Read this article in Hindi to learn about:- 1. अनुमान समिति का अर्थ (Meaning of Estimates Committee) 2. अनुमान समिति का संगठन (Organisation of Estimates Committee) 3. कार्य-प्रक्रिया (Working Process) 4. कार्यप्रणाली (Working Methods).

अनुमान समिति का अर्थ (Meaning of Estimates Committee):

स्वतंत्रता के पूर्व 1921 में स्थायी वित्तीय समिति का गठन मितव्ययिता और सार्वजनिक धन के विवेकपूर्ण उपयोग को सुनिश्चित करने हेतु किया गया था । ब्रिटेन में 1912 में अनुमान समिति अस्तित्व में आयी थी । भारत में इसकी स्थापना की पहली मांग केन्द्रीय विधानमंडल के सदस्य एस. सत्यमूर्ति ने 1937 में अल्पकालिन सूचना के माध्यम से की थी । लेकिन इसकी स्थापना स्वतंत्रता बाद ही संभव हो सकी ।

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10 अप्रैल 1950 को लोकसभा अध्यक्ष मावलंकर की घोषणा के साथ ही अनुमान समिति भारत में पहली बार गठित हुई । उनके अनुसार अनुच्छेद 116 के तहत कार्यपालिका के व्यय पर बेहतर संसदीय नियंत्रण हेतु इस समिति की जरूरत थी । इसके गठन के 2 वर्ष बाद स्थायी वित्त समिति और स्थायी सलाहकार समिति दोनों को समाप्त कर दिया गया ।

अनुमान समिति का संगठन (Organisation of Estimates Committee):

मात्र लोकसभा के सदस्यों से गठित अनुमान समिति में प्रारंभ में 25 सदस्य थे लेकिन 1956 से इनकी संख्या 30 कर दी गयी जिसमें समिति का अध्यक्ष शामिल है । सदस्यों का चुनाव प्रतिवर्ष एकल संक्रमणीय मत पद्धति से होता है । चूंकि चुनाव आनुपातिक आधार पर होता है अतः विभिन्न राजनीतिक दलों को इसमें प्रतिनिधित्व मिलता है ।

समिति के सदस्यों का चुनाव पूर्व के वर्ष की समिति के अध्यक्ष के प्रस्ताव के आधार पर लोकसभा द्वारा किया जाता है । प्रत्येक वर्ष मई माह में समिति का कार्यकाल प्रारंभ होता है तथा अगले वर्ष 30 अप्रैल को समाप्त किया जाता है । 1956-57 से प्रचलित परंपरा के अनुरूप प्रतिवर्ष समिति के एक-तिहाई सदस्य ही नए चुने जाते हैं जबकि बाकी दो-तिहाई अगले वर्ष के लिए पुनः चुन लिये जाते हैं । इस परंपरा से अनुभवी सदस्यों के अनुभव का समिति को लाभ मिलता रहता है ।

समिति का अध्यक्ष लोकसभा के अध्यक्ष द्वारा मनोनीत किया जाता है, किन्तु यदि लोकसभा का उपाध्यक्ष इस समिति में चुना जाता है तो फिर यही समिति का अध्यक्ष भी चुना जाता है । आमतौर पर सत्तारूढ़ दल का कोई वरिष्ठ सदस्य इस पद पर चुना जाता है और व्यवहार में लोकसभा अध्यक्ष के स्थान पर सत्तारूढ़ दल के संसदीय बोर्ड अथवा संसदीय मामलों के मंत्री में दिशा-निर्देशित होता है ।

अनुमान समिति की कार्य-प्रक्रिया (Working Process of Estimates Committee):

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लोक सभा के संसदीय कार्यवाही नियम 310 से 312 में अनुमान समिति के कार्यों और कार्य क्षेत्र का वर्णन है । 1956 तक यह मात्र अनुमान-निर्धारण की नीति पर मितव्ययिता के संदर्भ में विचार करती थी लेकिन 1956 में इसके कार्यक्षेत्र को व्यापक बना दिया गया ।

तदनुरूप इसके कार्य हैं:

1. प्रशासनिक और संगठनात्मक ऐसे उपाय सुझाना जो सरकारी नीति के अनुरूप रहकर मितव्ययिता, कार्यकुशलता और प्रशासनिक सुधारों को सुनिश्चित कर सके ।

2. कुशलता तथा मितव्ययिता के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए वैकल्पिक नीतियों का सुझाव देना ।

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3. अनुमानों में सन्निहित नीति के अनुरूप मौद्रिक प्रावधानों के औचित्य की जांच, तथा

4. संसद के समक्ष बजट अनुमानों के प्रस्तुतीकरण का बेहतर ढंग विकसित करने लिये सुझाव देना ।

नोट:

समिति उन सार्वजनिक उपक्रमों के बारे में विचार नहीं करती जो सार्वजनिक उपक्रम समिति के दायरे में रखे गये हैं । 1964 में सार्वजनिक उपक्रम समिति की स्थापना के बाद अनुमान समिति के दायरे में लगभग 125 उपक्रम रह गये हैं, शेष सार्वजनिक उपक्रम समिति देखती है ।

प्राक्कलन समिति के उक्त कार्यों से स्पष्ट है कि उसका मूलकाम मितव्ययिता और कुशलता के उपाय सुझाना है, न कि नीतिगत परामर्श देना । लेकिन समय-समय पर उसके कार्यों और भूमिका को लेकर जो व्यवस्थाएं की गयी है उसने समिति का कार्यक्षेत्र नीतिगत मुद्दों तक विस्तृत किया है यद्यपि ऐसा वह तभी कर सकती है जब नीति परामर्श से भारी धन राशि की बचत हो सकती हो ।

अनुमान समिति की कार्यप्रणाली (Working Methods of Estimates Committee):

