Read this article in Hindi to learn about the importance of human relations in an organization.
संगठन में मानवीय व्यवहार का सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान है । यांत्रिक एवं औपचारिक दृष्टिकोण की समर्थक संगठनात्मक इकाईयों की संरचना तथा औपचारिक नियमों का अधिक महत्व मानते हैं किंतु आधुनिक विचारक संगठन तथा मानवीय व्यवहार के पारस्परिक संबंधों पर विशेष बल देते हैं ।
मानवीय व्यवहार पर उनके चरित्र, आदतों, भावनाओं, मूल्य, समाज-व्यवस्था, आदर्श, परंपरा एवं ऐसे ही अन्य तत्वों का जो प्रभाव पड़ता है वह संगठन में भी उसकी क्रियाओं को एक नवीन मोड़ देने का कारण बन जाता है ।
संगठन की शास्त्रीय विचारधारा में मानव तत्व पर बल नहीं दिया जाता अपितु उसकी भूमिका जो संगठन के संदर्भ में उनके द्वारा निभाई जाती है, पर विशेष बल दिया जाता है । इसमें संगठन के केवल औपचारिक संगठन पर बल दिया जाता है ।
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जबकि मानव-संबंध विचारधारा में अनौपचारिक संगठन पर बल दिया गया है । इस संबंध में रोथलिस बर्जर का कथन सत्य है कि, ”मानवीय समस्याओं का समाधान भी मानवीय होना चाहिए ना कि गैर मानवीय ।” प्रशासन मानवीय व्यवहार से संबंधित है और मनोविज्ञान उसे समझने में हमारी सहायता करता है ।
इसका प्रतिपादन मेरी पार्कर फॉलेट ने किया-प्रशासन के मनोवैज्ञानिक अध्ययन से यह बात स्पष्ट हुई कि व्यक्तियों और समूहों की मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियाओं का प्रशासन के भीतर एक अनौपचारिक संगठन का निर्माण है ।
इस संबंध में एल॰डी॰ ह्वाइट ने लिखा है कि – ”यह विचारधारा कार्य संबंधों का समूह है जो दीर्घकाल तक एक साथ कार्य करने के कारण व्यक्तियों में पारस्परिक अंतःसंबंधों के कारण विकसित हो जाते है ।”
मानव संबंध के दृष्टिकोण ने सैद्धांतिक औपचारिक संगठन की प्रतिक्रिया के रूप में जन्म लिया जो संगठन के उन तत्वों पर बल देता है जिनकी ओर पुराने विचारकों ने ध्यान ही नहीं दिया । एल्टन मायो को सामान्यतः इस स्कूल का जनक माना जाता है और इसे प्रारंभ करने में जॉन डीचे ने अप्रत्यक्ष तथा कर्टलेविन ने प्रत्यक्ष रूप से पर्याप्त योगदान किया । मायो के सभी अध्ययनों पर फिएरजने और सिग्मंड फ्रायड का गहरा प्रभाव था ।
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1920 के दशक के अंतिम वर्षों में एवं 1930 के प्रारंभिक वर्षों में अमेरिका में हार्थोन प्रयोग हुए जिनके फलस्वरूप संगठन की यांत्रिक विचारधारा को धक्का लगा । इन प्रयोगों ने यह सिद्ध कर दिया कि मनुष्य एकांकी प्राणी नहीं है तथा संगठन एक सामाजिक प्राणी है, व्यवहारिक व्यक्तियों का समूह है । हार्थोन प्रयोगों के निष्कर्ष मौलिक थे फलस्वरूप संगठन संबंधी नवीन सामाजिक मनोवैज्ञानिक अथवा मानव संबंध दृष्टिकोण का उदय हुआ ।
गार्डनर:
”मानव संबंध दृष्टिकोण यह प्रतिपादित करता है कि मजदूरों में यह भावना होनी चाहिए कि कंपनी के कार्य एवं लक्ष्यों में उनके कार्य का महत्व है ।”
