Read this article in Hindi to learn about:- 1. सूचना का अधिकार के अर्थ (Meaning of Right to Information) 2. सूचना का अधिकार की आवश्यकता और महत्व (Necessity and Importance of Right to Information) 3. स्थिति (Status) 4. प्रयास (Efforts).
सूचना का अधिकार के अर्थ (Meaning of Right to Information):
सूचना के अधिकार से आशय है सरकारी काम-काज के बारे में जनता को जानने का अधिकार । यह सरकार में गोपनियता के विपरीत खुलापन सुनिश्चित करने का अधिकार है ।
लोकतांत्रिक समाजों में प्रत्येक व्यक्ति को यह अधिकार भी होना चाहिये कि वह अपनी सरकार से सार्वजनिक मुद्दों से संबंधित लोक महत्व की बाते जान सके । विश्व में अनेक राष्ट्रों ने यह अधिकार नागरिकों को प्रदान किया है ।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत विचार-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का विस्तार प्रेस की स्वतंत्रता तक सुप्रीम कोर्ट ने माना था । अब इसी में वर्ष 2005 में संशोधन कर सूचना के अधिकार को 2006 से लागू कर दिया गया है । भारत के नागरिक और गैर सरकारी संगठन सरकार से सूचना अधिकार एक्ट के तहत लोकहित से संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं ।
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सूचना के अधिकार को लेकर विपरीत मत रहे है । प्रथम यह है कि इससे सूचना मांगने की बाड आ जाएगी और कुछ सूचनाएं सरकार की सुरक्षा के लिये खतरा भी बन सकती हैं । इस अधिकार का स्वार्थी तत्व दुरूपयोग भी कर सकते हैं । दूसरा विचार यह है कि लोकतंत्र में जनता को उससे जुड़ी हर बात जानने का अधिकार होना चाहिए । यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के अनुकूल है । इससे सरकार की निरंकुश सत्ता और मनमर्जी पर अंकुश लगता है ।
पारस कृहाद ने इस संबंध में लिखा है कि- ”कार्यपालिका” के विशेषाधिकार अंग के रूप में ”गोपनियता” तथा सूचना के अधिकार के तहत ”पारदर्शिता” इन दोनों में से किसे प्रशासन के प्रतीक के रूप में अपनाया जाए । क्योंकि दोनों ही सार्वजनिक हित का तर्क देते हैं । वस्तुतः इनमें से कौन जनहित की पूर्ति करता है? और क्या इन दोनों में समन्वय किया जा सकता है?
विश्व में स्वीडन एकमात्र देश है जिसने अपने संविधान में ही सूचना के अधिकार का प्रावधान किया है । सूचना स्वतंत्रता कानून, 1966 के द्वारा अमेरिका ने नागरिकों को सूचना का अधिकार दिया । ब्रिटेन में फुल्टन समिति (1966-68) ने सरकारी काम-काज में अत्यधिक गोपनियता को पाया और इसलिये सरकारी गोपनियता कानून (1911) की समीक्षा की सिफारिश की । फेंक्स-प्रतिवेदन (1972) में भी यही सिफारिश की गयी । लेकिन ब्रिटेन में बहुत बाद तक भी इस सिफारिश को लागू नहीं किया जा सका ।
सूचना का अधिकार की आवश्यकता और महत्व (Necessity and Importance of Right to Information):
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सूचना का अधिकार एक प्रजातांत्रिक अधिकार है और लोकतंत्र को वास्तविक बनाने तथा अनेक कारणों से यह जरूरी हो जाता है ।
1. यह जनता को मौलिक अधिकार है कि वह सार्वजनिक मामलों की जानकारी ले ।
2. यह प्रजातंत्र को वास्तविक बनाता है ।
3. यह प्रशासन को जनता के निकट लाता है, उसके प्रति उत्तरदायी बनाता है और इस प्रकार प्रजातंत्र की भावना के अनुरूप है ।
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4. प्रशासनिक निर्णयों में जन-सहभागिता बढ़ती है, जिससे प्रशासन का भी प्रजातंत्रीकरण होता है ।
