Read this article in Hindi to learn about:- 1. वैज्ञानिक प्रबन्ध का अर्थ (Meaning of Scientific Management) 2. वैज्ञानिक प्रबंध के मूलभूत उद्देश्य (Main Objectives of Scientific Management) 3. सिद्धान्त (Principles).
वैज्ञानिक प्रबन्ध का अर्थ (Meaning of Scientific Management):
वैज्ञानिक प्रबंध का प्रयोग सर्वप्रथम लुई ब्रेन्डिस (फ्रांसीसी अर्थशास्त्री) ने 1910 में किया । उसने फ्रेडरिक टेलर के वैज्ञानिक तकनीकों के प्रयोग और अनुसंधान आधारित निष्कर्षों को ”वैज्ञानिक प्रबन्ध” का नाम दिया । टेलर के पूर्व चार्ल्स बैवेज, हेनरी टाउन, हेनरी मेटकाफ तथा फ्रेडरिक हाल्से कुछ वैज्ञानिक तकनीकों की खोज और उनका प्रयोग कर चुके थे । वैज्ञानिक प्रबन्ध की पूर्ण-व्यवस्थित व्याख्या सर्वप्रथम टेलर ने ही की और इसीलिए उसे ”वैज्ञानिक प्रबन्ध का पितामह कहा जाता है” । टेलर अच्छे कार्य निष्पादन की खोज करने वाले प्रथम व्यक्ति थे । टेलरवाद का सर्वाधिक प्रभाव अमेरिका और रूस में था । रूस का स्टाखनोविटे आन्दोलन (1920-40) वैज्ञानिक प्रबन्ध पर ही आधारित था ।
वैज्ञानिक प्रबन्ध से आशय कार्य करने की पद्धतियों को वैज्ञानिक स्वरूप देने से रहा है, जिससे अधिकतम उत्पादकता प्राप्त की जा सके । इसकी अवधारणा आज प्रत्येक संगठन में महत्व प्राप्त कर गयी है और इसके कारण ही इसमें अनेक सिद्धान्तों का विकास भी हुआ ।
वैज्ञानिक प्रबंध के मूलभूत उद्देश्य (Main Objectives of Scientific Management):
वैज्ञानिक प्रबन्ध का मूलभूत उद्देश्य न्यूनतम पर अधिकतम उत्पादन प्राप्त करना है अर्थात उत्पादकता को निरन्तर बढाना है । इसे प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिक प्रबन्ध सांगठनिक क्षेत्रों पर ध्यान देता है ।
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जो वस्तुत: उसके अन्य उद्देश्य होते हैं:
i. उत्पादन में वृद्धि:
वैज्ञानिक प्रबन्ध उत्पादन को उसकी अधिकतम सीमा ले जाने की बात करता है । प्रत्येक व्यक्ति और मशीन दोनों की कार्यक्षमता का पूरा उपयोग करके ही उत्पादन में की जा सकती है ।
ii. कार्यकुशलता में वृद्धि:
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बिना कार्यकुशलता को प्राप्त किये, उत्पादकता के स्तर को प्राप्त नहीं जा सकता । वैज्ञानिक प्रबंध व्यक्ति और मशीन दोनों की कार्यकुशलता में वृद्धि करने हेतु वैज्ञानिक पद्धतियों के पर बल देता है । वस्तुत: यह उद्देश्य प्रबन्ध को कुशल प्रबन्ध बना देता हैं ।
iii. लागत व्यय को कम करना:
वैज्ञानिक प्रबन्ध का एक प्रमुख उद्देश्य लागत में निरन्तर कटौती है । अपव्यय को रोककर, कार्यकुशलता में वृद्धि करके और क्षमता का पूरा उपयोग कर लागत को कम किया जाता है ।
iv. जीवनस्तर ऊँचा उठाना:
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टेलर ने अपनी पुस्तक में बताया कि वैज्ञानिक प्रबंध का महत्वपूर्ण उद्देश्य जीवन को सुख-सुविधा से परिपूर्ण कर व्यक्तियों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाना है । ऐसा वस्तुओं की लागत में कमी और श्रमिकों की क्रयशक्ति में वृद्धि करके ही संभव है ।
v. प्रबन्धक, श्रमिक और समाज तीनों को लाभान्वित करना:
अंतत: वैज्ञानिक प्रबन्ध का उद्देश्य श्रमिक और प्रबन्ध को लाभान्वित करके सम्पूर्ण समाज के अधिकाधिक को सुनिश्चित करना हैं ।
वैज्ञानिक प्रबंध के सिद्धान्त (Principles of Scientific Management):
उक्त उद्देश्यों के लिए वैज्ञानिक प्रबन्ध निम्नलिखित सिद्धान्तों के अनुपालन पर जोर देता है:
