Read this article in Hindi to learn about:- 1. मंत्रिमण्डलीय सचिवालय का प्रारम्भ (Introduction to Cabinet Secretariat) 2. मंत्रिमण्डलीय सचिवालय के वर्तमान संरचना (Current Structure of Cabinet Secretariat) 3. कार्य (Functions) 4. भूमिका (Role).
मंत्रिमण्डलीय सचिवालय का प्रारम्भ (Introduction to Cabinet Secretariat):
इसकी स्थापना अन्तरिम सरकार के आदेश से 1946 में हुई । लेकिन इसके बीज स्वतन्त्रता पूर्व की ब्रिटिश कालीन प्रशासनिक व्यवस्था में देखे जा सकते हैं ।
1. 1861 के अधिनियम द्वारा वायसराय के निजी सचिव को कार्यकारिणी परिषद के सचिवालय का अध्यक्ष गया था । वायसराय विलिंगडन (1931-36) के समय से निज सचिव परिषद की बैठकों में भाग भी लेने लगा ।
1935 में वह सचिवालय के साथ ही कार्यकारिणी परिषद का भी सचिव बना दिया गया । लेकिन कुछ समय बाद इन दोनों पदों को पृथक् कर दिया गया । अब कार्यकारिणी परिषद का सचिव एक पृथक अधिकारी होने लगा ।
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2. एरिक कोट्स पहले कार्यकारिणी सचिव बने । यह कार्यकारिणी परिषद ही बाद में अन्तरिम सरकार बनी (1946) और इसने अपने सचिव को मंत्रिमण्डल सचिव तथा उसके कार्यालय को मंत्रिमण्डलीय सचिवालय का नाम दिया ।
3. 1947 में मंत्रिमण्डल की रक्षा निर्मित हुई जिसकी सहायता के लिए मंत्रिमण्डल सचिवालय में सैनिक शाखा स्थापित की गयी ।
4. 1949 में मंत्रिमण्डल की आर्थिक समिति की स्थापना हुई और उसको पहले वित्त मंत्रालय में तथा बाद में मंत्रिमण्डल सचिवालय में 1950 में स्थानान्तरित कर दिया गया, “आर्थिक शाखा” के रूप में (सांख्यिकी इकाई भी इसमें शामिल थी) ।
5. आयंगर तथा विशेषत: एपिलबी की अनुशंसा के बाद 1954 में मंत्रिमण्डल सचिवालय में ”ओ. एण्ड एम.” (संगठन और प्रणाली) इकाई पहली बार भारत में स्थापित हुई । यद्यपि इसे 10 साल बाद 1964 में गृह मंत्रालय में ले जाया गया ।
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6. 1961 में सांख्यिकी विभाग सचिवालय में स्थापित हुआ ।
7. प्रशासनिक सुधार आयोग (1966) की सिफारिश पर गृह मंत्रालय में प्रथमत: स्थापित इलेक्ट्रानिक्स विभाग 1970 में मंत्रिमण्डल सचिवालय में स्थानान्तरित कर दिया गया ।
8. 1973 में कुल 6 विभाग सचिवालय में थे ।
9. 1973 में प्रशासनिक सुधार विभाग गृह मंत्रालय से मंत्रिमण्डलीय सचिवालय में लाया गया लेकिन 1977 में पुन: गृह मंत्रालय स्थानांतरित कर दिया गया । जो अब ”कार्मिक, लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय” के नाम से पृथक् मंत्रालय है ।
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10. इलेक्ट्रानिक्स विभाग भी मंत्रिमण्डल सचिवालय से हटाकर पृथक् मंत्रालय बना दिया गया ।
11. अत: वर्तमान में इसके अधीन 2 विभाग हैं- मंत्रिमण्डलीय मामलों का विभाग और सांख्यिकी विभाग ।
मंत्रिमण्डलीय सचिवालय के वर्तमान संरचना (Current Structure of Cabinet Secretariat):
