Read this article in Hindi to learn about:- 1. पदसोपान का अर्थ (Meaning of Hierarchy) 2. पदसोपान की परिभाषाएं (Definitions of Hierarchy) 3. आवश्यकता (Need) 4. विशेषताएं (Features) 5. प्रकार (Types) 6. विकल्प (Options) 7. लाभ (Merits) 8. दोष (Demerits) 9. आलोचनात्मक मूल्यांकन (Critical Evaluation).
पदसोपान का अर्थ (Meaning of Hierarchy):
परंपरागत विचारकों ने जिन विभिन्न सिद्धांतों का प्रतिपादन किया, उनमें पदसोपान प्रथम और आधारभूत सिद्धांत हैं । वस्तुतः पदसौपान संगठन के उस पिरामिड का निर्माण करता है जिसके आधार पर ही अन्य सिद्धांतों की कल्पना की जा सकती है । मुने ने पदसोपान को ”विश्वव्यापी प्रघटना” कहा है । वेबर, फेयोल, गुलिक, उर्विक, मुने-रेले सभी पारंपरिक विचारकों ने इसे अपने सांगठनिक सिद्धांतों में महत्वपूर्ण स्थान दिया है ।
अंग्रेजी में पदसोपान के लिये हायरार्की शब्द का प्रयोग होता है । हायरार्की का डिक्शनरी अर्थ है- सत्ता या प्रस्थिति की विभिन्न श्रेणीयों की नीचे से ऊपर तक जमावट । उर्विक ने इसे ”स्केलर सिद्धांत” कहा है । पदसोपान का सामान्य अर्थ है, उच्च का निम्न पर शासन । पदसोपान का शाब्दिक अर्थ है पदों की सौपानिकता अर्थात ऊपर से नीचे तक पदों का व्यवस्थित क्रमबद्धीकरण ।
इसलिए इस स्केलर पद्धति या श्रेणीबद्ध प्रक्रिया भी कहते हैं । फेयोल ने इसे सोपानात्मक श्रृंखला (Scalar Chain) कहा । इसमें ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर की ओर प्रत्येक स्तर (सीढ़ी) से होकर ही गुजरना होता है इसलिए मूने एवं रेले ने इसे ”Scalar Process” (क्रमिक-प्रक्रिया या सीढीनुमा प्रक्रिया) कहा ।
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क्रम का अर्थ है – चरणों की पंक्ति । यह चरण कार्य अनुसार नहीं अपितु सस्ता और उत्तरदायित्व की मात्रा के आधार पर उच्च और निम्न के रुप में जमाये जाते हैं । इसमें सत्ता के सूत्र ऊपर से नीचे की ओर तथा उत्तरदायित्व के सूत्र नीचे से ऊपर की तरफ जाते हैं । इससे प्रत्येक कर्मचारी अंतिम रुप से संगठन के प्रधान के प्रति उत्तरदायी हो जाता है ।
इस सिद्धांत में प्रत्येक व्यक्ति को यह ज्ञात रहता है कि वह किसके नियंत्रण में है और वह स्वयं किन अधीनस्थों का बॉस है । अतः पदसोपान एक स्तरबद्ध ढांचा है जिसमें सत्ता शिखर पर केन्द्रीत मानी जाती है और इस सत्ता को श्रेणीबद्ध रूप से विभिन्न स्तरों में बांटा जाता है । आदेश की एकता इस सिद्धांत की आत्मा है । उचित माध्यम द्वारा कार्य इसकी प्रमुख विशेषता है ।
पदसोपान की परिभाषाएं (Definitions of Hierarchy):
अर्थलाथम – ”पदसोपान उच्च ओर निम्न लोगों का उतरता हुआ मापदण्ड है । इसमें संगठन के शीर्ष पर बैठा व्यक्ति अपने भयंकर नेत्रों से अधीनस्थों को घूरता है और अपनी इच्छानुसार उनके व्यवहार को परिवर्तित करता है ।”
मिलेट – ”पदसोपान एक ऐसी पद्धति है जिसमें विभिन्न व्यक्तियों के प्रयासों को परस्पर जोड़ दिया जाता है ।”
