वैज्ञानिक प्रबंधन: उदय, सिद्धांत, तकनीक और आलोचना | Read this article in Hindi to learn about:- 1. वैज्ञानिक प्रबंधन  का  उदय और विकास (Rise and Growth of Scientific Management) 2. वैज्ञानिक प्रबंधन  का  मूल विषय वस्तु (Basic Theme of Scientific Management) 3. सिद्धांत (Principles) 4. तकनीकें (Techniques) 5. वैज्ञानिक प्रबंधन  और टेलर के अनुयायी (Scientific Management and Taylor’s Followers 6. आलोचना और विरोध (Criticism and Opposition).

Contents:

  1. वैज्ञानिक प्रबंधन  का  उदय और विकास (Rise and Growth of Scientific Management)
  2. वैज्ञानिक प्रबंधन  का  मूल विषय वस्तु (Basic Theme of Scientific Management)
  3. वैज्ञानिक प्रबंधन  के  सिद्धांत (Principles of Scientific Management)
  4. वैज्ञानिक प्रबंधन  के तकनीकें (Techniques of Scientific Management)
  5. वैज्ञानिक प्रबंधन  और टेलर के अनुयायी (Scientific Management and Taylor’s Followers)
  6. वैज्ञानिक प्रबंधन  के आलोचना और विरोध (Criticism and Opposition of Scientific Management)

1. वैज्ञानिक प्रबंधन  का उदय और विकास (Rise and Growth of Scientific Management):

बीसवीं सदी के पहले दशक में टेलर ने वैज्ञानिक प्रबंधन का प्रतिपादन किया । यह प्रशासन का पहला सामंजस्यपूर्ण सिद्धांत है । लेकिन इस सिद्धांत की शुरुआत करने वाले टेलर नहीं थे । उनके पहले चार्ल्स बाबेज, हेनरी आर. टाउनी, फ्रेडरिक हॉल्सी और हेनरी मेटकाफ़ वैज्ञानिक प्रबंधन की कुछ पद्धतियाँ और तकनीक विकसित कर चुके थे ।

हालाँकि ”वैज्ञानिक प्रबंधन” नामक शब्द को पहली बार लुई ब्रैंडीज ने प्रयोग किया था, किंतु टेलर ने सांगठनिक कुशलता और वित्त को बढ़ावा देने के लिए इस शब्द का प्रयोग वैज्ञानिक पद्धति और तकनीक की पूर्ण क्रमबद्ध व्याख्या के लिए किया ।

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वैज्ञानिक प्रबंधन ‘टेलरवाद’ के रूप में भी जाना जाता है । वैज्ञानिक प्रबंधन में टेलर के योगदान उनकी रचनाओं- (i) ए पीस रेट सिस्टम (1895), (ii) शॉप मैनेजमेंट (1903), (iii) आर्ट ऑफ कटिंग मेटल्स (1906) और (iv) प्रिसिपल ऑफ साइंटिफिक मैनेजमेंट (1911) में शामिल हैं ।

टेलर के बाद वैज्ञानिक प्रबंधन के विकास में कई प्रबंधन चिंतकों ने योगदान किया । उनमें प्रमुख हैं- एच.एल. गांट, एच. इमर्सन, एफ. बी. गिल्ब्रेथ, एल.एम. गिलब्रेथ, सी.जी. बार्थ, एस.ई. थॉम्पसन, एम.एल. कुक और एच.के. हैथवे ।

औद्योगिक और सरकारी, दोनों ही संगठनों के प्रशासनिक विचार और प्रणाली पर वैज्ञानिक प्रबंधन आंदोलन का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है । अमेरिका से यह सोवियत संघ पहुँचा जहाँ 1920-1940 के बीच इसने स्ताखानोवाइट आंदोलन का रूप लिया । इसके साथ ही यह अन्य क देशों में भी फैला ।


2. वैज्ञानिक प्रबंधन  का  मूल विषय वस्तु (Basic Theme of Scientific Management):

