Read this article in Hindi to learn about:- 1. लोक रूचि अभिगम का अर्थ (Meaning of Public Choice Approach) 2. लोक रूचि अभिगम की मान्यताएं (Accessibility of Public Choice Approach) 3. विशेषताएं (Features) 4. सिद्धांत (Theories).
लोक रूचि अभिगम का अर्थ (Meaning of Public Choice Approach):
लोकतन्त्र और मानववाद से प्रेरित विद्वानों द्वारा जनता के इच्छाआधारित जिस राज्य निर्देशित “प्रशासन” की कल्पना की गयी उसका आर्थिक तर्कों द्वारा समर्थन किया गया उपागम और विकास हुआ ।
वस्तुतः नवलोक प्रशासन के साथ जन्में और उसके युग में ही विकसित हुऐ लोक रूचि उपागम का मुख्य आशय है, ”प्रशासन और राज्य के क्षेत्र उपभोक्ता हितों की दृष्टि से पुनर्निर्धारण करना और निःसन्देह इसका अनिवार्य परिणाम इनके क्षेत्रों का संकुचन है ।
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1960 के दशक में अस्तित्व में आए लोक विकल्प उपागम (या लोक चयन पद्धति लोक रूचि उपागम) प्रशासन और राज्य (राजनीति) को ”एकक इकाई” मानता है जिनके बीच न सिर्फ गहरा अंतरसंबंध है अपितु दोनों ही सार्वजनिक धन के स्वहित में दुरूपयोग के दोषी है । इस प्रकार यह उपागम प्रशासन का विश्लेषण राजनीति के साथ जोड़कर करता है । इस अभिगम के विकास में सर्वाधिक योगदान विंसेट ओस्ट्राम ने दिया है ।
ओस्ट्राम ने अपनी पुस्तक ”अमेरिकी लोक प्रशासन में बौद्धिक संकट” (Intellectual Crisis in American Public Administration) में सर्वप्रथम ”लोकतान्त्रिक प्रशासन” नामक अवधारणा का प्रतिपादन किया था, जिसका एक आयाम ”लोक रूचि अभिगम” है ।
लोक रूचि अभिगम की मान्यताएं (Accessibility of Public Choice Approach):
लोक रूचि अभिगम की मान्यताएँ प्रकार:
1. राजनीतिज्ञ और प्रशासक जनोन्मुख नहीं होते अपितु अपनी सत्ता का प्रयोग स्वहित में करते हैं ।
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2. राजनीति और प्रशासन एक-दूसरे को बनाये रखने और परस्पर हितों का पोषण करने के लिये स्व-समझ रखते हैं ।
3. नौकरशाही अपना आकार और सत्ता अनावश्य क रूप से बढ़ाती है और अनुत्पादक बनी रहती है । (पार्किन्सन सिद्धान्त को अधिमान्यता)
4. राजनीतिक संस्थाओं और प्रशासनिक अभिकरणों की स्थापना का तर्क आधारित निश्चित सिद्धान्त होना चाहिये कि उन्हें क्यों और किस सीमा तक स्थापित किया जाये या बनाये रखा जाये ।
5. व्यक्ति अधिकतम उपयोगिता का दोहन करता है ।
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6. यदि व्यक्ति के पास समुचित सूचनाएं हों और उसकी रूचि में निरन्तरता रहे, तो वह तर्कपूर्ण ढंग से निर्णय लेता है और काम करता है । (साइमन के निर्णय निर्माण माडल की स्वीकृति)
7. पेशेवर और पदानुक्रम में व्यवस्थित एक शक्ति सम्पन्न नौकरशाही नागरिकों की रूचि (पसंद/नापसंद) आधारित सेवाओं को पूरा करने में असमर्थ होने लगती है और चुनौतियों से निपटने की उसकी क्षमता भी घट जाती है । (विंसेट ओस्ट्राम की अवधारणा)
