Read this article in Hindi to learn about:- 1. योजना आयोग का दर्जा (Status of Planning Commission) 2. योजना आयोग का कार्य और भूमिका (Functions and Role of Planning Commission) 3. योजना आयोग का संरचना (Composition of Planning Commission) 4. [कार्यक्रम मूल्यांकन संगठन (Programme Evaluation Organisation (PEO)] and Other Details.

Contents:

  1. योजना आयोग का दर्जा (Status of Planning Commission) 
  2. योजना आयोग का कार्य और भूमिका (Functions and Role of Planning Commission)
  3. योजना आयोग का संरचना (Composition of Planning Commission)
  4. [कार्यक्रम मूल्यांकन संगठन (Programme Evaluation Organisation (PEO)]
  5. योजना आयोग का आलोचनात्मक मूल्यांकन (Critical Evaluation of Planning Commission)


1. योजना आयोग का दर्जा (Status of Planning Commission):

योजना आयोग की स्थापना वर्ष 1946 में के.सी. नियोगी की अध्यक्षता में गठित प्लानिंग बोर्ड की अनुशंसा पर भारत सरकार के एक प्रस्ताव द्वारा मार्च 1950 में की गई थी इस योजना आयोग न संवैधानिक निकाय है और न ही विधायी । दूसरे शब्दों में, इस आयोग की स्थापना न तो संविधान के अधीन है और न किसी अधिनियम के माध्यम से । भारत में योजना आयोग सामाजिक और आर्थिक विकास के नियोजन का सर्वोच्च निकाय है ।


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2. योजना आयोग का कार्य और भूमिका (Functions and Role of Planning Commission):

दिनांक 15 मार्च, 1950 के प्रस्ताव द्वारा योजना आयोग को निम्नलिखित कार्य सौंपे गए थे:

1. देश की भौतिक पूँजी और मानव संसाधनों का आकलन कर उनमें वृद्धि की संभावनाएँ तलाशना ।

2. देश के संसाधनों को सर्वाधिक प्रभावी और संतुलित ढंग से उपयोग में लाने संबंधी योजना बनाना ।

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3. योजनाओं के कार्यान्वयन की प्राथमिकताओं और उनके चरणों का निर्धारण करना ।

4. आर्थिक विकास में बाधक तत्वों का उल्लेख करना ।

5. प्रत्येक चरण में योजना के सफल कार्यान्वयन के लिए अपेक्षित तंत्र की प्रकृति का निर्धारण करना ।

6. योजनाओं के कार्यान्वयन की प्रगति की समय-समय पर समीक्षा तथा आवश्यक समायोजनों की अनुशंसा करना ।

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7. आयोग के कर्तव्यों के निर्वहन को सुगम बनाने या केंद्र अथवा राज्य सरकारों द्वारा किसी विषय पर मांगी गई सलाह से संबंधित समुचित अनुशंसा करना ।

कार्य विभाजन नियमावली के माध्यम से योजना आयोग के (उपर्युक्त के अतिरिक्त) निम्नलिखित विषय भी सौंपे गए हैं:

1. परिप्रेक्ष्य नियोजन (Perspective Planning) (भविष्य को ध्यान में रखकर योजना तैयार करना) ।

2. पहाड़ी क्षेत्र विकास कार्यक्रम ।

3. राष्ट्रीय विकास में जन सहयोग ।

4. राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र ।

5. इंस्टीट्‌यूट ऑफ एप्लाइड मैनपावर रिसर्च ।

यह ध्यान देने योग्य है कि योजना आयोग एक स्टाफ एजेंसी मात्र है । एक सलाहदाता निकाय जिसकी कोई कार्यकारी जिम्मेदारियाँ नहीं हैं । यह आयोग निर्णय लेने और उन्हें कार्यान्वित करने के लिए जिम्मेदार नहीं है । यह जिम्मेदारी केंद्र और राज्य सरकारों की है ।


3. योजना आयोग का संरचना (Composition of Planning Commission):

योजना आयोग की संरचना के संदर्भ में निम्नलिखित तथ्यों पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है:

1. आयोग का अध्यक्ष भारत का प्रधानमंत्री होता है । आयोग की बैठकों की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करता है ।