टेलर के अनुसार, प्रबंधन सच्चा विज्ञान है क्योंकि यह स्पष्ट रूप से निर्धारित कानूनों, नियमों और सिद्धांतों पर आधारित है और हर प्रकार के संगठन में सार्वभौमिक रूप से लागू होता है । उनके शब्दों में- ”एक ही सिद्धांत का प्रयोग सभी सामाजिक गतिविधियों में समान बल के साथ किया जा सकता है जैसे कि हमारे घरों, हमारे खेतों, छोटे और बड़े व्यापारियों के कारोबार के प्रबधन में; हमारे चर्चों, लोकोपकारी संस्थाओं, विश्वविद्यालयों और सरकारी विभागों के प्रबंधन में ।”

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वैज्ञानिक प्रबंधन का सरोकार औद्योगिक संगठनों की प्रबंधकीय प्रथाओं और उत्पादन प्रक्रियाओं में वैज्ञानिक पद्धतियों के प्रयोग से था । इसने संगठन के निम्नतम स्तर पर ध्यान केंद्रित किया । इसका लक्ष्य काम की भौतिक प्रकृति और कर्मचारियों की शारीरिक प्रकृति के बीच संबंध का अध्ययन करना था ।

इसने सांगठनिक कुशलता और मितव्ययता में सुधार के लिए विशिष्टीकरण, पूर्वसूचनीयता, तकनीकी क्षमता और तर्कसंगत होने पर बल दिया । औद्योगिक संगठनों में अपने प्रयोगों के दौरान टेलर का सामना ‘कामचोरी’ की परिघटना से हुआ, जिसमें मजदूर की प्रवृत्ति उत्पादन को बाधित करने की होती है ।

उन्होंने इस परिघटना को दो भागों में विभाजित किया-स्वाभाविक कामचोरी और व्यवस्थित कामचोरी । पहली कामचोरी व्यक्तिगत कारकों जैसे आराम से काम करने, ज्यादा परिश्रम न करने व इसी प्रकार की आदतों का नतीजा है । जबकि दूसरी कामचोरी सांगठनिक और सामाजिक कारकों का परिणाम है । उन्हें लगा कि संगठन की कुशलता बढ़ाने का बुनियादी तरीका वैज्ञानिक तकनीक से ‘कामचोरी’ कम करने में है ।

टेलर ने अपने वैज्ञानिक प्रबंधन के सिद्धांत को तीन कल्पनाओं पर आधारित किया:

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(i) वैज्ञानिक पद्धति के प्रयोग से सांगठनिक कार्यप्रणाली उन्नत की जा सकती है ।

(ii) एक अच्छा मजदूर काम को शुरू करने वाला नहीं बल्कि प्रबंधन के निर्देशों का मानने वाला मजदूर है ।

(iii) हर मनुष्य एक ”आर्थिक मनुष्य” है यानी, वह आर्थिक कारकों से ही प्रेरित होता है ।


3. वैज्ञानिक प्रबंधन  के सिद्धांत (Principles of Scientific Management):

टेलर ने वैज्ञानिक प्रबंधन के चार सिद्धांत दिए हैं:

(i) मानव कार्य के प्रत्येक संघटक के लिए विज्ञान विकसित करना, जो पुरानी ‘व्यवहार’ (Rule of Thumb) पद्धति की जगह लेगा ।

(ii) वैज्ञानिक तरीके से मजदूरों का चयन और फिर उन्हें शिक्षित, प्रशिक्षित और विकसित करना । (जबकि पहले मजदूर खुद अपने काम का चयन करते थे और जहाँ तक हो सके, खुद को प्रशिक्षित करते थे) ।

(iii) इस लक्ष्य के लिए विकसित वैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुसार ही काम हो रहा है, यह सुनिश्चित करने के लिए प्रबंधन मजदूरों का पूरी तरह सहयोग करें ।

(iv) प्रबंधन और मजदूरों के बीच कामों का समान बँटवारा जरूरी है । प्रबंधन हर वह काम ले जिसके लिए वह पूरी तरह उपयुक्त हो । पहले सारे कामों और जिम्मेदारियों का बड़ा हिस्सा मजदूरों पर लाद दिया जाता था ।

