नियंत्रण की अवधि: मतलब, देखें और कारक | प्रबंध | Read this article in Hindi to learn about:- 1. नियंत्रण के दायरे का अर्थ (Span of Control – Meaning) 2. सीमा संबंधी दृष्टिकोण (Span of Control – Views on Limit) 3. निर्धारक कारक (Factors).

नियंत्रण के दायरे का अर्थ (Span of Control – Meaning):

नियंत्रण के दायरे के सिद्धांत का अर्थ है- अधीनस्थों या कार्य की इकाइयों की वह संस्था जिसे कोई अधिकारी व्यक्तिगत तौर पर निर्देशित, नियंत्रित और निरीक्षित कर सकता है । इसे “नियंत्रित के दायरे” के नाम से भी जाना जाता है ।

डिमॉक व डिमॉक के अनुसार- ”नियंत्रण का दायरा किसी उद्यम के प्रमुख कार्यकारी और उसके मुख्य सहायक अधिकारियों के बीच होने वाले सीधे, आदतन संचार संपर्कों की संस्था और सीमा है ।”

पदानुक्रम के साथ संबंध:

पदानुक्रम एवं नियंत्रण के दायरे के बीच एक निकट संबंध है । एक पदानुक्रमिक संगठन में स्तरों की संख्या एक उच्चतर अधिकारी के नियंत्रण दायरे पर निर्भर करती है ।

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संकुचित या लघुत्तर नियंत्रण दायरा संगठन में स्तरों की संख्या को बढ़ाता है और एक लम्बी संरचना का निर्माण करता है जबकि नियंत्रण कर व्यापक या वृहतर दायरा स्तरों की संख्या को कम करता है और एक सपाट संरचना को जन्म देता है ।

सीमा संबंधी दृष्टिकोण (Span of Control – Views on Limit):

लोक प्रशासन में नियंत्रण के दायरे का सिद्धान्त फ्रांसीसी प्रबंधन सलाहकार वी.ए. ग्राइकनस द्वारा मनोविज्ञान में व्याख्यायित ”ध्यान के दायरे” की अवधारणा से जुड़ा है । यह अवधारणा कहती है कि उन अनेक कार्यों की एक सीमा होती है जिन पर एक बार में कोई ध्यान दे सकता है ।

दूसरे शब्दों में, एक मनुष्य के ध्यान का दायरा सीमित है क्योंकि मानवीय क्षमता और ध्यान की सीमा होती है । इस तरह, यह कहता है कि नियंत्रण के दायरे की एक सीमा होती है जो कुछ नहीं है बल्कि श्रेष्ठतर व्यक्ति द्वारा अधीनस्थों के निरीक्षण के काम में लगाया गया ध्यान का दायरा है ।

लेकिन नियंत्रण के दायरे की ठीक-ठीक सीमा पर विभिन्न विद्वानों की राय अलग है:

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A. सर इयान हैमिल्टन महसूस करते हैं कि एक पर्यवेक्षक 3 या 4 अधीनस्थों का पर्यवेक्षण कर सकता है ।

B. वी.ए ग्राइकनस ने पाया कि एक श्रेष्ठतर व्यक्ति 5 से 6 अधीनस्थों के कार्य का सीधे पर्यवेक्षण कर सकता है ।

C. लिण्डल अरविक का मानना है कि उच्चतर स्तरों पर एक श्रेष्ठतर व्यक्ति 5 से 6 अधीनस्थों का पर्यवेक्षण कर सकता है जबकि निम्नतर स्तरों पर नियंत्रण का दायरा 8 से 12 है जहां कार्य ज्यादा सरल और रोजमर्रा का है ।

D. लॉर्ड हाल्डेन और ग्राहम वॉलेस का मानना है कि एक प्रमुख कार्यकारी बिना अतिरिक्त भार वहन किए 10 से 12 अधीनस्थों का पर्यवेक्षण कर सकता है ।

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E. अमेरिकी मैनेजमेंट एसोसिएशन ने कहा कि एक श्रेष्ठतर व्यक्ति 9 अधीनस्थों का पर्यवेक्षण कर सकता है ।

वी.ए. ग्राइकनस के अनुसार, किसी कार्यकारी के प्रति जबावदेह अधीनस्थों की संख्या अंकगणितीय रूप से बढ़ती है, जबकि संभावित संबंधों की संख्या रेखागणितीय रूप से बढ़ती है । इसकी वजह यह है कि पर्यवेक्षण व्यक्तिगत अधीनस्थों तक नहीं सीमित रहता, बल्कि इसमें उनके परस्पर संबंधों के सभी संभावित योग शामिल होते हैं ।

पर्यवेक्षित होने वाले सभी संबंधों की कुल संख्या होगी- सीधे सकल + संकर + सीधे समूह । उनकी विचारधारा को गणितीय रूप में निम्न रूप से अभिव्यक्त किया जा सकता है- [n(2n/2 + n-1)] जहां n है- पर्यवेक्षक के प्रति सीधे जवाबदेह अधीनस्थों की संख्या ।

