Read this article in Hindi to learn about:- 1. राजस्थान में लोक प्रसाशन का प्रारम्भ (Introduction to Public Administration in Rajasthan) 2. राजस्थान में स्थानीय ग्रामीण स्वशासन (Local Rural Self-Government in Rajasthan) 3. राजस्थान पंचायती राज संशोधन अधिनियम, 2007 (Rajasthan Panchayati Raj Amendment Act, 2007).
राजस्थान में लोक प्रसाशन का प्रारम्भ (Introduction to Public Administration in Rajasthan):
राज्य निर्माण के पहले से ही राजस्थान की कुछ रियासतों में ग्राम पंचायतें कार्यरत थीं । राजस्थान राज्य की निर्माण प्रक्रिया के साथ ही यहां स्थानीय शासन संस्थाओं की स्थापना के प्रयास भी शुरू हो गये थे ।
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1948 से 1994 के प्रयासों को बिंदुवार नीचे दिया गया है:
i. ”संयुक्त राजस्थान” की स्थापना (1948) के कुछ दिनों पश्चात पंचायत राज अध्यादेश, 1948 लागू हुआ ।
ii. 1949 में ”पंचायत विभाग” गठित हुआ जिसका सर्वोच्च मुख्यिा ”मुख्य पंचायत अधिकारी” कहलाता था । लेकिन इस समय पंचायतों के लिये क्षेत्रवार 7 विभिन्न कानून थे ।
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iii. 1953 में राजस्थान संघ के अंतर्गत ”राजस्थान पंचायत अधिनियम, 1953” दो उद्देश्यों से लागू किया गया:
(1) राज्य भर में पंचायती कानून में एकरूपता लाना और
(2) केंद्र के सामुदायिक विकास कार्यक्रम (1952) को लागू करने हेतु पंचायतों का पुनर्गठन और स्थापना करना ।
iv. 1956 में ”राजस्थान” का निर्माण पूरा हुआ । 1958 में राज्य सरकार ने समस्त राज्य में लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण व्यवस्था स्थापित करने का फैसला लिया ।
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v. केंद्रीय योजना आयोग द्वारा नियुक्त बलवंतराय मेहता समिति (1956) के प्रतिवेदन (1957) के अनुरूप राजस्थान ने ”राजस्थान पंचायत समिति और जिला परिषद अधिनियम” (9 सितंबर, 1959) पारित किया ।
vi. पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 2 अक्टूबर, 1959 को राजस्थान के नागौर में देश की पहली ग्राम पंचायत का विधिवत उद्घाटन किया । इस प्रकार देश में वास्तविक पंचायत राज की शुरूवात करने वाला पहला राज्य राजस्थान था यद्यपि इसे पूरे राज्य में लागू करने में वह आंध्रप्रदेश से पिछड़ गया ।
vii. उक्त अधिनियम के तहत राजस्थान में त्रिस्तरीय पंचायती राज्य लागू हुआ था:
(1) ग्राम पंचायत- ग्राम स्तर पर,
(2) पंचायत समिति- ब्लाक स्तर पर,
(3) जिला परिषद- जिला स्तर पर ।
viii. संसद द्वारा 1992 में 73वां और 74वां संशोधन पारित किये गये, जो 1993 में अधिनियमित और लागू हुए । 73वां संशोधन पंचायत राज (ग्रामीण स्वशासन) और 74वां संशोधन नगरीय निकायों (नगरीय स्वशासन) से संबंधित है ।
तदनुरूप राजस्थान ने भी ”राजस्थान पंचायत राज अधिनियम, 1994” पारित किया जो 23 अप्रैल, 1994 से राज्यभर में लागू है । इसी तरह ”राजस्थान नगरपालिका अधिनियम, 1994” पारित और लागू किया गया ।
इस प्रकार राजस्थान में स्वशासन की दो तरह की संस्थाएं कार्यरत हैं:
a. ग्रामीण स्वशासन संस्थाएं- इनमें ग्राम पंचायत (ग्राम सभा सहित), पंचायत समिति और जिला परिषद आती है ।
b. नगरीय स्वशासन संस्थाएं- इनके अंतर्गत नगरपालिका, नगरपरिषद और नगर निगम आते हैं ।
राजस्थान में स्थानीय ग्रामीण स्वशासन (Local Rural Self-Government in Rajasthan):
संवैधानिक प्रावधानों (73वें संशोधन से लागू) के अधीन रहते हुए राजस्थान सरकार द्वारा पारित ”राजस्थान पंचायत राज अधिनियम, 1994” के द्वारा राज्य में त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली लागू की गयी ।
इसके संगठन, कार्य, शक्तियों का वर्णन निम्नानुसार है:
1. ग्राम पंचायत (Village Panchayat):
एक या अधिक ग्रामों को मिलाकर एक ग्राम पंचायत का गठन किया जाता है । तदनुरूप 3000 तक की जनसंख्या वाली ग्राम पंचायतों में 9 वार्ड और 9 पंच होंगे । 3000 से अधिक जनसंख्या होने पर प्रति 1000 और उसके अंश पर दो अतिरिक्त पंच होंगे । उदाहरण के लिये किसी ग्राम पंचायत की जनसंख्या 4000 है तो 11 पंच और 4800 है तो 13 पंच होंगे । राजस्थान में 9183 ग्राम पंचायतें (2003 की स्थिति में) कार्यरत है । सरपंच ग्राम पंचायत का प्रमुख होगा ।
चुनाव:
प्रत्येक वार्ड से एक पंच और संपूर्ण ग्राम पंचायत का एक सरपंच प्रत्यक्ष मतदान द्वारा चुने जाते हैं । उपसरपंच का चुनाव पंचगण अपने मध्य से करते हैं ।
सरपंच और उपसरपंच (Sarpanch and Sub-District):
ग्राम पंचायत के सरपंच का चुनाव ग्राम के सभी मतदाताओं द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है । सरपंच के लिए शिक्षित होना आवश्यक है, किंतु यदि वह महिला है तो उसे इस अनिवार्यता में छूट दी गई है । सरपंच पंचायत का सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति होता है ।
ग्राम पंचायत की बैठकें बुलाने, बैठक में की जाने वाली कार्यवाही का नियंत्रण रखने व ग्राम पंचायत के प्रस्तावों को क्रियान्वित करने का कार्य उसी के द्वारा किया जाता है । सरपंच की अनुपस्थिति में उपसरपंच यह सब कार्य करेगा ।
प्रशासनिक अधिकारी (Administration Officer):
ग्राम पंचायत का प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी ”सचिव” होता है ।
समितियां (Committees):
ग्राम पंचायत के कार्यों को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए दो उप-समितियों की स्थापना की गयी है:
(अ) कृषि एवं उत्पादन उप-समिति जो कृषि के विकास, भू-संरक्षण, सिंचाई, खाद एवं बीज तथा पशुपालन से संबंधित कार्य करती है ।
(ब) कल्याण उप-समिति जो सामुदायिक संगठन, युवक मण्डल, महिला मंडल, मातृत्व एवं शिशु कल्याण, शिक्षण संस्थाओं पुस्तकाल्य एवं वाचनालय का संचालन, जन-स्वास्थ्य एवं सफाई, गृह निर्माण एवं यातायात की सुविधा जुटाने संबंधी कार्य करती है ।
आय के साधन (Means of Income):
ग्राम पंचायत के कार्यों के संचालन के लिए आय के निम्नांकित साधन होंगे:
(1) पंचायतों द्वारा भूमि के लगान एवं भवनों पर लगाए गए करों से प्राप्त राशि,
(2) किसी मुकदमे के संबंध में राजीनामा होने से प्राप्त राशि,
(3) किसी अदालत की आज्ञा से ”गांव निधि” में जमा राशि,
(4) नजूल की जमीन के किराए से प्राप्त राशि,
(5) ऋण या दान के रूप में प्राप्त राशि,
(6) पंचायत के कर्मचारियों द्वारा गोबर, खाद, कूड़े तथा मृत पशुओं की लाशें बेचने से प्राप्त राशि,
(7) शासन, जिला परिषद अथवा किसी अन्य संस्था से सहायता के रूप में प्राप्त धनराशि । सामान व पशुओं की चुंगी, वाहन कर, यात्री कर, पेयजल कर, वाणिज्य फसलों पर कर, आदि के द्वारा भी ग्राम पंचायतें अपनी आय कर सकती हैं ।
ग्राम पंचायतों के विभिन्न कार्यों को देखते हुए उनकी आय के उपयुक्त साधन काफी कम हैं । अत: इन्हें बढ़ाने की आवश्यकता है ।
2. पंचायत समिति (Panchayat Committee):
प्रत्येक ब्लाक (खंड) स्तर पर एक पंचायत समिति होती है । राजस्थान में 237 (2003 की स्थिति) पंचायत समितियां हैं । एक लाख तक की जनसंख्या वाली पंचायत समितियों में 15 सदस्यों का प्रावधान है । इससे अधिक प्रत्येक 15 हजार या उसके अंश पर 2 अतिरिक्त सदस्य होंगे ।
उदाहरणार्थ किसी पंचायत समिति की संख्या 80 हजार है तो वहां 15 सदस्य होंगे, 1 लाख है तो वहां भी 15 सदस्य होंगे लेकिन 1 लाख 15 हजार है तो 17 सदस्य और 1 लाख 40 हजार है तो वहां (15+15+10) की अतिरिक्त जनसंख्या हेतु (2+2+2) अर्थात 6 अतिरिक्त सदस्य होकर कुल 21 सदस्य होंगे । पंचायत समिति को लगभग समान जनसंख्या वाले वार्डों में बांटा जाता है । सभी सदस्यों का निर्वाचन क्षेत्र के व्यस्क मतदाताओं द्वारा सीधे मतदान से होता है ।
प्रधान और उपप्रधान (Head and Deputy Prime):
पंचायत समिति का प्रमुख ”प्रधान” होता है और एक उपप्रधान भी होता है जो प्रधान की अनुपस्थिति में उसके दायित्वों का निर्वाह करता है । प्रधान और उपप्रधान दोनों सदस्यों के द्वारा अपने मध्य से ही चुने जाते हैं ।
सहयोवन (Co-Habitation):
पंचायत समिति के क्षेत्र में आने वाले विधायक इसकी बैठकों में भाग ले सकते हैं लेकिन मतदान नहीं कर सकते ।
मुख्य कार्यपालन अधिकारी (Chief Executive Officer):
पंचायत समिति के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी के रूप में मुख्य कार्यपालन अधिकारी की भूमिका विकास कार्यों के क्रियान्वयन में अत्यधिक महत्वशाली है । मुख्यकार्यपालन अधिकारी की भर्ती लोक सेवा आयोग द्वारा या अधीनस्थ अधिकारियों से पदोन्नति द्वारा की जाती है ।
आय के साधन (Means of Income):
ये मुख्य रूप से राज्य के वित्तीय अनुदान पर निर्भर है । विभिन्न केंद्रीय और राज्य की योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु इन्हें केंद्र और राज्य से राशि भी मिलती है । इसके अतिरिक्त वे भूराजस्व पर सरचार्ज (अधिकतम भू: राजस्व का 50 प्रतिशत) विभिन्न व्यवस्थाओं पर प्राथमिक शिक्षा हेतु कर लगा सकती है । वह मेलों से भी आय प्राप्त कर सकती है ।
3. जिला परिषद (District Council):
राजस्थान में जिला स्तर पर जिला-परिषद की स्थापना की गयी है जो पंचायत राज का सर्वोच्च स्तर है । राज्य के समस्त 32 जिलों में जिला परिषदें कार्यरत हैं । जिला परिषदों में 4 लाख की जनसंख्या तक 17 सदस्यों का प्रावधान है । प्रत्येक 1 लाख तक की अतिरिक्त संख्या पर 2 सदस्य जुड़ेगें ।
