Read this article in Hindi to learn about:-1. पदसोपान का अर्थ (Meaning of Delegation of Authority) 2. पद-सोपान की विशेषताएं (Importance of Delegation of Authority) 3. गुण (Properties of Delegation) 4. दोष (Demerits).

पदसोपान का अर्थ (Meaning of Delegation of Authority):

किसी कार्य अथवा योजना को सुचारु रूप से चलाने के लिए एक व्यवस्थित संगठन की आवश्यकता होती है । संगठन अनिवार्यतः कुछ निश्चित व्यक्तियों में कार्यों का विभाजन है । एक कर्मचारी दूसरे कर्मचारी से संबंधित रहता है । ऊपर से नीचे तक की एक शृंखला चलती रहती है । इसी शृंखला के संबंध में सामान्य प्रशासन-शास्त्र के अंतर्गत एक सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया है जिसको पद- सोपान या क्रमिक प्रक्रिया का सिद्धांत कहा जाता है ।

पद-सोपान अंग्रेजी शब्द ‘हायरार्की’ (Hierarchy) का हिंदी रूपान्तर है जिसका अभिप्राय है निम्नतर पर उच्चतर का शासन अथवा नियंत्रण, परंतु वास्तविक रूप से इस शब्द का अभिप्राय एक ऐसे संगठन से होता है जो पदों के उत्तरोत्तर क्रम के अनुसार सोपान अथवा सीढी की भांति संगठित होता है ।

जिस प्रकार सोपान में एक के बाद दूसरा डंडा होता है उसी प्रकार पद सोपान में एक के बाद दूसरा पद होता है । इस उत्तरोत्तर क्रम में निचला पद अपने के ऊपर पद के तथा उस पद के माध्यम से उससे ऊपर तथा इसी प्रकार सबसे ऊपर के पद अथवा पदों के अधीन होता है । विपरीत कम में संगठन के भीतर सत्ता का अवतरण, निर्देशन तथा नियंत्रण सर्वोच्च पद से निम्नतर पद तक इसी प्रकार होता है, अर्थात् उच्च पद से निम्नपद और निम्न से निम्नतर तथा निम्नतम पद तक ।

एल॰डी॰ हाइट के अनुसार – ”पद-सोपान का अभिप्राय है संगठन के ढांचे में शिखर से तल तक उत्तरदायित्वों के स्तरों द्वारा अधिकारी-मातहत संबंध का विस्तृत प्रयोग किया जाना ।”

ADVERTISEMENTS:

अर्थ-लैथम का मानना है कि – ”पद सोपान निम्न तथा उच्च व्यक्तियों का श्रेणीबद्ध रूप में एक व्यवस्थित ढांचा है ।” जबकि मूनी तथा रैले ने इसे केलर प्रक्रिया (Scalar Process) कहा है ।

पदसोपान का सबसे मौलिक सिद्धांत यह है कि ऊपर के पदाधिकारी कभी भी नीचे के अधिकारी के साथ संपर्क स्थापित करते समय मध्यस्थ पदाधिकारी की उपेक्षा नहीं कर सकते । इसी प्रकार निम्न पदाधिकारी उच्चतर पदाधिकारियों के साथ संपर्क स्थापित करते समय मध्यस्थ पदाधिकारी की अवहेलना नहीं कर सकता ।

प्रत्येक अधिकारी अथवा कर्मचारी को समस्त आदेश उसके प्रथम उच्चाधिकारी के द्वारा तथा नीचे से आने वाले समस्त प्रतिवेदन, प्रार्थना-पत्र, सूचना व कड़े इत्यादि प्रथम निम्न अधिकारी के ही द्वारा भेजे जाने चाहिए । इसका अर्श यही हुआ कि इस सिद्धांत के अनुसार समस्त कार्य उपयुक्त माध्यम द्वारा (Through Proper Channel) संचालित होने चाहिए ।

पदसोपान पर आधारित संगठन की संरचना तथा कार्य प्रणाली:

ADVERTISEMENTS:

इसका एक रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है:

यहाँ 4 संगठन का अध्यक्ष है । B,A का एकदम (तुरंत) अधीनस्थ है । C,B का तुरंत अधीनस्थ है, परंतु B के माध्यम से वह A का परोक्ष (अप्रत्यक्ष) अधीनस्थ है । D,C का तुरंत अधीनस्थ है, परंतु C के माध्यम से B तथा A का परोक्ष अधीनस्थ है । जहां F,E का तुरंत अधीनस्थ है और उसके माध्यम से D,C,B और A का परोक्ष अधीनस्थ है ।