औपचारिक संगठन जहां विवेकी है और अवैयक्तिक होता है वहां अनौपचारिक संगठन भावात्मक और वैयक्तिक होता है । दोनों एक-दूसरे का अतिक्रमण कर सकते हैं, पूरी तरह मिल सकते हैं, या एक दूसरे से पृथक हो सकते हैं ।
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एल्टन मायो: कुछ महत्वपूर्ण प्रयोग (Elton Mayo: Some Important Experiments):
लोक प्रशासन में मानवीय सबध आंदोलन के संस्थापक मायो माने जाते हैं । इनके शोधों ने एक चौथाई शताब्दी तक अपना प्रभाव बनाए रखा । संगठन एवं प्रबंध के आविर्भाव का श्रेय मायो तथा अमेरिकी निवासी रोथलिस बर्जर द्वारा हार्थोंन स्थान पर वेस्टर्न इलैक्ट्रोनिक कंपनी के हार्थोंन कारखाने में किए गए प्रयोगों को जाता है । मानवीय व्यवहार विचारधारा, मनोविज्ञान, सामाजिक एवं समाजशास्त्रीय की उपलब्धियों को प्रबंध क्षेत्र में लागू करती है ।
मायो तथा बर्जर के शब्दों में – ”भौतिकचरों की अपेक्षा सामाजिक चर अधिक महत्वपूर्ण हैं ।”
मायो ने कामगारों की समस्याओं को परम्परावादियों से अलग दृष्टिकोण से देखने का प्रयास किया । अपने व्यापक शोध से उन्होंने मानव समूहों का महत्व और कार्यरत व्यक्तियों के व्यवहार में उसका प्रभाव साबित किया । अपने अध्ययनों में मायो अधिकांशतः थकान, एकरसता, मनोबल, कार्य के वातावरण, और कामगारों पर उसके असर से जुड़ी समस्याओं के विश्लेषण करने में जुटे रहे ।
मायो के नेतृत्व में हुए हार्थोंन प्रयोगों ने प्रबंध जगत में एक युगान्तर ला दिया । इससे प्रबंध जगत में मानव संबंधों के व्यवहार की जानकारी मिली जिससे प्रबंध के विचारों में संशोधन हुआ और आगामी अध्ययनों के लिए नया आधार मिला ।
मायो ने इन शोधों में पाया कि कामगार भौतिक और असामाजिक वातावरण की अपेक्षा गैर भौतिक और सामाजिक वातावरण में अच्छा महसूस करते हैं । इन शोधों की एक और अन्य महत्वपूर्ण प्राप्ति संगठनों में अनौपचारिक संगठनों की मौजूद होने की खोज रही ।
1. First Experiment (1923) आरंभिक जांच 1923:
मायो ने अपने और समकालीन विद्वानों की भांति अपना ध्यान फैक्टरी में काम करने वाले श्रमिकों की थकान, दुर्घटनाओं, उत्पादन स्तर, विश्राम के प्रहर, काम करने के माहौल आदि पर केंद्रित किया । मायो ने अपना प्रथम शोध 1923 में फिलाडेल्फिया के पास एक कपडा मिल में प्रारंभ किया ।
इस मिल में Mule Spinig Dept. में मजदूर रुक नहीं रहे थे और प्रतिवर्ष पहले से अधिक 100 मजदूरों की आवश्यकता और होती थी । प्रबंधकों ने कई नई योजनाएं चलाई, कई इंजीनियरिंग संस्थानों से परामर्श लिया पर समस्या का समाधान न हो सका । अतः अंत में यह समस्या हार्वर्ड विश्वविद्यालय को सौंप दी गई ।
यहां मायो का पहला बड़ा शोध था । इसे मायो ने (पहली जांच) का नाम दिया । इसमें मायो ने पाया कि इस विभाग में श्रमिकों को पैरों की तकलीफ है क्योंकि उन्हें 30 यार्ड की लंबाई वाले गलियारे से गुजरना पड़ता था जिसके दोनों ओर मशीनें लगी हुई थी और एक श्रमिक को 10 से 14 मशीनों की देखभाल करनी पड़ती थी ।