उदाहरणार्थ 5 लाख की जनसंख्या वाली जिला परिषद में 19 सदस्य होंगे । ये सदस्य लगभग समान जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करें, इस प्रकार से वार्डों का विभाजन होता है । सभी सदस्य प्रत्यक्ष मतदान द्वारा व्यस्क मताधिकार के आधार पर चुने जाते हैं ।
जिला प्रमुख और उप प्रमुख (District Head and Deputy Chief):
जिला परिषद का सर्वोच्च पदाधिकारी जिला प्रमुख होता है । सदस्यगण अपने मध्य से ही एक जिला प्रमुख और एक जिला उप प्रमुख का चुनाव करते हैं ।
सहयोजन (Co-Ordination):
जिले के विधायक, सांसद जिला परिषद के सदस्य होते हैं लेकिन वे मात्र बहस में भाग लेते हैं, मतदान में नहीं ।
जिला परिषद के कार्य (Work of the Zilla Parishad):
i. जनपदों से प्राप्त योजनाओं का समन्वय, सम्मेलन ।
ii. जनपदों को सहायता/मार्गदर्शन ।
iii. परिवार नियोजन, ग्रामीण विकास/रोजगार योजनाओं का क्रियान्वयन ।
iv. डीआरडीए पर नियंत्रण/पर्यवेक्षण ।
v. निराश्रितों, अशक्तों, युवा महिलाओं के लिए कार्यक्रम ।
vi. खेलकूद की गतिविधियों का संचालन ।
आय के साधन (Means of Income):
जिला परिषद भी अपनी आय के लिये मुख्यत: राज्य के अनुदान पर निर्भर हैं । उन्हें केंद्र और राज्य से योजना व्यय भी मिलता है । इसके अलावा जिला परिषद मेलों के लिए लाइसेंस फीस, पेयजल एवं सिचाई हेतु पेयकर, ग्रामीण क्षेत्रों में विक्रय की गई संपत्ति की स्टांप डयूटी पर 5 प्रतिशत सरचार्ज लगा कर और कृषि उपज की मार्केट फीस पर 0.5 प्रतिशत सरचार्ज लगा कर अपनी आय जुटा सकती है ।
पंचायत राज संस्थाओं के प्रमुखों अर्थात् सरपंच, प्रधान एवं जिला प्रमुखों को अविश्वास प्रस्तावों द्वारा हटाया जा सकता है । ऐसा प्रस्ताव एक-तिहाई सदस्यों द्वारा लाया जा सकता है । इसके लिए 15 दिन पूर्व नोटिस देना आवश्यक है । ग्राम पंचायत की बैठक में उपस्थित व मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित होने पर ही इन्हें हटाया जा सकता है ।
किंतु कोई भी अविश्वास का प्रस्ताव पारित न हो सके तो एक वर्ष तक पुन: ऐसा प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता । कर्तव्यों की उपेक्षा एवं दुराचार करने पर राज्य सरकार भी उन्हें हटा सकती है । हटाए गए व्यक्ति पुन: 5 वर्ष तक चुनाव लड़ने के लिए पात्र नहीं होंगे ।
राजस्थान पंचायती राज संशोधन अधिनियम, 2007 (Rajasthan Panchayati Raj Amendment Act, 2007):
मई, 2007 में राजस्थान पंचायती राज अधिनियम की धारा 37 की उप धारा 11 में संशोधन किया गया है । इस अध्यादेश के तहत अब सरपंच, प्रधान तथा जिला प्रमुख को हटाने के लिए तीन-चौथाई बहुमत को अनिवार्य किया गया है ।
अब तक ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद में निर्वाचित प्रतिनिधि को हटाने के लिए दो-तिहाई बहुमत का प्रावधान था । उपजिला प्रमुख, उप-प्रधान तथा उप-सरपंच को भी अब तीन-चौथाई बहुमत से ही अविश्वास प्रस्ताव पारित कर हटाया जा सकेगा ।