Read this article in Hindi to learn about:- 1. राज्यपाल की नियुक्ति और शर्तें (Governor – Appointment and Conditions) 2. राज्यपाल की शक्तियाँ और कार्य (Governor – Powers and Functions) 3. राज्यपाल की संवैधानिक स्थिति (Constitutional Position of the Governor) 4. राज्यपाल – संविधान के संबंधित अनुच्छेद  (Governor – Related Articles).

राज्यपाल की नियुक्ति और शर्तें (Governor – Appointment and Conditions):

भारतीय संविधान में राज्यपाल के पद का प्रावधान है । सामान्यतः प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होता हैं संविधान के (7वें संशोधन) 1956 में यह प्रावधान किया गया है कि ही व्यक्ति दो या से अधिक राज्यों का नियुक्त जा सकता है ।

राज्यपाल राज्य का कार्यकारी प्रमुख होता है किंतु भारत के राष्ट्रपति तरह वह भी नाममात्र कार्यकारी प्रमुख है । राज्यपाल, केंद्र सरकार के एजेंट के रूप में कार्य है इसलिए उसकी दोहरी भूमिका होती है ।

राज्यपाल की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति के द्वारा उनके हस्ताक्षर और मोहर के साथ की जाती है । राज्यपाल का कार्यकाल सामान्यतः 5 वर्ष का है किंतु राष्ट्रपति जब तक चाहे वह पर तब तक बना रह सकता है । राज्यपाल किसी भी समय राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र भी सौंप सकता है ।

ADVERTISEMENTS:

संविधान में राज्यपाल पद पर नियुक्ति के लिए निम्नलिखित योग्यताएं धारित की गई है:

(i) उसे भारत का नागरिक होना चाहिए ।

(ii) आयु 35 वर्ष या इससे अधिक होनी चाहिए ।

इसके अतिरिक्त, विधान में राज्यपाल पद के लिए निम्नलिखित शर्तें भी निर्धारित की गई है:

ADVERTISEMENTS:

(i) संसद के किसी सदन अथवा राज्य विधानमंडल का सदस्य नहीं होना चाहिए ।

(ii) लाभ के किसी अन्य पद पर नहीं होना चाहिए ।

(iii) उसकी परिलब्धियाँ, वेतनभत्ते और विशेषाधिकार भारत के राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित किए जाएंगे ।

(iv) जब एक ही व्यक्ति को दो या दो से अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जाता है तो राज्यों के बीच उसे देय वेतन और भत्तों का आबंटन भारत के राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित अनुपात में किया जाएगा ।

ADVERTISEMENTS:

(v) राज्यपाल के वेतन-भत्तों तथा परिलब्धियों में उसके कार्यकाल के दौरान कमी नहीं की जाएगी ।

राज्यपाल को पद और गोपनीयता की शपथ संबद्ध राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा अथवा उसकी अनुपस्थिति में उपलब्ध वरिष्ठतम सदस्य द्वारा दिलाई जाएगी ।

राज्यपाल की शक्तियाँ और कार्य (Governor – Powers and Functions):

भारत के राष्ट्रपति की भाँति ही राज्यपाल को भी कार्यकारी, विधायी, वित्तीय और न्यायिक शक्तियाँ प्राप्त होती हैं । किंतु राज्यपाल को कूटनीतिक, सैन्य और आपातकालीन शक्तियों प्राप्त नहीं होती हैं, जो राष्ट्रपति को प्राप्त हैं ।

राज्यपाल के कार्य और उसे प्राप्त शक्तियों का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के तहत किया जा सकता है:

(i) कार्यकारी शक्तियों

(ii) विधायी शक्तियाँ

(iii) वित्तीय शक्तियाँ

(iv) न्यायिक शक्तियाँ

कार्यकारी शक्तियां:

(i) किसी राज्य की सरकार के सभी शासकीय कार्य औपचारिक रूप से राज्यपाल के नाम से ही किए जाते हैं ।

(ii) वह उस उल्लेख के साथ नियम बना सकेगा जिसके तहत उसके नाम से किए गए आदेशों को कार्यरूप दिया जाए और प्रामाणिक माना जाए ।

