Read this article in Hindi to learn about the evaluation of Hawthorne studies on human relation.
1939 में रोथलिस बर्जर ने इन प्रयोगों और निष्कर्षों को ”मैंनेजमेंट एण्ड द वर्कर” में समेटा ।
(1) सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष था- भौतिक के स्थान पर मनोवैज्ञानिक कारकों को प्रतिष्ठित करना । कार्य की भौतिक परिस्थितियां नहीं अपितु सामाजिक-मनौवेज्ञानिक घटक कार्मिकों के उत्साह और उत्पादन को मुख्यतः निर्धारित करते है ।
(2) व्यक्तियों के मध्य लंबे समय तक काम करने से अंत: सामाजिक संबंध विकसित हो गये थे जिन्होंने अनौपचारिक समूहों को जन्म दिया ।
ADVERTISEMENTS:
(3) अत: अनौपचारिक संगठन प्रत्येक संगठन का अनिवार्य पहलु होता है ।
(4) उत्पादन के वास्तविक मानक अनौपचारिक संगठनों द्वारा ही तय होते है ।
(5) कार्मिक का प्रबन्ध के प्रति व्यवहार व्यक्तिगत के स्थान पर एक समूह के सदस्य के रूप में होता है ।
(6) नेतृत्व, पर्यवेक्षण की शैली, प्रबन्ध में भागीदारी, संचार आदि कार्मिकों के कार्य, व्यवहार, उत्साह, सतुष्टि और उत्पादन को मुख्य रूप से प्रभावित और निर्धारित करते हैं।
ADVERTISEMENTS:
(7) शारीरिक श्रम, वातावरण और उत्पादकता के मध्य कार्यकारण संबंध होता है ।
(8) अत: श्रेष्ठ कार्य दशाएं उत्पादन में वृद्धि करती है । लेकिन ये एकमात्र घटक नहीं है जो उत्पादन में वृद्धि करें, अपितु अन्य घटक अधिक जिम्मेदार हैं ।
(9) आर्थिक प्रेरणाएं भी अधिक उत्पादन को प्रेरित करती है लेकिन कामगार उससे कहीं अधिक सामाजिक संतुष्टि से अभिप्रेरित होता है ।
(10) संगठन एक सामूहिक क्रिया है, व्यक्तिगत नहीं ।
ADVERTISEMENTS:
(11) प्रबंधकीय नीतियों के प्रति कार्मिक ‘एक व्यक्ति’ के बजाय सामाजिक ‘समूह’ के रूप में ही प्रतिक्रिया देते है ।
(12) संगठन का अध्ययन एक सामाजिक-मनोवैज्ञानिक प्रणाली के रूप में किया जाना चाहिए ।
(13) मनुष्य परमाणुवादी या संकल्पवादी प्राणी के स्थान पर एक चिंतनशील और कार्यशील प्राणी है जो अपने सामाजिक वातावरण से प्रभावित होता है ।
(14) विशेषीकरण के आधार पर ही कार्य विभाजन सांगठनिक प्रभावशीलता का एकमात्र उपाय नहीं हैं ।
(15) मनुष्य एकांकी नहीं अपितु एक सामाजिक प्राणी है, अर्थात् समूह में रहना पसंद करता है ।
(16) अत: संगठन एक सामाजिक प्रणाली है ।
मान्यताएं:
मेयो के पूर्व मानव सबंध में मनुष्य की आर्थिक जरूरत पर ही बल था जबकि मेयो ने सामाजिक जरूरत को प्राथमिकता पर ला खड़ा किया ।
इस संदर्भ में हेराल्ड लेविट ने मानव संबंध की मान्यताओं को दो भागों में रखा है:
1. परंपरागत मान्यताएं:
लेक्टि के अनुसार मानव संबंध की परंपरागत मान्यताएं है:
(क) कार्मिको की आवश्यकताएं विविध और विस्तृत होती है लेकिन उनमें से कुछ ही आर्थिक जरूरते पूरी हो सकती है ।
(ख) नियोक्ता और कार्मिकों के हित समान होते है और उनमें परस्पर निर्भरता होती है ।
