केंद्रीकरण और विकेंद्रीकरण | Read this article in Hindi to learn about:- 1. केंद्रीयकरण तथा विकेंद्रीकरण अर्थ और परिभाषा (Meaning and Definition of Centralization and Decentralization) 2. केंद्रीकरण तथा विकेंद्रीकरण के निधार्रक तत्व (Determinants of Centralization and Decentralization) 3. विकेंद्रीकरण की सीमाएँ (Limitations of Decentralization) 4. केंद्रीकरण एवं विकेंद्रीकरण के गुण तथा दोष (Properties and Defects of Centralization and Decentralization).
केंद्रीयकरण तथा विकेंद्रीकरण अर्थ और परिभाषा (Meaning and Definition of Centralization and Decentralization):
केंद्रीयकरण से अभिप्राय है कि सत्ता शीर्ष या उसके आस-पास एकत्र होनी चाहिए । इसके ठीक विपरीत अनेक व्यक्तियों या इकाइयों के मध्य सत्ता के विभाजन की व्यवस्था को विकेंद्रीयकरण कहा जाता है ।
ह्वाइट के मतानुसार – ”प्रशासन के निम्नतल से उच्चतल की ओर प्रशासकीय सत्ता के हस्तान्तरण की प्रक्रिया को केंद्रियकरण कहते हैं जबकि इसके ठीक विपरीत व्यवस्था को विकेंद्रीकरण कहा जाता हैं ।”
विलोबी के अनुसार – ”अत्यधिक केंद्रीकृत व्यवस्था में स्थानीय इकाइयाँ केवल कार्यवाहक अभिकरणों के रूप में कार्य करती हैं । उन्हें अपनी पहल से कार्य करने की कोई शक्ति नहीं होती…..प्रत्येक कार्य केंद्रीय कार्यालय की ओर से किया जाता है ।”
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केंद्रीकरण तथा विकेंद्रीकरण को और अधिक हम इसके निम्नलिखित पाँच पक्षों से अधिक अच्छी तरह स्पष्ट कर सकते हैं जो विकेंद्रीयकरण के हैं और इसके विपरीत जो व्यवस्था होगी वह केंद्रीयकरण की व्यवस्था होगी:
1. प्रशासकीय पक्ष I:
सत्ता का हस्तातंरण इस प्रकार किया जाए कि स्वेच्छा से कार्य करने का विशाल क्षेत्र अधीनस्थ कर्मचारियों को सौंपा जाए तथा शीर्षस्थ मुख्य अधिकारी को कम से कम प्रश्न संबोधित किए जाएं ।
2. प्रशासकीय पक्ष II:
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संगठन की व्यक्ति इकाईयों को अधिक शक्ति सौंपी जाए तथा मुख्य कार्यालय में नियंत्रण की कुछ मूल शक्तियों को ही रखा जाए ।
3. राजनीतिक पक्ष:
निर्वाचित निकायों के हाथों में अधिक शक्ति सौंपी जाए और प्रशासन के कार्यों में जनता का पूरा-पूरा सहयोग करें ।
4. भौगोलिक पक्ष:
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जनता के निकट तथा मुख्य कार्यालय के दूर की क्षेत्रीय इकाईयों को स्वतंत्रता दी जाए ।
5. कार्यात्मक पक्ष:
विभिन्न कार्यों को सम्पन्न करने के लिए विभिन्न विभागों को कार्यों की स्वतंत्रता दी जाए ।
अतः जिस प्रशासकीय पद्धति में केंद्रीय सरकार के अधिकारियों के हाथों में अत्यधिक शक्ति निहित हो, जिसके परिणामस्परूप निम्नतर शासकीय स्तरों के कर्मचारियों की शक्ति और विवेक में कमी होती है, तो उसे केंद्रीकृत व्यवस्था (Centralized System) कहते हैं ।
