Read this article in Hindi to learn about:- 1. टेलर और वैज्ञानिक प्रबंध का परिचय (Introduction to Taylor and Scientific Management) 2. वैज्ञानिक प्रबंध के अर्थ और परिभाषा (Meaning and Definition of Scientific Management) 3. उद्देश्य (Objectives) and Other Details.
टेलर और वैज्ञानिक प्रबंध का परिचय (Introduction to Taylor and Scientific Management):
टेलर को वैज्ञानिक प्रबंध की दिशा में प्रेरित और प्रोत्साहित करने वाला वह प्रसिद्ध पर्चा था जिसे हेनरी टाउन ने 1886 में “द इंजीनियर एज एन इकनोमिस्ट” (इंजिनियर्स एक अर्थशास्त्री के रूप में) के शीर्षक से अमेरिकन मेकेनिकल इंजीनियर्स सोसाइटी के समक्ष पढ़ा था । टेलर इसी वर्ष सोसाइटी का सदस्य बना था ।
जर्मन टाउन (अमेरिका) में 1856 में जन्में टेलर ने हाइड्रोलिक वर्क्स (1874) में पहली नौकरी एक अप्रेंटिस के रूप में की फिर मिडवेल स्टील वर्क्स में यांत्रिक श्रमिक (Foreman) के रूप में दूसरी नौकरी की । 1884 में वह इसी कंपनी में मुख्य अभियंता (Chief Engineer) नियुक्त हुआ । यहीं उसने अपनी पहली खोज की ”स्टील को पक्का बनाने की विधि ।”
उल्लेखनीय है कि मिडवेल कंपनी में सर्विस के दौरान पार्ट टाइम अध्ययन करते हुए टेलर ने “स्टीवेन्स इंस्टीटयूट” से मेकेनिकल इंजीनियंरिंग की उपाधि भी प्राप्त कर ली । 1886 में अमेरिकन इंजीनियर्स सोसायटी में हेनरी टाऊन के भाषण से टेलर बहुत प्रभावित हुआ । यद्यपि वह पहले से ही वैज्ञानिक तरीके से कार्य पद्धतियों पर विचार कर रहा था लेकिन उसे टाऊन के भाषण से वास्तविक प्रेरणा मिली ।
ADVERTISEMENTS:
1893 में टेलर ने स्वयं की एक ”कन्सलटेन्सी” खोल ली । 1898 से 1901 तक बेथलेहम कपनी अमेरिका में काम किया और अंततः 1901 से लेकर 1915 तक अपनी मृत्यु पर्यत वैज्ञानिक प्रबंध की तकनीकों के सुधार में लगा रहा ।
प्रमुख रचनाएं:
लेख:
ADVERTISEMENTS:
(1) टेलर की पहली रचना एक लेख है ”नोट्स ऑन बैल्टिंग” (1893) ।
(2) उसकी दूसरी रचना भी एक लेख है- “वस्तुदर व्यवस्था” (A Piece Rate System) 1895
जिसमें वेतन भुगतान के तीन सिद्धांतों का जिक्र किया गया:
1. कार्य का समय आधारित वर्गीकरण और उसके अनुसार वेतन-दर निर्धारण ।
ADVERTISEMENTS:
2. एक ही कार्य के लिए विभिन्न दर की व्यवस्था (जो कार्य की मात्रा, गुणवत्ता अनुसार अलग-अलग हो)
3. व्यक्ति का वेतन न कि पद का ।
(4) टेलर ने शोध पत्र लिखा, ”एडजस्टमेंट आफ वेजेस टु दी इफीनिसन्सी” (1896) ।
(5) टेलर की चौथी रचना भी एक शोध पत्र है- ”कार्यशाला प्रबंध” (Shop Management) जो 1903 में आया । इसमें ही उसने वैज्ञानिक प्रबंध योजना को प्रस्तुत किया ।
(6) 1906 में ”धातु काटने की कला” (Art of Cutting Metals) 1907 में “The Gospel of Efficiency” नामक लेख लिखे ।