मायो ने पाया कि श्रमिकों का आपस में कोई संवाद (बात-चीत) नहीं है जिससे सामाजिक माहौल नहीं बन सका । मायो ने हर एक दल को 10-10 मिनट सुबह और दोपहर को विश्राम देने की योजना बनाई जिससे थकान दूर होने के कारण उदासीनता के लक्षण गायब हो गये और मजदूरों का पलायन रुक गया । उत्पादन भी बढा और मनोबल में सामान्य सुधार हुआ ।
परिणाम:
इस प्रयोग से सामाजिक संवाद का माहौल प्रारंभ हुआ और एक नई जागृति आई जिसने ‘रेबेल परिकल्पना’ की अवधारणाओं पर प्रश्न चिह्न लगाए । इस परिकल्पना में माना गया है कि ”मनुष्य असंगठित लोगों का झुंड है जो स्वार्थ से परिचालित है ।”
2. हार्थोन अध्ययन (1924-27), (1927-32) [Harthon Studies (1924-27), (1927-32)]:
मानवीय संबंध अवधारणा का अगला चरण Western Electronic Comp. के हार्थोन प्लांट में हुआ । इसमें यह अनुमान लगाया गया कि यदि हवा, तापमान, प्रकाश और काम करने की जगह अन्य भौतिक परिस्थितियां ठीक होंगी तो मजदूर ज्यादा उत्पादन करेंगे । अतः नेशनल एकेडमी ऑफ साइसेंस (National Academy of Science) की नेशनल रिसर्च काउंसिल (National Research Council) ने यह शोध आरंभ किया । यह शोध 1924 में आरंभ हुआ ।
हार्थोन प्रयोग का अध्ययन दो चरणों में हुआ । पहला चरण 1924 से 1927 तक चला जिसे National Research Council ने पूरा किया और दूसरा चरण 1927 से 1932 तक चला जिसे मायो तथा उसके सहयोगी रोथलिस बर्जर और अन्य के साथ किया इनमें मुख्य थे- जी॰ए॰ पिनोक, विलियम जे डिक्सन, हेराल्ड ए॰ राइट (कंपनी अधिकारी) टी॰ नार्थ व्हाइट हेड, डब्ल्यू॰ लायड, ई वार्नर और एल॰ जे॰ हेन्रसन (शैक्षिक क्षेत्र के) शामिल थे ।
पहला चरण: महान प्रकाश व्यवस्था (1924-27):
रिले ऐसेम्बली टेस्ट रूम:
छ: छ: महिला मजदूरों के दो समूह चुने गये और उन्हें अलग-अलग कमरों में रखा गया । उन्हें एक समान कार्य सौंपे गये । कमरे एक से ही प्रकाशित थे और ऐसा बदलते हुए प्रकाश के आधार पर उत्पादन के स्तर की जांच करने के उद्देश्य से किया गया था । शुरूआत में जिन कमरों में लड्कियां काम कर रही थीं उनका भौतिक माहौल स्थिर था ।
फिर धीरे-धीरे काम का माहौल बदला गया ताकि उत्पादन पर उसका प्रभाव परखा जा सके । 1½ वर्ष चले इस शोध से यह निष्कर्ष सामने आया कि प्रकाश के स्तर से परे नियंत्रण और प्रायोगिक, दोनों समूहों में उत्पादन बढ़ा । इसके बाद दिहाड़ी, विश्राम के क्षण, प्रति सप्ताह काम करने की कटौती, कॉफी, सूप जैसे नाश्ते के प्रावधान से उत्पादन बढ़ा ।
इन सुविधाओं के वापस लेने से भी उत्पादन बढा । अतः यह शोध विफल रहा और इसे छोड़ दिया क्योंकि इसके परिणाम स्पष्ट नहीं थे ।
दूसरा चरण 1927 से 1932:
निष्कर्ष आशानुकूल न निकलने के कारण यह कार्यभार हार्वर्ड विश्वविद्यालय के मायो को सौंपा गया । यह दूसरा चरण 1927 से 1932 तक चला । इस Westtran Electronic Comp. के प्लाट में 25,000 मजदूर काम करते थे ।
लेकिन यह शोध शुरू करने से पहले, पहले के शोध (1924-27) की विफलता को समझाने के लिए मायो ने पांच परिकल्पनाएं प्रस्तुत की जो इस प्रकार हैं:
मायो की परिकल्पनाएं:
i. उसने यह अस्वीकार किया कि परिक्षण कक्ष में सुधरी भौतिक परिस्थितियों की वजह से उत्पादन बढा क्योंकि उत्पादन उस वक्त भी बढा जब रोशनी का स्तर कम कर दिया गया था ।
