Read this article in Hindi to learn about:- 1. निर्वाचन आयोग संरचना (Structure of Election Commission) 2. निर्वाचन आयोग  पदाधिकारी और उनका कार्यकाल (Election Commission Officer and his Tenure) 3. कार्य (Functions) 4. अन्य प्रावधान (Other Provisions).

निर्वाचन आयोग संरचना (Structure of Election Commission):

भारत में निर्वाचन की पूरी प्रक्रिया एक सांविधानिक संस्था ”निर्वाचन आयोग” द्वारा नियंत्रित की जाती है । अनुच्छेद 324 के तहत निर्वाचनों का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण निर्वाचन आयोग में निहित है ।

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निर्वाचन आयोग का गठन अनुच्छेद 324 के प्रावधानों के तहत मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य आयुक्तों को मिलाकर किया जाता है । निर्वाचन आयोग के सदस्यों की संख्या राष्ट्रपति निर्धारित करता है । मुख्य निर्वाचन आयुक्त सहित सभी निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है ।

वर्तमान में 3 सदस्यीय आयोग हैं । सर्वप्रथम 1989 में चुनाव आयोग बहुसदस्यीय बनाया गया था । इस तीन सदस्यीय आयोग को 1990 में पुन: एक सदस्यीय कर दिया गया । 1991 में संसदीय अधिनियम द्वारा आयोग 3 सदस्यीय कर दिया गया जो बहुमत के आधार पर निर्णय करता है ।

निर्वाचन आयोग  पदाधिकारी और उनका कार्यकाल (Election Commission Officer and his Tenure):

मुख्य आयुक्त:

निर्वाचन आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल समान्य परिस्थितियों में पद ग्रहण करने की तिथि से 6 वर्ष के लिए होता है ।

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परन्तु निम्नांकित परिस्थितियों में वह 6 वर्ष के पूर्व भी पदमुक्त किया जा सकता है:

(अ) 65 वर्ष उम्र पूरी कर ली हो या

(ब) यदि राष्ट्रपति को संबोधित त्याग-पत्र दे दिया हो या

(स) उसके विरूद्ध संसद ने महाभियोग जैसा प्रस्ताव पारित कर दिया हो ।

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ज्ञातव्य है कि मुख्य चुनाव आयुक्त को पदमुक्त करने के लिए उस पर संसद उन्हीं विधियों से महाभियोग जैसा प्रस्ताव पारित कर सकती है, जिन विधियों से उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के विरूद्ध करती है ।

अन्य आयुक्त:

निर्वाचन आयोग के अन्य आयुक्त भी सामान्य परिस्थितियों में कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से 6 वर्षों तक का कार्यकाल पूरा करते है लेकिन उनकी अधिकतम आयु सीमा 62 वर्ष रखी गई है । उनके विरूद्ध महाभियोग जैसा प्रस्ताव नहीं लाया जाता है, अपितु राष्ट्रपति न्यायिक जाँच उपरान्त उन्हें पदमुक्त कर सकता है ।

स्पष्ट है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों के मध्य उम्र सीमा और हटाने संबंधी प्रक्रिया को लेकर कतिपय अन्तर है । एक अन्तर यह भी है कि चुनाव आयोग पर प्रशासनिक नियन्त्रण मुख्य चुनाव आयुक्त का होता है ।

प्रादेशिक निर्वाचन आयुक्त (Regional Election Commissioner):

निर्वाचन अधिकारी (Election Officer):

संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार राष्ट्रपति मुख्य चुनाव आयुक्त से परामर्श करके उसकी सहायतार्थ अन्य प्रादेशिक चुनाव आयुक्त नियुक्त कर सकता है । इसके तहत सर्वप्रथम 1952 में 6 माह के लिये 2 प्रादेशिक निर्वाचन आयुक्त नियुक्त किये थे जिनके कार्यालय पटना और बंबई थे ।

1956 में उप निर्वाचन आयुक्त का पद बनाया गया । 1957, 1962 में 2 और 1967 में 1 उपनिर्वाचन आयुक्त नियुक्त किये गये । उसके बाद से ये पद अस्तित्व में नहीं आये ।