5. प्रशासनिक निर्णयों में जन प्रशासन की स्वैच्छाचारिता पर अंकुश लगती है ।
6. इससे प्रशासनिक निरंकुशता पर लगाम और वह जनता के प्रति अधिक बनता ।
7. प्रशासन में सतर्कता और सच्चिरित्रता बड़ती है ।
8. इससे अधिकारों और भ्रष्टाचार के अवसर घटते हैं जबकि पारदर्शिता के अवसर बढ़ते हैं ।
9. सूचना का अधिकार प्रशासन-राजनीति गठबंधन बेनकाब कर उनको उन्मूलित करने में कर सकता है ।
10. यह राजनीति-प्रशासन को जनता के कर्तव्य परायण और संवेदनशील बनाता है ।
लार्ड एक्टन ने इसके महत्व को इस प्रकार रखा है- ”वह कोई चीज सुरक्षित नहीं हो जो और प्रचार सहने में समर्थ नहीं हो ।”
वुडरो विल्सन – ”मेरा यह मानना है कि सरकार को पूर्णतः (अर्थात खुला) होना चाहिये, न अंदर (बंद) । मैं यह भी मानता हूँ कि ऐसा कोई स्थान नहीं होना चाहिए जहां होता तो सब कुछ हो लेकिन जिसके बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं हो ।”
जेम्स माडिसन- ”जो भी व्यक्ति जनता के शासक बनना चाहते हैं उनको ज्ञान-शक्ति से युक्त होना चाहिए । बिना लोकप्रिय सूचना और इसकी प्राप्ति के साधन के कोई भी लोकप्रिय सरकार मात्र एक ढोंग या त्रासदी या दोनों होंगी ।”
जस्टिस डगलस (अमेरिका न्यायमूर्ति)- ”सरकारी गोपनियता मूलभूत रूप से प्रजातंत्र विरोधी है और नौकरशाही की गलतियों को बनाए रखती है । सार्वजनिक मामलों की जानकारी तथा उस पर खुली चर्चा हमारे राष्ट्रीय स्वास्थ्य के लिये अति महत्वपूर्ण है ।”
अरूणा राय (भारत में सूचना अधिकार से जुड़ी पूर्व I.A.S अधिकारी)- ”जिस जन सशक्तिकरण की बातें हम जोर-शोर से जब-तब उठाते हैं, सूचना का अधिकार उसका आधार स्तंभ है ।”
इस लेखक का मानना है कि सूचना के अधिकार के बिना प्रजातंत्र लंगड़ा है । यही नहीं सूचना का अधिकार सार्वभौमिक अधिकार बनना चाहिए आखिर यह संपूर्ण विश्व के लोकतांत्रिक स्वास्थ्य के लिये एक महत्वपूर्ण मानवीय अस्त्र सिद्ध हो सकता है । उल्लेखनीय है कि प्रत्येक देश में सूचना के अधिकार को नागरिकों के लिये बनाया जाता है मानवों के लिये नहीं । मात्र कुछ सूचनाएं ही विदेशी प्राप्त कर सकते हैं ।
भारत में सूचना-अधिकार की स्थिति (Status of Right to Information in India):
भारत में सूचना छिपाने के तो अनेक कानून बने लेकिन सूचना देने के कानून की दिशा में गत दशक से ही ठोस प्रयास हुए । वर्ष 2005 में पारित और 2006 से लागू सूचना अधिकार कानून के पूर्व भारत में सूचना प्राप्त करने पर अनेक प्रतिबंध रहे ।
गोपनियता रखने संबंधी कानून:
सार्वजनिक मामलों में गोपनियता बरतने संबंधी कानून कुछ तो प्रत्यक्ष हैं, कुछ अप्रत्यक्ष रूप से इसे लागू करते हैं:
1. सरकारी गोपनीयता अधिनियम, 1923
2. भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872
3. जांच आयोग अधिनियम, 1952
4. अखिल भारतीय सेवा अधिनियम, 1954
5. केंद्रीय लोक सेवा (आचरण) नियम, 1955
6. रेलवे सेवा (आचरण) नियम, 1956
सूचना-अधिकार की दिशा में प्रयास (Efforts towards Right to Information):
स्वतंत्रता संघर्ष के समय भी नेताओं ने सरकारी गोपनियता कानून की निंदा की थी । वे उसमें संशोधन चाहते थे । बहरहाल स्वतंत्रता के बाद इस दिशा में सरकारी, गैर सरकारी प्रयास हुए ।
1. सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या:
सुप्रीम कोर्ट ने 1975 में अपने एक दृष्टांत में स्पष्ट किया कि सूचना का अधिकार अनु. 19(1)क के अंतर्गत प्रदत्त विचार-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का ही भाग है ।
2. पाँचवाँ वेतन आयोग (1994-97):