ii. उसने यह भी अस्वीकार किया कि विश्राम के क्षण और सप्ताह में काम के दिन कम होने पर उत्पादन बढ़ा क्योंकि इस स्थिति में भी उत्पादन बढा जब सारी सहुलियतें वापस ले ली गई थी ।
iii. उसने यह भी स्वीकार नहीं किया कि एकरसता की मुक्ति से उत्पादन बढा है । क्योंकि भौतिक परिस्थितियों का एकरसता से कुछ लेना-देना नहीं होता ।
अन्य दो परिकल्पनाएं इस प्रकार थीं:
iv. प्रति व्यक्ति दिहाडी के प्रोत्साहन ने उत्पादन बढ़ाया है, और
v. निरीक्षण तकनीक में परिवर्तन से उत्पादन बढा है ।
इनका उसने अपने पूरक परीक्षणों में मूल्यांकन किया जो निम्नलिखित है:
पाँच-पाँच लडकियों के दो दल बनाए गए । इन लडकियों को काम पर व्यक्तिगत प्रोत्साहन योजना के तहत रखा गया प्रारंभ में उत्पादन बढा और फिर एक स्तर पर आकर स्थिर हो गया । दूसरे दल को विश्राम के क्षणों और सप्ताह के काम के दिनों की अलग-अलग परिस्थितियों में रखा गया, हालांकि व्यक्तिगत प्रोत्साहन योजना उन पर भी लागू रही है । उनके उत्पादन का रिकार्ड भी रखा गया ।
इस दल में 14 महीने की अवधि में उत्पादन में औसत बढोतरी होती पाई गयी । यहाँ शोध दल ने बताया कि चौथी परिकल्पना भी अस्वीकार्य है क्योंकि दिहाडी नहीं कुछ और ही है जिससे उत्पादन बढ़ता है । अब आखिरी परिकल्पना का परीक्षण किया ।
अंत में माहौल में परिवर्तन करके उसे सौहार्दपूर्ण और तनाव रहित बनाया । लड़कियों को खुलकर बात-चीत करने की अनुमति थी और सुपरवाइजर भी व्यक्तिगत रुचि लेते थे । समूह के भीतर बेहतर सामाजिक परिस्थिति बनी और प्रयोग धर्मी सुपरवाइजर को बॉस की तरह नहीं देखा गया । दूसरा महत्वपूर्ण कारण संशोधित प्रबंध व्यवहार था ।
मजदूरों से परिवर्तन के बारे में सलाह ली जाती थी और उनको भरोसा दिया जाता था कि उनके सुझावों पर गौर किया जाता है । इस प्रक्रिया से मजदूर खुलकर अपनी समस्या कहने लगे और उन्होंने अपने सहकर्मियों और सुपरवाइजर के साथ नए अंतरवैयक्तिक संबंध कायम किए ।
परिणाम:
संगठन सिद्धांत में इस प्रयोग को ऐतिहासिक रूप से ‘मील का पत्थर’ माना जाता है क्योंकि इस प्रयोग के फलस्वरूप यांत्रिक विचारधारा को धक्का लगा और उसकी लोकप्रियता कम हो गयी । इन प्रयोगों ने सिद्ध किया कि मनुष्य एकांगी प्राणी नहीं है । मनुष्य अपने ढंग से पर्यावरण के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं ।
अतः पर्यावरण पक्ष को उपेक्षित नहीं किया जा सकता जो महत्वपूर्ण परिणाम थे इस प्रकार हैं:
1. मायो तथा उसके दल ने ‘राबर्ट ओवन’ की उस अवधारणा को फिर से जीवित किया जिसमें उसने मशीनों से ज्यादा श्रमिकों के ध्यान की बात की थी ।
2. मायो ने माना कि काम से प्राप्त होने वाला संतोष काफी हद तक मजदूर समूह के अनौपचारिक सामाजिक बनावट पर निर्भर करता है ।
3. मायो ने माना कि सुपरवाइजर को एक अच्छी भूमिका निभाने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए जिससे अपने नीचे काम करने वालों के प्रति निजी रुचि ले सके और अपना दायित्व पहले से अच्छा निभाए ।