पुस्तकें:
(i) टेलर की पहली पुस्तक थीं- “Concrete, Plain and Reinforced” (1905) जो एस. ई थाम्पसन के साथ मिलकर लिखी थी ।
(ii) इसके अतिरिक्त “Concert Cost” (1912)
(iii) “Shop Management” (1910) तथा
(iv) “The Principles of Scientific Management” (1911) ।
उल्लेखनीय है कि बाद में “The Principles of Scientific Management”, “Shop Management” तथा हाक्सी समिति के समक्ष टेलर की गवाही को मिलाकर ”साइंटिफिक मैनेजमेन्ट” (1929) नामक पुस्तक प्रकाशित हुई थी ।
वैज्ञानिक प्रबंध के अर्थ और परिभाषा (Meaning and Definition of Scientific Management):
वैज्ञानिक प्रबंध परंपरागत कार्य पद्धतियों के स्थान पर प्रयोग आधारित नवीन कार्यविधियों की स्थापना है ताकि उत्पादन बढ़ सके और लागत कम हो सके । यह उत्पादन के स्थान पर ‘उत्पादकता’ पर केन्द्रित शास्त्र है । टेलर- “वैज्ञानिक प्रबंध से आशय यह देखना है कि व्यक्ति क्या काम कर रहे है फिर उनमें ऐसा सुधार करना कि न्यूनतम लागत पर अधिक उत्पादन हो सके ।”
टेलर के अनुसार:
(i) वैज्ञानिक प्रबंध निश्चित नियमों. सिद्धांतों पर आधारित है जो धर परिवार पाठशाला या सरकार सभी संगठनों पर लाग हो सकता है ।
(ii) वैज्ञानिक प्रबंध ‘प्रशासनिक सिद्धांत’ में पहला क्रमबद्ध सिद्धांत है ।
(iii) वैज्ञानिक प्रबंधवाद एक ‘पूर्ण मानसिक क्रांति’ है ।
(iv) फंक्शनल आर्गेनाइजेशन/फोरमैनशिप (अध्यक्षात्मक कार्यात्मक) -एक कार्मिक अपने कार्यों के लिए उत्तरदायित्व लेता है (पृथक्-पृथक् उत्तरदायित्व) । एक कार्मिक के 8 बॉस होते है । अर्थात् टेलर बहुल नियंत्रण का समर्थक है न कि आदेश की एकता का ।
वैज्ञानिक प्रबंध के उद्देश्य (Objectives of Scientific Management):
वैज्ञानिक प्रबंध का उद्देश्य है, ”उच्चतम औद्योगिक क्षमता (उत्पादन)” प्राप्त करना । कम लागत पर अधिक उत्पादन । मजदूरों को अधिक मजदूरी । समाज को अधिक सुख-सुविधायें प्रदान करना तथा राष्ट्रों को आर्थिक लाभ पहुंचना ।
टेलर वाद का प्रतिवाद:
(1) कांग्रेस की विशेष समिति, 1912:
टेलर वाद की जांच के लिए पहली विशेष समिति कांग्रेस (प्रतिनिधि सदन) ने गठित की । इस समिति ने टेलर या श्रमिक-किसी का भी पक्ष नहीं लिया ।
आर्मी एप्रोप्रिएशन एक्ट, 1915:
इस एक्ट में श्रमिक संघों के दबाव में संशोधन कर दिया गया । इससे सैन्य शस्त्रगारों में प्रीमियम या बोनस भुगतान तथा “स्टॉफ वॉच” वॉच पद्धतियों का प्रयोग वर्जित हुआ ।
राबर्ट हाक्सी समिति:
टेलर वाद और यूनियन के मध्य विरोध के कारणों की जांच के लिए ”औधोगिक संबंधों पर अमेरिकी आयोग” की तरफ से प्रो. राबर्ट हाक्सी ने जांच की ।
हाक्सी रिर्पोट ने वैज्ञानिक प्रबंध की दो आधारों पर घोर आलोचना की:
1. यह उत्पादन के यांत्रिक पक्ष का ही समर्थन करता है तथा मानवीय पक्ष की अवहेलना करता है, उसे हल्के ढंग से लेता है ।
2. वैज्ञानिक प्रबंध के आदर्श और यूनियनिस्ट (संघवाद) दोनों में भारी प्रतिकुलताएं है । यह यूनियन के अस्तित्व को ही नकारता है ।
टेलर के प्रयोग और वैज्ञानिक प्रबंध का विकास:
टेलर ने विभिन्न कंपनियों में काम करते समय ही अपने अधिकांश प्रयोग किये और वैज्ञानिक प्रबंध की तकनीकों, विधियों का विकास किया, यद्यपि इसके बाद भी अंतिम समय तक वह निरंतर शौध करते रहे ।
1. समय और गति अध्ययन:
सर्वप्रथम टेलर ने ही कार्य और मनुष्य की गति तथा कार्य में लगने वाले समय को जाँचने और निर्धारित करने का प्रयास किया था यद्यपि इस दिशा में वास्तविक कार्य बाद में गिलबर्थ ने किया । गति अध्ययन का उद्देश्य है, कार्य का सर्वोत्तम तरीका खोजना ।
इसी प्रकार समय अध्ययन का उद्देश्य है, किसी कार्य में लगने वाले आदर्श समय का निर्धारण करना तथा एक दिन में किये जा सकने वाले कार्य की मात्रा तय करना । स्पष्ट है कि समय अध्ययन गति अध्ययन के बाद शुरू होता है और दोनों का सम्मिलित उद्देश्य है, समय और धन की बचत, व्यक्ति की क्षमता का अधिकाधिक उपयोग ।
2. मानकीकरण:
टैलर के अनुसार प्रबंध की जवाबदारी है कि वह समय, गति जैसे अध्ययनों के द्वारा कार्य कार्य-प्रक्रिया, कार्य-दशा, माल, उपकरण, यंत्र सभी का मानक तय करें ।
3. वेतन की विभेदात्मक दर पद्धति:
टेलर ने औद्योगिक मानव को ”आर्थिक मानव” की संज्ञा दी जो आर्थिक प्रोत्साहन से ही संचालित होता है । उसने वेतन या मजदूरी को प्रोत्साहन के रूप में देखा और विभेदात्मक दर पद्धति का सुझाव दिया । इसके अनुसार उत्पादन के अनुपात में मजदूरी देना चाहिए । टेलर के अनुसार प्रबंध को प्रत्येक दिन के कार्य का व्यापक रूप से निर्धारण करना चाहिए और जो मजदूर उसे प्राप्त करें उसे पुरस्कृत किया जाए और जो असफल रहे, उन्हे दण्डित किया जाए । समय और गति अध्ययन के आधार पर उत्पादन का एक मानक तय कर लिया जाता है ।
इस आधार पर तीन प्रकार की दर से मजदूरी दी जा सकती है:
(i) मानक से कम उत्पादन कम दर से ।
(ii) मानक उत्पादन अधिक दर से ।
(iii) मानक से अधिक उत्पादन उच्चतम दर से ।
4. कृत्य मूलक निर्देशन या क्रियात्मक संगठन सिद्धांत:
टेलर अधिकाधिक विशेषीकरण का पक्षधर रहा और उसने निरीक्षण को भी विशेषीकृत करने से संबंधित यह सिद्धांत दिया कि प्रत्येक कार्य या गतिविधि का एक पृथक् निरीक्षक होना चाहिए । उसने संगठन की गतिविधि को 8 भागों में विभक्त किया; चार कार्यालय संबंधी और चार कारखाना संबंधी ।
कार्यालय संबंधी 4 गतिविधियों के चार अधीक्षक है:
(a) गेंग बॉस (दल अधिकारी)
(b) स्पीड बॉस (गति अधिकारी)
(c) निरीक्षक (Inspector)
(d) रिपेयर बॉस (मरम्मत अधिकारी)