इसने सर्वप्रथम यह सुझाव दिया कि सरकारी गोपनियता कानून को समाप्त कर सूचना के अधिकार का कानून बनाया जाना चाहिए ।
3. सूचना स्वतंत्रता विधेयक, 2000:
तत्कालीन एनडीए सरकार ने सर्वप्रथम ”सूचना स्वतंत्रता विधेयक” के रूप में सूचना के अधिकार को लागू करने का प्रयास किया लेकिन यह कानून का रूप नहीं ले पाया । यह विधेयक ”शौरी कार्यदल”, 1997 की सिफारिशों पर आधारित था ।
4. राज्य सरकारों के प्रयत्न:
इस दिशा में राजस्थान, कर्नाटक, गोवा और म.प्र. जैसे राज्यों ने अपने सूचना अधिकार कानून बनाकर लागू किये । अर्थात केंद्र से पहले राज्यों में सूचना कानून बने और लागू हुए । राजस्थान में पंचायत स्तर पर सूचना का अधिकार 1996 में लागू किया गया था । 2000 में इसे संपूर्ण प्रशासन पर लागू किया गया ।
5. सूचना अधिकार कानून, 2005:
यूपीए सरकार ने पूर्व से लम्बित ”सूचना स्वतंत्रता विधेयक” के स्थान पर ”सूचना अधिकार विधेयक” संसद में प्रस्तुत किया, जो मई 2005 में पारित होकर 1 फरवरी 2006 से लागू हुआ । भारत में सुश्री अरूणा राय, श्री अन्ना हजारे जैसे समाज के हित चिंतकों ने इसके लिये बकायदा सरकार से माँग की ।
उल्लेखनीय है कि इस अधिकार के लिये पूर्व आई ए.एस. अधिकारी (वर्तमान में राजस्थान में स्वयं सेवी संस्था चल रही) अरूणा राय ने विशेष योगदान दिया । वह सरकार द्वारा इस निमित्त बनायी गयी परामर्श समिति में भी रही । इस एक्ट के प्रावधानों के तहत कोई भी व्यक्ति या संस्था सरकार से कतिपय मामलों को छोड़कर लोक महत्व के अन्य किसी भी मामलों में सूचना को प्राप्त कर सकेगा ।
सूचना देने के लिये प्रत्येक राज्य और केंद्र सरकार लोक सूचना अधिकारियों की नियुक्ति करेगी जिन्हें आवेदन प्राप्ति की सूचना उपलब्ध करानी होगी या सूचना नहीं देने का उक्त युक्त कारण बताना होगा । असंतुष्ट व्यक्ति अपलीय सूचना अधिकारी के पास अपील कर सकेगा जो 30 से 45 दिनों के भीतर उसका निस्तारण करेगा ।
दोषी पाये जाने पर संबंधित अधिकारी पर प्रतिदिन 250 रू के हिसाब से आर्थिक जुर्माने का भी प्रावधान है । उक्त एक्ट वस्तुतः जनता के हाथों एक महत्वपूर्ण अस्त्र है जिसके द्वारा न सिर्फ अपने व्यक्तिगत कार्यों में आने वाली बाधाओं को जान सकेगी अपितु इसके प्रभाव से सरकारी मशीनरी की जड़ता टूटेगी ।
सरकारी भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा और के कार्य सही समय पर हो सकेंगे । प्रथम, देने योग्य और न देने योग्य सूचनाओं के अंतर का स्पष्टीकरण का अभाव, ग्रामीण भारत की अधिकांश अशिक्षित जनसंख्या, तीसरा नौकरशाही की निरंकुशता और अंततः इस अधिनियम के अंतर्गत अनेक संरचनात्मक खामियाँ, जैसे उल्लंघन पर कारावास का अभाव आदि इस एक्ट की वह सीमाएं है जो बनी तो एक्ट के उद्देश्यों पर पानी फिर सकता है ।
बहरहाल एक्ट पूरे देश में लागू हो चुका है और उसके अंतर्गत आवेदनों की संख्या भी बड़ रही है । इस एक्ट ने जनप्रतिनिधित्व पर आधारित संसदीय शासन को जन भागीदारी पर आधारित सुशासन को दिशा दी है ।
6. राष्ट्रीय सूचना आयोग:
केन्द्रीय सूचना अधिकार कानून के तहत भारत का एक राष्ट्रीय सूचना आयोग और प्रत्येक राज्य में राज्य सूचना आयोग के गठन का प्रावधान किया गया । तदनुरूप केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय सूचना आयोग का गठन 12 अक्तूबर 2005 को कर दिया । श्री वजाह्त उल्ला खान बनाये गये ।
संगठन:
यह एक तीन सदस्यीय आयोग है । इनमें से ही एक अध्यक्ष होता है ।
कार्य:
सूचना आयोग का प्रमुख कार्य या है, सूचना अधिकार अधिनियम को लागू करवाना ।