Read this article in Hindi to learn about the constitutional development and legislature of Japan.
जापान का संवैधानिक विकास (Constitutional Development of Japan):
निप्पो या निहोन (उगते सूरज का देश) के स्थानीय नाम से मशहूर जापान विश्व के प्रगतिशील राष्ट्रों में अग्रणी और विकसित राष्ट्रों के समूह जी-8 का सदस्य है । लम्बे समय तक शोगुन की परंपरागत व्यवस्था में जकड़ा जापान 1868 में मेइजी व्यवस्था की पुर्नस्थापना के बाद शीघ्र ही आधुनिक राज्य के रूप में विकसित हो गया ।
निरंकुशता, अधिनायकवाद और राजतंत्र के प्रभाव साथ प्रजातंत्रीय तत्वों के मिश्रण पर आधारित मेइजी संविधान सम्राट मुत्सुहितों की प्रेरणा था । यह लिखित, संक्षिप्त तथा कठोर संविधान था जिसमें 76 अनुच्छेद एवं 7 अध्याय थे ।
ADVERTISEMENTS:
मेकअर्थर या शोवा संविधान (1947 से अब तक):
द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-45) के अंतिम समय में जापान ने मित्र राष्ट्रों (अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन) के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया । जापान पर मित्र राष्ट्रों ने कब्जा कर लिया और उनके सेनापति डगलस मेकअर्थर (अमेरिकी सेना का जनरल) ने एक नया संविधान प्रजातांत्रिक सिद्धांतों के आधार पर निर्मित करवाया ।
यह संविधान मित्र राष्ट्रों की ओर से जर्मनी में की गई ”पोट्सडम घोषणा” पर आधारित था । घोषणा के तहत सैनिकवाद तथा शस्त्रीकरण के स्थान पर लोकतांत्रिक तत्वों को शामिल करते हुए सम्राट की शक्तियां जनता में निहित कर दी गई ।
1946 में जापान की विधायिका द्वारा पारित इस संविधान को सम्राट हीरोहितो ने 1946 में ही स्वीकृति प्रदान कर दी और 3 मई 1947 से यह लागू हो गया । इसे शोवा संविधान भी कहा जाता है । शोवा सम्राट हिरोहितो के शासन की उपाधि है जिसका अर्थ है ”कांतिमान शांति” ।
ADVERTISEMENTS:
जापान के शोवा संविधान की विशेषताएं हैं:
1. लिखित संविधान:
जापानीय संविधान लिखित दस्तावेज है जिसमें 11 अध्यायों के अंतर्गत 103 अनुच्छेद हैं । बीस पृष्ठों में सिमटे इस संविधान की भाषा सरल और स्पष्ट है ।
ADVERTISEMENTS:
2. कठोर संविधान:
अमेरिकी संविधान की भांति जापानीय संविधान भी प्रकृति में कठोर है । इसमें सामान्य कानून निर्माण की प्रक्रिया द्वारा आसानी से संशोधन नहीं किया जा सकता अपितु इसके लिये विशेष दुरूह प्रक्रिया अपनायी जाती है जो अनुच्छेद 96 में दी गयी है ।
तदनुरूप संविधान में संशोधन का प्रस्ताव डायट के किसी भी सदन में लाया जा सकता है जिसे दोनों सदनों द्वारा क्रमशः दो तिहाई बहुमत द्वारा पारित करना होता है । डायट की स्वीकृति के पश्चात यह प्रस्ताव लोक निर्णय या जनमत के लिये आम जनता के बीच आता है ।
जनता के बहुमत से यदि संविधान संशोधन को स्वीकृति मिल जाती है तो सम्राट उसे लागू करता है । जापानी संविधान में दुरूह प्रक्रिया के कारण अब तक एक भी संशोधन नहीं हो पाया है । इसका दूसरा कारण यह भी है कि संविधान काफी पूर्णता लिये हुए है ।
3. संविधान की सर्वोच्चता और न्यायिक पुनरावलोकन:
संविधान स्वयं ही अपनी सर्वोच्चता की घोषणा करता है । संविधान का प्रथम अनुच्छेद सम्राट को केवल राज्य का प्रतीक तथा जनता की एकता का पर्याय घोषित करता है । समस्त सरकारी कानूनों, नीतियों, निर्णयों को संविधान के अनुकूल होना अनिवार्य है ।
अन्यथा संविधान का अनुच्छेद 81 सर्वोच्च न्यायालय को अधिकृत करता है कि वह ऐसे कानूनों, निर्णयों को अवैध घोषित कर दे जो संविधान से प्रतिकूलता रखते हों । अमेरिका में सर्वोच्च न्यायालय न्यायिक समीक्षा की अपनी शक्ति संविधान से प्राप्त नहीं करता जबकि जापान के सर्वोच्च न्यायालय को यह शक्ति सीधे संविधान से मिलती है ।
4. एकात्मक राज्य:
संविधान द्वारा जापान एकात्मक राज्य घोषित है । यहां ब्रिटेन के समान समस्त शक्तियां केंद्र में विशिष्ट मानी गयी हैं और डाइट (विधायिका) कानून द्वारा राज्यों को शक्ति सौंपती या उनसे वापस लेती है ।
5. जनता की संप्रभुता:
जापान की संप्रभुता जनता में निहित है । प्रस्तावना में कहा गया है, ”हम जापान के नागरिक, राष्ट्रीय डायट में निर्वाचित अपने प्रतिनिधियों के द्वारा कार्य करते हुए यह घोषणा करते है कि प्रभुत्व संपन्न शक्ति जनता के हाथों में है जिसकी सत्ता, जनता से प्राप्त की गई जिसकी शक्तियां प्रतिनिधियों के द्वारा प्रयोग की जाती हैं, और जिसके लाभ जनता भोगती है ।” संविधान जापान को एक संप्रभु राष्ट्र घोषित करता है जो आंतरिक और बाह्य सभी रूप से किसी के अधीन नहीं है ।
6. संसदीय प्रजातंत्र:
जी.एम.काहिन के अनुसार- ”जापान में संसदीय संस्थाओं का इतिहास, एशिया में सबसे प्राचीन है । जापान में सन् 1809 में उस समय संसद की स्थापना हो गई थी जबकि एशिया के अन्य देश साम्राज्यवाद के शिकार थे ।”
जापान की राजव्यवस्था संसदीय प्रजातांत्रिक प्रणाली पर आधारित है जो भारत और ब्रिटेन के नजदीक है ।
जापान में भी दो तरह की कार्यपालिका है:
(1) संवैधानिक या नाममात्र की कार्यपालिका जो वहां का वंशानुगत सम्राट है (ब्रिटेन के समान)
(2) वास्तविक कार्यपालिका, जो मंत्रिमंडल है । अनुच्छेद 66 के अनुसार मंत्रिमंडल सामूहिक रूप से जन प्रतिनिधि सदन के प्रति उत्तरदायी है । यह सदन अविश्वास प्रस्ताव द्वारा उसे हटा सकता है ।
(3) मंत्रिमंडल (20 सदस्यीय) का नेता प्रधानमंत्री होता है जो जन प्रतिनिधि सदन में बहुमत दल का नेता होता है ।
(4) प्रधानमंत्री विधायिका के प्रस्ताव पर सम्राट द्वारा नियुक्त किया जाता है ।
(5) प्रधानमंत्री राज्य मंत्रियों (ये केबिनेट स्तर के मंत्री ही होते है) की नियुक्ति और पदमुक्ति करता है । उनमें से अधिकांश डाइट के सदस्य होने चाहिये । लेकिन सभी का डाइट-सदस्य होना जरूरी नहीं है ।
(6) प्रधानमंत्री की सलाह पर सम्राट प्रतिनिधि सदन को भंग कर सकता है ।
7. संवैधानिक राजतंत्र:
जापान का संविधान प्रजातंत्र को अपनाते हुए भी राजतंत्र को बनाये रखता है । सम्राट की प्रभुसत्ता का अंत कर जन संप्रभुता की घोषणा की गयी है ।
(i) सम्राट राज्य का प्रमुख है, सरकार का नहीं ।
(ii) सम्राट मंत्रिमंडल के परामर्श से काम करता है ।
(iii) सम्राट पद वंशानुगत है लेकिन इसका उत्तराधिकार डाइट के प्रस्ताव द्वारा सौंपा जाता है ।
(iv) संविधान का प्रथम अनुच्छेद सम्राट को राज्य का प्रतीक मात्र तथा जनता की एकता का पर्याय घोषित करता है ।
8. मौलिक अधिकार:
अमेरिकन मॉडल पर आधारित होते हुए भी जापानी संविधान द्वारा प्रदत्त मूलाधिकार अधिक स्पष्ट और निश्चित है । अध्याय-3 के अंतर्गत अनुच्छेद 10 से 40 तक कुल 31 अनुच्छेद मात्र जनता के अधिकार और कर्तव्य से संबंधित हैं ।
ये अधिकार हैं:
(i) समानता का अधिकार
(ii) स्वतंत्रता का अधिकार
(iii) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
(iv) निजी संपत्ति का अधिकार
(v) आर्थिक अधिकार
(vi) शिक्षा का अधिकार
(vii) सांस्कृतिक अधिकार
(viii) संवैधानिक उपचार का अधिकार ।
न्यायालय को इन अधिकारों के संरक्षण का अधिकार दिया गया है । इन अधिकारों की जहां संख्या अधिक है वहीं इन्हें अपरिवर्तनीय और अलंघनीय घोषित किया गया है ।
9. स्वतंत्र न्यायपालिका:
अमेरिकी संविधान के समान जापान का संविधान भी न्यायपालिका को कार्यपालिका, विधायिका आदि के हस्तक्षेप से स्वतंत्र घोषित करता है । न्यायधीशों को अनुच्छेद-76 के अंतर्गत स्वतंत्रता देते हुए कहा गया है, ”न्यायधीश, अपने कर्तव्यों का पालन करने में पूर्णतया स्वतंत्र होंगे और केवल संविधान तथा कानून का ही पालन करेंगे ।”
