Read this article in Hindi to learn about:- 1. प्रशासनिक आचार का अर्थ (Meaning of Administrative Ethics) 2. प्रशासनिक आचार का तत्व (Elements of Administrative Ethics) 3. महत्व (Importance) 4. निर्धारक कारक (Factors Determining) 5. बाधाएँ (Hindrances).
Contents:
- प्रशासनिक आचार का अर्थ (Meaning of Administrative Ethics)
- प्रशासनिक आचार का तत्व (Elements of Administrative Ethics)
- प्रशासनिक आचार का महत्व (Importance of Administrative Ethics)
- प्रशासनिक आचार के निर्धारक कारक (Factors Determining Administrative Ethics)
- प्रशासनिक आचार के बाधाएँ (Hindrances of Administrative Ethics)
1. प्रशासनिक आचार का अर्थ (Meaning of Administrative Ethics):
प्रशासनिक आचार नीति लोकसेवा में नैतिकता ही व्यावसायिकता संहिता की द्योतक है जो लोकसेवकों के नैतिक ताने-बाने का निर्माण करती है । नीति आचार विभिन्न वर्गों के लोकसेवकों के आचरण और व्यवहार को नियंत्रित करते हैं और इस प्रकार ये कार्य के नियम उपलब्ध कराते हैं ।
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आधुनिक राज्य में एक व्यवसाय के रूप में स्थापित लोकसेवा ने अपने सदस्यों के लिए नैतिकता की एक संहिता विकसित की है । यह संहिता परंपराओं, पूर्वताओं और उन मानदंडों से निर्मित है जिनको लोकसेवकों द्वारा ऊपर उठाये रखना जरूरी है ।
लोकसेवकों से आशा की जाती है कि वे नैतिकता के उच्च स्तर न केवल अपने बल्कि पूरे समाज के लिए स्थापित करेंगे । प्रशासन के आकार और उसकी भूमिका में वृद्धि होने तथा समाज पर उसका प्रभाव बढ़ने के संदर्भ में इसका महत्व और अधिक हो जाता है ।
एस.एल. गोयल कहते हैं- “प्रशासनिक आचार नीति उन प्रशासनिक मानदंडों का अध्ययन है जिनके आधार पर किसी कार्य के बारे में यह निर्णय किया जाता है कि वह गलत है या सही, नैतिक या अनैतिक, अच्छा है अथवा बुरा । आधुनिक काल में अपनी लोकसेवा का व्यवसायीकरण सबसे पहले जर्मनी (प्रशा) ने किया था ।”
स्पष्टतया लोकसेवकों के लिए व्यावसायिक संहिता का विकास इसी ने किया परंतु सामान्य आचार नियमों के अतिरिक्त इसमें सर्वसत्तावादी, नौकरशाही और अन्य गैर-जनतांत्रिक तत्त्व भी थे । लोकसेवकों के लिए जनतांत्रिक ढंग की व्यावसायिक संहिता का विकास सर्वप्रथम ब्रिटेन ने किया । वास्तव में ब्रिटिश लोकसेवा को उसके प्रशासनिक आचार नियमों के लिए जाना जाता है ।
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भारत की स्थिति का सार पी.आर. देशमुख ने भली भांति प्रस्तुत किया है- भारत में सार्वजनिक प्रशासकों के लिए कोई आचार संहिता नहीं है, परंतु यहाँ सरकारी कर्मचारी सेवा नियम है । इनके यह निर्धारित किया गया है कि लोकसेवक के कदाचरण के अंतर्गत कौन-कौन-सी चीजें आती हैं । स्पष्टतया इसका आशय ऐसे कदाचारों से हे जो अनुमन्य नहीं है और साथ ही अनैतिक भी है ।
2. प्रशासनिक आचार का तत्व (Elements of Administrative Ethics):
प्रशासनिक आचार नीति के घटक या तत्व निम्नलिखित हैं:
1. न्याय निष्ठा,
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2. राष्ट्र के प्रति निष्ठा,
3. सत्यनिष्ठा,
4. कुशलता,
5. विनम्रता,
6. गैर-भ्रष्टाचारिता,
7. कर्त्तव्य (कार्यभार) के प्रति समर्पण,
8. जनहित का भाव,
9. गोपनीयता,
10. तटस्थता,
11. अनामिकता,
12. निष्पक्षता,
13. समदर्शिता,
14. संवेदनशीलता,
15. गैर-दलगत दृष्टिकोण ।
