Read this article in Hindi to learn about the main six functions of district collector. The functions are:- 1. जिला कलेक्टर के रूप में कार्य (Work as District Collector) 2. जिलाध्यक्ष या सामान्य प्रशासन के प्रशासक की हैसियत से कार्य (Work as Administrator of District Head or General Administration) 3. जिला दण्डाधिकारी के रूप में कार्य (Work as District Magistrate) and a Few Others.

राज्य में कलेक्टर की भूमिका और कार्यों में निरन्तर बदलाव आए हैं । उसके ऊपर नये-नये कार्यों का दायित्व आ रहा है । उसके कार्यों की सूची बनाना संभव नहीं है । विभिन्न भूमिकाओं के अनुरूप उसके कार्य भी होते हैं ।

Function # 1. जिला कलेक्टर के रूप में कार्य (Work as District Collector):

कलेक्टर का मूल दायित्व, जिसके लिए यह पद सृजित किया गया था, भू-राजस्व का संग्रहण है । वह राजस्व विभाग का पदेन उपसचिव होता है । जिले की समस्त सरकारी भूमि का स्वामी कलेक्टर होता है और उपसचिव के रूप में वही राज्य शासन की और से इस भूमि का प्रबन्धन, नियमन, हस्तांतरण करता है । वह किसानों से लगान या भूराजस्व वसूल करता है । इस कार्य को वह अपने अधीनस्थ अमले तहसीलदार, गिरदावर (रेवेन्यू इंस्पेक्टर), पटवारी, पटेल आदि के माध्यम से करता है ।

वस्तुत: राजस्व प्रशासन कलेक्टर का मूलभूत कर्त्तव्य रहा है, और इस हेतु वह आज भी निम्नलिखित कार्य करता है:

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i. लगान (भू-राजस्व) की वसूली ।

ii. अन्य शासकीय बकाया की वसूली ।

iii. तकाबी ऋण का वितरण और वसूली । (तकाबी ऋण वस्तुत: किसानों को दिया गया अल्पकालिन ऋण होता है) ।

iv. भू-अभिलेखों का लेखा, उनका समय-समय पर संशोधन आदि ।

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v. राजस्व विभाग के पदेन उपसचिव की हैसियत से भूमि अधिग्रहण सम्बन्धी कार्यवाही । वह शासकीय प्रयोजन हेतु निजी भूमि भी अधिग्रहीत कर सकता है ।

vi. प्राकृतिक आपदा के समय प्रभावितों को राहत राशि या वस्तुओं का वितरण ।

vii. जिले की सांख्यिकी का संग्रहण । मसलन फसल-आनावारी, पशु संगणना ।

viii. नजूल भूमि का प्रशासन ।

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ix. स्टॉम्प एक्ट क्रियान्वयन ।

x. पंजीयन संबंधी कार्य ।

xi. अधीनस्थ राजस्व अधिकारियों के न्याय-निर्णयों के विरूद्ध अपील सुनना ।

xii. कोषालय तथा उपकोषालय का निरीक्षण और प्रबन्धन ।

xiii. जमींदारी उन्मूलन हेतु क्षतिपूर्ति का भूगतान और पुनर्वास हेतु अनुदान ।

xiv. यदि कृषि पर आयकर लगे तो उसका निर्धारण और वसूली ।

xv. भू-राजस्व समुनदेशन की स्वीकृति प्रदान करता है ।

xvi. भूमि सुधारों को लागू करवाना ।

Function # 2. जिलाध्यक्ष या सामान्य प्रशासन के प्रशासक की हैसियत से कार्य (Work as Administrator of District Head or General Administration):

कलेक्टर का कार्यालय प्रशासनिक सेट-अप में एक सूत्र अभिकरण है । यह सामान्य प्रशासन विभाग की क्षेत्रीय इकाई होती है । सामान्य प्रशासन विभाग राजनीतिक रूप से मुख्यमंत्री और प्रशासनिक रूप से मुख्य सचिव के अधीन होता है । इसकी इकाई होने के कारण ही कलेक्टर के कार्यालय को ”जिला प्रशासन” का केन्द्र या पर्याय माना जाता है ।

शेष सभी क्षेत्रीय विभाग इसके लिये स्टॉफ सदृश हो जाते हैं । जिलाध्यक्ष के रूप में वह जिले का प्रमुख प्रशासक होता है । इस रूप में उसे अपने राजस्व विभाग, समान्य प्रशासन विभाग तथा अन्य विभागों पर निर्देशन- नियन्त्रण और समन्वय के अनेक कार्य करना होते हैं ।

