Read this article in Hindi to learn about:- 1. केन्द्रीय सचिवालय का प्रारम्भ (Introduction to Central Secretariat) 2. मंत्रालय की संरचना (Structure of Ministry) 3. केन्द्रीय सचिवालय के प्रणाली (Systems of Central Secretariat) and Other Details.
केन्द्रीय सचिवालय का प्रारम्भ (Introduction to Central Secretariat):
यह ब्रिटिश कालीन विरासत है । इसकी स्थापना के 230 वर्ष हो चुके हैं इस दौरान इसमें निरन्तर परिवर्तन होते रहे, विशेषकर विभागों के गठन और विघटन से तथा कार्यपद्धति में सुधार के कारण । यह भारत सरकार मुख्य कार्यालय है जहां देश की नीतियों का निर्माण होता है और उनके क्रियान्वयन के आदेश जारी होते हैं ।
सचिवालय की संरचना- अवधारणात्मक विश्लेषण (Structure of Secretariat – Conceptual Analysis):
केन्द्रीय सचिवालय सचिवों का कार्यालय है । इसे मंत्रालयों, विभागों का समूह भी कह सकते हैं । क्योंकि यह विभिन्न मंत्रालयों, विभागों में विभक्त है । वस्तुतः यह एक त्रिस्तरीय ढांचा है जिसके सर्वोच्च शिखर पर राजनैतिक मंत्री होता है, मध्य स्तर पर सचिव तथा तृतीय स्तर पर विभाग का संचालक या निदेशक (विभागाध्यक्ष) होता है ।
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मंत्री अपने मंत्रालय का राजनैतिक अध्यक्ष होता है जबकि सचिव प्रशासनिक अध्यक्ष । सचिव मंत्री का ही अधीनस्थ होता है । जब हम सम्पूर्ण संरचना को सचिवालय कहते हैं तो इससे भ्रम उत्पन्न होता है कि इसमें मात्र सचिवों के ही कार्यालय होंगे । जबकि सचिवालय तो इस ढांचे का मध्य स्तर है तथा मंत्रालय या विभाग का ही एक अधीनस्थ भाग है । उल्लेखनीय है कि यह सचिवालय ब्रिटिश काल में सूत्र अभिकरण ही था लेकिन अब स्टॉफ अभिकरण है ।
यदि हम सूक्ष्म विश्लेषण करें तो सम्पूर्ण केन्द्रीय सचिवालय एकीकृत रूप से तो एक सूत्र अभिकरण दिखाई देता है लेकिन इसका सचिवीय मध्य हिस्सा स्टॉफ है जो मंत्री को नीति निर्माण, निर्णयन आदि के लिए परामर्श देता है । स्वतन्त्रता के पूर्व सचिवालय के सभी 19 विभाग ”डिपार्टमेन्ट” कहलाते थे जिन्हें स्वतन्त्रता पश्चात मंत्रालय कहा जाने लगा ।
मंत्रालय की संरचना (Structure of Ministry):
मंत्रालय केंद्र का हो या राज्य का एक त्रिस्तरीय संरचना होती है:
1. प्रथम स्तर राजनीतिक है । इसीलिये सर्वोच्च है । इस तल पर मंत्रालय का राजनीतिक अध्यक्ष होता है जिसे मंत्री कहते हैं । ये भी तीन स्तर के होते है- कैबीनेट मंत्री, राज्य मंत्री और उपमंत्री । कभी-कभी संसदीय सचिव जैसा चौथा स्तर भी रखा जाता है । संसदीय सचिव भी किसी विभाग में कैबिनेट मंत्री नहीं रखते हैं और राज्यमंत्री को ही स्वतंत्र प्रभार में मंत्रालय सौंप दिया जाता है ।
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2. दूसरा स्तर मध्य स्तर है और इसीलिये नीति निर्माण और क्रियान्वयन दोनों में उसकी समन्वयकारी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है । यह प्रशासनिक स्तर है, न कि राजनीतिक । अत: यह नीति निर्माण का नहीं अपितु नीति परामर्श का केन्द्र है । इसको सचिवालय कहा जाता है जिसका प्रमुख सचिव होता है ।