4. मायो ने देखा कि मजदूर को अपनी जरूरतों के बारे में कंपनी के अधिकारियों को खुलकर बताने, भय बिना आपस में मिलने-जुलने के लिए प्रेरित करना चाहिए ।
5. उत्पाद बढाना निरीक्षण की शैली से बहुत नजदीक से जुडा हुआ है । अतः निरीक्षण, उत्साह और उत्पादकता के बीच यह अंतर संबंध मानवीय संबंध आंदोलन की आधारशिला बन गई । प्रयोग की इस कडी को ‘महान रोशनी’ के नाम से जाना जाता है क्योंकि औद्योगिक संबंधों के नए क्षेत्रों पर प्रकाश पडा ।
3. मानवीय व्यवहार और भावनाएं: साक्षात्कार अध्ययन (1928-31) [Human Behavior and Emotions: Interview Studies (1928-31)]:
1928 में मानवीय व्यवहार और भावनाओं पर एक विशेष अध्ययन प्रारंभ किया गया । मजदूरों से प्रबंध की नीतियों और कार्यक्रमों, काम करने के माहौल, उनके मालिकों का उनके साथ कैसा व्यवहार है आदि के बारे में अपनी पसंद और नापसंदगी बतलाने को कहा । इसके लिए साक्षात्कार पद्धति का अनुसरण किया गया ।
इस अध्ययन में मजदूरों ने अपनी बातें खुलकर शोध दल के सामने कही और अपने ‘दिल का गुबार’ निकाला । कुछ ही दिनों में श्रमिकों के व्यवहार में परिवर्तन आया । हालांकि कोई सुधार नहीं किया गया था लेकिन श्रमिकों की शिकायत सुनने से ही यह माहौल परिवर्तित हुआ था क्योंकि श्रमिकों को अब लगने लगा था कि वो भी प्रबंध व्यवस्था में शामिल हैं ।
21,126 श्रमिकों का साक्षात्कार लेने के बाद उनकी शिकायतों का विश्लेषण किया गया और पाया गया कि तथ्यों और शिकायतों के बीच कोई रिश्ता नहीं है ।
शोध दल ने निष्कर्ष निकाला कि यहां दो तरह की शिकायतें थी:
1. प्रत्यक्ष एवं भौतिक शिकायतें
2. छिपी हुई एवं मनोवैज्ञानिक शिकायतें ।
दल ने महसूस किया कि पारिवारिक त्रासदी, बीमारी आदि व्यक्तिगत समस्याओं में श्रमिक उलझे रहते हैं जिससे उद्योग में उसकी कम रुचि होती है । मायो ने इसे अपने प्रारंभिक शोध में (निराशाजनक स्वप्न) कहा है ।
परिणाम:
शोध के बाद जो निष्कर्ष निकले वे इस प्रकार थे:
1. श्रमिकों ने कंपनी की समस्याओं पर श्रमिकों से जानकारी प्राप्त करने की विधि की सराहना की । उनका विचार था कि वे समीक्षात्मक अमूल्य सुझाव दे सकते हैं ।
2. पर्यवेक्षकों में भी परिवर्तन आया क्योंकि शोध टीम ने उनके काम को बहुत नजदीक से देखा और अधीनस्थ लोगों को स्वतंत्रतापूर्वक बात करने की अनुमति दी गई ।
3. शोध दल ने यह महसूस किया कि स्वयं उन लोगों ने अपने साथियों के साथ व्यवहार करने और उन्हें समझाने की क्षमता प्रदान कर ली है ।
4. बैंक वायरिंग प्रयोग: सामाजिक संगठन (1931-32) [Bank Wiring Experiment: Social Organization (1931-32)]:
इस शोध में टेलीफोन बनाने वाले श्रमिकों के समूह की क्रियाओं का अध्ययन किया गया । अंतिम चरण में स्वाभाविक परिस्थितियों में अपना कार्य कर रहे श्रमिकों के समूह का अवलोकन करना था । शोध दल के अवलोकन के लिए तीन समूह चुने गये जिनके काम अपने आप में एक-दूसरे से मिलते थे । टेलीफोन विभाग के ये तीन काम थे- सोल्डर लगाना, टर्मिनल लगानी और तार लगाना । इसे बैंक वायरिंग प्रयोग के नाम से जाना जाता है ।
वेतन समूह प्रोत्साहन योजना के तहत था जिसमें सदस्यों को कुल समूह के उत्पादन के आधार पर वेतन दिया जाता था ।