लेकिन 73वें और 74वें संशोधन के पश्चात अनु. 243 (ट) के तहत राज्य में स्थानीय निकायों के चुनाव हेतु प्रादेशिक निर्वाचन पदाधिकारी का प्रावधान किया गया है । यह राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाता है और राज्य निर्वाचन आयोग का अध्यक्ष होता है । इसका केंद्रीय चुनाव आयोग से कोई संबंध नहीं होता है ।

वेतन तथा भत्ता (Pay and Allowance):

भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त को 30,000 रुपये प्रतिमाह तथा अन्य चुनाव आयुक्तों को 26,000 रुपये प्रतिमाह वेतन मिलता है ।

निर्वाचन-आयोग के कार्य (Functions of Election Commission):

निर्वाचन आयोग के निम्नांकित प्रमुख कार्य है:

1. निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन करना (Delimitation of Constituencies):

निर्वाचन-आयोग, निर्वाचन-क्षेत्रों का परिसीमन करता है । सन 1952 में संसद ने परिसीमन आयोग अधिनियम पारित कर यह प्रावधान किया कि परसीमन आयोग द्वारा प्रत्येक जनगणना (10 वर्ष) के बाद निर्वाचन क्षेत्रों का सीमांकन किया जाएगा । अध्यक्ष और दो अन्य सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किये जाते हैं ।

2. निर्वाचक नामावली (मतदाता सूची) तैयार करना [Preparation of Electoral Rolls (Electoral Rolls)]:

निर्वाचन आयोग समय-समय पर निर्वाचक मण्डल के निर्वाचकों की सूची का निर्माण करता है । जिसे मतदाता सूची भी कहते हैं ।

3. राजनैतिक दलों को मान्यता प्रदान करना (Recognition of Political Parties):

निर्वाचन आयोग विभिन्न राजनीतिक दलो को मान्यता भी प्रदान करता है । राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करने के लिए निर्वाचन आयोग कोई भी मानदण्ड निर्धारित कर सकता है ।

1 दिसम्बर 2000 में चुनाव आयोग ने चुनाव चिन्ह आरक्षण एवं आवंटन नियम 1968 में संशोधन कर राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दलों की मान्यता की नये मापदण्ड निर्धारित किये ।

4. चुनाव चिन्ह आवंटन (Election Symbol Allocation):

निर्वाचन आयोग राजनीतिक दलों को चुनाव-चिन्ह प्रदान करता है । यह भी उक्त ”निर्वाचन प्रतीक (आरक्षण और आवंटन) आदेश” 1968 के अधीन ही प्रदत्त किये जाते हैं । ज्ञातव्य है कि चुनाव-चिन्ह दो प्रकार के होते हैं- आरक्षित और अनराक्षित ।

आरक्षित चुनाव चिन्ह राष्ट्रीय या राज्यस्तरीय मान्यता प्राप्त राजनितिक दल को ही प्रदान किये जाते हैं । दोनों विभाजित गुटों में चुनाव चिन्ह को लेकर यदि कोई मतभेद हो जाता है तो उसका फैसला निर्वाचन आयोग ही करता है । निर्वाचन आयोग के ऐसे निर्णय के विरूद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील की जा सकती है ।

5. विभिन्न चुनावों को सम्पन्न करना (Completing Different Elections):

यह इसका सबसे प्रमुख कार्य है । राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, संसद तथा राज्य विधानमण्डलों के निर्वाचन का संचालन निर्वाचन आयोग ही करता है ।

6. चुनाव रद्द या स्थगित करना (Cancellation or Suspension of Election):

आयोग निर्वाचन में किसी भी प्रकार की अनियमितता को देखते हुए निर्वाचन को रद्द कर सकता है । निर्वाचन-आयोग सम्पूर्ण निर्वाचन या किसी क्षेत्र विशेष के मतदान को स्थगित कर सकता है ।

7. सांसद या विधायक को अयोग्यता के संबंध में परामर्श देना (Advising the MP or MLA about Disqualification):