सचिवालय सचिवों के संयुक्त कार्यालय का बोध कराने वाली एक अवधारणा है । प्रत्येक मंत्रालय (या विभाग) का एक सचिव होता है । ये विभाग निष्पादन विभाग से भिन्न होते हैं । और उप स्तर होते हैं- प्रथम उच्च अधिकारी स्तर और दूसरा अधीनस्थ कर्मचारी स्तर ।
उच्च स्तर पर सचिव, अति सचिव, संयुक्त सचिव, उपसचिव, अवर सचिव जैसे अधिकारी होते हैं जबकि अधीनस्थ स्तर वस्तुत: सचिवों के सचिवालय के भीतर स्थित कार्मिकों का कार्यालय है जहां अनुभाग अधिकारी, लिपिक आदि कर्मचारी काम करते हैं ।
3. तीसरा स्तर निष्पादन विभाग (मंत्रालय विभाग नहीं) का होता है । ये नीति क्रियान्वयन का स्तर है । इसका प्रमुख निदेशक, महानिदेशक, संचालक, आयुक्त, महानिरीक्षक, मुख्य नियंत्रक जैसे विविध नामों से जाना जाता है ।
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अंतरिक संरचना का प्रारूप (Format of Internal Structure):
प्रत्येक मंत्रालय एक या अधिक विभागों का समूह होता है । प्रत्येक विभाग का एक पृथक् सचिव होता है । जिसके अधीन अपर और विशेष सचिव होते हैं । काम अधिक होने पर संयुक्त सचिव नियुक्त कर दिया जाता है । विभाग स्कन्धों (संभाग) में विभाजित रहते हैं जो संयुक्त या अपर सचिव के अधीन रखे जाते हैं ।
स्कन्ध पुन: प्रभागों में उपसचिव के अधीन विभाजित रहते हैं । प्रत्येक विभाग कुछ विशिष्ट शाखाओं में बंटा होता है जिनका प्रमुख अवर सचिव होता है । प्रत्येक शाखा अनुभागों में विभक्त रहती है- अनुभाग अधिकारी के अधीन ।
अनुभाग लिपिकों का कार्यालय है जिसमें उच्च श्रेणी लिपिक, निम्न श्रेणी लिपिक, टाइपिस्ट आदि कार्य करते हैं । अनुभाग को कार्यालय भी कहा जाता है । अनुभाग सचिवालय का सबसे निम्न स्तर होता है ।
केन्द्रीय सचिवालय के प्रणाली (Systems of Central Secretariat):
i. पदावधि प्रणाली (Tenure System):
उपरोक्त अधिकारियों में सचिव, संयुक्त सचिव, अपर सचिव, उप सचिव आदि भारतीय प्रशासनिक सेवा या राज्य प्रशासन सेवा या केन्द्रीय ‘क’ समूह सेवा के सदस्य होते हैं जो पदावधि प्रणाली (Tenure System) के आधार पर राज्य काडरों या केन्द्रीय सेवाओं से एक सीमित अवधि (सामान्यतया 3 वर्ष) के लिए सचिवालय में पदस्थ किये जाते हैं । इस पद्धति की शुरूआत लार्ड कर्जन ने 1905 में की थी ।
1957 से इस हेतु ”सेन्ट्रल स्टाफिंग स्कीम” लागू की गयी है जो पदावधि की देखरेख करती है विशेषकर उपसचिव से ऊपर के स्तर के अधिकारियों की नियुक्ति के संदर्भ में । सार्वजनिक उद्यमों से भी अधिकारियों की नियुक्ति संबंधित विभागों के उच्च पदों पर होती है । इस प्रकार केन्द्रीय सचिवालयीन सेवा के अधिकारी ही इस सचिवालय के मूल अधिकारी होते हैं ।
ii. विपाटन प्रणाली (The Split System):