जैसे:

i. तहसीलदार, नायब तहसीलदार, गिरदावर, पटवारी आदि की जिलान्तर्गत पदस्थापना, स्थानान्तरण, अवकाश आदि देखता है । वह इनके विरूद्ध तत्कालिक रूप से अनुशासनिक कार्यवाही कर सकता है ।

ii. अपने जिला कार्यालय की सभी शाखाओं में स्थापना, स्थानान्तरण आदि कार्य करता है ।

iii. वह अपने प्रत्यक्ष अधीनस्थ सभी अधिकारियों (डिप्टी कलेक्टर, तहसीलदार आदि सभी) में कार्य विभाजन करता है और उनमें जब आवश्यक हो तब परिवर्तन भी करता है ।

iv. जिलास्तरीय अधिकारियों और अधीनस्थ अधिकारियों का वार्षिक गोपनीय प्रतिवेदन लिखता है ।

v. अपने कार्यालय के तृतीय और चतुर्थ श्रेणी कार्मिकों की नियुक्ति करता है, उनके पदोन्नति और अनुशासन संबंधी मामले निर्णित करता है ।

vi. कनिष्ट अधिकारियों को कार्यालय प्रक्रिया, प्रशासनिक कार्य, व्यक्तिगत आचरण में प्रशिक्षित करता है ।

vii. समस्त जिला अधिकारियों के कार्यों में समन्वय स्थापित करता है ।

viii. प्रोटोकाल-प्रशासन, शासकीय आदेशों का क्रियान्वयन, शराब, पेट्रोल, भाँग की बिक्री की देखरेख, जिले के वार्षिक बजट अनुमान बनाना आदि विविध कार्य जिलाध्यक्ष के रूप में करता है ।

ix. वह जिले के सभी राज्याधीन अधिकारियों (न्यायिक को छोड़कर) पर सामान्य नियन्त्रण रखता है ।

Function # 3. जिला दण्डाधिकारी के रूप में कार्य (Work as District Magistrate):

कलेक्टर पेदन प्रथम श्रेणी का जिला दण्डाधिकारी भी होता है । इस रूप में उसका मुख्य दायित्व जिले में शांति-व्यवस्था सुनिश्चित करना है । जिला दण्डाधिकारी के रूप में उसके कार्यों का विस्तार और हस्तक्षेप जिले की प्रत्येक गतिविधि तक हो जाता है ।

उसके प्रमुख कार्य हैं:

i. शांति व्यवस्था बनाये रखना । इस हेतु त्यौहार, जुलूस, टैली, आदि के समय कार्यपालक दण्डाधिकारियों की ड्‌यूटी लगाना और पुलिस को सतर्क करना ।

ii. सार्वजनिक शांति के लिए खतरा उत्पन्न होने पर उससे निपटने हेतु तात्कालिक कार्यवाही करना, जैसे- चेतावनी, लाठी चार्ज, अश्रुगैस, कर्फ्यू या फायरिंग के आदेश देना । वह धारा 144 या कर्फ्यू आदि भी इस हेतु लागू करता है ।

iii. जेलों का निरीक्षण करना ओर जेल प्रशासन पर नियन्त्रण रखना ।

iv. पुलिस थानों, पुलिस कार्यों आदि का निरीक्षण और नियन्त्रण ।

v. जिले की श्रम समस्याओं, हड़ताल, तालाबन्दी आदि का नियमन करना ।

vi. शासन को जिले का वार्षिक आपराधिक प्रतिवेदन प्रस्तुत करना ।

vii. प्रेस कानून का क्रियान्वय ।

viii. मनोरंजन कर को लागू करना ।

ix. कैदियों को उच्च श्रेणी प्रदान करना, उन्हें समयावधि पूर्व छोड़ना ।

x. प्रत्यावासन खर्च की वसूली ।

xi. ट्रेड मार्क कानून की देखभाल ।

xii. ग्रामों में चौकीदारों की नियुक्ति व उनके विरूद्ध आनुशासनिक कार्यवाही ।

xiii. गन्ना कर, शुगर मिल के लिये गन्ना-लेवी आदि की वसूली ।

Function # 4. जिला विकास अधिकारी के रूप में (As the District Development Officer):