हालांकि, नियंत्रण के दायरे की ठीक-ठीक संख्या पर कोई एकमत नहीं है, मगर इस बात पर प्रशासन के विद्वानों की सामान्य सहमति है कि दायरा जितना छोटा होगा, परिणामत: श्रेष्ठतर-अधीनस्थ संपर्क उतना अधिक होगा तथा नियंत्रण, पर्यवेक्षण और निर्देशन उतना अधिक प्रभावी होगा ।

मगर सेकलन-हडसन का दृष्टिकोण अलग है । वह कहते हैं- ”अत्याधिक सीमित नियंत्रण के दायरे में खतरे होते हैं; जैसे- अधीनस्थों का विस्तृत पर्यवेक्षण और नतीजन उन्हें प्रोत्साहित कर पाने और उनकी क्षमताओं का पूरी तरह इस्तेमाल करने में असफलता । यह भी संभव है कि छोटे नियंत्रण के दायरे का अर्थ निर्देशों की लम्बी श्रृंखला हो ।”

नियंत्रण के दायरे का निर्धारक कारक (Factors Determining Span of Control):

नियंत्रण के दायरे की ठीक-ठीक लम्बाई निम्न कारकों पर निर्भर करती है:

i. कार्य:

इसका आशय पर्यवेक्षित होने वाले कार्य के प्रकाय/प्रकृति से है । नियंत्रण का दायरा ज्यादा होता है, जब पर्यवेक्षित होने वाला कार्य सरल, दैनदिन, यांत्रिक और सजातीय चरित्र का होता है बजाय उस स्थिति के जहां कार्य जटिल, गैर-दैनदिन, बौद्धिक और विषम चरित्र का होता है ।

ii. समय:

इसका तात्पर्य सम्बद्ध संगठन की आयु से है । नये संगठनों की तुलना में पुराने संगठनों में नियंत्रण का दायरा अधिक होता है । इसका कारण यह होता है कि पुराने संगठन में चीजें स्थिरता प्राप्त कर लेती है और नये संगठनों में कुछ ही पूर्वाधिकारी होते हैं ।

iii. स्थान:

इसका आशय पर्यवेक्षित होने वाले कार्य के स्थान से है । नियंत्रित का दायरा तब ज्यादा होता है जब पर्यवेक्षक और पर्यवेक्षित होने वाले अधीनस्थ एक ही छत के नीचे होते हैं बजाय उस स्थिति के जब सभी अधीनस्थ अलग कमरों में पर्यवेक्षक से कुछ दूर काम करते हैं ।

इस परिप्रेक्ष्य में, लिण्डल अरविक ने ‘सीधे पर्यवेक्षण’ और बॉस तक ‘पहुंच’ के बीच यह अर्थ संप्रेषित करते हुए फर्क किया कि जब एक पर्यवेक्षक सीधे तौर पर सिर्फ चंद अधीनस्थों का पर्यवेक्षण कर सकता है, वह संगठन में अधीनस्थों को उस तक पहुंच उपलब्ध कराते हुए कुछ लचीलापन ला सकता है ।

iv. व्यक्तित्व:

इसका आशय पर्यवेक्षक और पर्यवेक्षित की योग्यता से है । जब पर्यवेक्षक समझदार, ऊर्जस्वी और तेज तर्रार होता है तो नियंत्रण का दायरा ज्यादा होता है जबकि पर्यवेक्षक के कमजोर, मूर्ख और अयोग्य होने पर यह कम होता है । ठीक उसी तरह अधीनस्थों के प्रशिक्षित और अनुभवी होने पर नियंत्रण का दायरा ज्यादा होता है और उनके अप्रशिक्षित और अयोग्य होने पर कम होता है ।

उपरोक्त कारकों के अतिरिक्त नियंत्रण का दायरा कारकों पर निर्भर करता है:

(i) प्राधिकार का प्रतिनिधि,

(ii) संगठन की परंपराएँ और परिवेश,

(iii) पर्यवेक्षण की तकनीकें ।

कमेटी ऑन एडमिनिस्ट्रेशन (1972) की रिपोर्ट के अनुसार, नियंत्रण का दायरा निम्न मामलों में बड़ा होता है:

(i) ऊर्जस्वी, कुशल, बुद्धिमान और योग्य श्रेष्ठतम अधिकारी ।

(ii) योग्य, सुप्रशिक्षित और अनुभवी अधीनस्थ ।

(iii) यदि काम रूटीनी, दोहरावपूर्ण, अनुमान योग्य और एक समान हो ।

(iv) सुनियोजित काम ।

(v) स्टाफ सहायता का उपयोग करना ।

(vi) विभिन्न प्रभावी संचारों का इस्तेमाल ।

(vii) एक ही छत के नीचे काम करते कर्मचारी ।

निम्न कारकों के कारण पिछले कुछ समय में नियंत्रण के दायरे का पूरा विचार बदला है:

(i) प्रशासन में स्वचालन और यांत्रिकीकरण का बढ़ता इस्तेमाल ।

(ii) प्रबंधन सूचना व्यवस्था (MIS) के कारण आई सूचना क्रांति ।

(iii) लोक सेवा में विशेषज्ञों, तकनीकिज्ञों और पेशेवरों की बढ़ती संख्या और भूमिका ।