केन्द्रीय सचिवालय विपाटन प्रणाली की उपज है । इस प्रणाली का आधार है- नीति निर्माण का नीति क्रियान्वयन से पृथक्करण । यह प्रणाली सचिवालय (जो मंत्री के परामर्श रूप में होता है) को मात्र नीति निर्माण से संबंधित कर उसे नीति क्रियान्वयन के दायित्व से पूर्णत: अलग रखती है ।
इसके अनुसार सचिवालय मात्र नीति निर्माण पर ध्यान दे और नीति क्रियान्वयन सचिवालय के बाहर स्थित निष्पादन विभाग और उसकी कार्यपालक एंजेन्सियां करें । वस्तुत: भारत ने सचिवालय संरचना में ब्रिटिश व्हाइटहाल मॉडल अपनाया लेकिन जहां ब्रिटेन में नीति निर्माण और नीति क्रियान्वयन दोनों सचिवालय की जिम्मेदारी है वहीं भारत में सचिवालय को मात्र नीति निर्माण से संबंधित किया गया है ।
संविधान पर विचार नामक पुस्तक में एल.एस. आमरी कहते है कि- ”भावी घटनाओं पर गंभीरता पूर्वक विचार से अधिक जरूरी दिन-प्रतिदिन के काम होते हैं । विभाग और सामान्य स्टॉफ…… की व्यवस्था ही दूरदृष्टिपूर्ण और प्रभावी नियोजन के लिये उपयुक्त है ।
विपाटन प्रणाली से लाभ:
1. सचिवालय को राष्ट्रीय हितों के अनुरूप नीति नियोजन करने में मदद मिलती है । क्योंकि वे दिन प्रतिदिन की प्रशासनिक जवाबदारी से मुक्त होते हैं ।
2. कार्यपालक अभिकरणों से प्राप्त प्रस्तावों की जांच सचिव सरकार के व्यापक दृष्टिकोण के परिप्रेक्ष्य में कर पाता है । क्योंकि सचिव मंत्री या विभाग मात्र का नहीं अपितु मौटे तौर पर संपूर्ण सरकार का सचिव होता है ।
3. सचिव के दखल से मुक्त कार्यपालक अभिकरण नीति कार्योन्वयन में स्वतंत्र होते हैं ।
4. अत: यह विशिष्टीकरण और प्रत्यायोजन को लागू करने वाली प्रणाली है ।
5. कार्यों का बंटवारा जहां केन्द्रीकरण को रोकता है, वहीं इससे सचिवालय का कार्य भार कम होता है । इससे सचिवालय का अकार भी प्रबंध की दृष्टि से सीमित रखने में मदद मिलती है ।
6. कार्यक्रमों के क्रियान्वयन का मूल्यांकन सचिवालय द्वारा तटस्थता पूर्वक हो पाता है ।
कार्य का अधिदिति सिद्धांत (Filter Principle):
प्रशासनिक शब्दावली में प्रथम तीन उच्च पदों (सचिव, अपर सचिव, संयुक्त सचिव) को उच्च प्रबंध तथा उप सचिव और अवर सचिव को मध्य प्रबन्ध कहा गया है । इन दोनों स्तरों के मध्य कार्य विभाजन अधिदिति सिद्धांत (Filter Principle) पर आधारित है अर्थात महत्वपूर्ण कार्य उच्च स्तरों के लिए रखकर शेष बचे कार्य मध्य प्रबन्ध को सौंप देना ।
iii. मेज अधिकारी प्रणाली (Desk Officer System):
प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग ने ”सरकारी तंत्र की कार्यपद्धति” के अध्ययन हेतु ”देशमुख अध्ययन दल” (1968) का गठन किया था ।
उसके अध्ययन के आधार पर आयोग ने ”मेज अधिकारी प्रणाली” के संबंध में निम्नलिखित सुझाव दिये थे:
1. कार्य संबंधी फाइलों की सूची व्यवस्था लागू हो ।
2. गार्ड फाइलों या कार्ड सूची का रख रखाव जिसमें पूर्व के महत्वपूर्ण रिकार्ड रखे जाएं ।
3. अवकाश से संबंधित पर्याप्त प्रावधान और
4. पर्याप्त संख्या में आशुलिपिकीय और लिपिकीय सहायता का प्रावधान ।
