Read this article in Hindi to learn about:- 1. नवलोक प्रबन्ध का अर्थ (Meaning of New Public Management) 2. नवलोक प्रबन्ध का विशेषताएं (Features of New Public Management) 3. प्रमुख मान्यताएँ (Main Assertions) and Other Details.
नवलोक प्रबन्ध का अर्थ (Meaning of New Public Management):
लोक रूचि अभिगम जिस सुधरे हुऐ लोक प्रशासन की बात करता है, उसका सैद्धान्तिक स्वरूप है नवलोक प्रबन्ध । यह लोक प्रशासन का प्रबन्धोन्मुख चेहरा है जो 1990 के दशक के प्रारंभ में अस्तित्व में आया । इसमें प्रयुक्त लोक शब्द से स्पष्ट है कि नवलोक प्रबन्ध सरकारी प्रशासन से संबंधित अवधारणा है ।
इसमें ”नव” और ”प्रबन्ध” शब्द जुड़े है, जो इसे विशिष्टता प्रदान करते हैं । यह विशिष्टता ही इसे परम्परागत लोक प्रशासन से पृथक करती है । प्रशासन के स्थान पर ”प्रबन्ध” का प्रयोग सरकारी कार्यों को पेशेवरता, व्यवसायिकता आदि का स्वरूप देता है, जबकि नव या नया प्रशासन उस नवीन दिशा का घोतक है जो वस्तुत: नवीन सामाजिक मांगो, नवीन प्रौद्योगिकी परिवर्तनों और विशेषकर नवीन आर्थिक आवश्यकताओं के कारण सरकारी प्रशासन को ग्रहण करता है ।
विभिन्न नाम:
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इसकी विशेषताओं के आधार पर ग्रेब्रिएल ने उद्यमी शासन या व्यवसायी शासन (Entrepreneurial Government), बार्जले ने उत्तर नौकरशाही प्रतिमान, पोल्लीत ने प्रबन्धवाद आदि संज्ञाएं दी । लेकिन सामान्य और सर्वमान्य नाम नवलोक प्रबंधवाद है ।
राज्य बनाम बाजार चर्चा से स्पष्ट हुआ कि नवीन प्रवृत्तियों यथा वैश्वीकरण, उदारीकरण, निजीकरण आदि के अनुरूप राज्य की भूमिका बदल रही है और इसलिये उसके प्रशासन के स्वरूप और कार्य दोनों को पुनर्निधारित करने की जरूरत है। यह नया सरकारी प्रशासन कैसा हो-यह स्पष्ट करता है ”नव लोक प्रबन्ध” ।
”नवलोक प्रबन्ध” वस्तुत: सम्पूर्ण परिदृश्य में हो रहे परिवर्तनों के अनुकूल एक और नये लोक प्रशासन की सैद्धान्तिक अवधारणा है । इस लिहाज से नवलोक प्रशासन के बाद ”नव लोक प्रबन्ध” लोक प्रशासन में दूसरा सुधारवादी आन्दोलन है ।
चूंकि नवलोक प्रबन्ध दृष्टिकोण राज्य और प्रशासन को एकीकृत मानता है और प्रशासन को राजनीति का ही एक अन्तर्भूत तत्व, अत: इन वांछित परिवर्तनों को राज्य और प्रशासन के संयुक्त परिप्रेक्ष्य में ही विश्लेषित किया गया है । और स्पष्ट करें तो नवलोक प्रबन्ध का जौर सम्पूर्ण राज्य या सरकार में बजारोन्मुख परिवर्तन से हैं । यह राज्य (सरकार) और प्रशासन को पृथक-पृथक न तो मानता है, और न ही देखता है ।
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यही कारण है कि नवलोक प्रबन्ध को नये किस्म का लोक प्रशासन मानते हुए भी ”व्यवसायी सरकार” जैसी व्यापक संज्ञा दी गयी है । इसीलिये परिवर्तन का क्षेत्र नीति निर्माण से लेकर उसके क्रियान्वयन तक विस्तृत है । राज्य के स्थान पर बाजार को वह समाज और अर्थव्यवस्था के मुख्य चालक की भूमिका प्रदान करता है ।
वह राज्य की नीति निर्माता, सुविधा प्रदान सूचना-प्रदाता और विभिन्न गतिविधियों के समन्वयकर्ता का रोल देता है जो कम महत्वपूर्ण नहीं है अपितु तीव्र वैश्विक परिवर्तनों के इस दौर में अत्यधिक महत्वपूर्ण है । हां, ये सब काम वितरण प्रकृति (Distributing Nature) और नियामक प्रकृति (Regulatory Nature) के हैं न कि निष्पादन प्रकृति (Execution-Nature) के । अधिकांश निष्पादन तो अब बाजार के हवाले किया जा रहा है मात्र कतिपय सामाजिक सेवाएं ही राज्य को निष्पादित करना है ।
ओसबार्न और गेबलर के शब्दों में ”हमें और अधिक सरकार की नहीं अपितु बेहतर सरकार की जरूरत है । और संक्षिप्त में कहें तो एक बेहतर शासन की जरूरत है । शासन ऐसा कार्य है जो सामूहिक रूप से हमारी समस्या का समाधान करता है । सरकार हमारे द्वारा प्रयुक्त एक उपकरण भर है । यह उपकरण अप्रांसगिक हो गया है, अतः इसे नया रूप देने की जरूरत है ।”
वारेन बेनिस ने इस जरूरत को 1965 में ही पहचान लिया था ”आगामी 25-30 वर्षों में हम नौकरशाही के पतन में सहभागी होंगे और उसके स्थान पर एक नवीन व्यवस्था का उदय होगा ।” पृष्ठभूमि: नवलोक प्रबन्ध की आवश्यकता तो थैचर-रीगन के ”मुक्त बाजार” अभियान ने ही प्रस्तुत कर दी थी लेकिन इस दिशा में मुख्य भूमिका विश्व बैंक के ”विकास की चुनौतियां” (1991) नामक प्रतिवेदन ने निभायी ।
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राज्य और प्रशासन की भूमिका में परिवर्तन की मांग करने वाले इस प्रतिवेदन को आगे बढ़ाया, 1992 में प्रकाशित ओसबार्न और गेबलर की कृति ”रिइनवेंटिग गवर्नमेन्ट ‘ (सरकार का पुन : अन्वेषण) ने । इस पुस्तक को नौकरशाही विरोधियों ने हाथों-हाथ लिया और यह उन विद्वानों-विचारकों के लिये जो प्रशासन को नौकरशाही से मुक्त देखना चाहते हैं, ”नवलोक प्रबन्धन की बाइबल” बन गयी ।
नवलोक प्रबन्ध का विशेषताएं (Features of New Public Management):
ओसबार्न और गेबलर ने ”व्यवसायी सरकार” (EG-Entrepreneurial Government) की अवधारणा प्रतिपादित की, जिसकी 10 प्रमुख विशेषताएं बतायी:
i. प्रतिस्पर्धी सरकार (Competitive Government):
व्यवसायी सरकार वस्तुओं एवं सेवाओं के विभिन्न प्रदाताओं के मध्य प्रतियोगिता को प्रोत्साहित करती है । ऐसा वह कार्यकुशलता और मितव्ययिता को बढ़ावा देकर करती है और इसका स्वाभाविक परिणाम होता है लागत में कमी और निष्पादन में वृद्धि ।
ii. सामुदायिक सशक्तिकरण:
नौकरशाही की नियन्त्रण शक्ति को घटाना और उसके स्थान पर नागरिकों परिवारों समाजों की अधिकारिता को बढ़ाना ताकि वे अपनी समस्याओं के समाधान खोज सकें और लागू कर सकें ।
iii. परिणामोन्मुखी:
अपने (सरकार) संगठनों के कार्यों का मूल्यांकन निवेश की मात्रा के आधार पर नहीं अपितु परिणामों के आधार पर करना। लक्ष्य निर्देशित प्रयासों को प्रोत्साहित करना ।
iv. लक्ष्योन्मुख सरकारी:
कायदे-कानूनों के स्थान पर लक्ष्यों से प्रेरित होकर काम करना ।
v. उपभोक्ता चालित सरकार:
ये अपने हितग्राहियों को उपभोक्ता मानकर व्यवहार करती है और उन्हें अनेक सेवा विकल्प प्रस्तुत करती है, ताकि वे मनपसंद विकल्प चुन सकें । उदाहरणार्थ BSNL ने Prepaid (सेलवन) और Post Paid (एक्सेल) दोनों विकल्प दिये हैं । (Preventive न कि Curative)
vi. समस्या के कारणों की समाप्ति:
समस्या उत्पन्न होने पर उसके निदान की प्रवृत्ति को त्यागकर उन्हें उत्पन्न होने से रोकने की प्रवृत्ति । अर्थात समस्या निदान के स्थान पर समस्या के कारण की समाप्ति ।
vii. व्यवसायिकता:
अपनी शक्ति धन व्यय करने में नहीं, धन कमाने में लगाती है ।
viii. विकेन्द्रीयकरण आधारित:
सहभागी प्रबन्ध अपनाती है अर्थात निचले स्तर तक अधिकारों का विकेन्द्रीकरण किया जाता है ।
ix. बजारोन्मुखता:
नौकरशाही मूलक प्रशासन के स्थान पर बाजार जैसा तन्त्र पसन्द करती है (अर्थात त्वरित, पारदर्शी, ग्राहक-मित्र प्रक्रिया और व्यवहार) ।
x. उत्प्रेरणकर्ता:
मात्र सार्वजनिक सेवाएं प्रदान करने पर ही ध्यान नहीं देती, अपितु सामुदायिक समस्याओं के निदान के लिये सार्वजनिक, निजी और स्वयंसेवी (N.G.O.) सभी को प्रेरित करने का प्रयास करती है ।
वस्तुत: उक्त विशेषताएं आज प्रत्येक व्यवसायी सरकार के लिये आदर्श हैं । भले ही उनमें से अनेक को प्राप्त करना या पूरी मात्रा में स्वीकार करना कठिन भी है । ब्रिटेन में मार्गरेट थैचर और न्यूजीलैंड में रोजरनोमिक्स ने नवलोक प्रबन्धन को लागू करने के प्रयास किये थे । उधर अमेरिका में रीगन ने भी इन्हे अपनाया ।
मुख्य प्रतिबल:
नवलोक प्रबन्ध या व्यवसायी सरकार के तीन मुख्य बल हैं, जिन्हे “3ES” कहा जाता है:
i. इफिसिएन्सी (Efficiency) अर्थात कार्यकुशलता पर बल
ii. इकानामी (Economy) अर्थात मितव्ययिता पर बल । नवलोक प्रबन्ध फिजूलखर्ची पर रोक लगाता है और प्रत्येक योजना या कार्य को लागत-लाभ सन्दर्भ में विश्लेषित करता है ।
iii. इफेक्टिवनेस (Effectiveness) अर्थात प्रभावकारिता । यह कार्योन्मुख लक्ष्योन्मुख व्यवस्था है । इसमें परिणामों का मूल्यांकन लक्ष्य प्राप्ति के आधार पर किया जाता है ।
नवलोक प्रबन्ध के अन्य बल है निष्पादन मूल्यांकन, प्रबन्धकीय स्वायत्तता, लागत-कटौती, जवाबदयता, नवाचार, बोनस, लक्ष्य प्राप्ति, प्रतिग्राह्यता, प्रतिबद्धता प्रतिस्पर्धी-स्तर आदि ।
नवलोक प्रबन्ध की प्रमुख मान्यताएँ (Main Assertions of New Public Management):
नवलोक प्रबंध की प्रमुख मान्यताएँ हैं:
i. नीति या मूल्य के स्थान पर ”प्रबन्ध” पर जोर अर्थात क्या होना चाहिये या क्या प्राप्त करना है से अधिक महत्वपूर्ण ”कैसे करना” है । इस हेतु प्रबन्धकों को अधिक स्वायत्तता और संसाधन प्रदान करना जरूरी ।
ii. सरकार अब नागरिकों को उपभोक्ता मानकर चले । इससे उसकी भूमिका में दो परिवर्तन होंगे- प्रथम, नागरिकों की रूचि के अनुरूप सेवाओं के विकल्प रखे जाये तथा द्वितीय प्रदत्त सेवा का पूरा मूल्य वसूला जाये ।
iii. बाजार को प्रतिस्पर्धात्मक बनाये । इस हेतु, सेवा या वस्तु के प्रदानकर्त्ताओं के मध्य स्वास्थ्य प्रतियोगिता का संचालन सरकार को सुनिश्चित करना है । सरकार कतिपय आवश्यक राज्य सेवाओं के लिये टेण्डर बुलाकर भी ऐसी प्रतियोगिता को जन्म देती । उदाहरण के लिये बोट (BOT- Built, Operate and Transfer) ।
iv. कार्य निष्पादन की निरन्तर समीक्षा पर बल । इसके आधार पर ही कार्मिकों को मान्यता, वेतन, पदोन्नति आदि प्रदान किये जायें । इससे समय सीमा में काम पूरा करने की प्रवृत्ति को बल मिलेगा ।
v. मितव्ययिता को हर स्तर पर सुनिश्चित करना । इस हेतु नकदी प्रणाली के स्थान पर प्रोद्भवन प्रणाली अपनाना ।
vi. नौकरशाही के स्थान पर समुदाय को सशक्त बनाना, ताकि समस्याओं का हल वे स्वयं शीघ्र कर सकें ।
vii. अधिकारों के केन्द्रीयकरण के स्थान पर सरकार में निचले स्तरों तक उनका विकेन्द्रीयकरण करना । इससे अधीनस्थों की क्षमता का पूरा उपयोग संभव होगा और सहभागी प्रबन्ध के लाभ मिलेगे ।
viii. अत्याधुनिक संचार प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल का हर क्षेत्र में बढ़ावा देना ।
ix. कौन सी सेवाएं राज्य दंगा और कौन सी सेवाएं बाजार देगा इस बारे में सरकार की व्यवस्था खुली, पारदर्शी और निष्पक्ष हो ।
x. सरकारी निर्णयों में तार्किकता नहीं चल सकती क्योंकि उसे बहुत से दबावों के मध्य लेना पड़ता है ।
नवलोक प्रबन्ध की प्रमुख प्रति मान्यताएं (Main Anti-Assertions of New Public Management):
नवलोक प्रबन्ध निम्नलिखित का विरोधी है:
i. विल्सोनियन अवधारणा का विरोधी है जो राजनीति-प्रशासन की द्विभाजकता पर चलती रही ।
ii. पदसौपनिक संगठन को अमान्य करता है ।
iii. प्राधिकार के केन्द्रीयकरण का विरोधी है ।
iv. निर्णय निर्माण में तार्किकता का विरोधी है ।
v. प्रशासन में प्रक्रियागत कठोरता और रूढ़िवादिता का विरोधी है ।
vi. सिर्फ संगठन के भीतर तक सीमित रहने का विरोधी है ।
vii. प्रशासन में कानूनों की सर्वोच्चता को अमान्य करता हैं । क्योंकि इनका व्यवहार से मतभेद हो सकता है ।
viii. राज्य की एकाधिकारिता का विरोधी है ।
ix. आदर्शवाद और नौकरशाही का विरोधी है ।
आलोचनात्मक मूल्यांकन (Critical Evaluation of New Public Management):
नवलोक प्रबन्ध की विचारधारा का विकास प्रारंभ में धीरे-धीरे हुआ, लेकिन अब एक अनिवार्यता के रूप में यह सभी सरकारों की आवश्यकता बन गयी है । लेकिन बाजार की गूंज में गरीब, बेसहारा लोक उपेक्षित न रह जाएं, इस हेतु सरकारों को अधिक सतर्क और क्रियाशील रहने की मांग भी उठ रही है ।
निःसन्देह नवलोक प्रबन्ध आन्दोलन ने वैश्विक आर्थिक परिवर्तनों के अनुकूल सरकार और प्रशासन के नये स्वरूप को निर्धारित किया है और इसके अनेक सकारात्मक परिणाम भी सामने आये है । सरकार और नौकरशाही में अब कार्यकुशलता, मितव्ययिता, पारदर्शिता आदि को सुनिश्चित करने हेतु राष्ट्रों में अनेक ढांचागत और प्रक्रियागत परिवर्तन किये गये हैं ।
इसका दूसरा पहलू चिंतनीय है । मोहित भट्टाचार्य के शब्दों में ”नव लोक प्रबंध की अवधारणा मात्र केन्द्रीय मुद्दों से जुड़ी है और सतह की बातों की उपेक्षा करती है । इस कारण यह सन्देह पैदा होता है कि क्या सरकार मात्र “निजी” और ”शक्तिशाली” हाथों का खिलौना बनकर रह जाएगी ।”
कापम सम्मेलन, 1994:
अगस्त, 1994 में शार्लोट (कनाडा) में राष्ट्रमण्डलीय देशों ने लोक प्रशासन और प्रबन्ध पर केन्द्रीत एक सम्मेलन किया जिसका विषय था ”संक्रमण से गुजरती सरकार” । इसमें यह स्वीकार किया गया कि नवलोक प्रबन्ध आज की हकीकत है लेकिन राज्य को उन निजी ताकतों से मिल रही चुनौती गंभीर है, जो व्यापारिक, व्यवसायिक स्वायत्तता के लिटे दबाव बनाये हुऐ है ।
वस्तुत: कायम की चिंता 14 साल से अधिक पुरानी हो गयी है और हम देख सकते हैं कि उस चिंता में क्या दम रहा है ? नवलोक प्रबन्ध के इस वर्चस्व में भी राज्य सुरक्षित हैं और वह जनहित में इसका भी विकल्प ला सकता है ।
भारत में अधोसंरचना के विकास के साथ उपभोक्ता बाजार का विकास गत दशक में जितनी तेजी से हुआ है उसने जनता की दृष्टि भी बदल दी है । लेकिन इसका लाभ शहरों ने उठाया है और वह भी उच्च मध्य वर्ग ने । निम्न मध्यवर्ग और अधिसंख्य ग्रामीणों की दशा में सुधार के लिये किसी और पर ध्यान देने की जरूरत है ।