष्ट है कि निर्णयन के प्रथम चरण में भी तीनों चरण परिकल्पना, डिजाईन और चयन का पालन होता है । इससे निर्णयन अत्यन्त जटिल प्रक्रिया बन जाती है और साइमन की आलोचना की जाती है कि वह समस्या को सुलझाने के पहले उसे उलझा देता है । निर्णयकर्ता के लिये समस्त समस्याओं की जानकारी रखना असंभव की हद तक मुश्किल होता है ।

2. संरचना-चमन (Design Activity):

इस चरण में तथ्यों की खोज करके विकल्पों तक पहुंच जाता है तथा विकल्पों को लागत-लाभ-विश्लेषण के आधार पर तुलनात्मकता प्रदान की जाती है । तुलना करके यह देखा जाता है कि कौनसा विकल्प अधिकतम लाभ और न्यूनतम हानिप्रद है । इस चरण में निर्णय कर्त्ता को सर्वाधिक समय खर्च करना पड़ता है ।

3. चयन क्रिया (Choice Activity):

उपर्युक्त तुलना निर्णयकर्ता को एक ऐसे विकल्प तक पहुंचने में मदद करती है जो सर्वाधिक अनुकूल हो । यहां अनुकूलता से तात्पर्य ऐसे निर्णय से है, जो लागत में न्यूनतम हो तथा परिणाम में अधिकतम लाभदायक हो ।

यहां प्रबन्धक या निर्णयकर्ता को मूल्यों के स्थान पर तथ्यों को अधिकतम महत्व देना चाहिए ताकि सीमित साधनों का अधिकतम परिणाममूलक उपयोग हो सके । इस चरण में निर्णयकर्त्ता न्यूनतम समय खर्च करता है ।

हैकिंग तथा स्मिथ के अनुसार विकल्प चयन में लाभ-हानि अर्थात Boundary Gain और Boundary Loss का निर्धारण महत्वपूर्ण होता है । साइमन के निर्णयन मॉडल के उपर्युक्त तीन चरण जॉन डेवी द्वारा सन् 1910 में बताए गए समस्या-समाधान से संबधित प्रश्नों से मिलते-जुलते है । ये प्रश्न हैं- समस्या क्या है ? क्या-क्या विकल्प उपलब्ध है ? कौनसा विकल्प उपलब्ध है ?

संयोजिन और असंयोजित निर्णय:

साइमन ने निर्णय के दो प्रकार बताए हैं संयोजित और असंयोजित निर्णय । संयोजित निर्णय स्वरूप में दुहराए जाने वाले आम निर्णय होते हैं । ये पूर्ण नियोजित निर्णय हैं जिनके पीछे निश्चित सिद्धान्त, नियम प्रक्रिया होते है जैसे, लाइसेन्स देने का निर्णय । असंयोजित निर्णय आकस्मिक परिस्थितियों में लिए जाते हैं, जिनमें स्वविवेक का अधिक इस्तेमाल होता है, जैसे गोली चालन का निर्णय ।

तीन बाधाएं:

साइमन ने निर्णय लेने में 3 बाधाओं का उल्लेख किया है:

(1) मानव तर्क हीनता, जो तर्क की कम शक्ति या कम योग्यता से उद्‌भूत होती है, क्योंकि निर्णयकर्ता के पास जानकारी का अभाव होता है ।

(2) जोखिम के कारण भी निर्णयकर्ता निर्णय लेने से डरता है, इसके पीछे पर्याप्त आवश्यक आकड़ों की कमी मुख्य कारण हैं ।

(3) स्वीकृति की समस्या निर्णय को स्वीकार करना भी एक पेचीदा काम है । इस हेतु साइमन ने 4 प्राधिकारों का उल्लेख किया है- दण्ड का प्राधिकार, विश्वास का प्राधिकार, सामूहिक हितों का प्राधिकार और वैधता का प्राधिकार ।

स्वीकृति का क्षेत्र:

साइमन के अनुसार संगठन में अनेक निर्णय ऐसे होते हैं, जो अधीनस्थ इसलिए स्वीकार कर लेते है क्योंकि इसकी आशा उन्हे बनी रहती है और वे उनका विरोध किसी आधार पर नहीं कर सकते । ऐसे निर्णयों का क्षेत्र ही स्वीकृत के क्षेत्र (Zone of Acceptance) को जन्म देता है ।

साइमन का प्रशासनिक मानव मॉडल:

साइमन ने शास्त्रीय विचारकों के ”आर्थिक-तार्किकता मानव मॉडल” के स्थान पर ”प्रशासनिक मानव मॉडल” प्रस्तुत किया ।

इस मॉडल के अनुसार प्रशासनिक मानव:

(A) विकल्पों में से किसी विकल्प का चयन या तो संतुष्ट हो जाने के लिये करता है या उसे लगता है कि वही विकल्प संतोषजनक या पर्याप्त अच्छा है ।

(B) मानता है कि जो दुनिया वह देखता है वह वास्तविक दुनिया का अत्यंत सरलीकृत स्वरूप है ।

(C) सभी संभावित विकल्पों को तय और सुनिश्चित किये बिना वह कोई विकल्प चुन सकता है क्योंकि उसका उद्देश्य संतुष्टि है, न कि अधिकतम की प्राप्ति ।

(D) तुलनात्मक रूप से अंगूठा नियम (सरल रूप से) जैसे सरल आधार का प्रयोग कर निर्णय लेता है क्योंकि इस दुनिया को वह खाली मानता है अर्थात स्वयं के अलावा जैसे कोई अन्य नहीं है।

(E) स्पष्ट है कि साइमन का सांगठनिक मानव ‘संतोष’ की सीमा में बंधा हुआ है और इस प्रकार से शास्त्रीय विचारकों के अधिकतम या सर्वाधिक संतोष प्राप्ति रूपी आर्थिक मानव से भिन्नता रखता है ।

आलोचना:

1. आर्गेराइरिस के अनुसार साइमन के निर्णय निर्माण की सबसे कमजोरी है- निर्णयन में अंतदृष्टि, परंपरा विश्वास, आस्था, वफादारी जैसे मूल्यों की भूमिका को अस्वीकार करना । दूसरी बड़ी कमी यह है कि साइमन एक तरफ तो ”अधिकतम संतोष” की प्राप्ति में मनुष्य को अक्षम मानते है, दूसरी तरफ इस अक्षमता को ”तार्किक” भी मानते हैं ।

2. नार्टन लाग और फिलिप सेल्जनिक कहते हैं कि साइमन ने मूल्य और तथ्य को पृथक स्वरूप देकर प्रकारांतर से उस ”राजनीति-प्रशासन” विभाजन को ही नये रूप में प्रस्तुत किया है, जिसकी अब कोई मान्यता नहीं बची है । इससे नौकरशाही राजनीति से पृथक एक तटस्थ उपकरण बन जाती है ।

3. एक तरफ तो साइमन कम्प्यूटर के अधिकाधिक प्रयोग द्वारा समय व पूंजी की बचत की बात करते हैं, दूसरी तरफ निर्णयन की प्रक्रिया को जटिल बनाकर समय साध्य बना देते हैं ।

4. जेम्स अर्ल का शोधपूर्ण निष्कर्ष है कि आज अधिकांश संगठन ”श्रेष्ठतम समाधान” चाहते है न कि मात्र संतोषजनक । साइमन का मॉडल तो श्रेष्ठतम को असंभव मानता है । फिर व्यक्ति यदि ”संतोष” पर रूक तो प्रगति ही अवरूद्ध हो जाएगी ।

साइमन की कृतियाँ:

(1) ”एडमिनिस्ट्रेटिव्ह बिहेविअर- ए डिसिजन मेकिंग साइंस”

(2) ”एडमिनिस्ट्रेटिव्ह बिहेविअर- द स्टडी आफ डिसिजन मेकिंग इन एडमिनिस्ट्रेटिव्ह आर्गेनाइजेशन”

(3) आर्गेनाइजेशन