इस त्रिभुजी चित्र के सामने वाली भुजा पर देखें तो पदाधिकारियों (A,G,H,I,J,K,) के संबंध में भी इसी प्रकार का निर्धारण है । अब यदि A को F के लिए आदेश भेजना है तो वह क्रमशः B,C,D और E के माध्यम से भेजा जाना चाहिए । ठीक इसी प्रकार उल्टे क्रम से देखें तो यदि ह कोई पत्र A के पास भेजता है तो वह पत्र क्रमशः B,C,D और E के द्वारा ऊपर A तक भेजना होगा ।

ADVERTISEMENTS:

यदि F कोई पत्र या संदेश K को भेजता है तो वह पत्र पहले E,D,C और B के माध्यम से होकर A के पास जाएगा, और फिर वहाँ से वह G,H,I,J के द्वारा नीचे उतरकर K तक पहुँचेगा । इस प्रकार सारे संगठन में सत्ता का सूत्र F,A,K क्रम में व्याप्त रहता है ।

पद-सोपान पद्धति में पदों व अधिकारियों का उनकी सेवाओं के अनुरूप वर्गीकरण किया जाता है । यह वर्गीकरण पदों के कार्यों के आधार पर होता है । उन पदों व अधिकारियों को उसी वर्ग के अंतर्गत रखा जाता है जिनके कार्य एक प्रकार के होते है । इस प्रकार के वर्गीकरण करने से सामान्य पद्धति वाले कर्मचारियों के अंतर्गत सेवाओं का विभिन्न भागों में वर्गीकरण करना आवश्यक हो गया है । पद-सोपान शासन के प्रत्येक विभाग में पाया जाता है ।

उदाहरणार्थ, हमारे देश के किसी भी राज्य में पुलिस-प्रशासन के अंतर्गत पद-सोपान विभिन्न प्रकार के काम करता है:

पुलिस प्रशासन के लिए प्रत्येक राज्य एक जिला है जिसका इंचार्ज इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस (I.G.P.) या पुलिस महानिरीक्षक या महाधिपति होता है ।

प्रदेश – पुलिस महाधिपति (I.G.P.)

क्षेत्र – पुलिस उपमहाधिपति (D.I.G.P.)

जिले – जिला पुलिस अधीक्षक (D.S.P.) (S.S.P.)

उप – मंडल सहायक पुलिस अधीक्षक/उप-पुलिस, अधीक्षक/मंडल अधिकारी

(A.S.P./Dy.S.P./C.O.)

पुलिस स्टेशन – इंस्पेक्टर/सहायक इंस्पेक्टर (Inspector/Sub-Inspector)

बाहरी चौकियां – हैड कॉस्टेबल/कान्स्टेबल (Head Constable/Constable)

पुलिस प्रशासन में पद-सोपान ऊपर से नीचे तक इस प्रकार होता है- इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस, डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस, पुलिस अधीक्षक, सहायक पुलिस अधीक्षक, इंस्पेक्टर, सहायक इंस्पेक्टर, हैड कान्स्टेबल, कान्स्टेबल ।

पद-सोपान की विशेषताएं (Importance of Delegation of Authority):

पद-सोपान सिद्धांत की कुछ मूलभूत विशेषताएं हैं जो इस प्रकार हैं:

1. सत्ता का प्रत्यायोजन:

सत्ता के प्रत्यायोजन की प्रक्रिया द्वारा उच्च अधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को अपनी कुछ शक्तियां हस्तान्तरित या प्रत्यायोजित कर देता है, जिससे अधीनस्थ अधिकारी को बार-बार उच्च अधिकारी की आज्ञा न लेनी पडे । इसे अधिकार अर्पण भी कहा जाता है ।

2. नेतृत्व:

नेतृत्व से अभिप्राय है कि शीर्षस्थ पदाधिकारी पूरे प्रशासनिक संगठन का नेतृत्व करता है, अधीनस्थों को आवश्यक आदेश और निर्देश देता है, उन का निर्देशन तथा नियंत्रण भी करता है ।

3. कार्यात्मक परिभाषा:

कार्यात्मक परिभाषा का अर्थ है कि कार्यों की स्पष्ट व्याख्या । संगठन में कार्यों के सफल संचालन के लिए यह आवश्यक होता है कि उच्चाधिकारी प्रत्यायोजित शक्तियों के सीमा-क्षेत्र भी निश्चित कर दे ताकि किसी प्रकार का भ्रम उत्पन्न न हो ।

4. आदेश की एकता के नियम का पालन:

इसमें आदेश की एकता के नियम का पालन होता है, क्योंकि सभी आदेश शीर्षस्थ उच्चाधिकारी द्वारा दिए जाते हैं । प्रत्येक व्यक्ति अपने से उच्च अधिकारी से संपूर्ण आदेश ग्रहण करता है । उसकी आज्ञाओं का पालन करता है और उसके प्रति उत्तरदायी रहता है ।

5. परस्पर समन्वय तथा तालमेल:

पद-सोपान संगठन की विभिन्न इकाईयों के कार्यों में परस्पर समन्वय तथा तालमेल बना रहता है । सत्ता का अंतिम अधिकार उच्च अधिकारी के पास होता है अतः वह उसकी विभिन्न इकाईयों द्वारा किए जाने वाले कार्यों और गतिविधियों में बडी सुगमता से समन्वय स्थापित कर सकता है ।

पद-सोपान का वर्गीकरण:

जिस प्रकार संगठन के ढांचे कई प्रकार के होते हैं उसी प्रकार उनमें स्थित औपचारिक पद-सोपान भी कई प्रकार के होते है ।

पिफनर तथा शेरबुड ने औपचारिक पद-सोपान को चार भागों में विभाजित किया है:

1. कार्यात्मक पद-सोपान:

यह प्रकार मूलरूप से ‘समान कार्य के लिए समान वेतन’ पर आधारित है । इसके अनुसार प्रत्येक कर्मचारी का स्थान उसके द्वारा किए जा रहे कार्यों तथा उसके अधिकारों तथा कर्तव्यों के अनुसार निर्धारित होता है । जिनके पास अधिक अधिकार होते हैं उनकी स्थिति संगठन में उतनी ही उच्च होती है, तथा जिनके पास कम अधिकार होते हैं वे संगठन में निम्न स्तर पर होते हैं ।

नागरिक सेवा के विशेष नियमों के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपने वर्ग के बाहर के कर्तव्यों का पालन नहीं कर सकता । कार्य का पद-सोपान एक प्रकार के ढांचे के पद-सोपान का एक संस्करण है ।

2. प्रतिष्ठा का पद-सोपान:

प्रतिष्ठा का पद-सोपान एक योग्य अधिकारी वर्ग की ओर संकेत करता है । इल फी सर्वाधिक स्पष्ट उदाहरण सेना में दिखाई देता है । उदाहरण के लिए, एक ‘कर्नल’ कर्नल ही रहता है चाहे वह पैदल सेना को आदेश दे रहा हो यो फिर वाशिंगटन में बैठा कागजी कार्यवाही कर रहा हो ।

वह तब तक कर्नल बना रहेगा जब तक कि वह या तो ब्रिगेडियर न बन जाए अथवा सेवानिवृत न हो जाए । कार्य का पद-सोपान व्यक्ति के कार्यों पर अधिक ध्यान देता है जबकि प्रतिष्ठा के पद-सोपान में व्यक्ति के स्तर, वेतन एवं विशेष अधिकारों को दृष्टि में रखा जाता है ।

3. कुशलता का पद-सोपान:

एक संगठन के लिए आवश्यक है कि वह कुशलता के पद-सोपान पर भी आधारित हो । एक संगठन में प्रशासक के नीचे कार्यवाहक प्रबंधकों का पद होता है जिनको ‘कार्यपालिका’ कहा जाता है । वे प्लॉट के सपरिन्टेण्डेट, संभाग के अध्यक्ष तथा जनरल फोरमैन होते हैं ।

ये लोग भी समन्वयकर्त्ता होते हैं किंतु इनका लक्ष्य प्रतिदिन के उत्पादन का निरीक्षण करना होता है न कि उच्च नीतियों का निर्धारण । उनके बाद प्रतिदिन के कार्य तात्कालिक निरीक्षक होते हैं । इस प्रबंधक योग्यता के पद-सोपान के अतिरिक्त व्यवसायिक एवं तकनीकी कुशलता का पद-सोपान भी होता है ।

4. वेतन का पद-सोपान:

बडे स्तर के संगठनों में वेतन का पद-सोपान होना आवश्यक है । वेतन तथा पारिश्रमिक-प्रशासन अपने-आप में एक विशेषता बन गया है जिसके लिए प्रशिक्षित एवं अनुभवी विश्लेषणकर्ताओं की आवश्यकता होती है । इस प्रशासन ने वैज्ञानिक तरीके के कुछ तत्वों को अपना लिया है । इसमें सांख्यिकी दृष्टिकोण को अपनाया जाता है । वेतन के पद-सोपान में धन केंद्रीय वस्तु होता है ।