तदनुरूप भारत सरकार ने 1973 में अपने मंत्रालयों-विभागों में ”मेज अधिकारी प्रणाली” को लागू किया । वस्तुत: यह ब्रिटेन की ”व्हाइट हाल प्रणाली” पर आधारित है ।
इस नई प्रणाली के अंतर्गत किसी मंत्रालय के सबसे निचले स्तर के कार्य को अलग-अलग डेस्कों में व्यवस्थित किया गया है । प्रत्येक डेस्क में दो अधिकारियों अर्थात एक अवर सचिव और एक अनुभाग अधिकारी या एक अनुभाग अधिकारी और एक सहायक अनुभाग अधिकारी या दो अनुभाग अधिकारियों को पदस्थ किया जाता है ।
प्रत्येक अधिकारी को डेस्क अधिकारी कहा जाता है जिनकी सहायतार्थ आशुलिपिक या लिपिक उपलब्ध होते है । डेस्क अधिकारी मामलों को स्वयं निपटाता है तथा नीति से जुड़े महत्वपूर्ण मामलों के निपटान हेतु उच्च अधिकारियों को प्रस्तुत करता है ।
iv. पोर्टफोलियो प्रणाली (विभाग-विभाजन प्रणाली) (Portfolio System):
इससे आशय है- मुख्य कार्यपालिका की और से किसी सदस्य (मंत्री) को विभाग का प्रभारी बनाना । यह प्रभारी ही मुख्य कार्यपालिका की और से विभाग संबंधी आदेश जारी करता है । इसी प्रणाली से विभाग या मंत्रालय संबंधी अवधारणा का जन्म हुआ है । भारत में पोर्टफोलियों प्रणाली सर्वप्रथम लार्ड केनिंग ने 1859 में लागू की थी ।
भारतीय संविधान का अनु. 77 केन्द्र में पोर्टफोलियों प्रणाली का आधार प्रस्तुत करता है । इस अनु. के तहत राष्ट्रपति को सरकारी कामकाज की सुविधा और इनकों मंत्रियों को सौंपने संबंधी नियम आदि बनाने का अधिकार दिया गया है । अत: मंत्री वस्तुत: कार्यपालिका (राष्ट्रपति/मंत्रिपरिषद) की तरफ से विभाग मंत्रालय का काम देखने वाले प्रभारी होते हैं । वे राष्ट्रपति की और से ही आदेश जारी करते है ।
सचिवालय के कार्य/भूमिका (Functions/Role of Secretariat):
सरकारी हैण्डबुक में सचिवालय के निम्नलिखित कार्य बताए गए है:
1. नीति निर्माण और नीति संशोधन के प्रश्नों पर मंत्री को परामर्श देना ।
2. कानून, नियम, विनियम बनाना । विधेयक यही तैयार करता है ।
3. क्षेत्रीय कार्यक्रम और योजना तैयार करना ।
4. मंत्रालय/विभाग के सम्बन्ध में बजट बनाना और उसके माध्यम से आय-व्यय पर नियन्त्रण रखना ।
5. शुरू होने वाले कार्यक्रमों/योजनाओं को वित्तीय तथा प्रशासनिक अनुमति देना ।
6. नीति क्रियान्वन का पर्यवेक्षण एवं नियन्त्रण करना तथा परिणामों का मूल्यांकन करना ।
7. नीतियों की व्याख्या करना, नीतियों में समन्वय लाना ।
8. सरकार की अन्य शाखाओं (विभागों/मंत्रालयों) की सहायता करना तथा प्रशासन से सम्पर्क रखना ।
9. मंत्रालय/विभाग/क्षेत्रीय अभिकरणों की संगठनात्मक क्षमता और कार्यकुशलता बढ़ाने के उपाय करना तथा
10. मंत्री को उसके संसदीय उत्तरदायित्वों को पूरा करने में सहायता देना ।
उपरोक्त कार्यों से यह स्पष्ट होता है कि केन्द्रीय सचिवालय मंत्रालय या विभाग का एक भाग है और राजनैतिक नेतृत्व के अधीन कार्य करता है । एक विभाग का सचिव अपने विभागीय मामलों को निपटाते समय अन्य ऐसे विभागों से मंत्रालयों से भी सलाह-मशवरा करते हैं जो उस मामले से संबंधित है । इस प्रक्रिया से विभाग का सचिव एक मंत्री का सचिव न रहकर भारत सरकार का सचिव बन जाता है, और यही वास्तविकता है ।