अनुमान समिति संपूर्ण सरकार या सभी मंत्रालयों का एक साथ अध्ययन-विश्लेषण नहीं करती अपितु प्रतिवर्ष एक-दो मंत्रालयों को अध्ययन के लिये चुन लेती है । इसका निर्णय वह स्वयं करती है । इसके अलावा स्पीकर भी उसे कार्य सौंप सकता है ।

अनुमान समिति के सदस्य गण छोटे-छोटे समूह बनाकर अलग-अलग विभागों की जांच हेतु निम्नलिखित स्रोत-सामग्री का उपयोग कर सकती है:

(i) प्रशासनिक स्रोत

(ii) प्रकाशित सामग्री

(iii) निजी संस्थाएं

(iv) साक्षात्कार

(v) सरकारी गवाही

(vi) गैर सरकारी गवाही

(vii) अध्ययन दल भेजकर आदि

(viii) मंत्रालयों को प्रश्नावली भेजकर ।

समिति जांच संबंधी विषय के तथ्य-संग्रहण पर विशेष जोर देती है । वह संबंधित सचिवों अधिकारियों को जवाब-तलब भी करती है ।

वह विभाग (मंत्रालय) से एक प्रश्नावली में निम्नलिखित सूचनाएं मांगती है:

1. मंत्रालय तथा उससे जुड़े एवं नीचे के कार्यालयों का संगठन तथा कार्य;

2. उन आधारों का विस्तृत ब्यौरा, जिन पर अनुमान तैयारी निर्भर करती हो;

3. मंत्रालय से कार्य की मात्रा जो वित्तीय अनुमानों की अवधि में पूरी की जानी है तथा पिछले तीन वर्षों का तुलनात्मक विवरण;

4. योजनाएं जो मंत्रालय प्रारंभ करने या क्रियान्वयन करने जा रही हो;

5. पिछले तीन वर्षों के दौरान का वर्तमान अनुमानों में शामिल उप-शीर्षवार वास्तविक खर्च का ब्यौरा;

6. वर्तमान वर्ष तथा पिछले वर्ष के खर्च ब्यौरे में अंतर के कारण;

7. मंत्रालय का कोई प्रतिवेदन जो अपने कार्यों के बारे में जारी किया हो ।

सभी समूहों के निष्कर्ष-बिन्दुओं को समिति लोकसभा सचिवालय के माध्यम से एक प्रतिवेदन में समेकित कर अध्यक्ष की स्वीकृति लेती है । तत्पश्चात सदस्यों को एक-एक प्रति वितरित की जाती है । समिति द्वारा स्वीकृत प्रतिवेदन को तथ्यात्मक पुष्टि हेतु संबंधित विभाग या मंत्रालय को गोपनीय बनाए रखते हुए भेजा जाता है ।

मंत्रालय से पुष्टि होने के बाद समिति का प्रतिवदन मुख्यतया तीन भागों में विभाजित कर अंतिम रूप से तैयार कर लिया जाता है:

1. संगठनात्मक तथा कार्यात्मक सुधार हेतु सुझाव,

2. मितव्ययिता लागू करने हेतु सुझाव,

3. अन्य सुझाव ।

सामान्यतया समिति का उक्त प्रतिवेदन बजट अधिवेशन के समय संबंधित मंत्रालय की अनुदान मांगों पर बहस के पूर्व ही लोकसभा में रखा गया है । वैसे अनुदान मांग संबंधी समिति की रिपोर्ट नहीं आने पर भी इन मांगों को पारित किया जा सकता है । समिति संबंधित मंत्रालय से सिफारिशों पर की गयी कार्यवाही की सूचना 6 माह के भीतर मांगती है ।

अनुमान समिति की सार्वजनिक व्यय पर संसदीय नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका है ।

तथापि पूर्व केग श्री अशोक चंदा ने उसकी निम्नलिखित आलोचनाएँ की हैं:

1. चूंकि समिति सरकारी नीतियों के मूल्यांकन तथा विभागीय पुनर्गठन से संबंधित मुद्दों पर अपनी शक्ति खर्च करने लगी है, फलतः अनुमानों की जांच का उसका प्रमुख कार्य पृष्ठभूमि में रह गया, ऐसा लगता है ।

2. समिति के कार्य करने का ढंग तथ्यों को खोजने की मंशा के अनुरूप नहीं है । ”समिति संयुक्त राज्य अमरीका में स्थित कांग्रेस की समितियों के अनुरूप व्यवहार को ग्रहण करती जा रही है और तथ्यान्वेषी तंत्र के स्थान पर छिद्रान्वेषी तंत्र बनती जा रही है ।”

3. समिति स्वयं को उस भूमिका की ओर ले जा रही है जो वास्तव में संवैधानिक तौर पर लोकसभा को प्राप्त है ।

4. समिति द्वारा प्रायः संगठनात्मक सुधारों तथा कार्यों के पुनर्वितरण के लिये सुझाव दिये जाते हैं जिनका प्रचार महत्व ही अधिक होता है । सरकार ऐसी अधिकांश सिफारिशों को अस्वीकृत करने को मजबूर होती है जिससे सरकार तथा समिति दोनों की इज्जत को आंच आती है ।

इन आलोचनाओं के बावजूद यह स्वीकार्य तथ्य है कि समिति ने मितव्ययिता के अपने मूल उद्देश्य की पूर्ति की दिशा में महत्वपूर्ण सुझाव दिये हैं जैसे विभागीय पुनर्गठन । उसने दामोदर घाटी, हीराकुंड, भाखरा-नांगल, काकरापारा जैसी बहुद्‌देश्यीय योजनाओं के अतिरिक्त प्रशासनिक व्यय और कार्य संचालन की त्रुटियों को उजागर किया ।