2. आयोग में उपाध्यक्ष का पद भी है । उपाध्यक्ष ही आयोग का पूर्णकालिक प्रधान होता है । उपाध्यक्ष ही पंचवर्षीय योजनाओं के प्रारूप को तैयार करने तथा उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष रखने के लिए जिम्मेदार है । उपाध्यक्ष की नियुक्ति केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा निर्धारित समय के लिए होती है । उसे कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त होता है । यद्यपि वह कैबिनेट का सदस्य नहीं है फिर भी कैबिनेट की सभी बैठकों में उसे बुलाया जाता है (किंतु उसे मत का अधिकार प्राप्त नहीं होता) ।

3. कुछ केंद्रीय मंत्रियों को आयोग के अंशकालिक सदस्य के रूप में नियुक्त किया जाता है । वित्त मंत्री और योजना मंत्री इस आयोग के पदेन सदस्य होते हैं ।

4. आयोग में 4-7 की संख्या में पूर्णकालिक विशेषज्ञ सदस्य होते हैं । उदाहरणार्थ: वर्ष 1994 में आयोग में सात सदस्य थे जिनके नाम हैं: डॉ. डी. स्वामीनाथन, डॉ. एस. जेड. कासिम डॉ चित्रा नायक डॉ जयंत पाटिल. जी.वी. रामकृष्ण सुश्री मीरा सेठ और प्रो0 जे.एस. बजाज । आयोग के पूर्णकालिक सदस्यों को राज्यमंत्री का दर्जा मिला हुआ है ।

5. आयोग में एक सदस्य सचिव भी होता है जो भारतीय प्रशासनिक सेवा का वरिष्ठ सदस्य होता है । आयोग में राज्य सरकारों का प्रतिनिधत्व नहीं है । योजना आयोग पूर्णतः केंद्रीय स्तर पर गठित निकाय है ।

तकनीकी प्रभाग:

तकनीकी प्रभाग योजना आयोग का प्रमुख क्रियात्मक यूनिट है ये प्रभाग मुख्यतः योजना-निरूपण, योजना-प्रबोधन और योजना-मूल्यांकन कार्य से जुड़े हैं । ये दो विस्तृत श्रेणियों के तहत आते हैं अर्थात सामान्य प्रभाग (जो पूरी अर्थव्यवस्था के पहलुओं से संबद्ध है) तथा विषय प्रभाग (जो विकास के विशिष्ट क्षेत्र से संबद्ध है) । योजना आयोग के वर्ष 1992-93 की वार्षिक रिपोर्ट में 12 सामान्य प्रभागों और 19 विषय प्रभागों का उल्लेख है ।

हाउसकीपिंग शाखाएँ:

योजना आयोग में निम्नलिखित हाउसकीपिंग शाखाएँ हैं:

(i) सामान्य प्रशासन शाखा ।

(ii) स्थापना शाखा ।

(iii) सतर्कता शाखा ।

(iv) लेखा शाखा ।

(v) कार्मिक प्रशिक्षण शाखा ।

कार्यक्रम सलाहकार:

वर्ष 1952 में योजना आयोग में कार्यक्रम सलाहकार का पद नियोजन के क्षेत्र में भारत संघ के राज्यों और योजना आयोग के मध्य तालमेल बनाए रखने के लिए सृजित हुए थे । आयोग में चार सलाहकार हैं जिन्हें अपर सचिव का दर्जा मिला हुआ है तथा प्रत्येक सलाहकार के प्रभार में कई राज्य हैं ।

सलाहकार के निम्नलिखित कार्य हैं:

(i) राज्यों में विकास कार्यक्रमों के कार्यान्वयन का आकलन करना ।

(ii) केद्रं द्वारा सहायता प्राप्त और केंद्र प्रायोजित योजनाओं की प्रगति की जानकारी केंद्रीय मंत्रियों और योजना आयोग को देते रहना ।

(iii) राज्यों से प्राप्त पंचवर्षीय और वार्षिक योजनाओं से संबंधित प्रस्तावों पर योजना आयोग को सलाह देना ।

प्रशासनिक सुधार आयोग ने कार्यक्रम सलाहकार के पदों का समर्थन करते हुए इन्हें सुदृढ़ करने का सुझाव दिया था । योजना आयोग के आंतरिक संगठन में दो पदक्रम हैं- प्रशासनिक और तकनीकी । प्रशासनिक पदों का प्रमुख योजना आयोग का सचिव होता है जिसकी सहायतार्थ संयुक्त सचिव उप सचिव अवर सचिव और अन्य प्रशासनिक तथा लिपिकीय कर्मचारी होते हैं ।