(iii) वह राज्य सरकार के कामकाज को सुगम बनाने तथा उन कार्यों को मंत्रियों में बाँटने संबंधी नियम बना सकेगा ।

(iv) उसे मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करने का अधिकार भी प्राप्त है । ये राज्यपाल की सहमति से ही पद पर बने रह सकते हैं । राज्यपाल द्वारा बिहार, मध्यप्रदेश और उड़ीसा राज्यों के लिए जनजाति कल्याण मंत्री की नियुक्ति की जानी आवश्यक है ।

(v) राज्यपाल राज्य के महाधिवक्ता की नियुक्ति, उसके वेतन तथा परिलब्धियों का निर्धारण करता है । महाधिवक्ता राज्यपाल की सहमति से ही पद पर बना रह सकता है ।

(vi) राज्यपाल, राज्य के चुनाव आयुक्त की नियुक्ति तथा उसकी सेवा शर्तों और कार्यकाल का भी निर्धारण करता है ।

(vii) राज्यपाल, लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति तो करता है, किंतु इन्हें भारत का राष्ट्रपति ही पद से हटा सकता है राज्यपाल नहीं ।

(viii) राज्यपाल, मुख्यमंत्री से राज्य के प्रशासन से जुड़ी किसी सूचना अथवा विधि-निर्माण संबंधी प्रस्तावों की माँग कर सकता है ।

(ix) राज्यपाल, मुख्यमंत्री से ऐसे किसी विषय को मंत्रिपरिषद के विचारार्थ प्रस्तुत करने की माँग कर सकता है जिससे संबंधित निर्णय किसी मंत्री ने लिया हो किंतु मंत्रिपरिषद द्वारा उस पर विचार न किया गया हो ।

(x) राज्यपाल, राष्ट्रपति से राज्य में संवैधानिक आपातकाल लगाने की सिफारिश कर सकता है । राज्य में राष्ट्रपति शासन लगे होने की स्थिति में राज्यपाल को राष्ट्रपति के एजेंट के रूप में व्यापक कार्यपालक अधिकार/शक्तियाँ प्राप्त होती हैं ।

विधायी शक्तियाँ:

राज्यपाल, राज्यविधानमंडल का अभिन्न अंग है ।

उसकी इस हैसियत में राज्यपाल को निम्नलिखित विधायी शक्तियाँ प्राप्त हैं:

(i) राज्यपाल को राज्य विधानसत्र बुलाने, उस स्थगित और भंग करने का अधिकार है ।

(ii) राज्यपाल, प्रत्येक आम चुनाव के बाद तथा प्रतिवर्ष राज्य विधानसभा के पहले सत्र की शुरूआत में विधानसभा को संबोधित कर सकता है ।

(iii) राज्यपाल, विधानसभा में लंबित विधेयक के संदर्भ में या अन्यथा संदर्भ में राज्य विधानमंडल के किसी एक अथवा दोनों सदनों को संदेश भेज सकता है ।

(iv) अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद रिक्त रहने की स्थिति में राज्यपाल विधानसभा के किसी सदस्य को सदन की कार्यवाही की अध्यक्षता करने के लिए नियुक्त का सकता है ।

(v) राज्यपाल, राज्य विधानपरिषद के सदस्यों की कुल संख्या के 1/6 के बराबर संख्या में उन व्यक्तियों को सदस्य नामित कर सकता है जिनके पास साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारिता आंदोलन और समाज सेवा के क्षेत्र का विशेष ज्ञान और व्यावहारिक अनुभव हो ।

(vi) राज्यपाल, आंग्ल-भारतीय समुदाय के एक व्यक्ति को राज्य विधानसभा के सदस्य के रूप में नामित कर सकता है ।

(vii) राज्यपाल, राज्य विधानमंडल के सदस्यों की अयोग्यता के प्रश्न पर चुनाव आयोग के परामर्श से निर्णय लेता है ।

