Read this article in Hindi to learn about the political culture of various countries.
हम देख चुके हैं कि किसी देश का प्रशासन वहां के सामाजिक, सांस्कृतिक कारकों से प्रभावित रहता है । लोक प्रशासन की मशीनरी के साथ वहां की राजनीतिक, संवैधानिक संरचना भी इन कारकों से प्रभावित है । हम राजनीतिक-संवैधानिक संरचना और प्रशासन के अन्तर संबंधों को विश्लेषित करें तो यह निष्कर्ष निकलता है कि प्रशासन पर अपने राजनीतिक पर्यावरण का गहरा असर होता है ।
जिन देशों में एक समान प्रशासनिक व्यवस्था का निरूपण किया गया, वहां के प्रशासन में राजनीतिक संविधानिक प्रभावों ने अनेक अन्तर कालान्तर में ला दिये । के देशों को समूहों में वर्गीकृत किया जाता है जिनकी राजनीतिक संस्कृति में काफी समानताएं होती हैं ।
जैसे राजनीतिक व्यवस्था का क्रमिक और व्यवस्थित विकास, राजनीति स्थिरता या अस्थिरता, प्रशासन और राजनीति के संबंधों की प्रकृति आदि आधारों को लेकर इस वर्गीकरण को निम्नलिखित रूप से देख सकते हैं:
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1. शास्त्रीय प्रशासन (क्लासिक प्रशासन) संस्कृति:
वे देश जो विगत 200-250 वर्षों से राजनीतिक उतार चढ़ाव के दौरों से गुजरे हैं और इस दौरान राजनीतिक परिवर्तन की गति जिसके पीछे हिंसा का भी जोर रहा है । लेकिन इन देशों की राजनीतिक अस्थिरता के दौर में भी प्रशासनिक निरन्तरता बनी रही । डायमन्ट के शब्दों में- ”रिपब्लिक” भले ही समाप्त हो जाता है, किन्तु प्रशासन बना रहता है ।
फ्रांस और जर्मनी (प्रशा) का प्रशासन क्लासिक प्रशासन की श्रेणी में आता है उस प्रशासन के कार्मिक लोक सेवक नहीं अपितु सरकारी अधिकारी कहलाते हैं । इसमें कम उम्र के युवा भर्ती होते है और जीवन पर्यन्त इसमें बने रहते हैं । नागरिक सेवा की राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी होती है ।
2. नागरिक संस्कृति वाली प्रशासनिक व्यवस्था (Administration of Civic Culture):
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ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों की राजनीतिक संस्कृति और संरचनाएं काफी मिलती जुलती हैं । यद्यपि उनमें प्रजातन्त्र के दो अलग-अलग रूप क्रमश: संसदीय और अध्यक्षात्मक पाएं जाते हैं, लेकिन राजनीतिक व्यवस्था का क्रमिक और व्यवस्थित विकास इन देशों की एक समान विशेषता है जिसने वहां राजनीतिक स्थिरता को जन्म दिया है ।
यहां प्रशासन, राजनीतिक विकास के अनुरूप ही विकसित होता रहा है और प्रशासन-राजनीति संबंधी उत्कृष्ट रूप में विद्यमान है । सरकारी अधिकारी लोक सेवक की भूमिका में हैं और उन पर सामाजिक संस्थाओं तथा नागरिकों का प्रभावशाली नियन्त्रण है ।
3. आधुनिककृत प्रशासन (Modernizing Administration):
जापान के प्रशासन को आधुनिकीकृत प्रशासन इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहां का प्रशासन किसी सेवा या समूह का सदस्य नहीं अपितु समाज का प्रतिनिधि माना जाता है । इसलिए वह राजनीतिक निर्णय प्रक्रिया में सक्रिय भाग होता है और सेवानिवृत के बाद राजनीतिक पद पर निर्वाचित भी हो जाता है ।
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4. साम्यवादी प्रशासन:
तत्कालिक सोवियत संघ में 1990 तक साम्यवादी राजनीतिक व्यवस्था 1917 से विद्यमान रही । इस सर्वाधिकारीवादी और सर्वहारा वर्गीय राजनीतिक व्यवस्था के अनुरूप ही सोवियत प्रशासनिक व्यवस्था भी कायम रही ।
5. परम्परागत अधिनायकवादी शासन (Traditional Autocratic System):
पश्चिम एशियायी खाड़ी देशों यथा थमन, सऊदी अरब, कतर, अमीरात, कुछ अफ्रीकी राष्ट्रों जैसे लिबिया, परूग्वे तथा कुछ दक्षिण अमेरिकी राष्ट्रों में शासन प्रणाली का स्वरूप राजतन्त्रत्मक या कुलिनतन्त्रीय है, जो वंश परम्परानुसार चली आ रही है ।
यहां राजनीतिक दल या हित समूहों का अभाव है, अत: राजनीतिक प्रतिस्पर्धा नहीं है । सत्तासीन लोग राजनीतिक जागरूकता या शिक्षा प्रसार को महत्व नहीं देते क्योंकि वे इनके लिए ही मुसीबत बन सकते हैं । सेना और प्रशासन शासक वर्ग के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं । नागरिक प्रशासन पर ही विभिन्न कार्यों का बोझ होता है, लेकिन उसकी प्रभावकारिता कम होती है । इन देशों में प्रशासन ही थोड़े-बहुत परिवर्तन का माध्यम बनता है ।
6. नौकरशाही कुलीन वर्गीय संस्थान:
रिग्स ने अपने अध्ययन में विकासशील देशों की संरचनाओ को अनेक ओपचारिकताओं तथा विरोधाभास से पूर्ण बताया है । ऐसे देशों में परम्परागत कुलीन वर्ग के स्थान पर नौकरशाही की प्रवृत्ति से युक्त विशिष्ट वर्ग प्रकट हो गया है जिसके हाथों में शासन को वास्तविक शक्ति केन्द्रित है । कुछ देशों में सैनिक वर्ग के हाथों में प्रशासनिक शक्ति केन्द्रित है । इन देशों में म्यामार, थाइलैण्ड, इराक, सूडान, लिबिया, सीरिया, जार्डन आदि प्रमुख देश हैं ।
यहां सेनाओं के सामान्य लक्ष्य होते हैं आधुनिकीकरण का उच्च स्तर प्राप्त करना । लेकिन जनता राजनीतिक गतिविधियों के प्रति सचेत नहीं होती तथा विरोधी दल भी प्राय: नहीं पाये जाते । शक्तिशाली नौकरशाही विशिष्ट वर्ग राजनीतिक शून्यता की पूर्ति करता है । इस वर्ग पर ही कानून व्यवस्था का दारोमदार रहता है जो इसका प्रमुख लक्ष्य भी है । यह अपने को जनता से प्रथक् लेकिन उसका संरक्षक मानता है । यही वर्ग आर्थिक विकास को राष्ट्र निर्माण से जोड़ देता है ।
7. बहुजनीय प्रतिस्पर्धा व्यवस्था (Polyarchal Competitive System):
एशिया, दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका में अनेक देश ऐसे हैं जिन्होंने अमेरिका-यूरोप के अनुरूप राजनीतिक व्यवस्था को अपनाया जिससे यहाँ कि स्थानीय संस्कृति और इस व्यवस्था के मध्य एक प्रतिस्पर्धात्मक गतिरोध उत्पन्न हो गया ।
8. प्रभावशाली दल व्यवस्था (Dominant Party System):
विद्वान राबर्ट ठक्कर ने इसे एक दल के अधीन क्रांतिकारी जन आन्दोलन कहा । विकासशील देशों में यह मुख्य रूप से नजर आती है जहां विभिन्न दलों के मध्य एक दल ने सत्ता पर एकाधिकार बनाये रखा है तथा अन्य दल उपस्थित होकर भी प्रभावहीन हैं । 1980 के पूर्व तक कांग्रेस पार्टी की भारत में यही स्थिति रही । साम्यवादी शासन प्रणाली वाले कुछ देशों में भी इसके चिन्ह मौजूद रहे हैं ।
9. प्रभावशाली दल: गतिशील व्यवस्थाएं (Dominant Party: Mobilization System):
पश्चिमी अफ्रीकी राष्ट्रों जैसे बाना, बोलिविया, अल्जीरिया, मिश्र, गिनी, मलि आदि में एक दल की सत्ता रहती है । अन्य दलों की उपस्थिति मात्र प्रतिकात्मक रहती है क्योंकि उन पर अनेक प्रतिबन्ध आरोपित रहते हैं । सत्तासीन दल विरोधियों पर दमन चक्र का प्रयोग करता है ।