मंत्रिमण्डल सचिवालय भारत का प्रमुख स्टॉफ अभिकरण है ।
इसमें तीन शाखाएं हैं:
a. प्रधान सचिवालय,
b. सैनिक शाखा और
c. आर्थिक शाखा ।
मंत्रिमण्डलीय सचिवालय के अन्तर्गत 2 विभाग हैं:
1. मंत्रिमण्डलीय मामलों का विभाग और
2. सांख्यिकी विभाग ।
a. प्रधान सचिवालय (General Secretariat):
यह मंत्रिमण्डलीय सचिवालय का केन्द्रीय भाग है जो एक सचिव के अधीन होता है । इसकी सहायता हेतु एक संयुक्त सचिव, एक उप सचिव, चार अवर सचिव होते हैं । यह 4 शाखाओं ओर 6 अनुभागों में विभक्त है ।
ये 4 शाखाएं हैं:
i. मंत्रिमण्डल शाखा,
ii. प्रशासन शाखा,
iii. समन्वय शाखा और
iv. सामान्य शाखा ।
प्रधान सचिवालय ही मंत्रिमण्डल संबंधी सभी सामान्य (आर्थिक और सैनिक छोड़कर) कार्य सम्पन्न करता है । यह सरकार के विभागों के मध्य नीति प्रश्नों पर समन्वय स्थापित करने में भी मदद करता है । इसका मंत्रिमण्डल सचिवालय के आन्तरिक प्रशासन पर पूर्ण नियन्त्रण/निर्देशन रहता है ।
b. सैनिक शाखा (Military Branch):
मंत्रिमण्डल की रक्षा समिति और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद से संबंधित कार्यों को सैनिक शाखा ही करती है । यह रक्षा मंत्रालय की पेंशन पुनर्विचार समिति, सेनाध्यक्षों की समिति, आदि कुछ समितियों से संबंधित कार्य भी करने के लिए उत्तरदायी है । इसका प्रमुख भी एक सचिव होता है । इसके अतिरिक्त 1 निदेशक, 9 स्टॉफ अधिकारी, 9 विज्ञान अधिकारी होते हैं ।
c. आर्थिक शाखा (Financial Branch):
मंत्रिमण्डल की आर्थिक उत्पादन और वितरण समिति तथा वित्तीय सचिवों की समिति से संबंधित सचिवालयीन कार्य यह शाखा ही अंजाम देती है । इसका प्रमुख भी एक सचिव होता है ।
1. मंत्रिमण्डलीय मामलों का विभाग (Department of Cabinet Matters):
जब 1961 में मंत्रिमण्डलीय सचिवालय का पुर्नगठन हुआ तब इस विभाग की स्थापना मंत्रिमण्डलीय समितियों की सहायता के उद्देश्य से की गयी थी । यह इन समितियों को सचिवालयीन सहायता सुनिश्चित करता है तथा इनके कार्य-नियमों को बनाने में मदद करता है । यह सचिवों की समिति की भी इसी प्रकार सहायता करता है । इसका एक कार्य सरकार के कार्यकारी नियमों को लागू करना है ।
इस विभाग की कुल तीन शाखाएं हैं:
(a) नागरिक शाखा,
(b) सैनिक शाखा और
(c) जासूसी शाखा ।
नागरिक शाखा ही इसके अधिकांश कार्य दायित्वों को सम्पन्न करती है, विशेषकर मंत्रिमण्डल, उसकी समितियों, सचिवों की समितियों आदि के कार्यों को ।
2. सांख्यिकी विभाग (Statistics Department):
1957 में सचिवालय में स्थापित केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन को ही वस्तुत: सांख्यिकी विभाग के रूप में 1961 में विस्तारित एवं स्थापित किया गया । यह सचिवालय की सामान्य प्रशासनिक व्यवस्था का एक भाग होते हुए भी पृथक् रूप से काम करता है ।
सांख्यिकी विभाग के दो संलग्न कार्यालय है:
(1) उपर्युक्त केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन तथा