(viii) राज्य विधानमंडल द्वारा पारित जब कोई विधेयक राज्यपाल को भेजा जाता है, तब राज्यपाल के पास निम्नलिखित विकल्प होते हैं:

a. विधेयक पर अपनी सहमति दे, या

b. विधेयक पर अपनी सहमति रोक ले, या

c. विधेयक को (यदि वित्त विधेयक नहीं है) राज्य विधानमंडल में पुनर्विचार के लिए लौटा दे । विधेयक यदि दोबारा संशोधन या बिना संशोधन के विधानमंडल द्वारा पारित कर दिया जाता है तब राज्यपाल को विधेयक पर अपनी सहमति देना आवश्यक हो जाता है ।

(ix) राज्यपाल को, राज्य विधानमंडल द्वारा पारित ऐसे किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ प्रारक्षित कर लेना चाहिए जिससे राज्य के उच्च न्यायालय की गरिमा खतरे में पड़ती हो । इसके अतिरिक्त, सोली सोराबजी ने यह भी बताया है कि विधेयक की प्रकृति यदि निम्नलिखित में से किसी भी प्रकार की है, राज्यपाल तब भी उसे प्रारक्षित कर सकता है ।

a. विधेयक यदि संविधान के प्रावधानों के अनुसार न हो,

b. राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों के अनुरूप न हो,

c. देश के व्यापक हित में न हो

d. राष्ट्रीय महत्व से जुड़ा हो,

e. संविधान के अनुच्छेद 31 ए के तहत अनिवार्य अधिग्रहण से जुड़ा हो ।

(x) राज्यपाल, राज्य विधानमंडल के सत्रावसान के समय अध्यादेश भी जारी कर सकता है । इस अध्यादेश को राज्य विधानमंडल का सत्र दोबारा शुरू होने पर 6 सप्ताह के भीतर राज्य विधानमंडल द्वारा स्वीकृति प्रदान की जानी चाहिए । राज्यपाल किसी भी अध्यादेश को किसी समय वापस ले सकता है ।

(xi) राज्यपाल राज्य के लेखों से संबंधित राज्य वित्त आयोग, राज्य लोकसेवा आयोग और नियंत्रक तथा महालेखापरीक्षक की रिपोर्टों को राज्य विधानमंडल में रखता है ।

वित्तीय शक्तियाँ:

राज्यपाल की वित्तीय शक्तियाँ और कार्य इस प्रकार हैं:

(i) राज्यपाल यह सुनिश्चित करता है कि वार्षिक वित्तीय विवरण (राज्य का बजट) राज्य विधानमंडल में प्रस्तुत किया जाए ।

(ii) राज्य विधानमंडल में वित्त विधेयक राज्यपाल की पूर्वानुमति से ही लाया जा सकता है ।

(iii) राज्यपाल की सिफारिश के बिना किसी भी अनुदान की माँग नहीं की जा सकती है ।

(iv) राज्यपाल किसी अप्रत्याशित व्यय की प्रतिपूर्ति के लिए राज्य की आकस्मिक निधि से अग्रिम राशि ले सकता है ।

(v) राज्यपाल, प्रत्येक पाँच वर्ष पर पंचायतों और नगरपालिकाओं की वित्तीय स्थिति की समीक्षा के लिए वित्त आयोग का गठन कर सकता है ।

विधायी शक्तियाँ:

राज्यपाल को प्राप्त न्यायायि शक्तियाँ और उसके कार्य इस प्रकार हैं:

(i) राज्यपाल, किसी व्यक्ति को, राज्य के कार्यपालक अधिकार के बाहर के विषय से संबंधित किसी कानून के विरुद्ध किसी अपराध के लिए दी गई सजा को माफ तथा कम कर सकता है ।

राज्यपाल की क्षमादान की शक्ति राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति से निम्नलिखित संदर्भों में भिन्न है:

(क) राष्ट्रपति मृत्यु को माफ कर सकता है किंतु राज्यपाल नहीं ।

(ख) राष्ट्रपति कोर्ट मार्शल द्वारा सुनाई गई सजा को माफ कर सकता है जब कि राज्यपाल को यह अधिकार नहीं है ।

(ii) संबद्ध राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के समय राष्ट्रपति राज्यपाल की सलाह लेता है ।