कारखाना स्तर पर 4 अधीक्षक है:
(a) आर्डर एण्ड रूट क्लर्क (कार्यव्यवस्था तथा पद्धति लिपिक)
(b) इंस्ट्रक्शन कार्ड क्लर्क (अनुदेश कार्ड लिपिक)
(c) टाइम एण्ड कास्ट क्लर्क (समय और लागत लिपिक)
(d) वर्क डिस्पिलेएनेरियन (कार्य-अनुशासक)
टेलर के अनुसार पहले 4 तो कार्यालय (Workshop) में ही होंगे जबकि बाद के 4 को नियोजन कक्ष में रहना होगा । टेलर के अनुसार एक ही अधीक्षक से यह आशा नहीं की जा सकती कि वह सभी कार्यों का विशेषज्ञ होगा । आदेश की एकता सैनिक प्रशासन में चल सकती है नागरिक प्रशासन में अनुपयुक्त है ।
इस प्रकार “कृत्यमूलक निदेशन” के पहलू है:
(अ) प्रत्येंक गतिविधि या कार्य का पृथक निरीक्षण अर्थात् प्रत्येक कार्य का विशेषज्ञ निरीक्षण।
(ब) आदेश की बहुलता अर्थात् एक कार्मिक को अपने भिन्न-भिन्न कार्यों के लिए भिन्न-भिन्न निरीक्षकों से आदेश लेना ।
5. अपवाद का सिद्धांत:
टेलर का सुझाव था कि प्रबंधक मानक स्तर के अनुरूप काम और कार्मिकों पर ध्यान देने की बजाय होने वाले विचलन (कम या अधिक दोनों) पर ध्यान दें । चूंकि यह विचलन अपवाद स्वरूप कुछ ही काम या कार्मिकों का होता है, अत: प्रबंध को भी अपवाद स्वरूप ही ध्यान देना पड़ेगा ।
6. आधुनिक प्रबंन्धकीय तकनीकों का प्रयोग:
टेलर ने निर्देश कार्डस (Instruction Cards) स्लाइड रूल्स (समय बचत के लिए) गति-चार्टस, रूटिंग सिस्टम (श्रमिक, माल के परिवहन के लिए), ग्राफ्स आदि के प्रयोग का सुझाव दिया था ।
7. नियोजन विभाग:
टेलर का वैज्ञानिक प्रबंध “नियोजन प्रबंध” प्रबंध है । उसका ज़ोर था कि प्रत्येक उद्दाम या संगठन में नियोजन विभाग की पृथक स्थापना होनी चाहिए । यह उद्दाम और उसकी प्रत्येक इकाई के लिए योजना बनाने में मदद करें ।
8. स्मृति वर्धक व्यवस्था:
टेलर ने उत्पादित वस्तुओं और उनमें प्रयुक्त यंत्रों के वर्गीकरण के “निमोनिक सिस्टम” को अपनाने पर बल दिया ।
9. आधुनिक लागत व्यवस्था:
टेलर उस परंपरागत लागत व्यवस्था को अवैज्ञानिक मानता था जो “Trial & Error” पर आधारित थी । इसके स्थान पर टेलर ने आधुनिक लागत-सिद्धांतों को अपनाने की वकालत की । जिसकी सहायता से उत्पादन लागत कम या नियंत्रित की जा सकती है ।
10. थकान अध्ययन:
टेलर ने “फाटीग स्टडी” (Fatigue Study) के अंतर्गत कार्य करने से उत्पन्न शारीरिक थकावट, उसके लिए उत्तरदायी कारण आदि का अध्ययन-विश्लेषण किया। उसके अनुसार कार्य की प्रकृति, अवैज्ञानिक तरीके से कार्य-वितरण, कार्य का पुनरावृत्ति, अनपयुक्त कार्य दशाएं, कार्य की गति आदि थकान या शारीरिक शिथिलता उत्पन्न करते है । लेकिन थकान अध्ययन के द्वारा टेलर ने यह साबित किया कि वैज्ञानिक कार्य योजना अपनाकर किस प्रकार श्रमिक पर कार्य का बोझ बढ़ाएं बिना उसकी उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती ।