इसके विपरीत, जिस प्रशासकीय प्रणाली में कानून या संविधान के द्वारा स्थानीय प्रबंधकारी निकायों में काफी अधिक शक्ति रखी गई हो, उसे ‘विकेंद्रीकृत व्यवस्था (Decentralization) कहते हैं ।
विकेंद्रीकरण और प्रत्यायोजन में अंतर (Difference in Decentralization and Delegation):
विकेंद्रीकरण प्रत्यायोजन से भिन्न है । विकेंद्रीकरण के अंतर्गत केंद्रीय सत्ता अपनी कुछ शक्तियाँ स्थानीय अधिकारियों को प्रदान कर देती हैं । फलस्वरूप स्थानीय अधिकारी अपने क्षेत्र में पूर्णतः स्वायत्त होते हैं । इसके विपरीत, प्रत्यायोजन में केंद्रीय सत्ता स्थानीय अभिकरणों को जो कार्य सौंपती है उन्हें करने के लिए न तो वे स्वायत्त होते हैं और न ही उनको उत्तरदायी ठहराया जा सकता है ।
वास्तव में वे केंद्रीय सत्ता के नाम से ही शक्तियों का उपयोग करते है । ऐसी स्थिति में स्थानीय सत्ता केंद्रीय सत्ता के ऐजेंट के रूप में कार्य करती है, और केंद्रीय सत्ता को आदेश देने या निर्णय बदलने का अधिकार रहता है ।
केंद्रीकरण तथा विकेंद्रीकरण के निधार्रक तत्व (Determinants of Centralization and Decentralization):
एक अभिकरण को अपनी शक्ति का किस मात्रा में केंद्रीकरण करना चाहिए तथा किस मात्रा में विकेंद्रीकरण, यह कई तत्वों पर निर्भर रहता हो ।
फेजलर ने इस प्रकार के चार तत्वों का विवेचन किया है:
उत्तरदायित्व का तत्व उत्तरदायित्व का तत्व विकेंद्रीकरण पर रोक लगाता है, तथा वह केंद्रीयकरण के पक्ष में है । विभाग अध्यक्ष विभाग में प्रत्येक कार्य के लिए अंतिम रूप से उत्तरदायी होता है, अतः यह स्वाभाविक है कि वह अपनी शक्ति को विकेंद्रित नहीं करना चाहता ।
1. प्रशासनिक तत्व:
केंद्रीयकरण और विकेंद्रीयकरण को प्रभावित करने वाले प्रशासनिक तत्व अनेक हैं । उनमें से एक महत्वपूर्ण तत्व संगठन की आयु है । पुराने संगठनों में विकेंद्रीयकरण सरल होता है । इसका कारण है कि उनके भीतर प्रक्रियाएँ और परंपराएं भली प्रकार जड़-पकड़ लेती है, जबकि इसके विपरीत नए संगठनों में छोटी-छोटी बातों पर उच्चतर अधिकारियों का निर्णय प्राप्त करना आवश्यक होता है ।
2. कार्यात्मक तत्व:
कार्यात्मक तत्व केंद्रीकरण तथा विकेंद्रीकरण की समस्या को अनेक रीतियों से प्रभावित करते हैं । यदि किसी विभाग के कार्य बहुमुखी हों तो निश्चित ही उस विभाग का विकेंद्रीकरण किया जाएगा, क्योंकि विभागाध्यक्ष के पास न तो इतना समय होगा और न प्राविधिक कौशल ही कि वह स्वयं उन सबका प्रबंध कर सके परंतु यदि किसी विभाग को प्रतिरक्षा, यातायात आदि के मामले से संबंधित कोई ऐसा कार्य सौंपा गया है जिसके अंतर्गत राष्ट्रीय स्तर पर समरूपता आवश्यक हो तो उस समरूपता की स्थापना के लिए केंद्रीयकरण अनिवार्य हो जाएगा ।
3. बाह्य तत्व:
केंद्रीकरण तथा विकेंद्रीकरण को प्रभावित करने वाले कुछ बाध्य तत्व भी होते हैं । यदि विकास योजना जैसे किसी कार्यक्रम के क्रियान्वयन के लिए लोक समर्थन अथवा जनता के समर्थन की आवश्यकता हो तो उसकी प्राप्ति के लिए विकेंद्रीकरण अनिवार्य हो जाता है ।
यदि एक संगठन में यह आवश्यक हो जाए कि आन्तरिक कार्यों के अतिरिक्त बाध्य समस्याओं पर भी ध्यान दिया जाए, जैसे-नागरिकों को प्रशासनिक प्रक्रिया में शामिल करना, अन्य संघीय, राज्यीय एवं स्थानीय अभिकरणों के साथ सहयोग करना, क्षेत्रीय कार्यों पर राजनीतिक दबावों का ध्यान रखना आदि का विकेंद्रीकरण किया जा सकता है ।
विकेंद्रीकरण की सीमाएँ (Limitations of Decentralization):
कुछ विचारकों का मानना है कि विकेंद्रीकरण को केवल एक सीमा तक ही लागू किया जा सकता है । अतः प्रशासकीय प्रणाली में इस हेतु कुछ आरक्षणों की व्यवस्था आवश्यक है ।
अपने कार्यों का वितरण करने से पहले केंद्रीय अधिकारियों को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
1. स्थानीय अधिकारियों को एक से अधिक केंद्रीय अधिकारियों या कार्यालय के प्रति उत्तरदायी नहीं होना चाहिए ।
2. अधिकार-क्षेत्र का निर्धारण बडी सावधानी से किया जाना चाहिए ।
3. अनेक क्षेत्रीय संस्थानों की प्रक्रियाएँ एक विशेष समान स्तर की होनी चाहिए; यह आवश्यक नहीं कि वे एक सी ही हों ।
4. स्थानीय निकायों का पर्याप्त लचीला भौतिक व मनोवैज्ञानिक ढाँचा होना चाहिए जिससे वह संस्था स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल स्वयं को ढाल सकें ।
5. क्षेत्रीय इकाई को ऐसे निर्णय लेने चाहिए जिनका समग्र नीति पर प्रभाव पड़े, परिस्थिति उत्पन्न होने पर उसे स्वयं निर्णय लेने को प्रोत्साहित करना चाहिए ।
6. तुरंत अपील की जा सके, ऐसी पद्धति विद्यमान होनी चाहिए ।
7. क्षेत्र द्वारा केंद्र को मुक्त रूप से सुझाव दिए जाने चाहिए ।
8. प्रतिवेदन एवं निरीक्षण की समुचित प्रणाली द्वारा केंद्रीय सत्ता को संगठन की दूरस्थ या क्षेत्रीय इकाइयों को पूरा ज्ञान प्राप्त होते रहना चाहिए ।
केंद्रीकरण एवं विकेंद्रीकरण के गुण तथा दोष (Properties and Defects of Centralization and Decentralization):
केंद्रीकरण के गुण:
आजकल केंद्रीकरण की बढ़ती हुई लोकप्रियता का कारण उसके कई गुण है:
1. केंद्रीकृत व्यवस्था में प्रशासन की सभी इकाइयों पर केंद्रीय सत्ता का पर्याप्त एवं प्रभावशाली नियंत्रण रहता है, अतएव क्षत्रीय या स्थानीय कर्मचारी मनमानी नहीं कर सकते ।
2. केंद्रीकृत व्यवस्था में एकरूपता रहती है । समस्त प्रशासनिक संगठन केंद्र द्वारा निर्धारित नीतियों एवं सिद्धांतों के अनुसार चलता है; इसके फलस्वरूप शासन में सुविधा रहती है ।
3. इससे प्रशासन में मितव्ययिता रहती है । इस व्यवस्था में सभी साधन एक साथ जुटाए जा सकते हैं, माल की खरीद बडे पैमाने पर एक साथ की जाती है । कारखानों का संचालन भी इसी सिद्धांत के अनुसार होता है । अतः यह प्रणाली विकेंद्रीकरण की प्रणाली से कम खर्चीली है ।
4. केंद्रीकृत प्रशासन में राष्ट्रीय हित सर्वोपरि रहता है । इस व्यवस्था में स्थानीय राजनीति शासन पर हावी न होने से प्रशासन में भ्रष्टाचार, पक्षपात, भाई-भतीजावाद, आदि के दोष नहीं उत्पन्न हो पाते है ।
