Read this article in Hindi to learn about the four main bases of organisation. The bases are:- 1. कार्य या उद्देश्य या प्रयोजन (Purpose) 2. प्रक्रिया (Process) 3. व्यक्ति (Person) 4. क्षेत्र (Place).
संगठन को गठित करते समय इन बातों को ध्यान में रखा जाता है:
i. प्राप्त किया जाने वाला उद्देश्य या संपादित किये जाने वाला कार्य,
ii. की जाने वाली प्रक्रियाएं या लाभान्वित होने वाले व्यक्ति अथवा क्षेत्र-विशेष ।
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सार्वजनिक और निजी प्रत्येक क्षेत्र में छोटे बड़े अनेक संगठन हमारे चारों तरफ दिखायी पड़ते हैं । सरकार के तो अनेक संगठनों से हम रोजमर्रो की जरूरतों के लिये जुड़े होते है जैसे स्थानीय शासन का सफाई विभाग या जलकर विभाग ।
इसी प्रकार अनेक निजी संगठनों की गतिविधियां भी हमारे सामने से गुजरती हैं जैसे रोटरी क्लब, महिला गण्डल, आयै समाज आदि । इन सबको ध्यानपूर्वक देखें तो प्रतीत होगा कि प्रत्येक संगठन किसी आधार पर गठित किया गया है जैसे उद्देश्य का आधार या सेवा का आधार या प्रक्रिया का आधार ।
सरकारी व गैर सरकारी दोनों में ही विभिन्न आधारों पर संगठन बनाये जाते हैं । सरकारें तो अपने विभाग या कार्यालयों का गठन लगभग सभी आधारों पर करती है । लेकिन कार्य या उद्देश्य ही सर्वप्रमुख रूप से सभी देशों के प्रशासनों में मुख्य आधार के रूप में लिये जाते हैं ।
अरस्तु ने मनुष्य तथा सेवा (श्रेणी) दो आधार बताये थे । लुथर गुलिक ने इस हेतु 4 पी का सिद्धांत दिया – कार्य, प्रक्रिया, व्यक्ति और स्थान । हाल्डेन समीति और प्रशासनिक सुधार आयोग के अध्ययन दल (1966-70) ने कार्य (उद्देश्य) तथा सेवा (श्रेणी) दोनों को संगठन का आधार बताया लेकिन उनमें से कार्य या उद्देश्य (प्रयोजन) को सर्बप्रमुख माना | लूथर गुलिक ने इस हेतु 4 पी का सिद्धांत दिया, कार्य, प्रक्रिया, व्यक्ति और स्थान] |
1. कार्य या उद्देश्य या प्रयोजन (Purpose):
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वस्तुतः संगठन उद्देश्य पूर्ति के लिए ही बनते है । अतः स्वाभाविक रूप से यही आधार अधिकांश रूप से लिया जाता है ।
(i) इसके अंतर्गत उद्देश्य की प्राप्ति हेतु सभी आवश्यक कार्य संगठन में रख दिये जाते हैं ।
(ii) वस्तुतः विभागों या इकाइयों का विभाजन ”कार्य” का ही विभाजन होता है । ये कार्य या उद्देश्य विभिन्न सेवाओं से संबंधित होते है, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, शांति, आदि ।
(iii) स्वास्थ्य, कृषि, रक्षा, शिक्षा, रेल्वे, डाक-तार, भारत में ‘केंद्र व राज्य’ के अधिकांश विभाग इसी आधार पर बने है ।
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(iv) लेकिन ”कार्य” में भी मुख्य और गौण कार्यों का समूह होता है और इनका निश्चय करना कठिन होता है ।
लाभ:
(I) संगठन आसानी से पहचाने जा सकते हैं, जैसे रक्षा मंत्रालय रक्षा संबंधी कार्य करता है ।
(II) संगठन में सभी कार्य होते है अतः उसे अन्य पर निर्भर नहीं रहना पड़ता ।
(III) उसके सभी कार्यों में अच्छा समन्वय एक अध्यक्ष के अधीन हो जाता है ।
(IV) कार्य आधारित संगठन अधिक सुसम्बद्ध होते हैं ।
(V) यह संगठन का सरलतम आधार है ।
दोष:
(I) कार्यों में दोहराव- विभिन्न विभाग अनेक समान गतिविधियाँ संचालित करते हैं ।
(II) संगठन में आत्मनिर्भरता की अभिमानी प्रवृत्ति क्योंकि अन्य पर निर्भर नहीं रहना पड़ता ।
(III) छोटे कार्य की उपेक्षा ।
(IV) कार्य को परिभाषित करना मुश्किल ।
2. प्रक्रिया (Process):
(i) इनमें चिकित्सा, इंजीनियरिंग, स्टोनोग्राफी, न्याय विभाग, विधिविभाग, सांख्यिकी जैसी प्रक्रिया को आधार बनाया जाता है ।
(ii) विभिन्न विभागों में इनकी सेवाएं लगती हैं । इन्हें एक पृथक विभाग में संगठित कर लेते हैं । फिर अन्य विभागों की आवश्यकता की पूर्ति ये विभाग करते हैं ।
(iii) ऐसे संगठनों में प्रक्रिया से संबंधित उन कार्मिकों को एक संगठन में रखा जाता है, जिनकी एक विशिष्ट व्यवसायिक योग्यता (जैसे इंजीनियरिंग या चिकित्सा) होती है ।
(iv) लेकिन प्रक्रिया के आधार का उपयोग बहुत कम होता है । अतः इनके आधार पर निर्मित संगठनों की संख्या बेहद कम होती है । फिर कोई महत्वपूर्ण प्रक्रिया पर ही विभाग गठित होते हैं, गौण प्रक्रिया पर नहीं ।
(v) भारत सरकार का विधि मंत्रालय, सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (1999 में गठित) केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग (CPWD) आदि प्रक्रिया आधारित विभाग हैं ।
लाभ:
(I) उच्च विशेषीकरण, क्योंकि एक ही प्रकार के कार्य करने होते हैं ।
(II) मितव्ययी और कार्यकुशल – ये उच्च विशेषीकरण से प्राप्त लाभ हैं ।
(III) अच्छा समन्वय – एक समान गतिविधियों में ।
(IV) तकनीकी प्रविधियों और प्रयोगशालाओं का बेहतर उपयोग ।
(V) सेवाओं और उनके कार्यों के दोहराव पर रोक ।
दोष:
(I) ऐसे विभिन्न विभागों के मध्य समन्वय मुश्किल क्योंकि सभी अपनी विशेषज्ञता के अहम में चूर होते हैं ।
(II) साध्य (कार्य) के स्थान पर, साधन (मितव्ययिता) पर अधिक बल ।
(III) सीमित प्रयोज्यता – इस आधार पर कुछ विभाग ही गठित किये जा सकते हैं ।
(IV) अन्य विभागों को सेवाएं देने में विलम्ब ।
(V) संगतता (Compatibility) का अभाव ।
3. व्यक्ति (Person):
(i) जिन व्यक्तियों या समूहों को सेवा दी जानी है, उनके आधार पर निर्मित विभाग जैसे पुनर्वास मंत्रालय ।
(ii) इसमें लाभाविन्त व्यक्तियों, समुदायों के लिए आवश्यक सभी कार्य, सेवाएं, प्रक्रियाएँ एक ही विभाग में गठित कर ली जाती है ।
(iii) अन्य उदाहरण- हाल ही गठित अप्रवासी भारतीयों के लिये मंत्रालय, आदिम जाति विभाग (1999 में केन्द्र में गठित) महिला और बाल कल्याण विभाग । राज्यों के आदिम जाति कल्याण मंत्रालय आदि ।
लाभ:
(I) लाभान्वित ग्राहकों के लिए सर्वोत्तम व्यवस्था, उनकी आवश्यकताएं एक ही विभाग से पूरी हो जाती हैं । उन्हें पता रहता है कि उनकी समस्या कहां हल होगी ।
(II) संगठन अपने उद्देश्यों की पूर्ति (ग्राहक-लाभ) हेतु अन्य पर निर्भर नहीं रहना पड़ता ।
(III) अच्छा, आंतरिक सांगठनिक, समन्वय ।
(IV) कार्मिकों में आसान सम्पर्क ।
दोष:
(I) विशेषीकरण का विरोधी – कार्मिक अनेक कार्य तो करते हैं लेकिन किसी एक के भी विशेषज्ञ नहीं होते ।
(II) दबाव गुटों की उत्पत्ति – समुदाय या व्यक्ति गुट बनाकर विभाग से नियम विरोधी काम भी करवा लेते हैं ।
(III) समाज में विखण्डन की प्रवृत्तियों को बढ़ावा (उदाहरण के लिये भारत में SC/ST आयोग के बाद महिला आयोग, बाल आयोग, अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग आदि गठित हुये और अन्य ऐसे आयोगों की मांग भी बढ़ रही है ।
(IV) सामाजिक दबाव का भय ।
4. क्षेत्र (Place):
(i) किसी क्षेत्र विशेष को सेवा देनी हो, उनका विकास करना हो या वहां कार्यों का प्रबंध करना हो, तब संगठन का यह आधार सबसे उपयुक्त होता है ।
(ii) क्षेत्रीय संगठनों का निर्माण ‘क्षेत्र’ या भौगोलिक आधार पर ही होता है । इसमें भी सभी गतिविधियों को एक विभाग में केन्द्रित कर उसे सामान्यतया उस क्षेत्र में अवस्थित कर देते हैं ।
(iii) ऐसे संगठन क्षेत्र के निवासियों की समस्त आवश्यकताओं, मूलभूत और विकासात्मक, दोनों को पूरा करते है ।
(iv) उदाहरण- भारत के विदेश विभाग ने विभिन्न देशों में दूतावास खोल रखे हैं । जिला प्रशासन, पंचायत समीति, SADA, CADA, दामोदर घाटी विकास निगम, टेनिस वेली परियोजना (अमेरिका) आदि इस रुप के अन्य उदाहरण हैं ।
(v) रेलवे, डाकतार और पुलिस विभाग भी क्षेत्रीय संगठन हैं ।
(vi) भारत में जिला प्रशासन, जनपद या ग्राम पंचायत, विदेश विभाग के 50 से अधिक संभाग (जो विभिन्न देशों से संबंधित विधियों का अध्ययन करते हैं) इसके सुन्दर उदाहरण हैं ।
लाभ:
1. क्षेत्र विशेष के विकास के लिये अत्यंत उपयोगी है ।
2. क्षेत्र में ही स्थित होने से मितव्ययिता में वृद्धि क्योंकि अधिकारियों के दौरे के खर्च बचते हैं ।
3. क्षेत्र में प्रदत्त सेवाओं के मध्य समन्वय में सहायक हैं ।
4. सभी कार्य एक ही विभाग में केन्द्रित होने से अन्य पर निर्भरता नहीं रहती है ।
दोष:
1. विशेषीकरण का अभाव क्योंकि विभिन्न कार्य करने होते हैं ।
2. स्थानीय राजनीति का दुष्प्रभाव आ जाता है ।
3. भ्रष्टाचार की संभावना क्योंकि उच्च नियंत्रण केन्द्र से दूरी होती है ।
4. प्रशासनिक एकरुपता भंग होती है ।
ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन (अमेरिका) का मत:
कोई भी एक आधार पूर्ण रूप से स्वीकार नहीं किया जा सकता । वस्तुतः प्रत्येक संगठन में विभिन्न आधार प्रयुक्त होते हैं, कोई ज्यादा, कोई कम, अतः संगठन निर्मित करते समय इन आधारों का प्रयोग इस प्रकार करना चाहिए कि उनके लाभ तो मिल सके, लेकिन उनके दुष्प्रभाव परस्पर समाप्त हो सके ।
किसी भी संगठन की रचना मात्र एक आधार पर विशुद्ध रूप से नहीं कि जा सकती । वस्तुतः प्रत्येक संगठन ‘उद्देश्य’ को लेकर अस्तित्व में आता है और इसकी पूर्ति के लिये वह किसी कार्य, प्रक्रिया विशेष को अपनाता है । फिर सरकारी संगठनों का उद्देश्य जनता की सेवा ही होता है और अनेक संगठन समुदाय विशेष की सेवा में लगे होते हैं ।
अतः संगठन के उक्त चारों ही आधार कम-अधिक मात्रा में बने रहते हैं । यह अवश्य है कि कोई एक आधार प्रधान होता है तो शेष गौण । लेकिन कार्य या उद्देश्य प्रत्येक विभाग में स्पष्ट रूप से मौजूद होता है, अतः इसे प्रमुख सांगठनिक आधार माना जाता है । निष्कर्षतः परिस्थिति अनुसार संगठन के आधार का चयन किया जाना चाहिये ।