संसद या राज्य विधानमण्डल के सदस्यों की अयोग्यता की जांच के समय राष्ट्रपति तथा राज्यपाल को परामर्श देता है ।

8. आचार संहिता का निर्धारण करना (Determining the Code of Conduct):

चुनाव के समय राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों के लिये आचरण संहिता बनाता है और लागू करता है ।

9. आकाशवाणी तथा दूरदर्शन पर चुनाव प्रचार की सुविधा का अधीक्षण करना ।

10. चुनाव याचिकाओं के संबंध में सरकार को सलाह ।

11. उम्मीदवारों की चुनावी व्यय सीमा को निश्चित करना ।

12. मतदाताओं को राजनीतिक रूप से जागरूक बनाना ।

13. उपचुनाव कराना ।

अनुच्छेद 324 में संशोधन के द्वारा तथा उस संदर्भ में जारी आदेशों के द्वारा चुनाव आयोग के कार्य और शक्तियों में वृद्धि की जाती रही है ।

जो इस प्रकार है:

(I) जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 के तहत मतदान की योग्यता, मतदाता सूचियों का निर्माण, चुनाव क्षेत्र निर्धारण और संसद तथा राज्य विधानमण्डल में सीटों के बंटवारे के संबंध में चुनाव आयोग को व्यापक शक्तियां दी गयी ।

निर्वाचन-आयोग संबंधी अन्य प्रावधान (Other Provisions of Election Commission):

गुप्त मतदान (Secret Ballot):

भारत में गुप्त मतदान की प्रणाली अपनाई गई है । गुप्त मतदान से तात्पर्य यह कि प्रत्येक नागरिक अपने प्रतिनिधि के चुनाव के लिए स्वतंत्र हैं । उसे किसी भी तरह से इस बात को बताने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता कि उसने अपना मत किसे दिया ।

नामांकन (Nomination):

निर्वाचन दलों के उम्मीदवारों के बीच से एक का नामांकन होता है । दलों के अधिकृत उम्मीदवार और निर्दलीय उम्मीदवार अपने संबद्ध निर्वाचन क्षेत्र के निर्वाचन अधिकारी के समक्ष अपना नामांकन पत्र दाखिल करते हैं ।

नामांकन पत्र उस क्षेत्र के कम से कम दो मतदाताओं द्वारा प्रस्तावित और अनुमोदित होना चाहिए । यदि नामांकन पत्र में कोई त्रुटि हो या कोई व्यक्ति उम्मीदवारी के अयोग्य हो तो निर्वाचन अधिकारी उस नामांकन पत्र को खारिज कर सकता है ।

चुनाव-चिन्ह (Election Symbol):

निर्वाचन के लिए मत-पत्र तैयार किया जाता है । उस पर प्रत्याशी के नाम के साथ-साथ उसका चुनाव-चिन्ह अंकित होता है । निर्वाचन आयोग विभिन्न राजनीतिक दलों के लिए भिन्न-भिन्न चुनाव चिन्ह निर्धारित करता है । सामान्यतया राजनीतिक दलों को पसंदीदा चुनाव चिन्ह ही मिल जाते हैं ।

राष्ट्रीय दलों के राष्ट्रीय चिन्ह इस प्रकार है:

1. भारतीय जनता पार्टी- कमल

2. कांग्रेस (ई)- हाथ (पंजा)

3. जनता दल- चक्र

4. बहुजन समाजवादी पार्टी- हाथी

5. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी- हंसिया और गेहूँ की बाली

6. मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी- हंसिया, हथौड़ा और सितारा

7. राष्ट्रीय जनता दल (2008 में राष्ट्रीय स्तर)

चुनाव-प्रचार (Election Campaign):

चुनाव प्रचार के लिए निश्चित समय निर्धारित किया जाता है । निर्वाचन आयोग प्रचार के औपचारिक आरंभ और उसकी समाप्ति की तिथियां निश्चित करता । चुनाव प्रचार मतदान आरंभ होने के 48 घण्टे पूर्व समाप्त हो जाता है ।