i. कार्य प्रमापीकरण का सिद्धान्त:
इसके तहत किये जाने वाले कार्य का निश्चित स्तर, आकार, मात्रा आदि तय किये जाते है । यह श्रमिक और मशीन के सन्दर्भ में निर्धारित होता हैं । इससे प्रत्येक श्रमिक या मशीन से कितना और कैसा कार्य अपेक्षित है, उसका अनुमान लग जाता है ।
ii. कार्यदशाओं का प्रमापीकरण:
जहां हो रहा है, वहाँ पर्याप्त रोशनी, हवा आदि की व्यवस्था होना चाहिए । कार्य के स्वरूप के अनुकूल ही हवा, आदि का निश्चित स्तर किया जाता हैं ।
iii. वैज्ञानिक चयन और प्रशिक्षण:
इस सिद्धान्त के अनुसार कार्य के लिए योग्यतम कार्मिक नियुक्ति की जानी चाहिये । उचित कार्य के लिए उपयुक्त वैज्ञानिक चयन पद्धति अपनाकर ही हो है । यह चयन पद्धति कार्य की अपेक्षानुरूप ही निर्धारित होती है । इसी प्रकार चयनित व्यक्तियों को कार्यानुरूप विशेष भी दिया जाना चाहिए, तभी वे अपना कुशलतापूर्वक सम्पन्न कर सकते हैं ।
iv. नियोजन का सिद्धान्त:
वैज्ञानिक प्रबन्ध का प्रथम ”नियोजन” है । कार्यों की सम्पूर्ण रूपरेखा का निर्धारण पहले किया है, और तदनुरूप कार्यों को सम्पन्न होते देखा जाता है । इसके तहत इन प्रश्नों का निर्धारण किया जाता है- कार्य कौन करेगा ? कब करेगा ? कहां करेगा ? कैसे करेगा ? आदि ।
v. सामग्री प्रबन्धन का सिद्धान्त:
इसके तहत लगने वाले कच्चे माल की प्राप्ति से संबंधित कार्य आते है, जैसे अच्छी गुणवत्ता का माल, पर्याप्त मात्रा में और उचित कीमत पर प्राप्त करना उसका सुरक्षित भंडारण करना और उसे सही समय पर कार्य स्थान पर पहुंचना ।
vi. यन्त्रीकरण का सिद्धान्त:
वैज्ञानिक प्रबन्ध परम्परागत कार्य तकनीकों के साथ कार्य के पुराने यन्त्रों को भी आधुनिक यन्त्रों से प्रतिस्थापित करने पर बल देता है । अधिकाधिक स्वचालित यन्त्रों का उपयोग सुनिश्चित करके ही अधिकतम उत्पादन न्यूनतम लागत पर प्राप्त किया जा सकता हैं ।
vii. रख-रखाव का सिद्धान्त:
यन्त्रों, संयन्त्र आदि की निरन्तर मरम्मत (Servicing) होते रहनी चाहिए, ताकि वे कार्यकुशल बने रहे और उत्पादन प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न न हो ।
viii. विशेषीकरण का सिद्धान्त:
कार्यकुशलता और दक्षता प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिक प्रबन्ध “एक कार्य-एक कार्मिक” की अवधारणा अपनाता है । इसके लिए वह आदेश की एकता का विरोधी और कार्यात्मक विशेषीकरण का पक्षधर है । टेलर के सुझाये इस सिद्धान्त के अनुसार एक कार्मिक को अनेक विशेषज्ञों के अधीन रहना पड़ता है ।
ix. पुरस्कार और दण्ड का सिद्धान्त:
वैज्ञानिक प्रबन्ध अभिप्रेरणात्मक मजदूरी के सिद्धान्त पर जोर देता है । इसके अनुसार अच्छा और अपेक्षित प्रदर्शन करने पर कार्मिक को अधिक परिश्रमिक देना चाहिये, जबकि मानक से कम प्रदर्शन करने वाले मजदूर को कम मजदूरी देना चाहिये । वस्तुत: यह सिद्धान्त कार्यकुशलता का पूरक है ।
x. श्रम-पूंजी के मध्य उचित सम्बन्धों का सिद्धान्त:
मानसिक क्रांति को सिद्धान्त पर आधारित “वैज्ञानिक प्रबन्ध” वस्तुत: अच्छे श्रम-पूंजी सम्बन्धों पर बल देता है । जब तक दोनों में परस्पर सहयोगी और समन्वित सम्बन्ध नहीं होंगे, वैज्ञानिक प्रबन्ध की अवधारणा सफल नहीं हो सकती । यह सिद्धान्त दोनों के मध्य परम्परागत शंकालू दृष्टि के स्थान पर आधुनिक और प्रगतिशील वैज्ञानिक समझ वाली दृष्टि को लाना चाहता है । इस प्रकार वैज्ञानिक प्रबन्ध के सिद्धान्त सम्पूर्ण प्रबन्ध प्रणाली को एक तार्किक, प्रगतिशील और उद्देश्योन्मुखी व्यवस्था के रूप में प्रस्तुत करते हैं ।