(iii) राज्यपाल, राज्य के उच्च न्यायालय के परामर्श से जिला स्तर के न्यायाधीशों की नियुक्ति तैनाती और उनकी पदोन्नत करता है ।

(iv) राज्यपाल, राज्य के उच्च न्यायालय और राज्य लोकसेवा आयोग के परामर्श से राज्य न्यायिक सेवा के पदों (जिला न्यायाधीश को छोड़कर) पर नियुक्तियाँ भी करता है ।

राज्यपाल की संवैधानिक स्थिति (Constitutional Position of the Governor):

भारत के संविधान में केंद्र और राज्यों में संसदीय प्रणाली की सरकार का प्रावधान है । फलस्वरूप, राज्यपाल का कार्यकारी प्रमुख का दर्जा नाममात्र का है, वास्तविक कार्यपालक मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद है ।

दूसरे शब्दों में, राज्यपाल को अपनी शक्तियों का प्रयोग और कार्य मुख्यमंत्री के नेतृत्ववाली मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से करना होता है तथापि निम्नलिखित मामलों में राज्यपाल अपने विवेक का प्रयोग कर सकता है:

(i) किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ प्रारक्षित कर लिया जाना ।

(ii) राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश करना ।

(iii) पड़ोस के किसी केद्रं शासित क्षेत्र के प्रशासक के (अतिरिक्त प्रभार संभालने पर) तौर पर अपना काम करते समय ।

(iv) उत्खनन के लिए लाइसेंसों से प्राप्त राशि में से असम राज्य द्वारा स्वायत्त जनजातीय जिला परिषद को रायल्टी के रूप में भुगतान की जाने वाली राशि के निर्धारण के समय ।

(v) मुख्यमंत्री से राज्य के प्रशासनिक और विधायी मामलों से संबंधित सूचना प्राप्त करना ।

(vi) राज्य विधानमंडल में किसी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने की स्थिति में मुख्यमंत्री की नियुक्ति करना ।

(vii) राज्य विधानसभा में ‘मंत्रिपरिषद’ द्वारा विश्वास मत हासिल न करने पर उसे बरखास्त करना ।

(viii) मंत्रिपरिषद द्वारा बहुमत खो दिए जाने की स्थिति में राज्य विधानसभा को भंग करना ।

इसके अतिरिक्त, राज्यपाल को राष्ट्रपति के निर्देशानुसार कुछ विशेष उत्तरदायित्वों का निर्वाह भी करना होता है । इस संदर्भ में यद्यपि राज्यपाल को मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद से सलाह लेनी होती है किंतु अंततः राज्यपाल स्वयं के निर्णय और विवेक से ही कार्य करता है ।

इनके विशेष उत्तरदायित्व हैं:

(i) महाराष्ट्र:

विदर्भ और मराठवाड़ा के लिए पृथक विकास बोर्ड का गठन ।

(ii) गुजरात:

सौराष्ट्र और कच्छ के लिए पृथक विकास बोर्ड का गठन ।

(iii) नागालैंड:

नागा हिल्स टूएनसांग एरिया में आंतरिक उपद्रव जारी रहने तक राज्य में कानून और व्यवस्था संबंधी ।

(iv) असम:

जनजातीय क्षेत्रों में प्रशासन संबंधी ।

(v) मणिपुर:

राज्य के पहाड़ी क्षेत्र में प्रशासन संबंधी ।

(vi) सिक्किम:

विभिन्न वर्ग के लोगों में शांति स्थापित करने सामाजिक और आर्थिक प्रगति सुनिश्चित करने संबंधी ।

(vii) अरुणाचल प्रदेश:

राज्य में कानून और व्यवस्था बनाए रखने संबंधी । इस प्रकार, भारतीय संघीय प्रणाली में संविधान के द्वारा राज्यपाल को दोहरी भूमिका सौंपी गई है । वह राज्य का संवैधानिक प्रमुख तथा केंद्र (राष्ट्रपति) का प्रतिनिधि भी है ।

राज्यपाल – संविधान के संबंधित अनुच्छेद  (Governor – Related Articles):

राज्य के राज्यपाल पद से संबंधित संविधान के अनुच्छेदों की सूची यह है: