Read this article in Hindi to learn about the meaning and difficulties of participatory management.

सहभागी प्रबन्ध का अर्थ (Meaning of Participatory Management):

व्यवहारवादी आंदोलन के प्रभाव से विकसित सहभागी प्रबंध वस्तुतः टीम मेनेजमेंट की अवधारणा है । शास्त्रीय विचारकों से भिन्न व्यवहारवादियों ने अपने अनुसंधान से स्पष्ट किया कि सांगठनिक निर्णयों में कार्मिक भागीदारी को लाकर प्रभावशीलता को बढ़ाया जा सकता है ।

आधुनिक प्रबन्ध की नवीन अवधारणाओं में से एक सहभागी प्रबन्ध है । इससे आशय ऐसे प्रबन्ध से है जो संगठन में कार्मिकों को एक अन्तर्निहित तत्व मानता है तथा उन्हें नीति निर्माण से लेकर उनके क्रियान्वयन तक में सक्रिय भागीदार के रूप में शामिल करता है ।

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वस्तुत: यह इस अवधारणा पर आधारित है कि प्रबन्ध की उन नीतियों-निर्णयों में संबंधित कार्मिकों के विचारों का शामिल किया जाना चाहिए जो उन्हें प्रभावित करते हो । इसका उद्देश्य संगठन में कार्मिकों को इस प्रकार संलग्न करना है कि वे अपने को प्रथक इकाई न समझकर, संगठन में अन्तर्भूत अंग समझे ।

यह संगठन को ”टीम” भावना से ग्रस्त करने का तरीका है । इससे कार्मिकों में समग्र संगठनात्मक दृष्टिकोण का विकास होता है, जिससे वे अपने व्यक्तित्व को अधिक व्यापक स्वरूप देने में समर्थ होते है । उनकी सृजनात्मक प्रवृत्ति को विकास के अवसर मिलते है तथा कार्मिक सम्बन्धों का विकास होता है ।

वस्तुतः सहभागी प्रबंध में:

1. संगठन औपचारिक के साथ अनौपचारिक तत्वों को महत्व देता है ।

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2. इसलिए अनौपचारिक संचार, प्रजातांत्रिक नेतृत्व और सामाजिक प्रोत्साहन को अधिक वरियता देता है ।

3. कार्मिक की रचनात्मक भूमिका को बढ़ाता है और उसकी निर्णयों में भागीदारी को आमंत्रित करता है ।

4. कार्मिक को निर्णयन के साथ क्रियान्वयन में भी स्वायत्त, जिम्मेदारी प्रदान की जाती है ।

क्रिस आगर्गेराइस, लिकर्ट, मैक्ग्रेगर आदि ने सहभागी प्रंबंध को विकसित किया । जिसकी मान्यता है कि संगठनात्मक प्रभावशीलता अधिकारिक या सत्तात्मक प्रंबंध के स्थान पर स्वायत्त प्रंबंध प्रक्रिया से ही प्राप्त की जा सकती है ।

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आग्रराइस ने सहभागी प्रंबंध की प्राप्ति हेतु ”फ्यूजन प्रोसेस मॉडल” का विकास किया जो वस्तुत: व्यक्ति संगठन के एकीकरण से उद्देश्य प्राप्ति पर बल देता है । लिकर्ट ने मानवोचित प्रबंधकीय प्रणाली जबकि मैक्ग्रेगर ने स्कानलान थ्योरी एवं वाय थ्योरी दी ।

स्पष्ट है कि सहभागी प्रबंन्ध संगठन के प्रत्येक स्तर पर प्रत्येक क्षेत्र में कार्मिकों की वह सहभागिता है जो उनमें निर्णयन क्षमता और क्रियात्मक जवाबदेही का विकास करती है । सहभागी प्रबन्ध की सफलता संगठनात्मक ढांचों की बनावट और उनमें व्याप्त प्रबन्धकीय नीतियों के स्वरूप पर काफी हद तक निर्भर करती है । उच्चाधिकारियों का अहम् इसके मार्ग की बहुत बड़ी बाधा होता है ।

कुशल प्रबंध और उसकी कसौटियाँ (Difficulties of Participatory Management):

एक अच्छे प्रबन्ध की कसौटी क्या हो ? यह निर्धारित करना इसलिए कठिन है क्योंकि प्रबन्ध के कार्य-प्रदर्शन को जिन आधारों पर मापा जाता है, वे स्थिर नहीं है बल्कि समय, भू-भाग, समुदाय के अपने विशेष होते है । लेकिन इन सब प्रतिबन्धों के अधीन रहते हुए जो प्रबन्ध जहां भी प्रभावशाली कार्यप्रदर्शन करें, उसे ही कुशल प्रबन्ध तथा उसकी विशेषताओं को कुशल प्रबन्ध की विशेषताऐ स्वीकार करना चाहिए ।

अर्थ और अवधारणा:

कुशल प्रबन्ध से आशय है दक्ष प्रबन्ध या सुप्रबन्ध । वह प्रबन्ध जो दोष रहित हो । गुलिक के अनुसार- “कुशाल प्रबन्ध से आशय है वह व्यवस्थित प्रबन्ध जो संगठन में दक्षता और मितव्ययिता को सुनिश्चित करने में सफल होता है ।”

प्रशासन द्वारा निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति का भार प्रबन्ध पर होता है । जो प्रबन्ध इन उद्देश्यों को अपेक्षानुरूप प्राप्त करने में सफल होता है उसे कुशल प्रबन्ध कहा जाता है, यद्यपि इसकी कसौटी का आधार मात्र उद्देश्य प्राप्ति का अकेला मापदण्ड नहीं होता अपितु कुछ अन्य भी होते है जैसे मानवीय संतोष, दक्षता का स्तर आदि ।

कुशल प्रबन्ध परम्परागत प्रबन्ध के क्षेत्र में ही एक सुधारात्मक अवधारणा है । इसका मूल तत्व होता है उद्देश्यों की प्राप्ति पूर्ण दक्षता के साथ करना । प्रबन्ध की कुशलता मात्र उद्देश्यों को प्राप्त करने में नहीं है, अपितु उपलब्ध साधनों का पूरी क्षमता, दक्षता, कार्यकुशलता और मितव्ययिता के साथ उपयोग इसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण आयाम है । जहां कुशल प्रबन्ध है वहां व्यवस्था, अनुशासन, दक्षता ओर उत्पादकता के दर्शन होते है अन्यथा कुप्रबन्ध होने पर अव्यवस्था, अराजकता और अनुत्पादकता के ।

कुशल प्रबन्ध की कसौटियाँ:

एक अच्छे प्रबन्ध की कसौटी को वस्तुनिष्ठ आधार पर तय करना इसलिए कठिन है क्योंकि प्रबन्ध के कार्यप्रदर्शन के मापदण्ड समय, भूभाग, समुदाय आदि के अपने विशेष होते है । निजी व्यवसाय में दक्षता और मितव्ययिता को कुशल प्रबन्ध की प्रमुख कसौटी माना जाता है, जबकि सरकारी सेवा की प्रमुख कसौटी है नागरिकों के साथ समान व्यवहार, उचित सेवा, समय पर सेवा, सेवा की निरन्तरता आदि ।

अधिकांश प्रबंधकीय विद्वान प्रबन्ध का मुख्य ध्येय दक्षता प्राप्ति स्वीकारते है । लुपर गुलिक के अनुसार दक्षता और मितव्ययिता- दो प्रमुख लक्ष्य प्रबन्ध के होते है यद्यपि इनमें से ”दक्षता” सर्वोपरी है क्योंकि मितव्ययिता बहुत कुछ उस पर ही निर्भर होती है ।

वाल्डो दक्षता के साथ व्यवस्था को भी प्रशासन का अनिवार्य लक्षण मानते है । यहां दक्षता से आशय है उत्पादन और लागत का अनुपात । निर्गत और आगत का अनुपात जितना अधिक होता है, संगठन की दक्षता उतनी ही अधिक मानी जाती है । यहां आगत, श्रम, पूंजी, कच्चा माल आदि होते है और निर्गत उत्पादित वस्तुएं या सेवाएं होती है ।

कुछ विद्वान प्राप्त मानवीय संतोष और प्राप्त मोद्रिक आय को भी निर्गत में शामिल करते है । उनके अनुसार दक्षता प्रत्येक आगत-निर्गत सम्बन्ध की अलग-अलग निकाली जानी चाहिए क्योंकि यह हो सकता है कि एक संगठन की भौतिक दक्षता उच्च हो लेकिन सामाजिक दक्षता न्यूनतम हो ।

अत: वे भौतिक वस्तुओं के उत्पादन और उसमें लगने वाले कच्चे माल के अनुपात को भौतिक दक्षता तथा आय और व्यय के अनुपात को व्यापारिक दक्षता कहते है । इसी प्रकार प्राप्त मानव संतोष तथा व्यय मानवीय श्रम के अनुपात को सामाजिक दक्षता कहां जाता है । संगठन के भीतर कार्यरत कार्मिकों के मध्य के सम्बन्धों की स्थिति भी संगठन की दक्षता का एक आधार प्रस्तुत करती है ।

प्लूटो, अरस्तु, चाणक्य के जमाने में भी सुशासन राज्य का एक लक्ष्य होता था जिससे आशय राज्य के लक्ष्यों की पूर्ति से था । आधुनिक युग में सुप्रबंन्ध की तीन कसौटियों का उल्लेख मिलेट ने किया है- संतोषजनक सेवा, उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य निष्पादन तथा अच्छी सरकार ।

अर्थात् सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार तथा आवश्यकतानुरूप उचित सेवा, समय पर तथा पर्याप्त मात्रा में सेवा, प्रत्येक स्थिति में सेवा को निरन्तर बनाये रखना और उसकी गुणवक्ता में उर्श्वगामी परिवर्तन होते रहना आदि आधुनिक सरकारों के कुशल प्रबन्ध की प्रमुख कसौटियां मानी जाती है जबकि मितव्ययिता और दक्षता सरकारी प्रबन्ध में दूसरे स्तर की प्राथमिकताएँ हो गयी है ।

हम यह कह सकते है कि निजी प्रबन्ध की कुशलता की कसौटी जहां दक्षता, मितव्ययिता है वहीं सरकारी प्रबंध की कुशलता की कसौटियाँ जनता के सभी वर्गों की आवश्यकताओं की समय पर आपूर्ति तथा उनकों प्राप्त होने वाले संतोष के स्तर से संबंधित है ।

सामान्यतया कुशल प्रबन्ध की कसौटियों निम्नानुसार हो सकती है:

1. भेदभाव रहित समान व्यवहार ऐसा प्रबंध ही कुशलता पर खरा उतरेगा जो सेवाओं के प्रदाय में सब के साथ समान व्यवहार करें । वस्तुतः यह ”सुशासन” अर्थात् अच्छी सरकार पर विशेषतः लागू होता है, निजी व्यवसायों में इसकी प्रयोज्यता सीमित है ।

2. सेवाओं की समसामयिकता कुशल प्रबन्ध का अनिवार्य लक्षण होता है सही समय पर सही सेवाओं को सुनिश्चित करना । वही संस्था अच्छे प्रबन्ध से युक्त कहीं जा सकती है जो अपने ग्राहकों को मांग पर सेवाएं उपलब्ध कराए और उसमें समय का ध्यान रखे ।

3. पर्याप्त सेवा मात्रा जितनी अपेक्षा है उतनी सेवाएं उपलब्ध कराना कुशल प्रबन्ध की महत्वपूर्ण कसौटी है। यदि जनता को अपने दैनिक जीवन में पांच बाल्टी प्रति व्यक्ति पानी की जरूरत पड़ती है तो प्रबन्ध की कुशलता को इस मात्रात्मक आपूर्ति के आधार पर मापा जाता है ।

4. सेवा की निरन्तरता सही समय पर सही सेवा का सिद्धांत आकस्मिक नहीं अपितु प्रबन्ध का एक निरन्तर लक्षण होना चाहिये । सेवाओं की अबाध पूर्ति सुनिश्चित करना कुशल प्रबन्ध की प्रमुख कसौटी है ।

5. सेवाओं में गुणात्मक सुधार जनता की अपेक्षानुरूप सेवाओं के स्तर और स्वरूप में भी निरंतर सुधार के आधार पर प्रबन्ध की कुशलता आंकी जाती है ।

6. तकनीकी उन्नयन जो प्रबन्ध बदलती परिस्थितियों के अनुरूप तथा भावी चुनौतियों का आकलन कर उससे निपटने के लिए अपने कार्य व्यवहार में बदलाव ला सकता है, वही कुशल प्रबन्ध के मापदण्ड पर खरा आंका जायेगा ।

7. उत्तरदायित्वपूर्णता कोई प्रबंध अपने समाज, देश, संविधान आदि के प्रति किस सीमा तक उत्तरदायी है, यह उसकी कुशलता का एक आधार होता है ।

8. बन इच्छा को सम्मान कुशल प्रबन्ध की एक प्रमुख कसौटी यह भी है कि उसके उद्देश्यों, कार्य व्यवहारों आदि में जन इच्छा को कितना महत्व दिया गया है ।

9. व्यावसायिक दूरदर्शिता कुशल प्रबन्ध अपने संचालन में व्यावसायिक सिद्धांतों का कितना अनुपालन करता है और उसे इस आधार पर व्यावसायिक जगत में कितना प्रतिस्पर्धी सम्मान प्राप्त है, यह भी उसकी कुशलता की एक कसौटी होती है । इसके अंतर्गत दक्षता, मितव्ययिता, कार्यकुशलता जैसे आधार शामिल है ।

10. वैज्ञानिक प्रविधियों का उपयोग प्रबंध की कुशलता को कसने का एक आधार यह भी है कि वह अपने दृष्टिकोण तथा कार्यप्रणाली में कितना वैज्ञानिक है।

11. सफलता की कसौटी अन्तत: कुशल प्रबन्ध की सर्वाधिक महत्वपूर्ण कसौटी उद्देश्यों में सफलता है । यह सफलता सरकारी क्षेत्रों में जनता की संतुष्टि के स्तर से तय होती है, तो निजी व्यवसायों में लाभ के प्रतिशत से ।

उपरोक्त वर्णन के आधार पर कहा जा सकता है कि कुशल प्रबन्ध का महत्व प्रत्येक क्षेत्र में है । सरकारी, गैर सरकारी, व्यावसायिक, सामाजिक, आर्थिक सभी संगठनों को अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कुशल प्रबन्ध का ही सहारा होता है । यह सत्य है कि संगठनों के प्रबन्ध की कुशलता के मापदण्डों में अन्तर हो सकता है, जैसे सरकारी क्षेत्र में कुशल प्रबन्ध का मापदण्ड जनता को प्राप्त संतोष है जबकि निजी क्षेत्र में मितव्ययिता और दक्षता ।

दूसरे शब्दों में सरकार में कुशल प्रबन्ध का स्तर सामाजिक दक्षता से निर्धारित होता है, तो निजी क्षेत्र में भौतिक दक्षता से । लेकिन अपने स्वरूप और कार्यप्रणाली में यह सर्वत्र ही तार्किक, वैज्ञानिक और व्यवस्थित प्रणाली के रूप में एक समान रूप से महत्वपूर्ण और प्रासंगिक है ।