स्वतन्त्रता के बाद कलेक्टर के मुख्य दायित्व विकास संबंधी हो गये । बाद में उसके कार्यों के दो भाग हुए । नियामिकीय कार्य वह पूर्ववत कर रहा है जबकि विकास हेतु जिला विकास अभिकरण के मुख्य कार्यपालन अधिकारी का एक पृथक् पद सृजित किया गया जो अब जिला पंचायत के अधीन है । बावजूद इसके कलेक्टर की भूमिका विकास कार्यों के नियन्त्रक, पर्यवेक्षक, समन्वयक और मार्गदर्शक के रूप में अधिक महत्वपूर्ण हो गयी है ।

जो निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट होती है:

i. वह जिला पंचायत का पदेन सदस्य है ।

ii. सांसद और विधायक निधि (बजट 2004-05 में घोषित) पर वही नियन्त्रण रखता है ।

iii. जिले की स्थानीय शासन संस्थाओं को विकास कार्यों में मदद करता है, उन पर अनुशासनिक नियन्त्रण रखता है । जैसे- पंच को पदमुक्त करने की शक्ति कलेक्टर में निहित की गयी है ।

iv. जिले के विकास अधिकारियों की नियतकालीक बैठकें लेता है और जिले के सामान्य विकास को निर्देशित करता है । वह विकास कार्यों का निरन्तर निरीक्षण कर उसकी गुणवत्ता, आदि सुनिश्चित करता है ।

कलेक्टर आज भी जिले के विकास कार्यों का मुख्य कप्तान है । कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात में कलेक्टर को विकास कार्यों से मुक्त कर दिया गया है । उल्लेखनीय हैं कि कलेक्टर को विधिवत रूप से विकास कार्यों से संलग्न स्वतन्त्रता के पश्चात् ही किया गया था ।

Function # 5. जिला निर्वाचन अधिकारी (District Election Officer):

i. इस रूप में वह लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकायों के चुनाव हेतु जिले का सम्पूर्ण नियन्त्रक होता है ।

ii. वह जिला रिर्टनिंग आफीसर होता है, लोकसभा, विधानसभा के (प्रत्याशियों) से नामांकन पत्र प्राप्त करता है, उनकी जांच कर उन्हें स्वीकृत या अस्वीकृत करता है ।

iii. मतदाता सूचियों का पुनरीक्षण करवाता है, मतदान और मत गिनती की व्यवस्था करता है ।

Function # 6. अन्य कार्य (Other Functions):

i. वह जिला सैनिक कल्याणकारी के रूप में जिले में सैनिकों के कल्याण की योजनाएं क्रियान्वित करता है, उन्हें भूखण्ड आवंटित करता है ।

ii. जिला जनगणना अधिकारी के रूप में जनगणना का कार्य सम्पन्न करता है ।

iii. राष्ट्रीय बचत योजना, राष्ट्रीय सुरक्षा निधि योजना आदि वही क्रियान्वित करता है । और इनकी समितियों/संस्थाओं की अध्यक्षता करता है ।

iv. जिला सतर्कता अधिकारी के रूप में लोकसेवकों के विरूद्ध जन शिकायतों की सुनवाई करता है ।

v. नागरिकों को भेंट का समय देता है और उनकी समस्यायें सुनता है ।

vi. अन्य अधिकारियों को मिलने का समय देता है और उनके कार्य में आने वाली बाधाएं सुनता है ।

vii. जिले के अधिकारियों की प्रतिमाह बैठक लेता हैं और उनके कार्यों में समन्वय स्थापित करवाता है ।

viii. सिविल विवाह का पंजीयन करवाता है ।

ix. शासकीय अधिवक्ताओं की नियुक्ति हेतु पेनल तैयार करवाता है ।

x. आवश्यकता पड़ने पर दान, चन्दा और ऋण एकत्रित करवाता है ।

xi. नागरिक-आपूर्ति (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) सहित सुनिशिचत करना ।

xii. मूल निवासी, अनु.जाति, अनु.जनजाति को प्रमाण पत्र देने की व्यवस्था करता है ।

xiii. शासकीय क्वार्टर कार्मिकों को आवंटित करता है ।

xiv. कन्ट्रोल दुकाने आवंटित करता है ।

xv. जिले का वार्षिक गजेटियर तैयार करना ।