Read this article in Hindi to learn about the twelve main features of public enterprises. The features are:- 1. विशेष अधिनियम या कार्यपालिका आदेश द्वारा निर्मित (Manufactured by Special Act or Executive Order) 2. सरकारी स्वामित्व (Government Ownership) 3. विभागीय व्यवस्था (Departmental Arrangement) and a Few Others.

1. विशेष अधिनियम या कार्यपालिका आदेश द्वारा निर्मित (Manufactured by Special Act or Executive Order):

इसमें उसके उद्देश्य कार्यविधि, सीमाएं, प्रारंभिक पूंजी आदि का वर्णन होता है । लेकिन स्थापना के समय इसमें विनियोजित पूंजी को देश के बजट में दर्शाया जाता है ।

इसी अधिनियम में यह भी व्यवस्था होती है कि निगम द्वारा लाभ अर्जित करने की स्थिति में सरकार का अंश कितना होगा । यदि सार्वजनिक निगम अपनी पूंजी को बढ़ाना चाहे तो संसद में प्रस्ताव रखना अत्यंत आवश्यक होगा ।

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2. सरकारी स्वामित्व (Government Ownership):

लोक निगम पर सरकार का स्वामित्व होता है इसलिए नियंत्रण भी उसी का होता है ।

3. विभागीय व्यवस्था (Departmental Arrangement):

प्रत्येक निगम किसी विभाग से संबंधित होता है ।

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4. विभाग से स्वतंत्र (Independent of the Department):

विभाग के अधीन होने पर भी वह उसके नियमों से बंधा नहीं होता है । निगम के अपने प्रशासन संबंधी नियम होते हैं ।

5. मंत्री से संबंध (Relationship with Minister):

यद्यपि विभागीय मंत्री का नीतिगत प्रश्नों को लेकर निगम पर नियंत्रण होता है और वह निगम के प्रबंध संचालक मंडल की नियुक्ति भी करता है तथापि मंत्री आंतरिक संचालन में हस्तक्षेप नहीं कर सकता ।

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6. बोर्ड या आयोग प्रणाली (Board or Commission System):

निगम का संचालन एक निर्देशक के अधीन नहीं होता अपितु निर्देशकों के समूह (बोर्ड या आयोग) पर ये दायित्व रहता है । लोक निगमों के कार्य संचालन हेतु सरकार द्वारा निदेशक मंडल की एक निश्चित अवधि तक नियुक्ति की जाती है । इस मंडल में सदस्यों की संख्या सामान्यत: 10 से 15 तक रहती है । ये सदस्य प्रशासनिक सेवाओं, आर्थिक सेवाओं तथा अन्य लोक सेवाओं के अधिकारी होते हैं ।

7. स्वतंत्र वैधानिक अस्तित्व (Independent Statutory Entity):

निगम सरकारी स्वामित्व में रहते हुए भी न्यायालयीन वाद विवादों में पृथक् अस्तित्व रखता है । उस पर मुकद्दमा, सरकार पर मुकदमा नहीं होता ।

8. वित्तीय स्वतंत्रता (Financial Freedom):

निगमों पर संसद और कार्यपालिका का कठोर वित्तीय नियंत्रण नहीं होता है वे अपने धन का विनियोग करने के लिए तथा कहीं से ऋण लेने के लिए स्वतंत्र होते हैं । सार्वजनिक निगम के संचालक मंडल में ही उसके बजट को पारित करने की शक्ति पायी जाती है । अत: बजट को संसद में नहीं भेजना पड़ता । सार्वजनिक निगम की प्राप्तियों को विभागीय प्रणाली की भांति सरकारी कोष में जमा नहीं करवाया जाता ।

9. क्रय विक्रय की स्वतंत्रता (Freedom of Purchase Sales):

वह सरकारी टेंडर प्रक्रिया से बंधा नहीं होता । वह प्रत्यक्ष रूप से खरीदी बिक्री कर सकता है ।

10. कार्मिकों के मामलों में स्वतंत्रता (Freedom in the Affairs of the Personnel):

निगम अपने कर्मचारियों की भर्ती करने के लिये स्वतंत्र होता है वह पदोन्नति में वरिष्ठता के स्थान पर योग्यता को आधार बनाता है । उसके कार्मिकों पर सरकारी आचरण नियम लागू नहीं होते । वह उन्हें कभी भी निकाल सकता है ।

11. व्यवसायिक लेखांकन (Business Accounting):

निगमों का लेखांकन विभाग जैसा नियम आधारित नहीं होता । यह आय-व्यय की दृष्टि से नहीं अपितु इस व्यवसायिक दृष्टिकोण से होता है कि वह मुनाफे में जा रहा है या हानि में । न ही इसकी लेखा व खाता पुस्तकों के अंकेक्षण के लिए नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक अंकेक्षक नियुक्त करता है ।

अंकेक्षकों की नियुक्ति संचालक मंडल के द्वारा की जाती है । लेकिन भारत में कई सार्वजनिक निगमों के लेखों का अंकेक्षण भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के द्वारा ही किया जाता है । उन सभी मामलों में जहां पूंजीगत खर्चे निर्धारित सीमा से अधिक हो, सरकार की अनुमति लेना भी आवश्यक है ।

12. जनहित (Public Interest):

लोक निगम पद्धति निजी दृष्टिकोण से संचालित होती है लेकिन उसका उद्देश्य सरकारी होता है अर्थात् जनता को न्यूनतम कीमत पर अधिकतम सुविधा देना ।