11. दृढ़-अवरोधक प्रवृत्ति (Soldering Phenomenon):
टेलर ने मेडवेल, बेथलेहम में अपने अनुभवों के आधार पर “साल्डरिंग फिनोमिना” का प्रतिपादन किया । इसके अनुसार श्रमिकों में उत्पादन को बाधित करने की प्रवृत्ति होती है ।
यह दो प्रकार की है:
(a) प्राकृतिक अर्थात् मनुष्य स्वाभाविक रूप से चीजों को आसानी से लेना चाहता है, अर्थात् बोझ लेना पसंद नहीं करता ।
(b) दूसरी व्यवस्थित साल्डरिंग जो सांगठनिक और सामाजिक घटकों का परिणाम होती है। इसमें श्रमिक पर्यवेक्षक की उनसे अपेक्षाओं को सदैव न्यूनतम स्तर पर रखना चाहते । टेलर के अनुसार सांगठनिक-दक्षता को बढ़ाने का मूलभूत तरीका यह है कि ”साल्डरिंग” को वैज्ञानिक तकनीकों के माध्यम से कम किया जाएं ।
टेलर द्वारा वैज्ञानिक प्रबंध के प्रमुख मूलधारा (Bases of Taylor’s Scientific Management):
टेलर ने उपर्युक्त प्रयोगों, सिद्धांतों के आधार पर “द साइंटिफिक मैनेजमेण्ट” में वैज्ञानिक प्रबंध के निम्न मूल तत्व घोषित किए:
1. तीन प्रमुख आधारभूत मान्यताएं:
(क) वैज्ञानिक प्रविधियों को अपनाकर संगठानिक क्रिया कलापों में सुधार संभव है ।
(ख) एक अच्छा कार्यकर्ता वह है, जो स्वयं पहल नहीं करता अपितु प्रबंध के आदेशों को यथास्वरूप स्वीकार लेता है।
(ग) प्रत्येक कार्मिक एक ”आर्थिक मनुष्य” है, जो आर्थिक प्रलोभनों से अभिप्रेरित होता है ।
2. चार प्रमुख सिद्धांत:
टेलर ने वैज्ञानिक प्रबंध के 4 सिद्धांत प्रतिपादित किये:
(क) वास्तविक विज्ञान का विकास:
इस सिद्धांत के अनुसार पुराने ”अंगुठा नियम” को त्याग कर प्रत्येक कार्य के लिए वैज्ञानिक आधार का विकास करना । इससे प्रत्येक कार्य को करने का एक सर्वोत्तम तरीका निर्धारित करने और तदनंतर उत्पादन का ”मानक स्तर” तय किया जा सकता है ।
(ख) कार्मिक का वैज्ञानिक चयन और प्रशिक्षण:
चयन की वैज्ञानिक और तार्किक पद्धति अपनाकर प्रत्येक काम के लिए उपयुक्त व्यक्ति की भर्ती की जानी चाहिए ।
(ग) कार्मिकों को सिद्धांतानुसार कार्य करने के लिए प्रेरित करना:
प्रबंध का चाहिए कि वह कार्मिकों के साथ सहयोग करें ताकि वे प्रबंधकीय सिद्धांतों के अनुसार कार्य-निष्पादन कर सके ।
(घ) प्रबंध और कार्मिकों के मध्य उचित कार्य विभाजन:
टेलर ने दोनों के मध्य समान कार्य विभाजन की वकालत की । इसके तहत तरीके, विधियां, मानक स्तर का निर्धारण प्रबंध करें और कार्मिक उनके अनुसार कार्य निष्पादन करें । अब तक काम और उसके लिए अधिकांश उत्तरदायित्व कार्मिकों का माना जाता था ।
3. वैज्ञानिक प्रबंध के 5 प्रमुख बल:
उपरोक्त 4 सिद्धातों के आधार पर टेलर न प्रबंध के दर्शन को 5 शीर्षकों में व्यक्त किया:
(1) वैज्ञानिकता, न कि रूढिवादिता
(2) सहयोग, न कि संघर्ष