(2) कम्प्यूटर सेन्टर या आसूचना कक्ष ।
केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन (Central Statistical Organisation):
सांख्यिकी विभाग का संयुक्त सचिव इसका अध्यक्ष होता है ।
1957 से ही कार्यरत सी.एस.ओ. मुख्य रूप से निम्नलिखित कार्य करता है:
(क) राष्ट्रीय आय का अनुमान एवं अन्य राष्ट्रीय अनुमान ।
(ख) नियोजन, कृषि अनुसंधान से संबंधित कार्य ।
(ग) संयुक्त राष्ट्र संघ और अन्तर्राष्ट्रीय एजेन्सियों को आवश्यक सांख्यिकी आंकड़े उपलब्ध कराना ।
(घ) संघ एवं राज्यों के मध्य सांख्यिकी कार्यों का समन्वय ।
(ड) सांख्यिकी सूचनाओं का प्रकाशन ।
इस संगठन की बारह शाखाएं हैं । जिनमें राष्ट्रीय सेम्पल सर्वे, राष्ट्रीय आय, पद्धति शाखा, जनसंख्या शाखा आदि महत्वपूर्ण हैं ।
मंत्रिमण्डलीय सचिवालय के कार्य (Functions of the Cabinet Secretariat):
यह सचिवालय केन्द्र सरकार का हृदय बिन्दु है । इसके ऊपर भारत सरकार (मंत्रिमण्डल) द्वारा किये जाने वाले सभी कार्यों का वास्तविक दायित्व रहता है । मंत्रिमण्डल सामूहिक रूप से जो भी करता है, उस सब के पीछे वास्तविक हाथ इस सचिवालय का ही होता है ।
जितने विविध कार्य दायित्वों का निर्वहन यह सचिवालय करता है, उतना अन्य कोई विभाग, संस्था या सरकारी कार्यालय नहीं करता । यदि भारत की वास्तविक शासक मंत्रिपरिषद है तो सबसे शक्तिशाली भूमिका उसके सचिवालय की है ।
इसके कार्य अधोलिखित है:
1. मंत्रिमण्डल की बैठक से संबंधित कार्य (Work Related to Cabinet Meeting):
इन बैठकों के लिए कार्यसूची (एजेंडा) बनाना, बैठकों में लिये गये निर्णयों का रिकार्ड रखना, संबंधित विभागों को उनकी जानकारी पहुंचाना आदि । कैबिनेट सेक्रेटरी इस बैठक में मौजूद रहता है तथा चर्चागत मुद्दों को स्पष्ट करता है ।
2. समितियों से संबंधित कार्य (Work Related to Committees):
मंत्रिमण्डलीय समितियों, मंत्रिमण्डल द्वारा नियुक्त अन्य समितियों, सचिवों की समितियों को सचिवालय संबंधी कार्य सुविधा प्रदान करना ।
3. निर्णयों के क्रियान्वयन पर नजर (Look at the Implementation of Decisions):
सुनिश्चित करता है कि मंत्रिमण्डल द्वारा लिये गये निर्णय उसी रूप में क्रियान्वित हो ।
4. सार-संक्षेपिका का प्रेषण (Abstract Reminder):
सचिवालय विभिन्न मंत्रालयों के कार्य-निष्पादन के देश की कानून व्यवस्था, वस्तुओं की मूल्य स्थिति आदि के सार, संक्षेप में लिखकर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों को प्रस्तुत करता है ।
5. राष्ट्रपति का अभिभाषण तैयार करना, मंत्रियों की नियुक्तियों, विभागों के वितरण, उनके शपथ समारोह और उनके त्यागपत्र से संबंधित कार्यों की देखभाल करना ।
6. संसद से संबंधित कार्य (Parliament Related Work):
अधिवेशन आहूत या समाप्त स्थगित करने, लोक सभा भंग करने संबंधी प्रस्ताव तैयार करना । प्रस्तुत किये जाने वाले विधेयकों के लिए प्रस्ताव तैयार करना ।
7. केन्द्र-राज्य संबंध (Centrally):