(ग) कार्मिक अपने कार्यों का अधिकतम आर्थिक पुरस्कार चाहते है ।
2. आधुनिक मान्यताएं:
लेविट ने इन्हें निम्नलिखित तीन वर्गों में रखा है:
(क) मनोवैज्ञानिक मान्यताएं:
(a) प्रत्येक मनुष्य आत्मनिर्भर बनना चाहता है, अत: उसके कार्य-व्यवसाय को उसकी सामाजिक पृष्ठभूमि के तहत समझने का प्रयास हो ।
(b) कार्य के लिये मनुष्य को अभिप्रेरित करने के अनेक तरीके हो सकते है ।
(c) कई बार मनुष्य मात्र भावना (विवेक शून्यता) के वशीभूत काम करता है ।
(d) अच्छे सांगठनिक संबंधों के लिये प्रबंधकों को प्रशिक्षित किया जा सकता है ।
(ख) सामाजिक मान्यताएं:
(a) कार्य के सामाजिक वातावरण को प्रबंध के साथ अन्य कई परिस्थितियां भी प्रभावित करती है ।
(b) औपचारिक तथा अनौपचारिक संगठन दोनों एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं ।
(c) कार्मिक के कार्य पर उसके सामाजिक तथा व्यक्तिगत घटकों का बहुत प्रभाव पड़ता है ।
(ग) सामाजिक-मनोवैज्ञानिक मान्यताएं:
(a) निर्णयन-प्रक्रिया में कार्मिकों को सम्मिलित करने से उनका मनोबल बढ़ता है तथा उत्पादन में भी वृद्धि होती है, क्योंकि कार्मिक ”प्रबंध में सहभागिता” के तहत आत्मीय संबंधों को अनुभव करते है ।
(b) प्रत्येक कार्मिक, संगठनात्मक हितों एवं उद्देश्यों के लिये नहीं सोचता है । उसे तो इस ओर प्रेरित करना पड़ता है ।
(c) कार्मिकों में समूह-भावना का विकास किया जा सकता है ।
(d) प्रभावी संचार व्यवस्था द्वारा प्रत्येक कार्मिक की मनोभावनाओं को समझा जा सकता है ।
इन दोनों मान्यताओं के द्वन्द्व में आधुनिक मान्यता को वरीयता देते हुए चेस्टर बर्नार्ड कहते है- ”किसी भी संगठन में मानवीय व्यवहार के दर्शन तब तक नहीं किये जा सकते जब तक कि अर्थशास्त्रीय सिद्धांतों तथा आर्थिक हितों (यद्यपि वे अपरिहार्य है) को दूसरे स्थान पर नहीं धकेल दिया जाता ।”
इसी प्रकार एल्टन मेयो का कहना था कि- ”यदि हमारी तकनीकी कुशलताओं के साथ-साथ सामाजिक कुशलताएं भी विकसित हो गई होती तो द्वितीय विश्वयुद्ध नहीं होता ।”
सिद्धांत:
मानव संबंध की मान्यताओं के अनुरूप उसके कतिपय सिद्धांत भी विकसित हुए है, जो इस प्रकार है:
1. व्यक्ति के महत्व का सिद्धांत अर्थात् संगठन में व्यक्ति, उसकी भावना आदि को समझने का प्रयास हो ।
2. पारस्परिक मान्यता का सिद्धांत अर्थात् संगठन में परस्पर आदर और सद्भावना का विकास हो ।
3. सामान्य हित का सिद्धांत अर्थात् प्रबंध और श्रमिक अपने को परस्पर विरोधी नहीं माने तथा सामान्य हितों का विकास करें ।
4. संचार का सिद्धांत अर्थात् सही सूचनाओं का शीघ्र संचार हो जिससे अपवाहो, भ्रांतियों के लिये अवसर नहीं बचे ।
5. ”टीम स्प्रीट” का सिद्धांत अर्थात् संगठन में टीम भावना का विकास हो ।
6. आत्म नियंत्रण का सिद्धांत अर्थात् कार्मिकों में स्वनियंत्रण की क्षमता का विकास हो ।