श्रमिकों का स्पष्ट मानक उत्पादन था जो प्रबंध के लक्ष्यों से कम था । समूह अपनी मानक योजना के अनुसार उत्पादन घटाने या बढाने नहीं देते थे हालांकि वे उत्पादन बढाने में सक्षम थे लेकिन उत्पादन स्थिर रखने के लिए उत्पादन दर क्षमता से कम रखते थे ।
उनमें एकता थी और अपने समूह की एकता लिए कुछ व्यवहारिक नियम थे जो निम्न हैं:
1. किसी को बहुत ज्यादा काम नहीं करना चाहिए अगर ऐसा करेगा तो वह ‘रेट बस्टर’ माना जाएगा ।
2. किसी को कम काम नहीं करना चाहिए अगर ऐसा करेगा तो वह ‘चेलटर’ माना जाएगा ।
3. किसी को सुपरवाइजर से अपने साथी के बारे में बुरी बात नहीं कहनी चाहिए ऐसा करेगा तो ‘स्क्वीलर’ कहलाएगा ।
4. किसी को सामाजिक दूरी नहीं रखनी चाहिए और काम के तरीके से पेशे नहीं आना चाहिए । उदाहरण-अगर इंस्पेक्टर है तो उसे इस तरह का व्यवहार नहीं करना चाहिए ।
मायो और उसके हार्वर्ड दल ने पता लगाया कि दल के व्यवहार का प्रबंध या संयंत्र की सामान्य आर्थिक परिस्थितियों से कुछ लेना-देना नहीं है ।
श्रमिकों ने अतिरिक्त अधिकारियों जैसे- ‘कुशलता अधिकारी’ और ‘प्रोद्योगिक विदो’ के दखल को अपने काम में व्यवधान माना । उनका मानना था कि विशेषज्ञ कुशलता के तर्क को मानते हैं जो समूह की गतिविधियों को सीमित रखते हैं जिससे उनका सामाजिक व्यवहार नहीं बन पाता है ।
परिणाम:
1. मायो तथा उसके सहयोगियों ने निष्कर्ष निकाला कि किसी को भी उद्योग के तकनीकी और आर्थिक पहलुओं पर जोर देते समय संगठन के मानवीय पक्ष को नहीं भूलना चाहिए ।
2. प्रबंध को मानवीय परिस्थितियों का सामना करना, श्रमिकों का संप्रेषण करना, उनका नेतृत्व करना और उन्हें प्रोत्साहन करना आना चाहिए ।
3. मायो ने सुझाया कि अधिकारी की अवधारणा विशेषज्ञता की बजाय ‘सहयोग’ विकसित करने वाले सामाजिक कौशलों पर आधारित होनी चाहिए ।
5. उद्योगों में अनुपस्थितिवाद 1943 [Absenteeism in Industries 1943]:
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान मायो को एक अजीब समस्या का सामना करना पड़ा । हवाई जहाज के पुर्जे बनाने वाली कंपनी में मजदूरी की अनुपस्थिति से संबंधित समस्या थी । दो कंपनियों में यह अनुपस्थिति 70 प्रतिशत से अधिक थी ।
अतः मायो ने हार्थोन अध्ययन के अनुभव के आधार पर पता लगाया कि एक कंपनी जिसमें अनुपस्थिति कम है या ना के बराबर है उसमें श्रमिकों का एक सामाजिक माहौल तैयार हो गया था क्योंकि वहां वेतन सामूहिक वेतन योजना के अंदर दिया जाता था । यहां पर एक अनौपचारिक नेता बन गया था जो एकता बनाए रखता था ।
जबकि बाकी दो संगठनों का ऐसा सामाजिक अनौपचारिक माहौल तैयार नहीं हो सका था इसीलिए वहां अनुपस्थिति अधिक रहती थी ।
परिणाम:
मायो ने परिणामस्वरूप यह बताया कि अनौपचारिक संगठनों का कंपनी में भाग लेना बहुत जरूरी है और प्रबंध को श्रमिकों से मानव की तरह व्यवहार करना चाहिए ना कि मशीन के पुर्जे की तरह । प्रबंध को मानवीय संबंधों का विकास करना चाहिए और औद्योगिक श्रमिकों के बीच बेहतर परिस्थिति बनाने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए ।