5. केंद्रीकरण प्रशासन का अर्थ यह है कि नागरिकों को केवल एक ही प्रशासन पर ध्यान देना होता है तथा उसके लिए सरल हो जाता है कि वह सार्वजनिक अधिकारियों के कार्य को समझ सके और उसके बारे में कोई निर्णय ले सके ।
केंद्रीकरण के दोष:
केंद्रीकरण के उपर्युक्त गुणों के साथ-साथ कई बड़े दोष भी हैं:
1. केन्द्रीकरण के विरुद्ध पहला तर्क यह है कि इसके परिणामस्वरूप प्रशासन के उच्चतर स्तरों पर कार्य इकट्ठा होता रहता है, सफल क्रियान्वयन में अवरोध उपस्थित हो जाते हैं तथा निर्णय करने और उनको क्रियान्वयन करने में देरी होती है ।
2. केन्द्रीय अधिकारी जनता से बहुत दूर होते हैं तथा वे स्थानीय दशाओं तथा समस्याओं से निकट से परिचित नहीं होते । इसका कारण यह है कि स्थानीय परिस्थितियां और समस्याएं स्थान-स्थान पर भिन्न होती हैं ।
3. इसमें शासन की समूची नीतियों का निर्माण केन्द्रीय सरकार द्वारा किया जाता है अतः प्रशासन में लचीलापन नहीं रह पाता । स्थानीय अधिकारी केन्द्रीय सत्ता के आदेशों का अक्षरशः पालन करने के लिए बाधित, होते हैं । वे स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार इनमें कोई परिवर्तन नहीं कर सकते हैं, इससे शासन में अवांछनीय कठोरता आ जाती है ।
4. केन्द्रीकरण के फलस्वरूप प्रशासन में लोक-अभिक्रम तथा जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से भाग लेने के अवसर बहुत कम हो जाते हैं । इससे लोकतंत्र निर्बल होता है । ऐसा शासन प्रायः जन-संपर्क और जन-सहयोग न होने के कारण अलोकप्रिय हो जाता है ।
विकेंद्रीकरण के गुण:
विकेंद्रीकरण के निम्नलिखित लाभ हैं:
1. केंद्रीकृत व्यवस्था में क्षेत्रीय या स्थानीय अधिकारियों को केन्द्रीय सत्ता से पूर्व अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं रहती, इसलिए वे शीघ्र निर्णय ले सकते हैं और इससे कार्य में विलंब नहीं होता ।
2. विकेन्द्रित व्यवस्था द्वारा शीर्ष स्थित अधिकारी अथवा मुख्य कार्यालय का कार्यभार कम होता है तथा उसे राहत प्राप्त होती है ।
3. विकेन्द्रित व्यवस्था में स्थानीय कर्मचारियों को प्रशासनिक कार्यों के संबंध में निर्णय लेने की काफी सीमा तक स्वतंत्रता रहती है ।
4. जब शक्ति विकेन्द्रित हो जाती है तो प्रशासन के अनेक दोष मिट जाते हैं । कार्य की देरी, लालफीताशाही, आदि समाप्त हो जाती है तथा त्वरित कार्यवाही को प्रोत्साहन मिलता है ।
5. स्थानीय समस्याओं का उचित समाधान केन्द्रित व्यवस्था में नहीं हो पाता क्योंकि स्थानीय निकायों को केन्द्रित आदेशों की प्रतीक्षा करनी पड़ती है, कार्य में देर लगती है, परंतु विकेन्द्रित व्यवस्था में उनके संबंध में तुरंत विचार एवं कार्यवाही की जाती है क्योंकि स्थानीय निकायों को केन्द्रीय इच्छा पर अवलम्बित नहीं रहना पड़ता ।
विक्रेद्रीकरण के दोष:
विकेंद्रीकरण के निम्नलिखित दोष हैं:
1. इस व्यवस्था में केन्द्रीय सत्ता का नियंत्रण अपर्याप्त रहता है जिससे स्थानीय कर्मचारियों में स्वेच्छाचारी प्रवृत्ति बल पकड़ती है । बजट निर्माण, करारोपण, आदि कतिपय कार्य एक केद्रीकृत व्यवस्था द्वारा अधिक अच्छी तरह संपन्न किए जा सकते हैं ।
2. किसी भी संस्था में सत्ता का विकेन्द्रीकरण कर देने से समन्वय की समस्या उठ खड़ी होती है ।
3. विकेन्द्रीकरण व्यवस्था में केन्द्रीय और स्थानीय दो प्रकार के कर्मचारियों की व्यवस्था करनी पड़ती है । स्पष्टतः इनकी संख्या बहुत अधिक रहती है । अतः विकेन्द्रित व्यवस्था में केन्द्रित पद्धति से अधिक धन व्यय होता है ।
4. विकेन्द्रित व्यवस्था में कर्मचारी राष्ट्रीय हित को भूल सकता है क्योंकि कर्मचारी में स्थानीयता की भावना इतनी तीव्र हो जाती है कि वह राष्ट्रीय हित को भूल कर अपने स्थानीय हितों की पूर्ति में लग जाते हैं ।
5. विकेन्द्रित प्रणाली में शासन की एकरूपता नहीं पायी जाती । यद्यपि केन्द्र सामान्य नीति निर्धारित कर देता है, तथापि विभिन्न क्षेत्रों के अधिकारी स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार उसमें परिवर्तन या संशोधन कर देते हैं । वे भिन्न-भिन्न प्रकार की कार्य-प्रणालियां अपनाते है । इसमें प्रशासन की एकरूपता नष्ट हो जाती हैं ।
मूल्यांकन:
केन्द्रीयकरण तथा विकेन्द्रीकरण में से किस पद्धति को सुनिश्चित रूप से अधिक अच्छा माना जाए, यह कहना कठिन है किंतु समय, परिस्थिति और कार्य की प्रकृति के आधार पर ही यह निर्धारित किया जाता है कि किसी विशेष संगठन का केन्द्रीयकरण किया जाए अथवा विकेन्द्रीकरण ।
विलोबी ने लिखा है – ”संघीय सरकार की सेवाओं द्वारा इन दोनों में से कौन-सी पद्धति प्रयुक्त की जानी चाहिए, इस बारे में कोई सामान्य मत नहीं दिया जा सकता । सब कुछ किए जाने वाले कार्य की प्रकृति और अन्य विशेष प्रणालियों पर निर्भर करेगा ।”
डेविड डी हुमेन का निष्कर्ष है कि – ”ऐसा प्रतीत होता है कि व्यवहार में किसी भी प्रशासकीय संगठन में इन दोनों ही प्रकार की पद्धतियों के कुछ न कुछ लक्षण अवश्य पाये जाते हैं । वास्तव में इन दोनों ही पद्धतियों को साध्य (End) नहीं समझना चाहिए वरन् उन्हें कुशल प्रशासन के उद्देश्य की प्राप्ति का साधन (Means) मात्र मानना चाहिए । किसी भी प्रशासकीय संगठन में ये दोनों पद्धतियाँ इस अनुपात में अपनाई जानी चाहिए जिससे उसमें अकुशलता की मात्रा न्यूनतम की जा सके ।”
वर्तमान समय में यह तर्क सही है कि कोई भी राष्ट्र शासन के शक्तिशाली केन्द्रीयकरण के बिना नहीं जी सकता है और ना ही उन्नति कर सकता है । अतः इन विशेष कारणों से केन्द्रीयकरण की प्रवृति का प्रसार हो रहा है । फिर भी प्रजातंत्रात्मक आधार के विस्तार के लिए यह मांग भी जोर पकड़ रही है कि शासन में सामान्य जनता को भाग लेने के अधिकाधिक अवसर दिए जाएं ।
इस माँग की पूर्ति विकेन्द्रीकरण द्वारा ही संभव है और भारत को प्रशासन की विकेन्द्रीत पद्धति के आधार पर संगठित करने के प्रभावशाली प्रयास चल रहे हैं । इससे ही ”आदर्श संघात्मक व्यवस्था” के आदर्श को प्राप्त किया जा सकता है ।