Read this article in Hindi to learn about:- 1. राज्य-मंत्रिपरिषद के अर्थ तथा संगठन (Meaning and Organization of State Council) 2. राज्य-मंत्रिपरिषद के कार्यकाल (Tenure of State Council) 3. शक्तियां और कार्य (Powers and Functions).

राज्य-मंत्रिपरिषद के अर्थ तथा संगठन (Meaning and Organization of State Council):

भारत में राज्यों में भी संसदीय शासन प्रणाली है, जिसके अनुसार मंत्रिपरिषद ही राज्य की वास्तविक शासन प्रमुख होती है । राज्य मंत्रिपरिषद का प्रावधान संविधान में है और उसकी शक्तियों तथा कार्यों का भी; यद्यपि परम्परा से वह अधिक शक्ति सम्पन्न दिखायी देती है, मुख्यमंत्री के नेतृत्व में ।

संगठन:

i. अनु 163 के अनुसार राज्यपाल को उसके कार्यों में सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद होगी । मुख्यमंत्री के परामर्श से राज्यपाल इसका गठन करता है और उसके परामर्श से ही पदमुक्त । बहुमत रहते हुए मुख्यमंत्री मंत्रिपरिषद का विघटन करवा सकता है । 

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ii. मुख्यमंत्री ही अपनी मंत्रिपरिषद का आकार तय करता है, जिसमें तीन स्तरीय मंत्री होते हैं- कैबिनेट, राज्य और उपमंत्री । कभी-कभी संसदीय सचिव भी नियुक्त किये जाते हैं । इन सभी के लिए 6 माह के अपवाद को छोड़कर, विधानमण्डल का सदस्य होना आवश्यक है ।

iii. इनके मध्य कार्य विभाजन मुख्यमंत्री ही करता है । सामान्यतया मंत्रिपरिषद में केवल उन्हीं व्यक्तियों को जगह मिलती है जो विधानमण्डल (विधानसभा अथवा विधान परिषद) के सदस्य होते हैं । यहां विधानमण्डल शब्द का प्रयोग इसलिए किया गया कि भारत के कुछ राज्यों में द्विसदनीय व्यवस्था भी है । 91वें संशोधन द्वारा राज्य मंत्री परिषद की संख्या विधानसभा के कुल सदस्यों की अधिकतम 15 प्रतिशत निश्चित कर दी गयी है ।

राज्य-मंत्रिपरिषद के कार्यकाल (Tenure of State Council):

a. सामान्य परिस्थितियों में मंत्रिपरिषद का कार्यकाल 5 वर्ष (अधिकतम) का होता है । पर असामान्य परिस्थितियों में उसका यह कार्यकाल विधानसभा में उसके विश्वास मत पर निर्भर करता है ।

b. यदि मंत्रिपरिषद विधानसभा का विश्वास खो देती है अथवा मंत्रिपरिषद के विरूद्ध विधानसभा में लाया गया अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है तो ऐसी परिस्थिति में मंत्रिपरिषद को त्याग-पत्र देना पड़ता है ।

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c. यदि राज्य मंत्रिपरिषद सांविधानिक प्रावधानों के अनुसार कार्य नहीं कर पाती अर्थात सांविधानिक तंत्र विफल हो जाता है तो राज्यपाल के प्रतिवेदनों तथा केन्द्रीय मंत्रिपरिषद की सलाह पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर मंत्रिपरिषद को भंग किया जा सकता है ।

d. राष्ट्रपति द्वारा राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर देने के बाद मंत्रिपरिषद समाप्त हो जाती है और ऐसी स्थिति में राज्यपाल राज्य का प्रधान होता है तथा राज्य की विधानसभा की सभी शक्तियां केन्द्रीय संसद में निहित हो जाती हैं ।

राज्य-मंत्रिपरिषद के शक्तियां और कार्य (Powers and Functions of State Council):

संसदीय शासन पद्धति के तहत विधानसभा के प्रति उत्तरदायित्व मंत्रिपरिषद को राज्य की वास्तविक कार्यपालिका बना देता है जो राज्य की समस्त प्रशासनिक, विधायी, वित्तीय आदि शक्तियों का उपभोग करती है ।

1. प्रशासनिक कार्य (Administrative Work):

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i. प्रशासनिक कार्यों के अन्तर्गत राज्यपाल के नाम से सम्पन्न सभी कार्य वस्तुत: मंत्रिपरिषद निर्णीत करती है ।

ii. राज्य के सभी प्रमुख पदाधिकारियों, जैसे- महाधिवक्ता आदि की नियुक्ति के पीछे उसका हाथ होता है ।

iii. राज्य के प्रशासन की निर्देशक नीतियों को निर्मित करती है ।

2. विधायी कार्य (Legislative Work):

i. अपनी विधायी शक्तियों का उपयोग करके मंत्रिपरिषद विधान निर्माण का प्रमुख काम करती है । उसके मंत्रियों द्वारा तैयार विधेयक विधानसभा से पारित होकर कानून बनते हैं ।

ii. राज्य सूची के साथ समवर्ती सूची पर भी वह विधि बना सकती है या राज्यपाल से अध्यादेश जारी करवाती है ।

iii. विधानमण्डल का सत्र आहूत करना, सत्रावसान करना, राज्यपाल का अभिभाषण तैयार करना, राज्यपाल को विधानसभा भंग करने का परामर्श देना, आदि उसके कार्य हैं ।