पद-सोपान के गुण (Properties of Delegation of Authority):

पद-सोपान सिद्धांत पद्धति के अपने कुछ विशेष गुण हैं ।

जो निम्न प्रकार से हैं:

1. एकीकरण:

डॉ॰एम॰पी॰ शर्मा ने लिखा है कि यह सिद्धांत संगठन की विविध इकाइयों का समाकलन अथवा एकीकरण का काम करता है । यही वह धागा है जिसके द्वारा विभिन्न अंगों को एक-साथ पिरोया जाता है ।

कोई भी संगठन उस समय तक प्रभावशाली नहीं हो सकता अथवा सामूहिक कृत्य का संयोजन नहीं कर सकता जब तक कि उसकी विविध इकाइयों को एक सुसंबद्ध समूह में समाकलित अथवा एकीकृत न किया जाए । यही कारण है कि पद-सोपान समस्त प्रकार के संगठनों के लिए सार्वभौमिक रूप से अनिवार्य है ।

2. उत्तरदायित्व का प्रत्यायोजन:

इस प्रक्रिया में उच्च अधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को अपनी कुछ शक्तियां हस्तान्तरित अथवा प्रत्यायोजित कर देता है । इसे सता का प्रत्यायोजित कहते हैं । इसमें सत्ता का विकेंद्रीकरण हो जाता है, और निचले स्तरों पर आवश्यक कार्य किए जाने से सर्वोंच्च अधिकारी का कार्यभार बहुत हल्का हो जाता है, वह अधिक दक्षतापूर्वक अपने संगठन का संचालन कर सकता है ।

3. दूरस्थ भागों से संबंध:

किसी संगठन के बड़े होने और उसके कार्य के दूर-दूर तक फैले होने पर पद-सोपान के क्रम के द्वारा ही केंद्र तथा संगठन के दूरस्थ भागों से संबंध कायम रखा जा सकता है । इस प्रकार संपूर्ण विभाग प्रभावपूर्ण रीति से कार्य करने के लिए एक सूत्र में बंध जाता है ।

4. उचित मार्ग द्वारा कार्य:

क्रमिक व्यवस्था उचित मार्ग के द्वारा सिद्धांत की स्थापना करती है । यह सर्वोच्च अधिकारियों के समय की बचत करता है क्योंकि अनेक निर्णय उनके पास पहुंचने से पहले ही निचले कर्मचारियों द्वारा ले लिए जाते हैं । ‘समुचित माध्यम’ का सिद्धांत इस बात का आश्वासन है कि प्रशासकीय प्रक्रिया में छोटे रास्ते नहीं खोजे जाते अर्थात् मध्यवर्ती कडियों की उपेक्षा नहीं की जाती ।

5. आदेश की एकता के सिद्धांत को मान्यता:

क्रमिक व्यवस्था में, आदेश की एकता का सिद्धांत पूर्णतः लागू होता है । एक व्यक्ति का केवल एक ही तत्काल उच्च अधिकारी होगा जिससे वह आज्ञाएं प्राप्त करता है । इसके कारण संगठन का कार्य सुचारु रूप से चलता रहता है ।

6. उत्तरदायित्वों का स्पष्टीकरण:

पद-सोपान संगठन के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति के सापेक्ष उत्तरदायित्वों का स्पष्टीकरण करता है । यह एकदम स्पष्ट होता है कि कौन किसके अधीन है और इस प्रकार किसी भी प्रकार के भ्रम की संभावना नहीं रहती ।

पाल एच॰ एपलबी के अनुसार पद-सोपान वह साधन है जिससे स्रोतों का आनुपातिक प्रयोग किया जोता है, कार्यकर्ताओं का चुनाव किया जाता है, उनको कार्य दिया जाता है और इन सबके फलस्वरूप प्रवर्तन को गति प्राप्त होती है, उसकी समीक्षा की जाती है तथा उसमें संशोधन किए जाते हैं । इस प्रकार पद-सोपान प्रक्रिया के कारण समय की बचत, उत्तरदायित्वपूर्ण भावना और एकता के सिद्धांत को प्राप्त किया जा सकता है ।

7. नेतृत्व का निर्धारण:

संगठन को पद-सोपान द्वारा भिन्न-भिन्न स्तरों में विभाजित करके यह निश्चित कर दिया जाता है कि कौन किसका नेतृत्व करेगा तथा निर्णयों के लिए कौन उत्तरदायी होगा ।

8. समन्वय:

इस सिद्धांत द्वारा संपूर्ण संगठन में समन्वय स्थापित किया जा सकता है । चूंकि सत्ता के अंतिम सूत्र शिखर के अधिकारी के पास रहते हैं, इसलिए वह विभाग की विभिन्न शाखाओं की गतिविधियों में तालमेल बैठा सकता है ।

पद-सोपान पद्धति के दोष (Demerits of Delegation of Authority):

नीसन्सदेह पद-सोपान सिद्धांत के अपने गुण हैं, लेकिन इससे भी मना नहीं किया जा सकता कि इस व्यवस्था में अनेक दोष भी हैं जो निम्न प्रकार से है:

1. कार्य संपन्नता में देरी:

पद-सोपान पद्धति के कारण कार्य के निपटाने में देरी होती है । इस सिद्धांत की मूल मान्यता है कि प्रत्येक प्रस्ताव को क्रमिक सोपान के प्रत्येक पद से ऊपर जाना चाहिए तथा वहाँ से स्वीकृति मिलने पर क्रियान्वयन के लिए पुन: उसे उत्तरोत्तर क्रम से नीचे की ओर आना चाहिए । अतः इस कार्यप्रणाली में एक कार्य की सम्पन्नता में महीनों लग जाते हैं ।

2. लाल फीताशाही तथा नौकरशाही:

पद-सोपान पद्धति का एक बड़ा दोष यह है कि इसके कारण संगठन में लाल फीताशाही और नौकरशाही को बढ़ावा मिलता है ।

3. लचीलेपन का अभाव:

इस पद्धति के कारण संगठन में लचीलापन नहीं रहता जिसके कारण संगठन के लोगों में आपसी जीवंत संबंधों का भली-भांति विकास नहीं हो पाता ।

4. औपचारिकता पर जोर:

इस पद्धति में नियमों पर अत्यधिक बल दिए जाने के कारण बडी कठोरता आ जाती है, सौहार्द्रपूर्ण मानवीय संबंधों का विकास नहीं होने पाता है । प्रत्येक मामले पर तभी विचार और आवश्यक कार्यवाही की जाती है, जब वह ‘उचित माध्यम’ से उच्च अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किया जाए । अनेक बार देखने में आया है कि इसके परिणाम बड़े घातक निकलते हैं ।

5. कार्य के बिगड़ने की संभावना:

इसमें एक बडा दोष यह है कि जब ‘A’ से सीधा संपर्क स्थापित करें ‘B’ को उस विशेष कार्य के संबंध में अवगत कराया जाना आवश्यक है । कई बार अवगत कराने में अनियमितता हो जाती है तो फिर कार्य के बिगड़ने की संभावना रहती है क्योंकि ‘B’ असंतुष्ट हो जाता है ।

मूल्यांकन:

पद-सोपान सिद्धांत के गुण-दोषों पर विचार करने के बाद यह निष्कर्ष निकला है कि इस पद्धति में गुण अधिक हैं और दोष कम हैं । मैक्स वेबर के अनुसार, ”सत्ता का सोपानीकरण और नियमों की व्यवस्था निर्वैयक्तिकीकरण और कार्यकुशलता को सुनिश्चित करते हैं ।”

पद सोपान पद्धति के दोषों से बचने संबंधी दो उपाय हैं:

1. फेयोल ने लिखा है कि, पद-सोपान की औपचारिक रेखाओं के आधार पर पुलों का निर्माण कर लिया जाना चाहिए ताकि एक विभाग अथवा सम्भाग के अधिकारी दूसरे विभाग अथवा संभाग के अधीनस्थ अधिकारी दूसरे विभाग अथवा संभाग के अपने समस्तरीय अधिकारियों से सीधा संपर्क रख सके ।

2. एक ही विभाग के दो अधिकारी अपने मध्यस्थ द्वारा संपर्क स्थापित न कर सीधी वार्ता भी कर सकते हैं, किंतु ऐसा करने से पहले दो बातों का ध्यान रखना आवश्यक है, प्रथम, दोनों के बीच विचारों का आदान-प्रदान तथा निर्णयों से मध्यस्थ अधिकारी को सूचित रखना तथा द्वितीय, ऐसा करते समय इस बीच के अधिकारी का पूरा विश्वास प्राप्त करना चाहिए ।

इन दोनों शर्तों के पूरा हो जाने की अवस्था में संगठन में उत्पन्न होने वाली कई समस्याओं से निपटा जा सकता है तथा पद-सोपान की व्यवस्था को भी कायम रखा जा सकता है ।