टेलर ने वैज्ञानिक प्रबंधन के निम्न लक्षणों को पहचाना, जो उपरोक्त चार सिद्धांतों का समाहार करते हैं:

(क) प्रचलित नियम (Rule of Thumb) नहीं बल्कि विज्ञान,

(ख) विसंगति नहीं अपितु सामंजस्य,

(ग) व्यक्तिवाद नहीं अपितु सहयोग,

(घ) बाधित उत्पादन की जगह अधिकतम उत्पादन,

(ङ) प्रत्येक मनुष्य को अत्यधिक कुशल और उन्नत बनाना ।

टेलर के अनुसार ‘वैज्ञानिक प्रबंधन’ में मजदूरों के लिए उनके कर्त्तव्यों, कामों सहकर्मियों और उनके मालिकों के प्रति एक पूर्ण बौद्धिक क्रांति शामिल है । प्रबंधकों के लिए उनके मजदूरों और उनकी समस्याओं के प्रति एक संपूर्ण बौद्धिक क्रांति है ।

इस तरह (मजदूर और प्रबंधक) दोनों ही पात्रों की ओर से ‘बौद्धिक क्रांति’ इस चेतना की माँग करती है कि उनके पारस्परिक हित असंगत नहीं है और दोनों सहयोग से ही उन्नति कर सकते हैं न कि टकराव से । यही वैज्ञानिक प्रबंधन का सार है । टेलर के अनुसार, प्रबंधन का लक्ष्य मालिकों की अधिकतम समृद्धि और साथ ही हर कर्मचारी की अधिकतम समृद्धि हासिल करना होना चाहिए ।

रीनहार्ड बेंडिक्स ने अपनी रचना वर्क एंड अथॉरिटी इन इंडस्ट्री में कहा है कि ”हर मजदूर की उत्पादक क्षमता को अधिकतम बढ़ाकर, वैज्ञानिक प्रबंधन मजदूर और मालिक दोनों की ही आय को अधिकतम बनाएगा । इसलिए पूँजी और श्रम के बीच के सारे संघर्षों का समाधान इस विज्ञान के परिणामों से ही हो जाएगा ।”


4. वैज्ञानिक प्रबंधन  के तकनीकें (Techniques of Scientific Management):

वैज्ञानिक प्रबंधन के उपरोक्त सिद्धांतों को लागू करने में बैज्ञानिक-प्रबंधन की तकनीकें (क्रियाविधि या पद्धतियाँ) मदद करती हैं । वे हैं:

i. कार्यात्मक फोरमैनशिप:

टेलर ने कार्यात्मक फोरमैनशिप की अवधारणा का समर्थन किया जिसके अंतर्गत एक मजदूर आठ कार्यात्मक फोरमैनों द्वारा पर्यवेक्षित और मार्गदर्शित किया जाता है (यानी, विशेष पर्यवेक्षकों द्वारा) । इस तरह उन्होंने एक पर्यवेक्षक की व्यवस्था को खारिज किया (जो निर्देशों में एकता, एकरेखीय पद्धति या सैन्य संगठन के रूप में भी जानी जाती है) । जिसमें एक मजदूर को सिर्फ एक श्रेष्ठतर से आदेश प्राप्त होते हैं ।

इन आठ कार्यात्मक फोरमैनों में से चार योजना के लिए जिम्मेदार होते हैं और योजना कक्ष में बैठते हैं । वे हैं:

(i) कार्यक्रम-व-रुट क्लर्क,

(ii) निर्देश-कार्ड क्लर्क,

(iii) समय-व-लागत क्लर्क,

(iv) कारखाना अनुशासक ।

अन्य चार कार्यात्मक फोरमैन कारखाना स्थल पर कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार होते हैं । वे हैं:

(i) टोली बॉस,

(ii) गति बाँस,

(iii) निरीक्षक व

(iv) मरम्मत बॉस ।

असल में, हर मजदूर के आठ कार्यात्मक बॉस होंगे । इस प्रकार यह विशिष्टीकरण में सहायक होगा और साथ ही योजना को कार्यान्वयन से अलग करेगा । हिक्स व गुलेट की राय है- ”टेलर का कार्यात्मक विशेषज्ञों का विचार तो जीवित है, किंतु उनके द्वारा परिकल्पित लाइन अफसरों के रूप में नहीं, बल्कि स्टाफ विशेषज्ञों के रूप में ।”

ii. गति अध्ययन:

यह कार्य पद्धतियों के मानकीकरण की एक तकनीक है । इसमें किसी कार्य विशेष में समाहित सभी गतियों का अवलोकन और फिर गतियों के सर्वश्रेष्ठ समुच्चय का निर्धारण शामिल है ।

इस प्रकार यह औजारों और साधनों, कच्चे माल, हस्त व शरीर गति इत्यादि पर विचार के साथ बेहतर काम को निर्धारित करने के लिए बनाया गया है । संक्षेप में, यह काम करने के ‘एक सर्वश्रेष्ठ रास्ते’ की तलाश के लिए बना था ।

iii. समय अध्ययन:

यह कम खत्म होने के मानक समय को निर्धारित करने के लिए प्रयुक्त होता है । यह रोजाना के व्यापक काम के नियोजन में मदद करता है और गति अध्ययन के बाद आता है । इस तकनीक के लिए ‘स्टॉप वॉच’ का प्रयोग महत्त्वपूर्ण है ।

iv. अंतरीय पीस रेट योजना:

टेलर ने गति और समय अध्ययनों द्वारा निर्धारित मानकों के आधार पर पीस रेट द्वारा भुगतान का सुझाव दिया । इसीलिए इस भुगतान योजना को अंतरीय पीस रेट योजना कहा जाता है । इस योजना के तहत, मजदूरों को मानक तक निम्न पीस रेट, मानक पर एक बड़े बोनस और मानक से ऊपर ऊँचे पीस रेट का भुगतान, किया जाता है ।

निश्चित है, भुगतान की यह योजना मजदूरों को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करने के लिए प्रेरित करेगी । टेलर ने कहा कि मजदूरों को प्रेरित करने के लिए पीस रेट प्रत्यक्ष और तेज होने की वजह से मुनाफा साझेदारी योजना से ज्यादा प्रभावी है । टेलर ने सुज्ञाव दिया कि जो मजदूर (वैज्ञानिक चुनाव, प्रशिक्षण और विकास के बाद) मानक के अनुसार उत्पादन करने में अक्षम या अनिच्छुक हो, उसे निकाल दिया जाना चाहिए ।

v. अपवाद सिद्धांत:

इसके अनुसार प्रबंधन हर दिन के काम का निर्धारण करेगा और निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति पर पुरस्कार और असफलता पर दंड देगा । टेलर ने सुझाया कि जिन वस्तुओं का उत्पादन मानक के अनुसार हो रहा हो, उसमें प्रबंधकों को ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेनी चाहिए, बल्कि उनका सरोकार उन अपवाद-स्वरूप वस्तुओं से होना चाहिए जिनका उत्पादन मानकों के अनुसार नहीं हो रहा है ।

vi. अन्य तकनीकें:

उपरोक्त तकनीकों के अलावा, टेलर ने वैज्ञानिक प्रबंधन के अपने सिद्धांत की पुष्टि के लिए निम्न तकनीकों का भी विकास किया:

(i) व्यापार में प्रयोग किए जाने वाले औजार और साधनों के साथ ही मजदूरों की कार्यवाहीयों और गतियों का मानकीकरण ।

(ii) मैन्युफैक्चर उत्पाद और साथ ही मैन्युफैक्चर में इस्तेमाल किए गए साधनों के वर्गीकरण के लिए स्मरण-विषयक यंत्र ।

