संगठनात्मक नेतृत्व: प्रकृति और शैलियों | प्रबंध | Read this article in Hindi to learn about:- 1. नेतृत्व का अर्थ (Meaning of Leadership) 2. नेतृत्व का प्रकृति (Nature of Leadership) 3. शैलियां (Styles).

नेतृत्व का अर्थ (Meaning of Leadership):

नेतृत्व किसी संगठन के सफलतापूर्वक काम करने और इसके लक्ष्यों व उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अनिवार्य है । कीथ डेविस हैं- ”बिना नेतृत्व के कोई भी संगठन महज मनुष्यों और यंत्रों की एक भीड़ है… संभावना को वास्तविकता में बदलता है । यह वह निर्णायक काम है जो सभी उन संभावनाओं को सफल बनाता है जो किसी संगठन और उसके लोगों में निहित हैं ।”

जैसा कि हिक्स व गुलेट ठीक ही कहते हैं- ”ये शब्द ‘नेता’ और ‘प्रबंधक’ अनिवार्य रूप से अदल-बदल कर नहीं इस्तेमाल किए जा सकते क्योंकि नेतृत्व प्रबंधन का एक उपवर्ग है… एक नेता को दूसरों के व्यवहार को प्रभावित करने की जरूरत होती है । उसके लिए एक प्रबंधक के सभी कार्यों को करना जरूरी नहीं होता ।” इस प्रकार नेतृत्व का प्रमाण चिह्न है दूसरों को अनुसरण करने के लिए प्रभावित करने की क्षमता ।

परिभाषाएँ (Definitions):

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वारेन बेनिस- ”नेतृत्व का एकमात्र सुनिश्चित गुण नेताओं की एक दूरगामी सोच का निर्माण एवं अनुभव करने की क्षमता है ।”

कीथ डेविस- ”नेतृत्व दूसरों को उत्साहपूर्वक परिभाषित उद्देश्य प्राप्त करने के लिए सहमत करने की क्षमता है ।”

कूंटज व ओ डॉनेल- ”नेतृत्व लोगों को एक समान उद्देश्य की प्राप्ति में सहयोग करने के लिए सहमत करने की गतिविधि है ।”

टेरी- ”नेतृत्व ऐच्छिक रूप से परस्पर उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संघर्ष हेतु लोगों को प्रभावित करने की गतिविधि है ।”

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सेकलर-हडसन- ”बड़े संगठनों में नेतृत्व को उद्यम के अंतर्गत उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एक साझा प्रयास अर्थात् साथ काम करने के लिए लोगों को प्रभावित और ऊर्जास्वित करने के कार्य के रूप में परिभाषित किया जा सकता है ।”

बर्नार्ड- ”नेतृत्व का आशय व्यक्तियों के व्यवहार के उस गुण से है, जिनके द्वारा वे किसी संगठित प्रयास में लोगों को उनकी गतिविधियों में मार्गदर्शित करते हैं ।”

मूनी- “नेतृत्व वह रूप है जिसे प्राधिकारी तब धारण करता है जब वह प्रक्रिया में प्रवेश करता है ।”

एम.पी. फॉलेट- ”एक नेता किसी संगठन का अध्यक्ष या किसी विभाग का मुखिया नहीं होता अपितु एक ऐसा व्यक्ति होता है जो एक स्थिति के चारों ओर देख सकता है और यह समझता है कि एक स्थिति से दूसरी स्थिति तक कैसे गुजरना है ।”

नेतृत्व का प्रकृति (Nature of Leadership):

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नेतृत्व की प्रकृति की निम्न विद्वानों ने व्याख्या की है:

एल.ए. एलेन- उन्होंने व्यक्तिगत नेतृत्व और प्रबंधन नेतृत्व में भेद किया । वे कहते हैं कि- “कोई व्यक्ति व्यक्तिगत नेतृत्व की प्रतिभा के साथ पैदा होता है; उसे प्रबंधन नेतृत्व सीखना पड़ता है ।”  चेस्टर बर्नार्ड- उनके अनुसार, नेतृत्व तीन चीजों पर निर्भर करता है- व्यक्ति, अनुसरणकर्ता और स्थितियाँ ।

एम.पी. फॉलेट- वे कहती हैं कि नेता केवल समूह को प्रभावित ही नहीं करता बल्कि स्वयं भी उससे प्रभावित होता है । उन्होंने इस परस्पर संबंध को ‘गोलाकार प्रतिक्रिया’ कहा । वे कहती हैं- ”नेता समूह के साथ क्या करता है, हमें इसके बारे में ही नहीं बल्कि इसके बारे में भी सोचना चाहिए कि समूह नेता के साथ क्या करता है ।”

वह निम्न तीन प्रकार के नेतृत्वों में भेद करती हैं:

(i) पद का नेतृत्व, नेता औपचारिक प्राधिकार के किसी पद पर होता है ।

(ii) व्यक्ति का नेतृत्व अर्थात् यानी, नेता के पास शक्तिशाली व्यक्तिगत गुण है ।

(iii) कार्य का नेतृत्व अर्थात् नेता के पास पद भी है और व्यक्तित्व भी ।

फॉलेट ने टिप्पणी की, कि केवल वे लोग जिनके पास कार्यात्मक ज्ञान है, आधुनिक संगठनों में नेतृत्व करते हैं, न कि वे लोग जिनके पास औपचारिक प्राधिकार या व्यक्तित्व होता है । वे लिखती हैं- ”विशेष स्थितियों द्वारा माँग किए जाने वाला ज्ञान रखने वाला मनुष्य, सर्वश्रेष्ठ प्रबंधित कारोबार में और जब अन्य चीजें समान हों, उस क्षण पर नेता बन जाता है ।”

मिलेट- वे कहते हैं ”नेतृत्व अक्सर परिस्थितियों द्वारा बनता और बिगड़ता है ।”  उनके अनुसार, नेतृत्व की अनिवार्य परिस्थिति दोहरी है- राजनीतिक और संस्थागत । प्रशासनिक नेतृत्व की राजनीतिक स्थितियों का अर्थ है- बाह्य राजनीतिक निर्देशन और नियंत्रण के प्रति प्रतिक्रियाशील होना ।

दूसरी ओर, प्रशासनिक-नेतृत्व की संस्थागत स्थितियों का अर्थ है- किसी प्रशासनिक एजेंसी को वास्तविक सुचारु व्यवस्था में रखने के आंतरिक कार्य की जरूरतों के प्रति प्रतिक्रियाशील होने की आवश्यकता । काट्‌ज व कान- वे कहते हैं कि- ”नेतृत्व के मर्म… का नाता प्रभावी वृद्धि से होता है जो रुटीन से परे होती है और उन सीमाओं से आगे शक्ति के आधारों से संबंध स्थापित करती है जितना सांगठनिक तौर पर मान्यता होती है ।”

प्रभाव के स्रोत:

जॉन फ्रेंच और बरट्रम रेवेन ने नेतृत्व के आधारों पर नेता के प्रभाव या शक्तियों के पाँच स्रोतों को प्रस्तावित किया है ।

जो कि इस प्रकार हैं:

1. बाध्यकारी शक्ति:

यह भय पर आधारित होती है । यह नेता की सौंपे गये कार्यों को पूरा न करने वाले अपने अनुयायियों को दंडित करने की क्षमता होती है । उदाहरण के लिए निलम्बन, वेतन कटौती, पदावनति इत्यादि ।

2. पुरस्कृत करने की शक्ति:

यह बाध्यकारी शक्ति के विपरीत होती है । यह नेता की अपने अनुयायियों को सकारात्मक रूप से पहचानने तथा उन्हें उपयुक्त पुरस्कार देने की योग्यता होती है । ऐसे पुरस्कार मौद्रिक या गैर-मौद्रिक हो सकते हैं ।

3. वैधता शक्ति:

यह शक्ति संगठनात्मक पदानुक्रम में नेता की स्थिति से पैदा होती है । अनुयायी नेता की सत्ता को साभार स्वीकार करते हैं । उदाहरण के लिए एक प्रबन्धक को एक सुपरवाइजर की तुलना में अधिक वैधता शक्ति प्राप्त होती है ।

4. विशेषज्ञता शक्ति:

यह नेता के ज्ञान, विशेष कौशल, विशेष अनुभव या संक्रांतिक सूचनाओं की उसकी जानकारी पर आधारित होती है । इन गुणविशेषताओं के कारण नेता अनुयायियों से सम्मान और निष्ठा प्राप्त करता है ।

5. उद्धरण शक्ति:

यह व्यक्तिगत आकर्षण पर आधारित होती है जो एक नेता अपने अनुयायियों के लिए धारण करता है । अनुयायी नेता के साथ पहचाने जाते हैं और नेता को अपने आदर्श व्यक्ति के रूप में देखते हैं ।

बरनार्ड बास ने बाध्यकारी शक्ति, पुरस्कार शक्ति और वैध शक्ति को पदस्थिति सत्ता की श्रेणी में रखा है ।

तथा विशेषज्ञता शक्ति और उद्धरण शक्ति को व्यक्तिगत सत्ता की श्रेणी में रखा है । पद स्थिति से जुड़ी शक्ति या सत्ता संगठनात्मक संरचना से प्राप्त होती है जबकि व्यक्तिगत शक्ति या सत्ता नेता के निजी गुणों से प्राप्त होती है तथा इसका संगठन में उसकी पद स्थिति के साथ कोई सम्बन्ध नहीं होता है ।

नेतृत्व का शैलियां (Styles of Leadership):

अधीनस्थों के पर्यवेक्षण के दौरान किसी नेता द्वारा प्रदर्शित व्यवहार नेतृत्व शैली के नाम से जाना जाता है । नेतृत्व की तीन बुनियादी शैलियाँ हैं- निरंकुश, जनतांत्रिक और अहस्तक्षेप शैली ।

i. निरंकुश शैली:

इसे नेतृत्व की प्रभुत्वपूर्ण या निर्देशात्मक शैली भी कहते हैं । इस शैली में संपूर्ण प्राधिकार नेता के हाथ में केंद्रित होता है । वह सभी नीतियों तय करता है । वह अधीनस्थों को आदेश देता है और उनसे पूर्ण आज्ञाकारिता की माँग करता है । वह पुरस्कार या सजा देता है । चित्र 4.5 में इस शैली को समझाया गया है ।

ii. जनतांत्रिक शैली:

नेतृत्व की भागीदारी शैली के नाम से भी जानी जाने वाली इस शैली में नेता अधीनस्थों को निर्णय-निर्माण की प्रक्रिया में भाग लेने की आज्ञा देता है । सभी नीतियाँ और निर्णय ऐसी समूह चर्चाओं से ही निकलते हैं ।

संचार मुक्त रूप से प्रवाहित होता है और बहुनिर्देशात्मक होता है । यह शैली प्रशासन के मानव संबंध (नव क्लासिकीय) उपागम के युग में लोकप्रिय हुई । चित्र 4.6 इस शैली की व्याख्या करता है ।

iii. अहस्तक्षेप शैली:

इसे नेतृत्व की नियंत्रणमुक्त शैली के रूप में भी जाना जाता है । इस शैली में, नेता अधीनस्थों को उनके कामों में पूर्ण-स्वतंत्रता देता है । वह उन्हें अपने लक्ष्य तय करने और उन्हें प्राप्त करने की अनुमति देता है । दूसरे शब्दों में, इस शैली में नेता को न्यूनतम या शून्य भागीदारी के साथ सामूहिक या व्यक्तिगत निर्णय के लिए पूर्ण आजादी होती है । उसका एकमात्र काम अधीनस्थों द्वारा माँगे गए उत्पाद और सूचना उन्हें पहुंचाना होता है ।