Read this article in Hindi to learn about:- 1. वित्त आयोग का संरचना (Composition of Finance Commission) 2. वित्त आयोग के कार्य (Functions of Finance Commission) 3. परामर्शी भूमिका (Advisory Role) 4. प्रभाव (Impact) 5. नियुक्त किये गये आयोग (Commission Appointed).
Contents:
- वित्त आयोग का संरचना (Composition of Finance Commission)
- वित्त आयोग के कार्य (Functions of Finance Commission)
- वित्त आयोग के परामर्शी भूमिका (Advisory Role of Finance Commission)
- वित्त आयोग का प्रभाव (Impact of Planning Commission)
- नियुक्त किये गये आयोग (Commission Appointed)
1. वित्त आयोग का
संरचना (Composition of Finance Commission):
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 280 में एक अर्द्ध विधायी संस्था के में आयोग का प्रावधान किया गया है । वित्त आयोग का प्रति पाँच वर्ष पर अथवा आवश्यक होने पर पहले राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है ।
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वित्त आयोग में एक अध्यक्ष तथा राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त 4 अन्य सदस्य होते हैं । ये सदस्य अपने पद पर राष्ट्रपति के आदेश में निर्धारित समय तक बने रह सकते हैं । इनकी पुनर्नियुक्ति भी हो सकती है । संविधान में संसद को आयोग के सदस्यों की योग्यता और उनके चयन के ढंग का निर्धारण करने का अधिकार दिया गया है । तद्नुरुप ही, संसद ने वित्त आयोग अधिनियम 1951 के द्वारा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की योग्यता का निर्धारण किया है । आयोग का अध्यक्ष वह व्यक्ति हो सकता है जिन्हें सार्वजनिक कार्यों और गतिविधियों का अनुभव हो ।
बार सदस्यों की नियुक्ति निम्नलिखित में से की जा सकती है:
1. चार सदस्यों में से एक सदस्य किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश या ऐसी ही योग्यता प्राप्त व्यक्ति हो ।
2. वह व्यक्ति जिसे सरकार की वित्तीय और लेखा प्रणाली का अच्छा ज्ञान हो ।
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3. वह व्यक्ति जिसे वित्तीय और प्रशासनिक विषयों का व्यापक अनुभव हो ।
4. वह व्यक्ति जिसे अर्थशास्त्र का विशेष ज्ञान हो ।
2. वित्त आयोग के कार्य (Functions of Finance Commission):
वित्त आयोग का काम राष्ट्रपति को निम्न विषयों से संबंधित अपने सिफारिशें भेजना है (अनुच्छेद 280):
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1. करों से हुईं कुल प्राप्तियों का केद्रं और राज्यों के बीच बँटवारा और इन प्राप्तियों के हिस्से का राज्यों के बीच आबंटन ।
2. केंद्र द्वारा भारत की संचित निधि से राज्यों को दी जाने वाली अनुदान सहायता को नियंत्रित करने वाले सिद्धांत ।
3. राज्य वित्त आयोग की सिफारिश के आधार पर पंचायतों तथा नगरपालिकाओं के संसाधनों की संपूर्ति के लिए राज्य की संचित निधि में वृद्धि करने के आवश्यक उपायों से संबंधित अनुशंसा । इस कार्य को संविधान के वे और वे (संशोधन) अधिनियम 1992 के द्वारा शामिल किया गया था जिन के माध्यम से क्रमशः पंचायतों और नगर पालिकाओं को संवैधानिक दर्जा दिया गया है ।
4. वित्तीय दृष्टि से हितकर कोई अन्य विषय जिसे राष्ट्रपति ने भेजा हो ।
आयोग प्रतिवर्ष जूट और जूट उत्पादों के निर्यात शुल्क से हुई निवल प्राप्ति के हिस्से में से असम बिहार उड़ीसा और पश्चिम बंगाल राज्यों को दी जाने वाली राशि भी निर्धारित करता है (अनुच्छेद 273) । आयोग अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है । आयोग अपनी रिपोर्ट को अपनी अनुशंसाओं पर की गई कार्यवाही के उल्लेख सहित एक विस्तृत ज्ञापन के साथ संसद के दोनों सदनों में रखता है (अनुच्छेद 281) ।
3. वित्त आयोग के परामर्शी भूमिका (Advisory Role of Finance Commission):
यहाँ यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि वित्त आयोग द्वारा की गई अनुशंसाएँ मात्र परामर्शी प्रकृति की हैं जिन्हें मानने के लिए सरकार बाध्य नहीं है । इन अनुशंसाओं को, जो राज्यों को अनुदान दिए अथवा न दिए जाने से संबंधित हैं कार्यरूप देना केंद्र सरकार पर निर्भर करता है ।
इस संदर्भ में डी.डी. बसु का कहना है कि ”संविधान में ऐसा कहीं उल्लेख नहीं है कि आयोग द्वारा की गई अनुशंसाओं को मानना केद्रं सरकार के लिए जरूरी है अथवा आयोग द्वारा राज्यों को दी जाने वाली अनुशंसित राशि को प्राप्त करने से लाभार्थी राज्यों का यह कानूनी अधिकार माना जाने लगेगा ।”