(3) सहकारिता, न कि व्यक्तिवाद (टीम भावना, न कि स्वार्थ भावना)
(4) अधिकतम उत्पादन, न कि न्यूनतम उत्पादन
(5) प्रत्येक व्यक्ति का अधिकतम दक्षता और समृद्धि तक विकास
4. वैज्ञानिक प्रबंध योजना:
टेलर ने कार्यशाला स्तर पर अपने वैज्ञानिक प्रबंध का विकास किया था और इस हेतु एक चार सूत्रीय योजना प्रस्तुत की थी:
(1) दैनिक कार्य योजना बनाना
(2) कार्य दशाओं का प्रमापीकरण (हवा, पानी, प्रकाश, विश्राम आदि का उपयुक्त मानक स्तर)
(3) कार्य-पद्धति का प्रमापीकरण (कार्य की श्रेष्ठतम विधि)
(4) वैज्ञानिक चयन पद्धति (श्रेष्ठतम कार्मिक की भर्ती, निकृष्ट की छुट्टी)
उसने वैज्ञानिक प्रबंध को 75 प्रतिशत विश्लेषण और 25 प्रतिशत सामान्य बुद्धि की संज्ञा दी ।
5. दो तरफा मानसिक क्रांति:
टेलर ने वैज्ञानिक प्रबंध को संपूर्ण मानसिक क्रांति कहा, जो द्विआयामी है । इसमें श्रमिक और प्रबंध दोनों को परंपरागत रवैया त्यागना पड़ता है । कार्मिकों को अपने कार्य दायित्व सहकर्मी और नियोक्ता सभी के प्रति परंपरागत रूढ़िवादी विचारों का त्यागना है । उन्हें अधिक मजदूरी मिलेगी ।
प्रबंध को भी कार्मिकों और उनकी समस्याओं के प्रति परंपरागत रवैये को छोड़कर संवेदनशील होना पड़ेगा । उसे कार्मिकों को अधिक उत्पादन के लिए बड़ी दर से भुगतान करना चाहिये, कार्य के श्रेष्ठ तरीके खोजना चाहिये तथा उन्हें लागत कम करने के उपाय करने चाहिए । उन्हें अधिक उत्पादकता और लाभ मिलेगा ।
टेलर के अनुसार प्रबंध और कार्मिक दोनों को समझना होगा कि उनके परस्पर हित विरोधी नहीं अपितु परिपूरक है और संघर्ष के स्थान पर समन्वय स हो उनकी पूर्ति हो सकती है। टेलर ने इसे ”मानसिक क्रांति” की संज्ञा दी और ”वैज्ञानिक प्रबंध” का केन्द्रीय तत्व घोषित किया ।
”उद्यागों में कार्य और प्राधिकार” (Work and Authority in Industry) नामक अपनी पुस्तक में रेनहार्ड बेनेडिक्स ने मानसिक क्रांति को पूंजी और श्रम के समस्त संघर्ष का वैज्ञानिक समाधान बताया । मैक्सफारलैण्ड ने वैज्ञानिक प्रबंध को औधोगिक क्रांति की दिशा में मानसिक क्रांति की संज्ञा दी ।
उल्लेखनीय है कि टेलर ने प्रबंध का मुख्य उद्देश्य ”नियोक्ता के लाभ” को अधिकतम करना घोषित किया और बताया कि इसकी प्राप्ति के लिए यही लक्ष्य कार्मिक का भी तय करना जरूरी है । लेकिन उच्च-उत्पादकता अंतत: सबके हित में है चाहे मालिक हो, कार्मिक हो या ग्राहक हो ।
वैज्ञानिक प्रबंद मैं अन्य योगदान (Other Contributions in Scientific Management):
1. स्तखनोवाइट आंदोलन:
वैज्ञानिक प्रबंध को में एक अन्य स्वरूप में अपनाया गया। रूस के कार्यदक्षता विशेषज्ञ ए.जी. स्तखोनोव के नाम से प्रसिद्ध स्तखनोवाइट स्तखानोवाद उत्पादन वृद्धि के व्यैक्तिक प्रौत्साहन और पहल का समर्थन करता है ।