ये अधिकारी भारतीय प्रशासनिक सेवा केंद्रीय सचिवालय सेवा भारतीय लेखा एवं लेखा परीक्षा सेवा तथा गैर-तकनीकी केंद्रीय सेवाओं से लिए जाते हैं । दूसरी ओर तकनीकी पदों का प्रमुख सलाहकार होता है जिसकी सहायतार्थ निदेशक, प्रमुख, संयुक्त निदेशक और अन्य तकनीकी स्टॉफ होता है ।

तकनीकी पदों के लिए अधिकारी/कर्मचारी भारतीय आर्थिक सेवा, भारतीय सांख्यिकीय सेवा, भारतीय इंजीनियरिंग सेवा और अन्य केंद्रीय तकनीकी सेवाओं से लिए जाते हैं । सलाहकार तकनीकी प्रभाग का प्रधान होता है तथा उसे अपर सचिव या संयुक्त सचिव का दर्जा प्राप्त होता है ।


4. [कार्यक्रम मूल्यांकन संगठन (Programme Evaluation Organisation (PEO)]:

इस संगठन की स्थापना वर्ष 1952 में योजना आयोग की स्वतंत्र इकाई के रूप में हुई थी । फिर भी यह इकाई योजना आयोग के मार्गनिर्देशन में ही कार्य करता है । इस संगठन का प्रधान- निदेशक/प्रमुख होता है जिसकी सहायतार्थ संयुक्त निदेशक, उपनिदेशक, सहायक निदेशक और अन्य स्टाफ होता है । इस संगठन के सात क्षेत्रीय कार्यालय चेन्नई, हैदराबाद, मुंबई, लखनऊ, चंडीगढ़, जयपुर और कोलकाता में हैं । प्रत्येक क्षेत्रीय मूल्यांकन कार्यालय का प्रमुख-उप निदेशक होता है ।

कार्यक्रम मूल्यांकन संगठन पंचवर्षीय योजनाओं में निर्दिष्ट विकास कार्यक्रमों और योजनाओं के कार्यान्वयन का आकलन करता है ताकि योजना आयोग और कार्यकारी एंजेंसियों को समय-समय पर सूचना एवं जानकारी उपलब्ध करा सकें । यह संगठन राज्य मूल्यांकन संगठनों को भी तकनीकी सलाह उपलब्ध कराता है ।


5. योजना आयोग का आलोचनात्मक मूल्यांकन (Critical Evaluation of Planning Commission):

योजना आयोग की स्थापना मूलतः स्टाफ एजेंसी के रूप में परामर्श सेवा उपलब्ध कराने की दृष्टि से हुई थी किंतु बाद में यह एक शक्तिशाली और दिशा निदेशक प्राधिकरण के रूप में उभरा जिसके द्वारा की गई अनुशंसाओं पर केंद्र और राज्यों दोनों द्वारा विचार किया जाता है । आलोचकों ने योजना आयोग को ‘सुपर कैबिनेट’, ‘आर्थिक कैबिनेट’, ‘समांतर कैबिनेट’, ‘फिक्य व्हील ऑफ दी कोच’ आदि नाम दिया है ।

योजना आयोग की महत्वपूर्ण भूमिका के संबंध में निम्नलिखित टिप्पणियाँ की गई हैं:

(i) प्रशासनिक सुधार आयोग:

इस आयोग का मानना है कि ‘संविधान के तहत केंद्र अथवा राज्य में मंत्री ही कार्यकारी प्राधिकारी होता है.. .. ..दुर्भाग्यवश पिछले 17 वर्षों से योजना आयोग को पैरेलल कैबिनेट (समानांतर मंत्रिमंडल) और कभी-कभी ‘सुपर कैबिनेट’ (महा मंत्रिमंडल) होने का गौरव प्राप्त हुआ है ।

(ii) अशोक चंदा:

इन्होंने भी यह मत व्यक्त किया है ”आयोग की अपरिभाषित स्थिति और व्यापक विचारणीय मुद्‌दों के फलस्वरूप यह आयोग धीरे-धीरे ‘इकॉनामिक कैबिनेट’  (आर्थिक मंत्रिमंडल) की शक्ल लेता गया । आयोग ने अपने दर्जे तथा कार्य क्षेत्र में विस्तार करके उन कार्यों और जिम्मेदारियों को अपने अधिकार क्षेत्र में कर लिया है जो पारंपरिक और अन्यथा दोनों रूप से विधिवत गठित सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं ।”