3. वित्तीय कार्य (Financial Work):

i. वित्तीय कार्यों के अन्तर्गत राज्य का सम्पूर्ण बजट मंत्रिपरिषद के निर्देशन में वित्त मंत्रालय तैयार करता है जिसे मंत्रिपरिषद विधानसभा से स्वीकृत कराती है ।

ii. राज्य में स्थापना व्यय का स्वरूप, किसानों, उद्योगों के लिए साख का निर्धारण आदि फैसले मंत्रिपरिषद करती है ।

iii. वही राज्य योजना का निर्माण भी करती है ।

4. न्यायिक कार्य (Judicial Work):

राज्य के क्षेत्राधिकार में सैनिक दण्ड और मृत्युदण्ड को छोड़कर किसी भी अन्य दण्ड को कम, विलंबित, निलंबित या पूर्णत: क्षमा करने का निर्णय मंत्रिपरिषद ही लेती है । वह मृत्युदण्ड को क्षमा तो नहीं कर सकती लेकिन उसे कम कर सकती है या अन्य दण्ड में बदल सकती है ।

उपर्युक्त कार्यों के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट होता है कि मंत्रिपरिषद को अपने राज्य के आंतरिक कार्य संचालन में पर्याप्त शक्तियां प्राप्त है यद्यपि उस पर राज्यपाल की स्वविवेकीय शक्तियों का निर्बन्धन होता है तथापि ऐसा त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति होने पर, समवर्ती सूची पर निर्मित विधेयक पर तथा राज्य में संविधान की विफलता पर ही वह कर सकता है ।

मुख्यमंत्री की उपस्थिति भी मंत्रिपरिषद को काफी हद तक प्रभावित करती है तथापि कई वरिष्ट सदस्यों की मौजूदगी के कारण अधिकांश निर्णय सामूहिक रूप से ही लिए जाते हैं । इस प्रकार राज्य मंत्रिपरिषद अधिकांशतया केन्द्रीय मंत्रिपरिषद का राज्य संस्करण है और इस रूप में राज्य की वास्तविक कार्यपालिका भी ।

प्रमुख तथ्य (Key Facts):

1. अनुच्छेद 168 राज्यों में विधानमण्डलों का प्रावधान करता है ।

2. अनुच्छेद 169 विधानपरिषद के सृजन और विघटन दोनों की शक्ति संसद को देता है, यद्यपि ऐसा वह राज्य विधानसभा के विशेष बहुमत से पारित प्रस्ताव पर ही करेगी ।

3. अनुच्छेद 170 विधानसभा और अनु. 171 विधानपरिषदों की संरचना से संबंधित है ।

4. अनुच्छेद 172 के तहत विधान सभा की अवधि प्रथम अधिवेशन की तारीख से 5 वर्ष निर्धारित की गयी है ।

5. अनुच्छेद 174 के द्वारा राज्यपाल को विधानमण्डल के सत्र, सत्रावसान की शक्ति दी गयी है ।

6. अनुच्छेद 174(2) ख द्वारा राज्यपाल को विधानसभा के विघटन की शक्ति दी गयी है ।

7. अनुच्छेद 177 राज्य महाधिवक्ता और मंत्रियों को विधानमण्डल के दोनों सदनों की कार्यवाहियों में भाग लेने, बहस करने, भाषण देने का अधिकार देता है, लेकिन महाधिवक्ता मत नहीं दे सकता ।

8. विधानसभा में मात्र एक एंग्लो इंडियन सदस्य को ही मनोनीत किया जा सकता है ।

9. विधानपरिषद किसी भी धन विधेयक को अपने पास रख सकती है- 14 दिनों तक ।

10. भारत के 6 राज्यों में विधानपरिषद की व्यवस्था है- बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, जम्मू-कश्मीर तथा आंध्रप्रदेश जहां फरवरी 2007 में पुन: स्थापित हुई ।

11. विधानपरिषद का कार्यकाल होता है- विधानपरिषद कभी विघटित नहीं होती ।

12. यदि राज्य विधान सभा के किसी सदस्य की अयोग्यता का प्रश्न उठता है तो राज्यपाल इसके लिए परामर्श करता है- चुनाव आयोग से ।

13. एक मात्र राज्य जिसकी विधान सभा का कार्यकाल 6 वर्ष है- जम्मू कश्मीर ।

14. विधानपरिषद के लिए चुने जाने के लिए न्यूनतम आयु सीमा है- 30 वर्ष ।

15. महाधिवक्ता की नियुक्ति किसके द्वारा की जाती है- राज्यपाल ।

16. मुख्यमंत्री की नियुक्ति के लिए उसका राज्य विधान मण्डल का सदस्य होना अनिवार्य है- नहीं ।

17. राज्यपाल किसी भी मंत्री को पदच्युत कर सकता है- मुख्यमंत्री की सलाह पर ।

18. राज्यों में कार्यपालिका की वास्तविक शक्ति किसमें निहित होती है- मंत्रिपरिषद में ।

19. विधानपरिषद के अध्यक्ष का चुनाव करते है- परिषद के चुने हुए सदस्य ।

20. अनुच्छेद जो राज्यपाल को विधायी शक्ति प्रदान करता है- अनुच्छेद 174 ।

21. राज्यपाल द्वारा जारी किया गया अध्यादेश कितने समय पश्चात् स्वत: समाप्त हो जाता है- 6 सप्ताह बाद ।

22. भारत के किस राज्य में सर्वप्रथम गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी- केरल की कम्युनिस्ट सरकार ।

23. राज्य विधान सभा का स्पीकर अपना त्याग पत्र किसे देगा- विधानसभा के उपाध्यक्ष को ।

24. किसको समाप्त किया जा सकता है पर भंग नहीं- विधान परिषद ।