(iii) अलग योजना प्रकोष्ठ या विभाग की स्थापना ।

(iv) समय बचाने के साधनों, जैसे स्लाइड रूल का प्रयोग ।

(v) आधुनिक लागत यंत्र ।

(vi) एक पथ निर्देशन तंत्र ।

(vii) मजदूरों के लिए निर्देश कार्ड ।


5. वैज्ञानिक प्रबंधन  और टेलर के अनुयायी (Scientific Management and Taylor’s Followers):

एच.एल. गांठ:

हेनरी एल गांट ने वैज्ञानिक प्रबंधन के विकास में निम्न योगदान किए:

(i) उन्होंने प्रोत्साहन भुगतान के कार्य व बोनस-तंत्र की शुरुआत की । इसके अनुसार किसी मजदूर को बोनस तब दिया जाएगा जब वह मानक को पूरा करेगा ।

(ii) उन्होंने उद्योग की आदतों पर विशेष बल दिया । उन्होंने कहा कि संगठन काम करने के आदतन तरीकों को विकसित करते हैं । अत: प्रशासन को शुरुआती दौर में ही अच्छी आदतें बनानी चाहिए ।

(iii) उन्होंने एक चार्ट बनाया जिसमें समयानुसार कार्य प्रगति को लगातार दर्शाया जा सकेगा । यह गांट चार्ट के नाम से जाना गया ।

गिल्ब्रेथ दंपति:

फ्रैंक व लिलियन गिल्ब्रेथ (दंपति) ने भी वैज्ञानिक प्रबंधन में कुछ अहम योगदान किए:

(i) कार्यों में अनावश्यक कार्यवाहियों के उन्मूलन में मदद करने के लिए उन्होंने ‘प्रवाह प्रक्रिया चार्ट’ का आविष्कार किया । उनका तंत्र ‘स्पीड वर्क’ कहलाया ।

(ii) उन्होंने आधुनिक गति और समय अध्ययनों की तकनीकों की बुनियाद रखी । जैसा कि हिक्स व गुलेट का विचार है- “गिल्ब्रेथ दंपति ने ‘एक सर्वश्रेष्ठ तरीके’ की अपनी खोज में गति व समय अध्ययन को एक ऊँचे स्तर तक विकसित किया । उन्होंने कार्य की मूल इकाई के रूप में थर्बलिग्स (Therbligs) (‘Gilbreths’ को उलटा लिखने पर) का आविष्कार किया ।”

एच. इमरसन हैरिंगटन इमरसन ने सही संगठन की उत्तम उत्पादकता पर जोर दिया और कुशलता के बारह सिद्धांत प्रतिपादित किए । उनकी प्रचलित पुस्तकें इफिशिएंसी और दि ट्‌वेल्व प्रिंसिपल ऑफ इफिशिएंसी हैं । उन्होंने वैज्ञानिक प्रबंधन की जगह अपने तंत्र को ‘कुशलता तंत्र’ कहना पसंद किया ।

वे बारह सिद्धांत हैं:

(i) स्पष्टत: परिभाषित उद्देश्य,

(ii) सामान्य बोध,

(iii) योग्य परामर्श,

(iv) अनुशासन,

(v) निष्पक्ष सौदा,

(vi) भरोसेमंद, तेज और उचित रिकॉर्ड,

(vii) मानक और अनुसूची,

(viii) प्रेषण,

(ix) मानक स्थितियाँ,

(x) मानक कार्यान्वयन,

(xi) लिखित मानक व्यवहार निर्देश,

(xii) कुशलता पुरस्कार ।

एम.एल.कुक:

अन्य लोगों से भिन्न, मौरिस एल.कुक ने वैज्ञानिक प्रबंधन के सिद्धांतों और तकनीकों को शासन के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी लागू किया । वैज्ञानिक प्रबंधन को सार्वभौमिक रूप से लागू किया जा सकता है, यह उन्होंने स्पष्ट रूप से प्रमाणित किया । एक दूसरे मायने में वह टेलर से भिन्न भी थे ।