न्यायाधीशों की नियुक्ति मंत्रिमंडल द्वारा होती है लेकिन उसका अनुमोदन जनमत द्वारा होता है । सर्वोच्च न्यायालय को किसी भी कानून, नीति या निर्णय की जांच करने और संविधान विरूद्ध होने पर उसे अपास्त करने का अधिकार है ।
10. युद्ध का परित्याग:
जापानी संविधान की अनूठी विशेषता है कि वह युद्ध का सदैव के लिये परित्याग करता है । अनुच्छेद-9 में पुन: कहा गया है कि, ”न्याय और व्यवस्था पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय शांति की कामना करते हुए, हम जापानी लोग, राष्ट्र के सर्वोच्च अधिकार के रूप में युद्ध का तथा अंतर्राष्ट्रीय विवादों के निपटारे के लिये बल या धमकी के प्रयोग का सदैव के लिये परित्याग करते हैं ।” लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जापान अपनी सुरक्षार्थ हथियार नहीं रखेगा । उसने शांति और विकास के लिये युद्ध की नीति को त्यागा है, आत्मरक्षा के अधिकार को नहीं ।
11. पंथ निरपेक्षता:
शोवा संविधान ने जापान को धार्मिक राज्य से धर्मनिरपेक्ष राज्य बना दिया । पहले शिंटो राजधर्म हुआ करता था जबकि अब जापान में सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार की संवैधानिक व्यवस्था है ।
12. स्वायत्त स्थानीय स्वशासन:
जापान स्थानीय स्वशासन को संवैधानिक स्वायत्तता और शक्ति प्रदान करता है । अनुच्छेद-92 से 95 तक में स्थानीय संस्थाओं को अपने अधिकार क्षेत्र में कानून प्रशासन एवं संपत्ति के प्रबंध की स्वायत्तता दी गई है । इन संस्थाओं के कार्यपालिकीय आधीकारियों, सदस्यों तथा अन्य कार्मिकों की नियुक्ति जनता द्वारा चुनावों के माध्यम से की जाती है । स्थानीय स्वशासन अधिनियम, 1947 द्वारा इन संस्थाओं को सशक्त प्रभावी और अधिकार संपन्न बनाया गया है ।
जापान की विधायिका (Japan’s Legislature):
संविधान जापान के लिये द्विसदनीय व्यवस्थापिका की स्थापना करता है जिसे ”डाइट” कहते हैं ।
डाइट के दो अंग हैं:
1. हाउस आफ कौंसलर्स (House of Councilors):
यह उच्च सदर है इसमें 252 सदस्य होते हैं । इसका कार्यकाल 6 वर्ष है । 252 में से 152 सदस्य भौगोलिक आधार पर 46 प्रिफेक्चर्स से चुने जाते हैं जबकि शेष 100 सदस्य राष्ट्रीय आधार पर । प्रत्येक मतदाता एक दो बार में दोनों तरह के प्रतिनिधियों को चुनता है । सदस्य के लिये न्यूनतम आयु 30 वर्ष निर्धारित है । वित्तीय मामलों में इस सदन को प्रतिनिधि सभा से कम अधिकार है ।
2. हाउस आफ रिप्रजन्टेटिव (House of Representative):
यह डाइट का निम्न सदन है लेकिन शक्तिशाली सदन है । इसे प्रतिनिधि सभा कहते हैं । इसके 512 सदस्यों में से 300 सदस्य निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं जबकि शेष 212 सूची प्रणाली के आधार पर आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली द्वारा चुने जाते हैं । इसमें राजनीतिक दलों को मिलने वाले मतों के अनुपात में उनके प्रतिनिधि चुने जाते हैं ।
यह प्रणाली 1996 से लागू है । प्रतिनिधि सभा का कार्यकाल 4 वर्ष होता है तथा इसके लिए 25 वर्ष आयु पूर्ण कर चुके केवल जन्मजात जापानी ही चुनाव लड़ सकते है । यह सदन अधिक शक्तिशाली है वित्त विधेयक पर इसकी स्वीकृति ही सर्वोपरी है । अविश्वास प्रस्ताव भी मात्र इसी में लाया जा सकता है ।
डाइट के सत्र:
डाइट, राज्यशक्ति का सर्वोच्च अंग है तथा कानून बनाने वाली एकमात्र संस्था है । डाइट के ‘साधारण’ ‘असाधारण’ तथा ‘विशेष’ प्रकार के अधिवेशन होते हैं । साधारण अधिवेशन 150 दिन चलता है । किसी भी सदन के 4 या अधिक सदस्य असाधारण अधिवेशन बुलाने की मांग कर सकते है । प्रतिनिधि सभा के विघटन के समय 40 दिन के भीतर चुनाव आवश्यक हैं । प्रधानमंत्री तथा प्रतिनिधि सभा के पदाधिकारियों के चयन के लिए विशेष अधिवेशन होता है ।