(iii) पी. पी. अग्रवाल:

इनका मानना है कि ”यद्यपि योजना आयोग सरकार का सलाहकार तंत्र है । किंतु इसने सरकारी नीतियों के निरूपण में जो विकास से जुड़ी नीतियों के निरूपण मात्र के लिए है अपना अच्छा प्रभाव बना लिया है । इस आयोरा की सलाहकार भूमिका सीमित न रहकर पूरे प्रशासन तक व्याप्त हो गई ।”

(iv) डी.आर. गाडगिल:

योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष ने भी योजना आयोग की भूमिका की आलोचना करते हुए कहा है कि यह आयोग अपने मार्ग से भटक गया है । इनका कहना है कि ”आयोग की असफलता के मूल में इस आयोग द्वारा उन विषयों से संबंधित नीतियाँ तैयार करना है जो विकासात्मक पक्ष से परे हैं क्योंकि योजना आयोग वस्तुतः एक परामर्शी निकाय है न कि नीति-निर्धारक । प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री आयोग की सदस्यता ने इस प्रवृत्ति को और बढ़ावा दिया है जिससे योजना आयोग और इसके निर्णयों को अनावश्यक ही अस्वाभाविक मान-सम्मान मिलने लगा है ।”

(v) के. संधानम:

इनका मानना है कि ”नियोजन (प्रक्रिया) ने संघीय प्रणाली को मात दे दी है तथा हमारा देश कई संदर्भों में एकात्मक प्रणाली की सरकार के रूप में कार्य कर रही है ।”

(vi) पी.वी. राजामन्नार:

चतुर्थ वित्त आयोग के अध्यक्ष राजामन्नार ने संघीय प्रणाली की सरकार में वित्तीय स्थानांतरण की प्रक्रिया में योजना आयोग और वित्त आयोग के अपने कार्यों और जिम्मेदारियों को एक दूसरे पर थोपने के तथ्य को उजागर किया है ।

प्रशासनिक सुधार आयोग ने योजना आयोग के संदर्भ में निम्नलिखित सिफारिशें की थीं:

1. आयोग को योजनाओं की तैयारी और योजना कार्यान्वयन के मूल्यांकन तक ही स्वयं को सीमित रखना चाहिए तथा कार्यकारी निर्णयों और कार्यों से अलग रहना चाहिए ।

2. प्रधानमंत्री को योजना आयोग का अध्यक्ष नहीं होना चाहिए, अपितु उसे योजना आयोग की कार्यपद्धति से गहराई से जुड़ा होना चाहिए । प्रधानमंत्री को समय-समय पर योजना आयोग द्वारा किए गए निर्णयों की जानकारी दी जानी चाहिए ।

प्रधानमंत्री, योजना आयोग की बैठकों में शामिल हो सकता है और आवश्यकता अनुसार आयोग की बैठक बुलाकर उसे संबोधित भी कर सकता है । प्रधानमंत्री योजना आयोग की बैठकों में शामिल होने पर बैठक की अध्यक्षता भी कर सकता है ।

3. वित्त मंत्री को भी आयोग का सदस्य नहीं होना चाहिए किंतु आयोग की कार्यपद्धति से जुड़ा होना चाहिए । आयोग की बैठकों में भी उसे शामिल होना चाहिए ।

4. किसी मंत्री को योजना आयोग का सदस्य नियुक्त नहीं करना चाहिए ।

5. योजना आयोग को योजना के कार्यान्वयन से जुड़ा विवरण प्रतिवर्ष सदन पटल पर प्रस्तुत करना चाहिए ।

6. योजना आयोग को असंवैधानिक निकाय होना चाहिए तथा केंद्र सरकार व निकट संपर्क बनाए रखना चाहिए ।

7. आयोग के सदस्यों का संख्या सात से अधिक नहीं होनी चाहिए । इन सात सदस्यों में से ही एक सदस्य का आयोग का अध्यक्ष नियुक्त करना चाहिए ।

8. आयोग के सदस्यों का नियुक्ति पाँच वर्ष का अवधि के लिए की जानी चाहिए ।