7. लोकतांत्रिक व्यवस्था का सिद्धांत अर्थात् संगठन की व्यवस्था अधिनायकवादी के स्थान पर लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित हो ।
आलोचना:
मानव संबंध ने जहां संगठन प्रणाली में मानव की भूमिका को रेखांकित किया वहीं वारेन, कैरी, ड्रकर ने इस पर अनेक व्यवहारिक बातों की उपेक्षा का आरोप लगाया ।
(1) हाथार्न इफेक्ट- आलोचना की जाती है कि जिस श्रमिक-व्यवहार के आधार पर निष्कर्ष निकाले गये, वह “हाथार्न इफेक्ट” का परिणाम था । अर्थात् मजदूरों का व्यवहार बनावटी था क्योंकि उन्हें पता था कि उन पर शोधकर्ताओं की नजर है तथा प्रयोगों को कितना महत्व प्रबंध और औद्योगिक समदुाय दे रहे हैं । इसलिए उन्होंने सकारात्मक प्रतिक्रियाएं दी ।
(2) एमीतोई एत्जीयोनी कहते है कि यह विचारधारा श्रमिक-श्रमिक के मध्य और पर्यवेक्षक-श्रमिक के मध्य अनौपचारिक संबंधों पर कुछ अधिक ही ध्यान देती है लेकिन औपचारिक संबंधों और उन पर मानव संबंधों के प्रभाव को स्पष्ट नहीं करती ।
(3) बॉडिक्स और फिशर कहते है कि मेयो अपने वैज्ञानिक कार्य की नैतिक पूर्वाधारणा को स्पष्टता के साथ परिभाषित करने में असफल रहे । तनाव और द्वन्द्व पर विचार नहीं करने के कारण भी मेयो की आलोचना की गयी ।
(4) मार्क्सवादी विद्वान मेयो की ”आर्थिक उपेक्षा” की आलोचना करते है और इसे श्रमिकों के आर्थिक शोषण की ही नयी तकनीक कहते है । मेयोवाद ने श्रमिकों के विचार-व्यवहार पर पर्यावरणीय प्रभाव को भी नजर अंदाज किया ।
(5) लारेन वारिट्ज ने इन्हें यूनियन विरोधी कहा जो श्रमिकों के लिये यूनियन के स्थान पर प्रबंध को ला रहा है ।
(6) कैरी ने इसे अवैज्ञानिक बताया क्योंकि इन प्रयोगों का आधार वैज्ञानिक नहीं था । कैरी के अनुसार 5-6 लोगों के साथ इतना बड़ा निष्कर्ष नहीं दिया जा सकता ।
(7) ड्रकर इनकी अर्थ की उपेक्षा से असंतुष्ट थे । उनके अनुसार मनुष्य धन लाभ के उद्देश्य से ही संगठन में आता है । वे यह भी कहते है कि मानव संबंधियों ने कार्य की प्रकृति के प्रभावों का तो ध्यान नहीं रखा, उल्टे व्यक्तिगत संबंधों को जरूरत से ज्यादा महत्व दिया ।
(8) संघर्ष, विरोध जैसे तत्वों की उपेक्षा का आरोप भी कतिपय विद्वानों ने लगाया ।
(9) कुछ विद्वानों के अनुसार मेयोवाद सांगठनिक मानव (साधन) पर तो अत्यधिक बल देता है लेकिन उद्देश्य और कार्य (साध्य) की घोर उपेक्षा करता है ।
(10) श्रमिकों की प्रतिक्रिया व्यवहार और रवैये पर पारिस्थितिकीय कारकों के प्रभाव को भी इसमें नजर अंदाज किया गया ।
(11) अमेरिका के यूनाइटेड आटो वर्क्स (1949) ने मेयोवादियों को “काउ सोशिओलाजिस्ट” (निरीह समाजशास्त्रीय) की संज्ञा दी जो कार्मिकों को पुचकार कर काम निकालते है । इससे उनकी वास्तविक समस्याएं शायद ही हल होती है ।
(12) मैल्कम मैकनेयर के अनुसार- ”मानव संबंधों पर अत्यधिक अवलम्बित रहने वाले लोग मात्र अपनी गलती के लिये खेद प्रकट करने, उत्तरदायित्व से बचने और बच्चों सी हरकत करने को ही प्रोत्साहित हो सकते हैं ।