प्रशासनिक आचार नीति के ये सभी तत्व विभिन्न लोकसेवा आचरण नियमों में सम्मिलित हैं । इनमें से महत्वपूर्ण ये हैं- अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम 1954, केंद्रीय सेवा (आचरण) नियम, 1955 और रेलवे सेवा (आचरण) नियम, 1956 । इनके अतिरिक्त विभिन्न नियम और निर्देश भी हैं जिनका सरोकार लोकसेवकों से संबंधित विशेष परिस्थितियों से है ।
3. प्रशासनिक आचार का महत्व (Importance of Administrative Ethics):
प्रशासनिक आचार नीति के महत्व अथवा उसकी आवश्यकता को दर्शाने वाले बिंदु इस प्रकार से हैं:
1. लोकसेवकों की मनमानी गतिविधियों पर अंकुश ।
2. प्रशासनिक उत्तरदायित्व की भावना को प्रोत्साहन ।
3. नागरिकों और लोकसेवकों के बीच सही संबंधों की स्थापना और प्रोत्साहन ।
4. लोकसेवकों में आचरण के उच्च मानदंडों का पोषण ।
5. समाज कल्याण, जनहित और सर्वहित को संरक्षण एवं प्रोत्साहन ।
6. प्रशासनिक सत्ता और विवेक के उस अंग को नियंत्रित करना जिसको कि औपचारिक कानूनों, उपायों तथा कार्यविधियों से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है ।
7. प्रशासनिक प्रक्रिया की कुशलता और प्रभावशीलता को बढ़ाना ।
8. लोक प्रशासन की वैधता और विश्वसनीयता को सुदृढ़ करना ।
9. लोकसेवकों तथा राजनीतिक कार्यपालकों के परस्पर संबंधों में स्थायित्व लाना तथा समन्वय करना ।
10. सभी वर्गों के लोकसेवक के बीच उच्च स्तर की नैतिकता का पोषण करना और इसे बनाए रखना ।
प्रशासनिक आचार नीति के महत्व पर बल देते हुए पी.आर. देशमुख ने कहा है- ”सार्वजनिक प्रशासन का कार्यक्षम होना सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण उसका नैतिक होना है । व्यक्ति के बारे में यह कहा जाता है कि अगर चरित्र नहीं रहा तो कुछ नहीं रहा । प्रशासन के बारे में कहा जा सकता है कि यदि नैतिकता नहीं रही तो कुछ भी नहीं रहा जाता है ।”
4. प्रशासनिक आचार के निर्धारक कारक (Factors Determining Administrative Ethics):
लोकसेवाओं में प्रशासनिक आचार नीति के पालन को विभिन्न कारक निर्धारित करते हैं, जैसे कि:
1. शीर्ष प्रशासकों द्वारा स्थापित पूर्व उदाहरण तथा परंपराएँ,
2. प्रशासनिक प्रणाली में संवाद प्रतिरूप,
3. लोकसेवकों पर आनुशासनिक कार्यवाही की प्रभावशीलता,
4. समाज के नैतिक मानदंड और मूल्य,
5. प्रशासकों के प्रति राजनीतिक कार्यपालकों का रवैया,
6. मंत्रियों तथा विधायकों द्वारा स्थापित पूर्व उदाहरण तथा परंपराएँ,
7. लोकसेवकों की सेवा-शर्तों, विशेषतया वेतनमानों की समुचितता,
8. संगठन में आंतरिक संबंधों की गतिशीलता,
9. प्रशासकों में व्यावसायिक चेतना को प्रोत्साहित करने के लिए आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रमों की उपयुक्तता,
10. प्रशासकों के प्रति सामान्य जन का रवैया ।
5. प्रशासनिक आचार के बाधाएँ (Hindrances of Administrative Ethics):
लोकसेवकों द्वारा प्रशासनिक आचार नीति का पालन कई कारकों द्वारा बाधित होता है ।
जो निम्न हैं:
1. भ्रष्टाचार,
2. पक्षपात,
3. घूसखोरी,
4. उदासीनता,
5. अफसरपन,
6. विभागीयतावाद (ब्यूरो दर्शन),
7. भाई-भतीजावाद,
8. अराजकता,
9. राजनीतिक प्रभाव,
10. बाहरी दबाव ।
भ्रष्टाचार के तरीके:
केन्द्रीय निगरानी आयोग (सीवीसी) ने भ्रष्टाचार के 27 तरीकों की पहचान की है ।
जो इस प्रकार हैं:
1. नाकारापन या अन्य कारण से सरकार को होने वाली हानि ।
2. विस्थापित व्यक्तियों के दावों का गलत निर्धारण ।
3. नैतिक पतन ।
4. उपमानक भंडारों/कार्यों को स्वीकृति ।
5. ठेकेदारों और फर्मों के प्रति पक्षपात ।
6. आधिकारिक पद/शक्तियों का दुरुपयोग ।
7. उपहारों की प्राप्ति ।
8. एक बार किसी के द्वारा प्रयुक्त नये डाक टिकटों का प्रतिस्थापन ।
9. सार्वजनिक धन, भंडारों का दुर्विनियोग ।
10. सरकारी आवासों का अनाधिकृत अधिग्रहण या उन्हें किराये पर उठाना ।