इस संदर्भ में चौथे वित्त आयोग के अध्यक्ष डॉ.पी.वी. राजामन्नार का यह मत सही है कि ”वित्त आयोग अर्द्ध-विधायी संवैधानिक निकाय है इसलिए इसकी अनुशंसाओं को केंद्र सरकार द्वारा तब तक अस्वीकार नहीं करना चाहिए जब तक विवश करने के कारण न हों ।”
4. वित्त आयोग का प्रभाव (Impact of Planning Commission):
भारतीय संविधान में वित्त आयोग को भारत में वित्तीय संघवाद के संतुलनकारी यंत्र की संज्ञा दी गई है । इसके अतिरिक्त एक असंवैधानिक और गैर-विधायी निकाय- ‘योजना आयोग’ का उद्भव होने से केंद्र-राज्य के बीच वित्तीय संबंधों से जुड़ी वित्त आयोग की भूमिका को अनदेखा किया गया है ।
चतुर्थ वित्त आयोग के अध्यक्ष डा.पी.वी. राजामन्नार ने संघीय प्रणाली की सरकार में योजना आयोग और वित्त आयोग द्वारा वित्तीय स्थानांतरण में अपने-अपने कार्यों और जिम्मेदारियों को एक दूसरे के मत्थे मढ़ने के तथ्य को इस प्रकार व्यक्त किया है:
”योजना आयोग के गठन के फलस्वरूप ही वित्त आयोग का कार्यक्षेत्र व्यवहारत: सीमित हुआ है । व्यवहारत: इसलिए कि संविधान में इस आशय का कोई संशोधन नहीं किया गया है कि वित्त आयोग का कार्य राज्य द्वारा प्रस्तुत राजस्व और व्यय के प्राक्कलन की समीक्षा के आधार पर प्रत्येक राज्य के राजस्व अंतराल को कम करने तक ही सीमित रहेगा ।”
अनुच्छेद 275 में राज्यों (के राजस्व) को सहायता अनुदान संबंधी संदर्भ केवल राजस्व व्यय तक सीमित नहीं है । वित्त आयोग के अधिकार क्षेत्र से सभी पूँजीगत अनुदानों को बाहर रखने संबंधी विधान नहीं है भले ही इस अनुच्छेद के तहत राज्य की पूँजीगत अपेक्षाओं की पूर्ति वित्त आयोग द्वारा की गई अनुशंसाओं के आधार पर सहायता अनुदान द्वारा होती हो ।
इस प्रकार कानूनी स्थिति यह है कि संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो वित्त आयोग को संविधान के अनुच्छेद 275 के तहत अनुदान की अनुशंसा करते समय तथा निक्षेपण योजना तैयार करते समय राज्यों की पूँजीगत और राजस्व संबंधी आवश्यकताओं को ध्यान में रखने से रोक सके ।
किंतु योजना आयोग के गठन के फलस्वरूप कार्यों को एक दूसरे पर थोपने और नकल करने की प्रवृत्ति जागृत हुई है जिस कारण वित्त आयोग के कार्यक्षेत्र में भी कमी आई है । चूकि जहाँ तक नीति और कार्यक्रम का संबंध है सभी योजनाएँ योजना आयोग के अधिकार क्षेत्र में आती हैं ।
केंद्र द्वारा योजेनागत परियोजनाओं के लिए अनुदान अथवा ऋण के रूप में दी जाने वाली सहायता व्यवहारत: योजना आयोग की अनुशंसाओं पर आधारित होती है यह स्पष्ट है कि वित्त आयोग जैसे निकाय उसी क्षेत्र में काम नहीं कर सकते ।
अब वित्त आयोग का मुख्य कार्य प्रत्येक राज्य के राजस्व अंतराल का निर्धारण तथा इस अंतराल को निक्षेपण योजना द्वारा (अर्थात् कुछ अंतराल को करों और शुल्कों के वितरण के माध्यम से और कुछ को सहायता अनुदान के माध्यम से) भरने से संबंधित रह गया है ।
इसलिए हम यह सिफारिश करते हैं कि भविष्य में वित्त आयोग उन सिद्धांतों के आधार पर अनुशंसा करे जिनके अधीन राज्यों को योजनागत अनुदानों का वितरण हो । वित्त आयोग द्वारा ऐसी अनुशंसा किए जाने के लिए यह आवश्यक है कि योजना आयोग द्वारा तैयार पंचवर्षीय योजना की रूपरेखा उसके समक्ष हो और उस पर उसका ध्यान हो ।
इसलिए वित्त आयोग की नियुक्ति समयानुसार इस प्रकार की जाए कि सिफारिशों को अंतिम रूप दिए जाने से पूर्व इसके पास पंचवर्षीय योजना की रूपरेखा उपलब्ध हो । योजनागत अनुदानों के वितरण को नियंत्रित करने वाले सिद्धांत वित्त आयोग द्वारा निर्धारित किए जाएँ । इन सिद्धांतों को हर वर्ष लागू करने का कार्य योजना आयोग और सरकार पर छोड़ देनी चाहिए ।
5. नियुक्त किये गये आयोग (Commission Appointed):
अब तक राष्ट्रपतियों द्वारा वित्त आयोगों का गठन किया गया है ।
आयोग का नाम उनके गठन और उनके द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने का वर्ष तथा उनके अध्यक्ष के नाम इस प्रकार हैं:
1. प्रथम वित्त आयोग (1951-1953) – के. सी. नियोगी
2. द्वितीय वित्त आयोग (1956-1957) – संथानम
3. तृतीय वित्त आयोग (1960-1962) – ए.के.चंदा
4. चतुर्थ वित्त आयोग (1964-1965) – डॉ. राजामन्नार
5. पंचम वित्त आयोग (1968-1969) – महावीर त्यागी
6. छठा वित्त आयोग (1972-1973) – ब्रहमानंद रेड्डी
7. सातवाँ वित्त आयोग (1977-1978) – शेलट
8. आठवाँ वित्त आयोग (1982-1984) – वाई. बी. चह्वाण
9. नवाँ वित्त आयोग (1987-1989) – एन. के. पी. साल्वे
10. दसवाँ वित्त आयोग (1992-1994) – के.सी.पंत
11. ग्यारहवाँ वित्त आयोग (1998-2000) – ए.एम.खुसरो