जैसे- काम करने के ‘एक सर्वश्रेष्ठ तरीके’ की खोज में उन्होंने मजदूरों की भी भागीदारी की माँग की, जबकि टेलर के अनुसार- ‘एक सर्वश्रेष्ठ तरीके’ की खोज केवल कार्य विश्लेषण के विशेषज्ञ (न कि मजदूर) ही कर सकते हैं ।


6. वैज्ञानिक प्रबंधन  के आलोचना और विरोध (Criticism and Opposition of Scientific Management):

‘वैज्ञानिक प्रबंधन’ का कई वर्गों ने आलोचना और विरोध किया:

(i) कारखाना स्तर (जो निचला स्तर है) के कामकाज पर ध्यान-केंद्रण और उच्च स्तर की सांगठनिक प्रक्रियाओं की उपेक्षा के कारण इसकी आलोचना संगठन के एक अधूरे सिद्धांत के रूप में की गई ।

(ii) संगठन के मानवीय पहलू की अनदेखी के कारण इसकी आलोचना संगठन के एक यांत्रिक सिद्धांत के रूप में भी की जाती है । दूसरे शब्दों में, इसने सांगठनिक कुशलता की व्याख्या केवल यांत्रिक अर्थों में की । यह मजदूर को यंत्र मानता है और उसे उतना ही कुशल बनाना चाहता है जितना कि यंत्र है । स्पष्टत: मजदूरों ने इसका विरोध किया ।

(iii) मानवीय प्रेरणा को कम आँकने और अति सरल बनाने के कारण भी इसकी आलोचना की जाती है । मानवीय प्रेरणा की व्याख्या यह आर्थिक कारकों (भौतिक पुरस्कारों) के अर्थों में ही करता है और प्रेरणा के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलू को उपेक्षित कर देता है ।

इसे प्रेरणा का ‘एकलवादी सिद्धांत’ कहा जाता है । एल्टन मेयो के हॉथॉर्न अध्ययनों ने खुलासा किया कि संगठन के कार्य निर्धारण और मजदूरों के व्यवहार की व्याख्या में सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारक भी आर्थिक कारकों जितने महत्त्वपूर्ण हैं ।

एम.पी, फॉलेट, पीटर ड्रकर, ओलीवर शेल्डन, चेस्टर बर्नार्ड और क्रिस आर्गिरिस जैसे अन्य मानवीय संबंध व व्यवहार विशेषज्ञों ने भी यही राय प्रकट की ।

(iv) मजदूरों के उत्पादन से जुड़े व्यवहार (अर्थात् शारीरिक कारक) से ही सरोकार रखने के कारण मार्च व साइमन ने इसकी कल्पना ‘शारीरिक प्रबंधन विचारधारा’ के रूप में की है ।

(v) इसका सबसे ज्यादा विरोध मजदूर नेताओं (ट्रेड यूनियनों) ने किया । टेलर के सिद्धांत (बौद्धिक क्रांति) के अमल से मजदूरों और मालिकों के बीच से सभी अंतरविरोध खत्म हो जाते हैं और उनके बीच एक प्रभावी सहकार स्थापित होता है ।

इस प्रकार, ट्रेड यूनियनें अनावश्यक हो जाती हैं । दूसरे शब्दों में, टेलरवाद को न केवल उनकी भूमिका, बल्कि ट्रेड आंदोलन और ‘सामूहिक सौदेबाजी’ के सिद्धांत के लिए खतरा माना गया । प्रो. रॉबर्ट हॉक्सी की जाँच-पड़ताल ने तो यहाँ तक बताया कि वैज्ञानिक प्रबंधन और मजदूर यूनियनवाद के सिद्धांत आपस में मेल नहीं खाते ।

(vi) दो कारणों से प्रबंधक भी इसका विरोध करते हैं । पहला, वैज्ञानिक पद्धतियों को अपनाने से उन्हें अपने निर्णय और स्वविवेक से हाथ धोना पड़ेगा । दूसरा, टेलरवाद के कारण उनके काम और जिम्मेदारियों बढ़ जाएँगी ।