8. विविध किस्म की संस्थाओं की स्थापना द्वारा विभिन्न सार्वजनिक हितों की पूर्ति की जा सकती है, यदि ये संस्थाएं जनता की रुचि अनुसार स्थापित हों । दूसरे शब्दों में जनइच्छा पर आधारित राजनीतिक-प्रशासनिक ढांचों को खड़ा किया जाना चाहिये । स्वशासन संस्थाओं, सलाहकार मण्डलों का जाल बिछाया जाना चाहिये । लोकतान्त्रिक निर्णय निर्माण को प्रोत्साहित किया जाय और इसका अधिकाधिक विकेन्द्रीकरण हो ।
9. उक्त संस्थाओं के मध्य बहु संस्थागत प्रबन्ध प्रणाली द्वारा समुचित समायोजन स्थापित किया जाना चाहिये, जो मुश्किल काम नहीं है ।
10. राज्य और उसके प्रशासन की प्रमुख कसौटी ”जनहित” होनी चाहिये ।
11. सरकार को प्रत्येक खर्च आर्थिक सिद्धान्तों के आधार पर करना चाहिये और इसके लिये पूरा उत्तरदायित्व भी लेना चाहिये ।
12. प्रशासन के प्रत्येक स्तर पर जनसहभागिता सुनिश्चित हो ।
13. सरकार का अधिकांश व्यय गैर योजनागत होता है, जो उसको बनाये रखने पर मुख्य रूप से खर्च होता है । इसे कम किया जाना चाहिये ।
14. राज्य साध्य नहीं है, अपितु व्यक्ति के हितों की पूर्ति का साधन मात्र है ।
उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट है कि रूचि अभिगम बाजारोन्मुख ”नवलोक प्रबन्धवाद” के निकट है और उसका समर्थन करता है । वस्तुतः “नवलोक प्रबन्ध” जिस अवधारणा को प्रतिपादित करता है लोक रूचि अभिगम उसकी सैद्धांतिक पृष्ठभूमि को तैयार करता है । इस 35 साल पुराने उपागम का स्पष्ट प्रभाव राज्य बनाम चर्चा पर भी देखा जा सकता है ।
इस बहस को लोक विकल्प दृष्टिकोण से ही आगे बढ़ाया जा रहा है । लोक प्रशासन में यह अभिगम “मिन्नोब्रुक द्वितीय” की प्रतिध्वनि भी कही जा सकती है । इस आधार पर लोक रूचि अभिगम निम्नलिखित बातों का विरोधी रहा है-
1. अत्याधिक केन्द्रीकृत प्रशासनिक व्यवस्था- इसके स्थान पर यह अभिगम विकेन्द्रीत व्यवस्था का प्रबल पक्षधर ।
2. पद सौपानिक संरचना- इसके स्थान पर वह ”मैट्रिक्स संगठन” को प्रजातान्त्रिक प्रशासन के लिये अनुकूल मानता है ।
3. तार्किक और तटस्थ नौकरशाही- लोक रूचि अभिगम का प्रशासन में सर्वाधिक विरोध उसके ”नौकरशाही प्ररूप” से है । नियमों प्रक्रियाओं में जकड़ी तार्किक नौकरशाही के साथ वह मूल्य मुक्त तटस्थ नौकरशाही को भी अस्वीकृत या खारिज करता है । विंसेट ओस्ट्राम के शब्दों में, ”नौकरशाही संरचनाएं आवश्यक तो है लेकिन उत्पादक और प्रत्युत्तरकारी लोकसेवा अर्थव्यवस्था के लिये पर्याप्त नहीं है ।”
4. राजनीति-प्रशासन द्विभाजन- विल्सोसियन अवधारणा (राजनीति-प्रशासन द्विभाजन) से पूरी तरह असहमत यह अभिगम दोनों के अन्तर्संबंधों का समर्थन करता है ।
5. राज्य की सर्वोपरिता- यह अभिगम राज्य के स्थान पर व्यक्ति को उच्च स्थान प्रदान करता है ।
6. राज्य की एकाधिकारिता- इसके स्थान पर वह बाजार की स्वतन्त्रता का समर्थक है ।
लोक रूचि अभिगम की विशेषताएं (Features of Public Choice Approach):
लोक रूचि अभिगम की कुछ प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार से निर्धारित की जा सकती हैं:
1. राज्य के स्थान पर व्यक्ति केन्द्रीत अवधारणा है ।
2. नौकरशाही का विरोधी और कार्यकुशलता का समर्थक है ।
3. प्रशासनिक निर्णयों की आर्थिक तर्कसंगतता पर जोर देता है ।
4. सार्वजनिक धन के युक्तिपूर्ण ”व्यय” को सुनिश्चित करने पर बल देता है ताकि उस व्यय का स्वरूप भी सार्वजनिक बना रहे ।