दोनों के मध्य उचित संबंध स्थापित करना, राज्यों से पाक्षिक प्रतिवेदन प्राप्त कर, उनको समेकित कर मंत्रिमण्डल के समक्ष प्रस्तुत करना ।
8. समन्वय से संबंधित कार्य (Work Related to Coordination):
मंत्रालयों के मध्य समन्वय स्थापित करने में प्रधानमंत्री की सहायता करना ।
9. महत्वपूर्ण पदों पर अधिकारियों की नियुक्ति, स्थानान्तरण, पदोन्नति से संबंधित कार्यों की देखरेख ।
कैबिनेट सचिव के भूमिका (Role of Cabinet Secretary):
a. 1950 में कैबिनेट सचिव नामक पद सृजित किया गया और एन. पिल्लई पहले कैबिनेट सचिव बने । मंत्रिमण्डल सचिवालय का प्रमुख सचिव यही होता है ।
b. यह देश का वरिष्ठतम प्रशासनिक अधिकारी होता है और प्रशासनिक सुधार आयोग ने इस पद की महत्ता को देखते हुए सिफारिश की थी कि योग्यतम और वरिष्ठतम व्यक्ति ही इस पद पर नियुक्त हो ।
c. यह भारतीय सिविल सेवा और केन्द्रीय संस्थापना मण्डल का अध्यक्ष होता है ।
d. इसका मुख्य कार्य है मंत्रिमण्डल की बैठक में उपस्थित रहकर उसकी कार्यवाही को नोट करना । यह बैठक के दौरान उपस्थित किसी मसले के प्रशासनिक पहलुओं को स्पष्ट करता है । इन बैठकों में यह प्रधानमंत्री के निकट ही बैठता है ।
e. सचिवों के सम्मेलन की अध्यक्षता कैबिनेट सचिव ही करता है ।
f. आयंगर रिपोर्ट (1949) ने उसे वरिष्ठता के आधार पर सर्वोच्च स्थान देने की सिफारिश इस पद के सृजन के पहले ही दे दी थी ।
g. देशमुख अध्ययन मण्डल (1968) की सिफारिश थी कि इस पद की स्थिति को भारत सरकार के संचालनगत नियमों के तहत मान्यता मिलनी चाहिए, मंत्रालयों के मतभेदों को कैबिनेट सचिव के माध्यम से दूर करना चाहिए और मंत्रालयों के क्षेत्राधिकार संबंधी विवाद भी निपटाने का दायित्व कैबिनेट सचिव पर ही छोड़ना चाहिए ।
h. प्रशासनिक सुधार आयोग (1966) ने नीति-निर्माण संबंधी विषयों में उसे अधिक महत्व देने की बात कही लेकिन उसने स्पष्ट किया कि कैबिनेट सचिव का काम स्टॉफ प्रकृति का है, सूत्र एजेन्सी का नहीं, अतएव उसे मात्र सहायता या परामर्श देना चाहिए, न कि कार्यों पर निगरानी रखना चाहिए ।
i. मंत्रिमण्डल सचिव सबसे अनुभवी प्रशासक होता है । फिर उसकी स्थिति प्रधानमंत्री के निकट होने से अधिक प्रभावशाली बन जाती है, अत: स्वाभाविक है कि उसको भारत सरकार के प्रशासन में सबसे अधिक जिम्मेदारी का निर्वहन करना होता है ।
j. जो जिम्मेदारी राजनैतिक कार्यपालिका में प्रधानमंत्री को निभानी होती है वही जिम्मेदारी प्रशासनिक कार्यपालिका में कैबिनेट सचिव को निभाना है ।
k. वस्तुत: प्रधानमंत्री को देश के वास्तविक प्रधान के रूप में कार्य करने हेतु सर्वाधिक सहायता कैबिनेट सचिव से ही मिलती है चाहे वह मंत्रालयों पर नियंत्रण रखना हो, या उनमें समन्वय स्थापित करना हो, या उनके कार्यों की जानकारी प्राप्त करना हो ।
l. एस.एस. खेरा ने अपनी पुस्तक ”केन्द्रीय कार्यपालिका” (1975) में इसीलिए कैबिनेट सचिव को प्रधानमंत्री की ”आंख” और ”कान” कहा है ।