पर्यवेक्षण: अर्थ, कार्य और प्रकार | प्रबंध | Read this article in Hindi to learn about:- 1. पर्यवेक्षण का अर्थ (Meaning of Supervision) 2. पर्यवेक्षण के चरण (Phases of Supervision) 3. पर्यवेक्षण (Functions) 4. प्रकार (Types) 5. लिकर्ट की पर्यवेक्षकीय शैलियाँ (Likert’s Supervisory Styles) 6. तकनीकें (Techniques).

Contents:

  1. पर्यवेक्षण का अर्थ (Meaning of Supervision)
  2. पर्यवेक्षण के चरण (Phases of Supervision)
  3. पर्यवेक्षण के कार्य (Functions of Supervision)
  4. पर्यवेक्षण के प्रकार (Types of Supervision)
  5. लिकर्ट की पर्यवेक्षकीय शैलियाँ (Likert’s Supervisory Styles)
  6. पर्यवेक्षण के तकनीकें (Techniques of Supervision)

1. पर्यवेक्षण का अर्थ (Meaning of Supervision):

शब्द की उत्पत्ति के दृष्टिकोण से कहें तो पर्यवेक्षण (Supervision) दो शब्दों ”पर्य” और ”वेक्षण” का योग है जिसका अर्थ है- ”देखरेख” । अत: पर्यवेक्षण का अर्थ- ‘श्रेष्ठतरों द्वारा उनके अधीनस्थों के कार्यों की देखरेख है ।’

पर्यवेक्षण में विभिन्न गतिविधियाँ शामिल हैं जैसे- निगरानी, निर्देशन, मार्गदर्शन, निरीक्षण और तालमेल । शिक्षा-संबंधी और परामर्श संबंधी पहलू भी इसके अंग हैं । इस तरह, एक पर्यवेक्षक की भूमिका एक नेता की भूमिका से मिलती-जुलती है ।

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परिभाषा (Definitions):

हेनरी रेइनिंग- ”पर्यवेक्षण दूसरों के कामों का प्राधिकार के साथ निर्देशन है ।” टेरी व फ्रैंकलिन- ”पर्यवेक्षण का अर्थ है- कर्मचारियों के प्रयासों और अन्य संसाधनों का मार्गदर्शन और निर्देशन करना ताकि वांछित कार्य परिणाम प्राप्त जा सके ।”

एम.विलियमसन- ”पर्यवेक्षण एक प्रक्रिया है जिसमें अपनी आवश्यकतानुसार सीखने, अपनी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए अपने ज्ञान और कौशल का सर्वश्रेष्ठ उपयोग करने में कर्मचारियों की निर्दिष्ट स्टाफ सदस्यों द्वारा मदद की जाती है, ताकि वे अपना काम अपने और एजेंसी के लिए अधिक प्रभावी और संतोषजनक ढंग से कर सकें ।” पर्यवेक्षण का सिद्धांत संगठन के पदानुक्रमिक ढाँचे (स्केलीय श्रृंखला) में अंतर्निहित होता है, जिसके अंतर्गत सभी स्तरों पर प्रत्येक कर्मचारी अपने श्रेष्ठ के पर्यवेक्षण के अंतर्गत होता है ।

इस परिप्रेक्ष्य में, जे.एम. फ़िफ़नर टिप्पणी करते हैं- ”एक दृष्टिकोण से पर्यवेक्षण पदानुक्रम के उच्चतम स्तरों तक जाता है ब्यूरो प्रमुख प्रभागीय प्रमुख को पर्यवेक्षित करता है, जो स्वयं विभागीय प्रमुखों को पर्यवेक्षित करता है, जो कतारों को पर्यवेक्षित करते हैं ।”  इस तरह, प्राधिकार में मौजूद सभी व्यक्ति जो दूसरों के कार्यों को नियंत्रित करते हैं, वे संगठन के आधिकारिक पदानुक्रम से जुड़े पर्यवेक्षक होते हैं ।


2. पर्यवेक्षण के चरण (Phases of Supervision):

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एफ. एम. मार्क्स के अनुसार- पर्यवेक्षक के काम के तीन चरण या पहलू होते हैं:

(i) सारभूत या तकनीकी- इसका संबंध किए जाने वाले काम से होता है यानी, एक पर्यवेक्षक को अपने काम की तकनीकों और पद्धतियों से परिचित होना चाहिए ।

(ii) संस्थागत या वस्तुपरक- इसका संबंध (प्रबंधन द्वारा तय) नीतियों और प्रक्रियाओं से होता है, जिसके अनुसार ही काम होना चाहिए ।

(iii) व्यक्तिगत या मानवीय- इसका संबंध कर्मचारियों को सँभालने से है अर्थात नीतियों और प्रक्रियाओं की रूपरेखा के अंतर्गत कामों को पूरा करने के लिए कार्य समूह को प्रेरित करना ।

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जे.डी. मिलेट कहते हैं कि पर्यवेक्षण के दो मुख्य उद्देश्य हैं:

(i) एक एजेंसी के संघटक अंगों के बीच तालमेल बिठाना ।

(ii) यह सुनिश्चित करना कि एजेंसी की प्रत्येक इकाई सौंपे गए काम को पूरा करती है ।


3. पर्यवेक्षण के कार्य (Functions of Supervision):

जी.डी. हाल्सी के अनुसार, पर्यवेक्षण के छह घटक हैं:

(i) प्रत्येक काम के लिए उचित व्यक्ति का चुनाव ।

(ii) प्रत्येक व्यक्ति में उसके काम के प्रति रुचि पैदा करना और उसे वह काम करने का तरीका सिखाना ।

(iii) यह निश्चित करने के लिए कि सिखाना पूरी तरह प्रभावी रहा है, प्रदर्शन की माप और निर्धारण ।

(iv) जहाँ जरूरी हो, वहाँ चीजों को दुरुस्त करना और कर्मचारियों को अधिक उपयुक्त काम पर स्थानांतरित करना या उन कामों से हटाना जिन पर वे अप्रभावी सिद्ध हुए हैं ।

(v) जब भी प्रशंसा का मौका हो तो प्रशंसा करना और अच्छे काम पर ईनाम देना ।

(vi) कार्य समूह में प्रत्येक व्यक्ति को सामंजस्यपूर्ण ढंग से बिठाना ।

एच.निसेन पर्यवेक्षक के ग्यारह कर्त्तव्यों की बात करते हैं:

(i) अपने पद के कर्त्तव्य और जिम्मेदारियाँ समझना ।

(ii) कार्य को करवाने की योजना बनाना ।

(iii) अधीनस्थों के बीच कार्य विभाजन करना और उन्हें करने में उनका निर्देशन और सहायता करना ।

(iv) कार्य पद्धतियों और प्रक्रियाओं को सुधारना ।

(v) एक तकनीकी विशेषज्ञ और नेता के रूप में अपने ज्ञान को सुधारना ।

(vi) उनके काम में अधीनस्थों को प्रशिक्षित करना ।

(vii) कर्मचारियों के प्रदर्शन का मूल्यांकन करना ।

(viii) कर्मचारियों की गलतियों को सही करना और उनकी समस्याओं को सुलझाना और उनके बीच अनुशासन का विकास करना ।

(ix) संगठन की नीतियों और प्रक्रियाओं के बारे में अधीनस्थों को जानकार बनाए रखना ।

(x) सहकर्मियों के साथ सहकार और जब जरूरी हो उनकी सलाह और मदद लेना ।

(xi) अधीनस्थों के सुझावों और शिकायतों से निपटना ।


4. पर्यवेक्षण के प्रकार (Types of Supervision):

i. एकल और बहुल:

जब किसी संगठन के किसी सदस्य का पर्यवेक्षण केवल एक पर्यवेक्षक करें तो इसे एकल पर्यवेक्षण कहते हैं । इसके विपरीत, जब किसी संगठन के किसी सदस्य का कई पर्यवेक्षक पर्यवेक्षण करते हैं तो इसे बहुल पर्यवेक्षण या बहुपर्यवेक्षण कहते हैं । पहला हेनरी फेयाल द्वारा प्रतिपादित निर्देशों में एकता के सिद्धांत पर आधारित है जबकि दूसरा एफ. डब्ल्यू. टेलर द्वारा समर्थित कार्यात्मक फोरमैनशिप के सिद्धांत पर आधारित है ।

ii. रेखा और कार्यात्मक:

रेखा पर्यवेक्षण का अर्थ है- निर्देश की रेखा में लोगों द्वारा प्रयोग किया जाने वाला नियंत्रण । यह स्वभाव से प्रत्यक्ष और निर्देशात्मक होता है और इसमें निरंकुश निर्देशन शामिल होता है ।

इसके विपरीत, कार्यात्मक पर्यवेक्षण का अर्थ है- ओ एंड एम (ऑर्गेनाइजेशन एंड मैथड्‌स) अर्थात व्यक्तियों, ऑडिटरों इत्यादि जैसे विषयवस्तु विशेषज्ञों द्वारा प्रयोग में लाया जाने वाला नियंत्रण । एक स्टाफ कार्य होने के कारण यह प्रभावित करता है बजाय निर्देशित करने के । इस प्रकार, यह स्वभाव से परामर्शीय है ।

iii. सारभूत और तकनीकी:

मिलेट ने पर्यवेक्षण को सारभूत और तकनीकी पर्यवेक्षण में वर्गीकृत किया । पहले का सम्बन्ध एक एजेंसी द्वारा किए जाने वाले वास्तविक कार्य से होता है, जबकि दूसरे का सरोकार काम करने में इस्तेमाल की गई पद्धतियों से है ।


5. लिकर्ट की पर्यवेक्षकीय शैलियाँ (Likert’s Supervisory Styles):

रेंसिस लिकर्ट के मिशीगन अध्ययनों ने साबित किया कि पर्यवेक्षक द्वारा प्रयोग में लाया जाने वाला पर्यवेक्षण जितना ज्यादा प्रकृति का होगा, कार्य समूह के उत्पादन का स्तर ही अधिक होगा । इसके विपरीत पर्यवेक्षक का पर्यवेक्षण जितना संकीर्ण होगा, कार्य समूह के उत्पादन का स्तर उतना ही नीचा होगा । उन्होंने यह भी पाया कि जब भी पर्यवेक्षक कर्मचारी केंद्रित होते हैं (यानी लोगों के प्रति वास्तविक सरोकार रखते हैं), कर्मचारियों उत्पादन उन जगहों से ज्यादा है जहाँ पर्यवेक्षक उत्पादन केंद्रित होते हैं ।

(यानी दिए गए मानकों पर काम के संपन्न होने से अधिक सरोकार रखते हैं ।) इन खोजों के आधार पर, लिकर्ट ने पर्यवेक्षकों को दो श्रेणियों में विभाजित किया-कार्य केंद्रित और कर्मचारी केंद्रित । इन दोनों श्रेणियों विशेषताओं को तालिका 2.1 में संक्षेप में बताया गया है ।


6. पर्यवेक्षण के तकनीकें (Techniques of Supervision):

जे.डी. मिलेट ने पर्यवेक्षण की छह तकनीकों का सुझाव दिया है:

i. व्यक्तिगत परियोजनाओं का पूर्व अनुमोदन:

अधीनस्थ इकाइयों (फील्ड स्तरीय एजेंसियां) को नीति की रूपरेखा से बाहर कोई भी पहल लेने से पहले उसे श्रेष्ठतर प्राधिकार (हेडक्वार्टरों) से अनुमोदित करा लेना चाहिए । भारत में, विकास के प्रोजेक्टों को न केवल विभाग प्रमुखों से पूर्व अनुमोदन की जरूरत होती है बल्कि वित्त मंत्रालय का भी अनुमोदन चाहिए होता है । पूर्व अनुमोदन की यह व्यवस्था श्रेष्ठतर पदों पर आसीन व्यक्तियों को कार्य करने वाली इकाइयों के इरादों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने और उसके कार्यों पर व्यापक नियंत्रण स्थापित करने में सक्षम बनाती है ।

ii. सेवा मानकों का प्रवर्तन:

श्रेष्ठतर प्राधिकार अधीनस्थ एजेंसियों के पूरा करने के लिए कुछ निश्चित मानक या लक्ष्य का सुझाव देता है । ऐसे सेवा मानक यह सुनिश्चित करने के लिए जरूरी होते हैं कि काम करने वाली एजेंसियों द्वारा काम स्वस्थ व सही ढंग से किया जा रहा है ।

iii. कामों पर बजटीय सीमाएँ:

बजटीय प्रबंधन (आबंटन) एक निश्चित समय सीमा में सक्रिय इकाइयों द्वारा संभाले-जाने वाले कामों के आकार को तय करता है । ये इकाइयाँ इन बजटीय सीमाओं में ही काम करती हैं जो उच्चतर प्राधिकार द्वारा निर्धारित होती हैं और इस प्रकार वे जब जितना चाहें उतना पैसा खर्च करने के लिए आजाद नहीं होती । कार्य बजट आबंटन प्राधिकार को सौंपने और स्थानीय पहल को प्रोत्साहित करने की एक पद्धति है, जबकि वह सक्रिय इकाइयों के कार्य के आकार पर एक केंद्रीय नियंत्रण भी कायम रखती है ।

iv. अधीनस्थ कर्मचारी का अनुमोदन:

अपने द्वारा की गई कुछ विशेष महत्त्वपूर्ण नियुक्तियों का पूर्व अनुमोदन करके उच्चतर प्राधिकार अधीनस्थ इकाइयों पर नियंत्रण कर सकता है । यह व्यवस्था श्रेष्ठतर प्राधिकार की सक्रियता स्तर पर भर्ती प्रक्रिया को पर्यवेक्षित करने और सक्रिय एजेंसियों पर अपने योग्यता मानक लागू करने में मदद करती है ।

v. कार्य प्रगति पर जवाबदेही व्यवस्था:

श्रेष्ठतर प्राधिकार गतिविधियों की नियमित या विशेष रिपोर्ट की माँग करके सक्रिय इकाइयों की गतिविधियों का पर्यवेक्षण करता है । ऐसी रिपोर्टों में दी गई सूचनाओं के आधार पर वह सक्रिय इकाइयों के प्रदर्शन का मूल्यांकन कर सकता है और उनकी गतिविधियों को नियंत्रित कर सकता है ।

vi. नतीजों की जाँच:

जाँच पर्यवेक्षण की सबसे पुरानी तकनीकों में से एक है और इसलिए लोक प्रशासन का एक अभिन्न अंग रही है ।

यह निम्न उद्देश्यों की सेवा करती है:

(i) जानकारी प्राप्त करना ।

(ii) यह जानना कि मौजूदा नियमों, विनियमों और प्रक्रियाओं का पालन हो रहा है या नहीं ।

(iii) प्रबंधन के उद्देश्य और इरादे के बारे में स्पष्टीकरण देना ।

(iv) प्रदर्शन मूल्यांकन में सहायता करना ।

(v) शीर्ष प्रबंधन को उन समस्याओं से परिचित कराना जिनका सामना अधीनस्थ स्तर के प्रबंधन को करना पड़ रहा है ।

(vi) संगठन में काम कर रहे व्यक्तियों को निर्देशित और मार्गदर्शित करना ।

(vii) परस्पर पहचान और विश्वास के व्यक्तिगत संबंध बनाना ।

(viii) सक्रिय इकाइयों की प्रभाविता बढ़ाना ।

इस प्रकार, जाँच प्रबंधन को अधीनस्थ इकाइयों के कार्यों की प्रत्यक्ष जानकारी हासिल करने में मदद करती है । लेकिन साधारणत: इसका प्रयोग गलतियों की खोज करने के बजाय तथ्यों की खोज में होता है । जाँच का काम अन्वेषण के काम से काफी भिन्न होता है । मिलेट कहते हैं- ”अन्वेषण का उद्देश्य कथित या संदिग्ध तौर पर प्रबंधन प्राधिकार के दुरुपयोग की पड़ताल करना है । इसका सरोकार व्यक्तिगत दुराचार, अक्सर अपराधी प्रकृति के दुराचार से होता है ।”

वे जोड़ते हैं कि जाँच महज पर्यवेक्षण की प्रक्रिया का एक अंग है । पहले यह एक नकारात्मक भूमिका है और फिर बाद में होने वाली समीक्षा है इनमें से दूसरा ज्यादा सकारात्मक है और कार्य के पहले और बाद दोनों चरणों से सरोकार रखता है । इस प्रकार जाँच और अन्वेषण पर्यवेक्षण की प्रक्रिया के अंग हैं जो निश्चित रूप से एक ज्यादा व्यापक शब्द है ।