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एल.डी. व्हाइट – ‘पदसोपान का अर्थ है, संगठन में ऊपर से नीचे तक कार्मिकों के मध्य उच्च-अधीनस्थ संबंधों की स्थापना ।”
अवस्थी माहेश्वरी – ”पदसोपान में जो उच्च-अधीनस्थ संबंध बनते हैं वे उत्कृष्टता व निकटता के द्योतक नहीं है, अपितु कर्तव्य, उत्तरदायित्व आदि में अंतर के कारण ऐसे संबंध बन जाते हैं ।”
एम.पी. शर्मा – ”पदसोपान वह धागा है जिससे संगठन के विभिन्न भाग परस्पर सिले जाते हैं ।”
पदसोपान की आवश्यकता (Need of Hierarchy):
(i) मिलेट कहते है कि पदसोपान एक ऐसी पद्धति है जिसमें विभिन्न व्यक्तियों के प्रयासों को परस्पर जोड़ दया जाता है ।
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प्रत्येक संगठन सामूहिक कार्यों और दायित्वों का योग होता है । इन कार्यों और दायित्वों को दो दिशाओं में वितरित किया जाता है, ऊपर से नीचे (ऊर्ध्वाधर) और इसके लंबवत (क्षेतिज) । ऊर्ध्वाधर वितरण वस्तुतः उच्च, मध्यम, निम्न आदि स्तरों में होता है और इससे अनेक स्तर या पद बनते जाते हैं ।
लेकिन क्षेतिज वितरण बिना स्तर बढ़ाये हो सकता है और पूर्व के पदों के साथ ही नये कार्य-दायित्व जोड़ दिये जाते हैं । प्रत्येक स्तर समान कार्य, वेतन और प्रतिष्ठा या स्थिति का होता है और इसलिये प्रत्येक स्तर के पद भी । वस्तुतः पद सोपान की जरूरत विभिन्न स्तरों और पदों में व्याप्त असमानताओं के कारण भी पड़ती है ।
(ii) एपीलबी ने पदसोपान को संसाधनों के विभाजन, कार्मिकों के मध्य कार्य विभाजन, कार्य संचालन, कार्मिक चयन, समीक्षा और सुधार का एक साधन माना है ।
उनके अनुसार – ”मानव-पदसोपानों के अंदर और इनके बीच में कार्य के ऊपर और नीचे के बहाव का प्रबंध प्रशासनिक कला है ।”
पदसोपान की विशेषताएं (Features of Hierarchy):
पदसोपानिक संगठन की निम्नलिखित विशेषताएं होती हैं:
1. यह एक पिरमामिडाकार संरचना होती है ।
2. इसमें संगठन की संपूर्ण सत्ता संगठन के शीर्ष में केन्द्रीत मानी जाती है ।
3. सर्वोच्च शीर्ष द्वारा संगठन को विभिन्न भागों में बांटा और एकीकृत किया जाता है ।
4. आदेश की एकता स्थापित होती है ।
5. सत्ता का केंद्रण ऊपर की तरफ होता है ।
6. प्रत्येक स्तर, ईकाई और अधिकारी के कार्य और दायित्व निश्चित किये जाते हैं ।
7. प्रत्येक उच्च अधिकारी अधीनस्थों के लिये समन्वयक भी होता है ।
8. कार्य की उचित माध्यम प्रक्रिया का कठोरतापूर्वक पालन किया जाता है ।
पदसोपान के प्रकार (Types of Hierarchy):
फिफनर और शेरवुड ने पदसोपान के चार प्रकार बताये हैं:
1. कार्य आधारित:
कार्मिक की स्थिति उसके कार्य की महत्ता से निर्धारित । इसे कार्यात्मक विशिष्टता का पदसोपान भी कहते हैं । सामान्यतया संगठन में कार्यात्मक पदसोपान ही पाया जाता है । संगठन में नीति निर्माण से लेकर चपरासी तक के कार्य संपन्न होते है । अतः इन कार्यों के महत्वानुसार ही इनको संपन्न करने वाले कार्मिकों को उच्च या निम्न स्तर प्राप्त होता है ।
2. प्रतिष्ठा आधारित:
यह सेना में मुख्य रूप से प्रचलित है । इसके अंतर्गत संगठन में कार्य के स्थान पर पद का महत्व रहता है । सेना में कर्नल, कैप्टन आदि के कार्य उनकी नियुक्ति के अनुसार बदलते रहते हैं, लेकिन उनकों प्रतिष्ठा वही हासिल होती है । भारतीय प्रशासनिक सेवा को भी प्रतिष्ठा आधारित पद सोपान में रखा जा सकता है । उनके कार्य भी सचिव, कलेक्टर, संचालक के अनुरूप बदलते हैं लेकिन उन्हें I.A.S की समान प्रतिष्ठा सदैव उपलब्ध रहती है ।
3. कौशल आधारित:
यह किसी कार्य के संबंध में कार्मिक की विशेष योग्यता या कुशलता पर आधारित है । चिकित्सा, इंजियनियरिंग आदि तकनीकी सेवाओं में कुशलता आधारित पदसोपान पाया जाता है ।
4. वेतन आधारित:
उच्च या निम्न वेतन के आधार पर पदों का श्रेणीकरण इस पदसोपान के अंतर्गत किया जाता है । वेतन स्वयं भी कार्य या दायित्व के अनुसार निर्धारित रहता है । अतः वेतन आधारित पदसोपान को गौण प्रकार ही माना जा सकता है ।
पदसोपान के विकल्प (Options of Hierarchy):
आधुनिक संगठन, विशेषकर निजी क्षेत्र में जहां एक से अधिक वस्तुओं का उत्पादन होता है, पदसौपानिक ढांचा उपयुक्त नहीं पाया जाता । क्रिस आर्गेराइरिस आदि ने ऐसे संस्थानों के लिये मेट्रिक्स संगठन का सुझाव दिया है ।
कुछ विद्वानों ने परियोजना संगठन का विकल्प सुझाया है । दोनों संगठनों का उद्देश्य पदसोपानिक लालफिताशाही और विलंब को दूर करके निर्णय प्रक्रिया को शीघ्रगामी बनाना है । ऐसे संगठनों की एक विशेषता होती है, सूत्र और स्टाफ के मध्य समस्तरीय संबंध ।
पदसोपान के लाभ (Merits of of Hierarchy):
1. कार्यों और उत्तरदायित्वों का बंटवारा पदसोपान द्वारा ।
2. आदेश-सत्ता और आदेश की एकता की स्थापना ।
3. संचार की उचित व्यवस्था ।
4. कार्य की उचित माध्यम प्रणाली स्थापित जो प्रत्येक स्तर के महत्व को स्थापित करती है ।
5. श्रम विभाजन व विशेषीकरण का आधार ।
6. प्रशासनिक कार्यों में सुविधा ।
7. सत्ता के प्रत्यायोजन को आसान बनाता है ।
पदसोपान के दोष (Demerits of Hierarchy):
1. कार्यों में विलम्ब – सबसे बड़ा दोष है, जो उचित माध्यम की प्रक्रिया के कारण होता है ।
2. लालफीताशाही और नौकरशाही – कार्य नियमों का जिशकार, उचित माध्यम की प्रक्रिया के कारण ।
3. पदाधिकारियों के मध्य दूरी – उच्च और निम्न स्तरीय कामिर्कों के मध्य लम्बी दूरी जो उनके मध्य संपर्क में बाधा बन जाती है । इससे संगठन में शिथिलता उत्पन्न होती है ।
4. समन्वय की समस्या – विभिन्न स्तरों और पदों के मध्य समन्वय बनाये रखने की समस्या उठती है ।
5. अपव्ययता – संगठन को विभिन्न स्तरों में बाँटना पड़ता है, जिससे अनेक विभाग खड़े हो जाते हैं और इसमें अधिक धन खर्च होता है ।
6. अधिकारी अपने पद और अधिकारों को संगठन की तुलना में अधिक महत्व देते हैं ।
7. जो मात्र औपचारिक संबंधों पर बल ।
8. केन्द्रीय सत्ता का अत्याधिक विस्तार होता है, इससे निचले स्तर पर निराशा ।
9. निम्नस्तरीय कामिर्कों के मनोबल और पहलपन की शक्ति को अवरुद्ध करता है । परिणामतः अकुशलता और अनिर्णयन उत्पन्न होता है ।
फेयोल का गैंग प्लांक- हेनरी फेयोल ने पद सौपान के विलम्ब को दूर करने हेतु ”गैंग प्लांक” (जम्पिंग लेवल) का सिद्धांत दिया:
(i) इसमें विभिन्न अधिकारियों के मध्य समझौता कर लिया जाता है ।
(ii) समझौत के अंर्तगत दो समकक्ष स्तर के अधिकारी अपने उच्च अधिकारी की उपेक्षा करके सीधे सम्पर्क कर सकते हैं ।
(iii) इसी प्रकार उच्च और निम्न अधिकारी भी अपने मध्यस्थ को लांघकर सीधे सम्पर्क कर सकते हैं ।
(iv) इसके अंतर्गत लंबस्तरीय और समस्तरीय दोनों तरह से छलांग लगायी जा सकती है ।
(v) साथ ही दो या अधिक संगठनों के मध्य या एक संगठन की आंतरिक इकाइयों या अधिकारियों के मध्य भी गेंग प्लांक का उपयोग किया जा सकता है ।
(vi) शर्त एक ही है, उच्च स्तरीय अधिकारियों या मध्य स्तरीय अधीनस्थों या अधिकारियों (जैसी भी स्थिति हो) को निर्णयों से सूचित रखना ।
आलोचनात्मक मूल्यांकन (Critical Evaluation of Hierarchy):
जिस प्रकार विभिन्न कार्यों को सामूहिक रुप से सम्पन्न करने के लिये संगठन आवश्यक है, ठीक उसी प्रकार सामूहिक कार्यों को व्यक्तिगत उत्तरदायित्व के आधार पर संपन्न करने के लिये पद सोपान आवश्यक है । संगठन का मुख्य आधार श्रम विभाजन है और पदसोपान श्रमविभाजन का कारण और परिणाम दोनों है । वस्तुतः पद सोपान श्रेणीबद्व श्रमविभाजन ही है ।
लेकिन पदसोपान ही संगठन नहीं है, अपितु वह संगठन का एक आधार मात्र है । यह एक ऐसा आधार है जिस पर आदेश की एकता, श्रमविभाजन एवं विशेषीकरण, नियंत्रण की सीमा जैसी संगठन की अन्य समस्यायें और सिद्धांत निर्भर है ।
यह सही है कि पदसोपान संगठन में आदेशों और प्रतिवेदनों की एक व्यवस्थित प्रणाली को जन्म देता है तथापि इस हेतु हम मात्र इस पर निर्भर नहीं रह सकते, अन्यथा संगठन एक निर्जीव और निरस व्यवस्था मात्र बनकर रह जाएगा । क्रिस आइगाइरिस ने इसके स्थान पर मेट्रिक्स संगठन (फेन-लाइक संगठन) सुझाया, जिसमें उच्च-अधीनस्थ संबंध नहीं होते हैं ।
कार्यों का विधिवत विभाजन जहां विशेषीकरण को जन्म देता है वहीं संगठन में एक व्यक्ति के महत्व को समाप्त कर उसे सामूहिक प्रणाली में बदल देता है इसका एक महत्वपूर्ण लाभ है कार्य के अनुपात में दायित्व और सत्ता तथा कार्य निष्पादन का इसी संदर्भ में मूल्यांकन ।
परन्तु उचित माध्यम ही प्रक्रिया और कार्य की कृमिक प्रक्रिया उच्च और निम्न कार्मिकों के मध्य प्रशासनिक दूरी बढ़ा देती है तथा कार्यों में उस विलंब को जन्म देती है जो नौकरशाही से पीड़ीत होकर लालफिताशाही की अमर बेल बन जाती ।
कार्यों का विभाजन कार्मिक को एक कार्य तक सीमित कर देता है । और इससे कार्मिक विकास रूक जाता है । इसी प्रकार यह विभाजन समन्वय की दुरूह समस्या उत्पन्न कर देता है । ऐसी ही बाधा संचार की औपचारिक प्रणाली में उत्पन्न होती है ।
इन दोषों से युक्त पदसोपान संगठन का आधारभूत सिद्धांत जैसा कि मुनै-रेले ने कहा । संगठन का आधारभूत सिद्धांत नहीं रह जाता और इसीलिए स्वयं फेयोल द्वारा पदसोपान सिद्धांतों में गैंग प्लांक जैसा संशोधन स्वीकारना पड़ता है ।
उर्विक के शब्दों में – ”पद सोपान संगठन में उसी प्रकार आवश्यक है, जैसे घरों में नाली । लेकिन इसे संचार की एकमात्र व्यवस्था स्वीकार करना उसी तरह गलत है, जैसे घरों की नालियों में समय बिताना ।”