प्रशासनिक सुधार आयोग ने ”भारत सरकार की मशीनरी और इसकी कार्य पद्धति” विषय पर रिपोर्ट (1968) में सचिवालय की महत्ता के बारे में ठीक ही कहा है- ”सचिवालय कार्यप्रणाली से प्रशासन को संतुलन और स्थायित्व प्राप्त हुआ है तथा इसने मंत्रालय के पूरे तंत्र के लिये केंद्रक का कार्य किया है । इसके फलस्वरूप मंत्री स्तर पर संसद के प्रति जवाबदेही और मंत्रालयों के मध्य तालमेल बनाए रखा जा सका है ।”
सचिवालय के अधिकारी (Officers of Secretariat):
1. सचिव:
यह अपने मंत्रालय या विभाग का प्रशासनिक अध्यक्ष होता है और इस रूप में उसके कार्य ”पूर्ण” होते हैं ।
i. वह नीतिगत और प्रशासनिक मामलों में मंत्री का प्रमुख सलाहकार है ।
ii. वह लोक लेखा समिति के समक्ष अपने मंत्रालय का प्रतिनिधित्व करता है ।
iii. निष्पादन विभाग के प्रस्तावों पर विचार करता है और उन्हें स्वीकृत, अस्वीकृत या संशोधित करता है ।
iv. वह निष्पादन विभाग पर नियंत्रण रखने में मंत्री की मदद करता है ।
”सरकार तंत्र” के पुनर्गठन से संबंधित गोपालस्वामी आयंगर रिपोर्ट (1949) में कहा गया है कि- “सचिव को फाइलों के दैनिक निपटान में नहीं लगा रहना चाहिए अपितु उसे पूरे परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए अपने प्रभार से संबंद्ध सरकारी समस्याओं का आकलन कर कार्य योजना बनानी चाहिए ।”
भारत सरकार की मशीनरी और कार्यपद्धति से संबंधित प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट (1968) के अनुसार सचिव की भूमिका, ”एक समन्वय, नीति निर्देशक, समीक्षक और मूल्यांकन कर्ता की होनी चाहिए ।”
2. अपर या अतिरिक्त सचिव:
जब मंत्रालय में एक से अधिक विभाग होते हैं, तो सामान्यतया उसके लिये अतिरिक्त सचिव रखा जाता है । यह सचिव की तुलना में मामूली ही कम दर्जे का होता है । कभी-कभी इसे विभाग के ”स्कंध” के प्रभारी के रूप में भी रखा जाता है ।
3. संयुक्त सचिव:
यह अपर सचिव से दर्जे और वेतन में नीचा होता है । यह सामान्य रूप से स्कंध का प्रभारी होता है और अपर सचिव भी यदि किसी स्कंध का प्रभारी है तो दोनों के स्तर में अंतर अल्प रह जाता है ।
केन्द्र सरकार के पुनर्गठन पर रिचर्ड टोटनहम की रिपोर्ट (1945) में यह उल्लेख है कि- ”अपर सचिवों और संयुक्त सचिवों को न ही सस्ता सचिव और न ही अधिक खर्चीला उपसचिव होना चाहिए ।”
4. उपसचिव:
प्रभाग के प्रभारी के रूप में उपसचिव अपने प्रभाग से संबंधित समस्त कार्यों को स्वयं निपटाता है । वह सचिव की और से ये कार्य करता है । उसे अपने ऊपर के अधिकारियों से मार्गदर्शन मिलता रहता है ।
1960 में निदेशक का पद भी प्रभाग के प्रभारी के रूप में सृजित हुआ था । लेकिन अधिकांशतया उप सचिव ही प्रभाग-प्रभारी होता है । निदेशक का पद और वेतन उपसचिव से अधि होता है ।
5. अवर सचिव:
यह शाखा प्रभारी होता है और सचिवालय के कार्यों, आदेशों निर्देशों को कार्यकारी रूप देता है । स्वतंत्रता पूर्व इसके नीचे सहायक सचिव का भी पद होता था जिसे मैक्सवेल समिति (1937) की अनुशंसा पर समाप्त कर दिया गया ।