11. असंगत परिसम्पत्तियों का अधिग्रहण ।
12. निजी कार्य के लिए सरकारी कर्मचारियों का दुरुपयोग ।
13. मनीऑर्डर, बीमित राशि, मूल्यवान पार्सल इत्यादि की आपूर्ति न करना ।
14. टेलीफोन कनेक्शन प्रदान करने में अनियमितता ।
15. विस्थापित व्यक्तियों के क्षतिपूर्ति दावों को निबटाने में असामान्य विलम्ब करना ।
16. भर्ती, नियुक्ति, स्थानान्तरण और प्रोन्नति में अवैध पारितोषिक या घूस प्राप्त करना ।
17. आवासीय प्रयोजन के लिए भूखण्डों की बिक्री/खरीदारी के सम्बन्ध में धोखाधड़ी ।
18. ठेकेदारों/फर्मों से धन उधार लेना ।
19. आयात-निर्यात लाइसेंस प्रदान करने में अनियमितता ।
20. ऐसे व्यक्तियों से आर्थिक आभार ग्रहण करना जिनका कार्य लोक-सेवकों के अधिकार क्षेत्र से जुड़ा है ।
21. आयकर, सम्पत्ति शुल्क एवं अन्य शुल्कों का आर्थिक लाभ के लिए कम निर्धारण करना ।
22. आयु, जन्म, समुदाय इत्यादि के जाली प्रमाण-पत्र तैयार करना ।
23. विभिन्न फर्मों के आयातित एवं आवंटित कोटों का दुरुपयोग करना ।
24. स्कूटर, कार और अन्य वाहनों की खरीद के लिए मंजूर अग्रिम धनराशि का दुरुपयोग करना ।
25. बिना किसी पूर्व अनुमति के अचल सम्पत्ति खरीदना ।
26. रेलवे/एयरवेज में स्थानों के आरक्षण की अनियमितता ।
27. गलत या झूठे यातायात भत्ते, गृह किराया भत्ता और अन्य भत्तों का दावा करना ।
200 ईसा पूर्व में कौटिल्य ने अपनी पुस्तक ‘अर्थशास्त्र’ में भ्रष्टाचार के चालीस तरीकों की पहचान की थी । उन्होंने इसकी अपरिहार्यता का उल्लेख करते हुए उद्धृत किया था कि- ”जैसे कि जीभ की नोंक पर रखे शहद को चखना असंभव नहीं है उसी प्रकार सरकारी अधिकारी के लिए राजा के राजस्व में से कम से कम कुछ अंश खाना भी असंभव नहीं है ।”
भ्रष्ट अधिकारियों को पहचानने की समस्या के बारे में कौटिल्य ने कहा था कि- ”जैसेकि यह पता नहीं लगाया जा सकता कि जल में तैरने वाली एक मछली पानी पीती है या नहीं उसी प्रकार सरकारी सेवकों के बारे में यह पता नहीं लगाया जा सकता कि वह अपने लिए धन लेते हैं या नहीं ।”
समितियाँ:
अमेरिकन डगलस कमेटी:
द्वितीय विश्व युद्ध (1939-45) के समय अमिरिकी समाज ने भ्रष्टाचार, व्यापारिक धोखाधड़ी, गैर कानूनी गतिविधियाँ, राजनीतिज्ञ, प्रशासन और उद्योगपतियों के बीच कुत्सित गठजोड़ के कई मामले देखे । इसलिए कांग्रेस के उच्च सदन सीनेट ने अपने एक सदस्य पॉल डगलस की अध्यक्षता में एक उपसमिति का गठन किया । सरकार में नैतिक मानदंडों पर समिति की रिपोर्ट को अमेरिका में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में चर्चा मिली ।
ब्रिटिश नोलान समिति:
1994 में ब्रिटिश सरकार ने लॉर्ड नोलान की अध्यक्षता में सार्वजनिक जीवन में मानदंडों पर एक समिति का गठन किया । समिति ने सार्वजनिक जीवन में उच्चतम मानदंडों को सुनिश्चित करने के लिए सात सिद्धान्तों की सिफारिश की । ये सिद्धान्त सभी सार्वजनिक पदाधिकारियों द्वारा अनुपालित किए जाने चाहिए ।
ये सिद्धान्त निम्नलिखित हैं:
(i) निस्वार्थता ।
(ii) अविकलता ।
(iii) वस्तुनिष्ठता ।
(iv) जवाबदेही ।
(v) खुलापन ।
(vi) ईमानदारी ।
(vii) नेतृत्वशीलता ।
भारतीय समितियाँ:
भारत में प्रशानिक आचार नियमों में गिरावट तथा भ्रष्टाचार की व्याप्ति को ध्यान में रखते हुए निम्नलिखित समितियों का गठन किया गया:
1. रौलेण्ड की अध्यक्षता में बंगाल प्रशासन जाँच समिति (1944-45),
2. लोक प्रशासन पर ए.डी.गोरवाला की रिपोर्ट (1951),
3. आचार्य जे.बी. कृपलानी की अध्यक्षता में रेलवे भ्रष्टाचार जाँच समिति (1953-55),
4. भ्रष्टाचार की रोकथाम पर संथानम समिति (1962-64) ।