आलोचनात्मक समीक्षा:
मायो और उसके सहयोगियों द्वारा किए गये लंबे 5 वर्षों के प्रयोगों का संगठन जगत में बहुत महत्व है और मानव संबंधी अवधारणा का सूत्रपात भी इसी से होता है लेकिन इस पर भी कुछ आरोप संरचनावादियों ने लगाए है जो इस प्रकार हैं:
i. यूनियन विरोधी:
लोरिन बारिटज और अन्य ने मायोवादियों की आलोचना करते हुए उन्हें यूनियन विरोधी और प्रबंध के चमचे कहा है क्योंकि मायोवादी अपने सिद्धांत में यूनियन के प्रतिनिधि को मानवीय संबंध से लैस सुपरवाइजर की जगह स्थापित करने का प्रयास करती है जो असंभव-सा प्रतीत होता है ।
ii. गलत शोधों के परिणाम:
आलोचकों की मान्यता है कि मायो और उसके सहयोगियों ने जितने भी निष्कर्ष निकाले हैं वह गलतियों से भरे शोधों के उड़ते-उड़ते निष्कर्ष है इनमें तथ्य नाम की कोई चीज नहीं है ।
iii. पांच या छ: के स्पेल से सामान्यीकरण नहीं हो सकता:
कारे जैसे आलोचकों ने कहा हार्थोन समूह ने पहले अध्ययन के लिए ‘सहकारी’ लड़कियों को चुना जो शोध में भाग लेने को तैयार थी और इस तरह यह शोध ‘व्यर्थ’ है क्योंकि पाँच या छ: का स्पेल लेकर सामान्यीकरण नहीं किया जा सकता और इसी कारण प्रमाणों और निष्कर्षों के बीच अंतर है । कारे ने यह भी आरोप लगाया है कि इन शोधों में वैज्ञानिक आधार का अभाव है ।
iv. आर्थिक नजरिए का अभाव:
पी॰एफ॰ ट्रकर ने मायो और उसके शोध दल पर यह आरोप लगाया है कि उन्होंने अपने सिद्धांत में आर्थिक नजरिए को अनदेखा किया है और केवल अंतर्वैयक्तिक संबंधों पर बल रखा है ।
v. प्रबंधकों का हस्तक्षेप:
आलोचकों का कहना है कि मायो व्यक्ति के निजी विचारों और निजी जीवन पर मालिक के पिता रूपी प्रभुत्व को बढ़ावा देते हैं ।
vi. टकराव का अभाव:
मायो के दर्शन में टकराव की कोई जगह नहीं है क्योंकि वह व्यक्तिगत और सामूहिक हितों का प्रशासनिक विशिष्ट वर्ग के नियंत्रण के माध्यम से संगठनात्मक समरसता प्राप्त करते हैं । आलोचक मानते हैं कि टकराव रहित परिस्थिति में सफलता नहीं मिल सकती क्योंकि हर मानवीय परिस्थिति में टकराव और तनाव अवश्य रहता है । टकराव रहित समाज के आदर्श से चिपके रहने के बजाय उद्देश्य राह होना चाहिए कि उनके समाधान के स्वस्थ तरीके हों ।
vii. बेन्डिक्स और फिशर ने यह तर्क दिया है कि समाजशास्त्रीय के तौर पर मायो काफी हद तक विफल इसीलिए हुए क्योंकि वे अपने वैज्ञानिक कार्य की नैतिक पूर्वधारणाओं को ठीक तरह से परिभाषित नहीं कर पाये ।
viii. सेल मायो और उसके सहयोगियों द्वारा दिए गए मानवीय संबंध सिद्धांत के कटु आलोचक थे । वह हार्वर्ड दल पद्धति को दोषपूर्ण मानते थे ।
ix. एकांगी दृष्टिकोण:
आलोचकों की मान्यता है कि यह दृष्टिकोण एकाकी है क्योंकि इसमें अनौपचारिक संगठन की स्थापना की गई और औपचारिक संगठन की मूल मान्यताओं को भुला दिया गया है ।
x. रीनहार्ड बेण्डिक्स और लायड फिशर ने कहा है कि, ”औद्योगिक युद्ध इतना सरल नहीं है कि उसे मानवीय संबंधों जैसे कमजोर दृष्टिकोण से सुलझाया जा सके ।”
xi. संरचनाओं का मनुष्य के व्यवहार पर जो प्रभाव पड़ता है उसे अनदेखा किया गया है ।