विशेष कर्त्तव्यस्थ अधिकारी:
सामान्यतया मंत्री की सहायतार्थ विशेष कर्त्तव्यस्थ अधिकारी भी कभी-कभी नियुक्त किये जाते हैं । इसका उद्देश्य उन कार्यों पर विशेष ध्यान देना है जो अति आवश्यक महत्व के होते हैं । यह एक अस्थायी पद है और इस पर नियुक्ति के लिये कोई निर्धारित मापदंड भी नहीं है ।
अत: अनुभाग अधिकारी से लेकर सचिव स्तर तक के व्यक्ति इस पद पर नियुक्त किये जाते रहे है । छ.ग. शासन में श्री विक्रम सिसोदिया को इस पद पर नियुक्त किया गया जो इतने शक्तिशाली है कि कहा जाता है कि शासन मुख्यमंत्री नहीं ओ.एस.डी. चला रहे हैं ।
उक्त सभी पदों की चयन-प्रणाली:
पदावधि प्रणाली से उक्त सभी पदों को भरने के लिए वरिष्ठ चयन मण्डल (Senior Establishment Board) तथा केन्द्रीय संस्थापना मण्डल (Central Establishment Board) कार्यरत है ।
SSB (वरिष्ठ चयन मण्डल) संयुक्त सचिव तथा इससे ऊपर के पदों पर नियुक्ति की सिफारिश करता है जबकि CEB (केन्द्रीय संस्थापना मण्डल) अवर सचिव और संयुक्त सचिव के बीच के पदों को भरने की सिफारिश करता है । इन दोनों बोर्डों की अनुशंसाओं पर अंतिम स्वीकृति मंत्रिमण्डलीय नियुक्ति समिति (CSC) की होना आवश्यक है जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है ।
अधीनस्थ कार्मिक वृंद (Office Staff of Cabinet Secretariat):
सचिवालय में अधिकारी संवर्ग के नीचे कार्यालय कर्मचारियों का वर्ग है ।
सचिवालय के कार्यालय कर्मचारियों में निम्नलिखित कार्मिक शामिल है:
a. अनुभाग अधिकारी (अधीक्षक),
b. सहायक अनुभाग अधिकारी,
c. उच्च श्रेणी लिपिक,
d. अवर श्रेणी लिपिक,
e. आशुलिपिक-टंकक और अंकक,
f. चपरासी, फर्राश जैसे कर्मकार्य ।
अनुभाग अधिकारी:
अनुभाग का प्रमुख होता है तथा अनुभाग के सभी कार्मिकों और अवर सचिव के मध्य संपर्क बनाए रखता है । अनुभाग अधिकारी का मुख्य कार्य अपने अनुभाग के कार्मिकों के कार्य का पर्यवेक्षण करना है । अनुभाग अधिकारी सचिवालय कार्मिक के पदक्रम की दृष्टि से पहली पंक्ति का पर्यवेक्षक है ।
सचिवालय के कर्मचारी वर्ग के कार्मिक निम्नलिखित दोनों सेवाओं से आते हैं:
1. केंद्रीय सचिवालय आशुलिपिक सेवा, जिसमें चार ग्रेड है- निजी सचिव को ग्रेड ए ओर बी (अब दोनों एकीकृत), ग्रेड सी, ग्रेड डी ।
2. केंद्रीय सचिवालय लिपिकीय सेवा, जिसमें दो ग्रेड है, उच्च श्रेणी (लिपिक) ग्रेड, अवर श्रेणी (लिपिक) ग्रेड ।
भर्ती की प्रक्रिया:
वर्ष 1976 से कर्मचारी चयन आयोग अवर श्रेणी लिपिकों की सीधी भर्ती के लिये प्रतियोगी परीक्षाओं का आयोजन करना आ रहा है । उच्च श्रेणी लिपिक पदों को सीधी भर्ती द्वारा नहीं अपितु अवर श्रेणी लिपिकों से पदोन्नति द्वारा भरा जाता है ।
अनुभाग अधिकारी तथा सहायक अनुभाग अधिकारी के पदों में से कुछ पद प्रतियोगी परीक्षा के द्वारा सीधी भर्ती द्वारा और कुछ पद अधीनस्थ कार्मिकों से पदोन्नति द्वारा भरा जाता है ।