5. प्रशासनिक मितव्ययिता के लिये हर संभव और कड़े प्रयासों पर बल देता है ।
6. राज्य और प्रशासन के क्षेत्रों के संकुचन और बाजार के विस्तार का समर्थक है ।
7. प्रशासनिक और राजनीतिक दोनों स्तरों पर विकेन्द्रीयकरण को प्रोत्साहित करता है ।
8. प्रत्येक प्रशासनिक संस्था की स्थापना जनता की रूचि के अनुरूप और अनुकूल हो, इसका समर्थन करता है ।
9. जनता से संबंधित सेवाएं आर्थिक आधार पर संचालित हों अर्थात उनमें व्यवसायिक दृष्टिकोण रखा जाये ।
10. प्रशासन में मूल्यों का स्थान महत्वपूर्ण हो ।
11. राजनीतिक प्रशासन को पृथक् करके नहीं देखा जाये अपितु दोनों अन्तर संबंधित संरचनाएं हैं । वस्तुत: यह अभिगम लोक प्रशासन को राजनीति के अन्तर्गत मानता है ।
12. जनहित में प्रशासन का निरन्तर आधुनिकीकरण हो ।
13. प्रशासन में विशेषीकरण को और बढाया जाये।
लोक रूचि अभिगम के सिद्धांत (Theories of Public Choice Approach):
i. प्रशासनिक अहमवाद का सिद्धांत (Theory of Administration Egoism):
लोकरूचि अभिगम के विकास में इसके समर्थक विद्वानों जैसे बुचानन, मिशैल आदि ने Theory of Administration Egoism (प्रशासन या नौकरशाही के अहम से संबंधित सिद्धान्त) का प्रतिपादन किया ।
इसके अनुसार:
(1) सैद्धान्तिक रूप से भले ही नौकरशाही सार्वजनिक धन के सार्वजनिक उपयोग को सुनिश्चित करने के लिये गठित हो, लेकिन वास्तविकता यह है कि वह इस धन और अन्य संसाधनों का उपयोग अपने हितों में करती है और अपनी शक्ति को इससे निरन्तर बढ़ाती जाती है ।
(2) नौकरशाहों का व्यवहार जनीन्मुख नहीं होता अपितु कई बार जन विरोधी भी होता है ।
(3) वस्तुतः नौकरशाही में पृथक वर्गीय चेतना पायी जाती है, जो उसके अहम को तुष्ट करती है ।
(4) नौकरशाह स्वामी की भावना से अंर्तग्रस्त रहते है ।
ii. “हैबरमास की क्रांतिक विचारधारा” (Critical Theory):
यह विचारधारा भी प्रशासन के लोकतान्त्रीकरण की मांग करती है और राज्य तथा प्रशासन दोनों का ध्येय ”जनहित” घोषित करती है । इस विचारधारा के प्रतिपादक हैं, जर्मन समाजशास्त्री जर्गन हैबरमास । उन्होंने प्रशासन के आंतरिक और बाह्य दोनों रूपों में मानवीयकरण की आवश्यकता को महत्वपूर्ण बताया ।
बाद में प्रकाशित एन्ड्रयू अरेटो और आइक गैबहर्ट की पुस्तक “The Essential Frankfurt School Reader” में क्रिटिकल विचारधारा की निम्नलिखित विशेषताएं बतायी गयी हैं:
1. यह लोकतान्त्रिक प्रशासन का समर्थक है ।
2. प्रशासन की नौकरशाही अवधारणा का विरोधी है ।
3. यह प्रशासन में मानवीय मूल्यों को सर्वोपरी मानता है ।
4. यह राज्य की भूमिका के पुर्ननिर्धारण की मांग करता है ।
5. इसकी मान्यता है कि नौकरशाही की बढ़ती भूमिका और उसकी स्वीकार्यता में समानुपात या तालमेल नहीं है ।
निष्कर्ष:
कहें तो लोक रूचि अभिगम लोक प्रशासन का निजीकरण करने पर बल देता है, लेकिन यह एक सीमा तक संभव है । इस अभिगम से राज्य की महत्ता कम नहीं हुई है, अपितु ”व्यक्ति” का महत्व बड़ा है ।
अब प्रशासन पर जन नियन्त्रण भी आरोपित हो रहा है और नीतियों का निर्माण और क्रियान्वयन दोनों जनता के निकट आ गये है । सैद्धान्तिक अवधारणा के रूप में लोकरूचि अभिगम एक बेहतरीन विश्लेषणात्मक उपकरण हो सकता है ।