Read this article in Hindi to learn about:- 1. राज्य सचिवालय की संरचना (Organisation of Secretariat) 2. कार्मिक (Personnel) 3. कार्य (Functions).
राज्य सचिवालय की संरचना (Organisation of Secretariat):
प्रत्येक राज्य का अपना सचिवालय होता है जो तंत्र का केंद्र है । इसमें राज्य सरकार के कई विभाग होते हैं । विभागों प्रमुख ‘मंत्री’ और प्रशासनिक प्रमुख ‘सचिव’ होते हैं । मुख्य पूरे राज्य सचिवालय का प्रधान होता है जबकि सचिव एक या दो विभाग/विभागों का प्रमुख होता है ।
सचिव प्रायः वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारी होते है (जिन्हें सामान्यज्ञ भी कहा जाता है) । इस नियम के अपवादस्वरूप लोकनिर्माण विभाग का प्रमुख मुख्य अभियंता (विशेषज्ञ वर्ग का) होता है । यहाँ यह ध्यान देने योग्य है सचिव पूरे राज्य सरकार का सचिव होता है कि किसी मंत्री विशेष का ।
विभिन्न राज्यों के सचिवालय में विभागों की विभागों की संख्या अलग-अलग है जो 15 से 35 के बीच होती है ।
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जो विभाग सभी राज्यों में होते हैं, वे इस प्रकार हैं:
1. सामान्य प्रशासन
2. सिंचाई और बिजली
3. गृह
ADVERTISEMENTS:
4. कानून
5. वित्त
6. समाज कल्याण कारागार
7. आवास
ADVERTISEMENTS:
8. कृषि
9. स्थानीय शासन
10. श्रम और रोजगार
11. उत्पादशुल्क व कराधान
12. पंचायती राज
13. उद्योग-धंधे
14. लोक निर्माण
15. सूचना व प्रचार
16. राजस्व
17. नागरिक आपूर्ति
18. वन
19. परिवहन
20. शिक्षा
21. सहकारिता
22. योजना
23. स्वास्थ्य
कार्मिक (Personnel):
सचिवालय के विभाग में जिनकी नियुक्ति निर्धारित कार्यकाल के लिए होती है ।
सचिवालय के अधिकारियों का पदक्रम इस प्रकार है:
1. सचिव
2. विशेष सचिव/अपर-सचिव
3. संयुक्त सचिव
4. उपसचिव
5. अवर सचिव
6. सहायक सचिव
सचिवालय में उक्त अधिकारियों के अधीन निम्नलिखित श्रेणी के कर्मचारी भी होते हैं:
1. अधीक्षक (या अनुभाग अधिकारी)
2. सहायक अधीक्षक
3. उच्च श्रेणी लिपिक
4. अवर श्रेणी लिपिक
5. आशुलिपिक-टंकक और टंकक
6. श्रमिक
सचिवालय के कार्य (Functions of the Secretariat):
सचिवालय स्टाफ एजन्सि हैं । इसका प्रमुख कार्य मंत्री को उसकी भूमिका के निर्वहन में सहायता प्रदान करना है ।
सचिवालय द्वारा निम्नलिखित कार्य किए जाते हैं:
(i) राज्य सरकार की नीतियाँ और कार्यक्रम तैयार करना,
(ii) राज्य सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों के मध्य तालमेल बनाए रखना,
(iii) राज्य का बजट तैयार करना तथा सार्वजनिक व्यय पर नियंत्रण रखना,
(iv) विधान, नियम तथा विनियम बनाना,
(v) फील्ड एजेंसियों द्वारा नीतियों और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन पर ध्यान देना,
(vi) नीतियों के कार्यान्वयन के परिणामों की समीक्षा करना,
(vii) केंद्र और अन्य राज्य सरकारों के साथ संपर्क बनाए रखना,
(viii) सांगठनिक स्पर्धा विकसित करने के उपाय शुरू करना अर्थात संगठन और पद्धति से जुड़े कार्य के उपाय करना ।
(ix) मंत्रियों को, राज्य विधानमंडल से जुड़ी जिम्मेदारियों (जैसे सदन में प्रश्नों का उत्तर देना) के निर्वहन में सहायता प्रदान करना ।
(x) विभाग प्रमुखों की नियुक्ति करना तथा वेतन प्रशासन जैसे संस्थापना कार्य की देखरेख करना,
(xi) राज्य सरकार के सूचना भंडार के रूप में कार्य करना ।
(xii) राज्य की वित्तीय स्थिति में सुधार लाने की संभावनाओं का पता लगाना,
(xiii) सर्वसाधारण की शिकायतें, अभ्यावेदन और अपीलें प्राप्त कर उनका समाधान और निराकरण करना,
(xiv) सेवा संबंधी नियमों और उनमें संशोधनों का अनुमोदन करना ।
प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफ़ारिशें:
प्रशासनिक सुधार आयोग (1966-1970) अपनी रिपोर्ट में राज्य सचिवालय के कार्य निष्पादन को सुधारने के लिए निम्नलिखित अनुशंसाएं की थीं:
1. राज्य सचिवालय में विभागों की संख्या 13 से अधिक नहीं होनी चाहिए ।
2. विभागों में विषयों के समूहन की मूल योजना मंत्रियों के पोर्टफोलियो की संख्या को बढ़ाने के लिए नहीं बदली जानी चाहिए ।
3. मुख्य सचिव के प्रभार के अधीन एक कार्मिक विभाग की स्थापना की जानी चाहिए और इसे मुख्यमंत्री के प्रत्यक्ष नियंत्रण में होना चाहिए ।
4. विभिन्न सचिवालय विभागों के बीच विषयों का वितरण इस प्रकार होना चाहिए कि वे प्रशासनिक गतिविधियों के एक विनिर्दिष्ट भाग के साथ कार्य करने में सक्षम हो सकें ।
5. सचिवालय द्वारा निष्पादित किए जाने बाले कार्यपालिका सम्बन्धी कार्यों को उपयुक्त कार्यपालिका संगठनों को हस्तान्तरित किया जाना चाहिए ।
6. विशिष्ट विषयों से जुड़े विभागों में दो कर्मचारी प्रकोष्ठों (नियोजन और नीति पर एक संयुक्त प्रकोष्ठ तथा एक वित्तीय प्रकोष्ठ) की स्थापना की जानी चाहिए ।
7. प्रत्येक विभाग में नीतिगत सलाहकार समिति का गठन होना चाहिए ।
8. मंत्री के नीचे विचार-विमर्श और निर्णय के मात्र दो स्तर होने चाहिए और पटल अधिकारी प्रणाली की प्रत्येक पंक्ति को यह कार्य सौंपा जाना चाहिए ।