xii. रिचर्डस एवं नीलैण्डर – ”यह दृष्टिकोण मामूली आनुभविक एवं वर्णनात्मक सूचना के ढेर के अतिरिक्त कुछ नहीं है ।”
xiii. अंत में पीटर सेल्फ ने इन सब कमियों को इस प्रकार व्यक्त किया है कि, ”मानवीय संबंधों का सिद्धांत एक ही दिशा में वर्णन करने वाला सिद्धांत है और टेलर के सिद्धांत का ही नया प्रतिरूप है ।”
मानव-संबंध विचारधारा की उपलब्धियां (Humanistic Ideological Achievements):
उपर्युक्त त्रुटियों के बावजूद इस सिद्धांत के महत्व की उपेक्षा नहीं की जा सकती । केवल कट्टर विरोधी ही इस बात से इंकार कर सकते हैं कि बढ़ा हुआ संचार तथा हिस्सेदारी एवं सामाजिक पुरस्कार वेतन में वृद्धि न करने पर भी मजदूरों के जीवन और कार्य को सुधारने में सहायक बनाते हैं । वास्तव में मानव-संबंधों का दृष्टिकोण उनके आर्थिक हितों का बलिदान किए बिना भी मजदूर की सामाजिक स्थिति को सुधार सकता है ।
संक्षेप में मानवीय संबंध सिद्धांत की प्रमुख उपलब्धियां अग्रलिखित बिन्दुओं में हैं:
1. इसने बड़े हुए संगठनों में मजदूरों की बढ़ती अलगाव की भावना को कम किया क्योंकि मजदूर को पहल करने का मौका दिया गया है ।
2. परम्परावादी संरचनात्मक और पदसोपान मशीनी दृष्टिकोण के विरुद्ध पहली आवाज है ।
3. मानवीय संबंध सिद्धांत ने एक सामाजिक वातावरण का विकास किया है जिसमें मजदूर सहयोग और मित्रता के वश में कार्य करता है जबकि परंपरावादी संगठन सिद्धांत नियम-प्रधान, दंडप्रधान थे और नकारात्मक संवेदनशीलता को बढ़ावा देते थे जिससे संगठनों में असहयोग, मतभेद और झगडे बढ़ते थे ।
4. चौथी उपलब्धि को कार्ल रोजर्स ने बताया है कि ”मानवीय संबंधों का सिद्धांत वो पहला सिद्धांत है जिसके अनुरूप प्रत्येक व्यक्ति व्यवसायिक और आध्यात्मिक दोनों ही दृष्टियों से आगे बढ़ाना चाहता है ।”
मानवीय संबंध-सिद्धांत का प्रभाव सभी आधुनिक संगठन-सिद्धांतों पर पड़ता है । डग्लस मैक्ग्रेगर, क्रिस आरग्रिस, रैनसिस लिकर्ट इत्यादि लेखक मानवीय संबंधों के सिद्धांत से प्रभावित होकर आधुनिक औद्योगिक मानवतावाद को जन्म देते हैं जो कर्मचारियों के लिए कार्य के वातावरण की महत्वपूर्ण भूमिका बताते है और साथ ही कल्याणकारी अर्थशास्त्र के ज्ञान को प्रत्येक प्रशासन के लिए सबसे अच्छा ज्ञान मानते हैं ।
निष्कर्ष:
उपरोक्त के आधार पर हम कह सकते हैं कि संगठनात्मक प्रशासन को मायो का योगदान आधुनिक संबंधों की महान खोज में गिना जा सकता है क्योंकि पहली बार ऐसा हुआ कि किसी ने वैज्ञानिक प्रबंध युग की पारम्परिक पद्धति से हटकर अन्य दृष्टिकोण से औद्योगिक श्रमिकों की समस्या को समझने का प्रयास किया ।
संगठन में मानव संबंधों के साथ-साथ मायो ने मालिक-नौकर संबंध, श्रमिकों की स्थिरता, पर्यवेक्षण आदि का भी आलोचनात्मक अध्ययन किया बेशक ये शोध उनके साथियों द्वारा भी किए गये हैं लेकिन उनके प्रेरणास्रोत भी मायो ही थे जल्दी ही हार्थोन प्रयोग प्रशासनिक चिंतन का ऐतिहासिक स्तंभ बन गया ।
मायो का योगदान नौकरशाही के लिए भी काफी उपयोगी साबित हुआ । निष्कर्षत: हार्थोन प्रयोगों का महत्व उन अनौपचारिक संगठनों की खोज है जिन्हें आज भी सभी संगठनों में पाया जाता है ।