1935 से लोकप्रिय स्तखनोवाइट आंदोलन को लेनिन ने अत्यधिक समर्थन दिया था । लेनिन रूस में कार्य क्षमता में वृद्धि करने, नये तरीकों से उत्पादन बढ़ाने के लिए टेलरवादी-तकनीकों और वैज्ञानिक-पृविधियों का समर्थक था । वस्तुत: स्तखनोवाइट आंदोलन वैज्ञानिक प्रबंध का ही रूसी संस्करण है ।
2. हेनरी ग्रांट:
इन्होंने “कार्य और बोनस” का सिद्धांत दिया । कार्मिक को मानक स्तर पर उत्पादन करने पर बोनस दिया जाता है । इसने उद्योगों में आदत-विकास पर बल दिया । अर्थात् कार्य करने के तरिकों के रूप में अच्छी आदतों को विकसित करना चाहिए । उसने ग्रांट चार्ट विकसित किया जिसमें समयानुसार होने वाले उत्पादन दर्ज किया जाता है । यह चार्ट नियोजन नियन्त्रण की तकनीक के रूप में काम करता है ।
3. हेनरी फेयोल:
इन्होंने उच्च प्रबंध की तकनीकों को विकसित किया है ।
4. ग्रिलबर्थ दंपति का योगदान:
इसने अपने नाम का उलट ‘थ्रलब्लिग’ के अंतर्गत 17 सिद्धांत दिए, लेकिन इसका महत्वपूर्ण योगदान था, ”फ्लो प्रोसेस चार्ट” जो गति अध्ययन का विकसित स्वरूप है । इसी ने माइक्रोमीटर व विराम घड़ी की भी खोज की । फलों प्रोसेसचार्ट को ”स्पीड वर्क” की संज्ञा दी जाती है क्योंकि वह कार्य के मार्ग की बाधाओं को दूर कर उसकी गति लाए. को बढ़ाता है ।
5. मोरिस कुक:
मोरिस कुक ने यह स्पष्ट रूप से स्थापित किया कि वैज्ञानिक प्रबंध को सार्वभौमिक रूप से लागू किया जा सकता है । उसने वैज्ञानिक प्रबन्ध को सरकारी और शैक्षणिक संस्थानों में लागू किया । वह टेलर की इस बात से सहमत नहीं था कि कार्य का श्रेष्ठ तरीका ढूंढने का अधिकार मात्र प्रबन्ध (विशेषज्ञों) को है अपितु उसके अनुसार इसमें प्रबन्ध और श्रमिक दोनों की भागीदारी होना चाहिए ।
6. इमर्सन:
इसने अपनी प्रणाली को ”वैज्ञानिक प्रबन्ध” के स्थान पर ”कुशलता प्रणाली” कहलाना ज्यादा उपयुक्त समझा । अपनी पुस्तकों “इफिसियेन्सी” और “इफिसिएन्सी के बारह सिद्धान्त” में इमर्सन ने एक सही संगठन की उच्च-उत्पादकता के श्रेष्ठ तरिके बताए ।
इमर्सन ने कुशलता प्रबंध के निम्नलिखित 12 सिद्धांत दिये:
(1) स्पष्ट परिभाषित उद्देश्य (Clearly Defined Objectives)
(2) सामान्य बोध (Common Sense)
(3) योग्य परामर्श (Competent Consultation)
(4) अनुशासन (Discipline)
(5) निष्पक्ष सौदेबाजी (Fair Deal)
(6) विश्वसनीय पर्याप्त और तुरंत किया हुआ रिकॉर्ड (Reliable, immediate and Adequate Records)
(7) प्रेषण (Dispatching)
(8) मानक और शेडयूल (Standard and Schedules)
(9) आदर्श स्थिति (Standard Conditions)
(10) आदर्श संचालन (Standard Operations)
(11) लिखित में मानक कार्यादेश (Written Standard Practice Instructions)
(12) कुशलता के लिए पुरस्कार (Efficiency Rewards)