लोक प्रशासन के शीर्ष सात सिद्धांत | Top 7 Theories of Public Administration. Read this article in Hindi to learn about the top seven theories of public administration. The theories are:- 1. राजनीतिक निर्देशन का सिद्धांत (Political Direction Theory) 2. लोक उत्तरदायित्व का सिद्धांत (Theory of Public Accountability) 3. सामाजिक आवश्यकता का सिद्धांत (Theory of Social Necessity) 4. कार्यकुशलता का सिद्धांत (Theory of Efficiency) and a Few Others.

प्रो. वार्नर ने अधिक स्पष्टता और विस्तार के साथ लोक प्रशासन के आठ आधारभूत सिद्धांतों का निरूपण किया है जिनकी प्रो. ह्वाइट ने विस्तार से निम्नांकित रूप में व्याख्या की है ।

1. राजनीतिक निर्देशन का सिद्धांत (Political Direction Theory):

लोक प्रशासन को एक ऐसे अभिकरण के रूप में कार्यशील रहना चाहिए जो राजनीतिक कार्यपालिका के नियंत्रण में कार्य करता हो और उसके प्रति उत्तरदायी रहता हो । राजनीतिक कार्यपालिका के नियंत्रण नीतियों का अनुपालन करना लोक प्रशासकों का कर्तव्य है ।

प्रशासकीय संगठन सामान्यत: दूसरों की इच्छानुसार कार्य करता है । उसके पास स्वयं का कोई उपक्रम नह होता और यदि होता भी है तो केवल उन विषयों के बारे में जो ऐसे उच्चतर कार्यपालिका द्वारा सौंपी जाए ।

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प्रशासन यद्यपि स्थायी कार्यपालिका है तथापि उसे अस्थायी राजनीतिक कार्यपालिका के संरक्षण में कार्य करना होता है और इसका यह स्वाभाविक निष्कर्ष है कि प्रशासकीय कर्मचारियों को राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय भाग लेने से बचना चाहिए । भारत में प्रशासकीय कर्मचारियों को राजनीति में सक्रिय भाग लेने का निषेध है ।

2. लोक उत्तरदायित्व का सिद्धांत (Theory of Public Accountability):

लोक प्रशासन का अन्तिम उद्देश्य जनता की हित साधना है । अत: वह अन्तिम रूप में जनता के प्रति उत्तरदायी होता है । राजनीतिक कार्यपालिका द्वारा लोक प्रशासन का उत्तरदायित्व जनता के प्रतिस्थापित होता है ।

लोक प्रशासकों को स्वयं को जनता का स्वामी नह सेवक मानना चाहिए । उनका यह कर्तव्य है कि वे जनता की कठिनाइयों को दूर करें और जनता की समस्याओं का समाधान करने को सदैव तैयार रहें । यही कारण है कि प्रशासकीय कार्यों के व्यापक अभिलेख रखे जाते हैं ताकि यदि व्यवस्थापिकाओं में अथवा अन्यत्र कोई प्रश्न उठे तो प्रशासकीय कर्मचारी प्रमाणित उत्तर दे सकें ।

लोक प्रशासकों से यह अपेक्षित है कि वे जनता के साथ निष्पक्ष और समान व्यवहार करें, किसी वर्ग अथवा व्यक्ति के साथ पक्षपात न करें । ऐसा करने पर ही लोक प्रशासन जन विश्वसनीयता अर्जित कर सकता है ।

3. सामाजिक आवश्यकता का सिद्धांत (Theory of Social Necessity):

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लोक प्रशासन जनता के हित के लिए है अर्थात् उसका उद्देश्य सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति होना चाहिए । लोक प्रशासन को सम्यता और संस्कृति का रक्षक तथा शान्ति और व्यवस्था बनाये रखने वाला यन्त्र इसलिए कहा जाता है कि वह सामाजिक यान्त्रिक संगठन का केन्द्र है और सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति के सिद्धांत का आचरण करता है । लोक प्रशासन के सिद्धांत की अन्तिम कसौटी यह है कि वह जन आकांक्षाओं के कितना अनुरूप है ।

योजनाएं बना लेना आसान है, लेकिन उनका वास्तविक महत्व तो उनके क्रियान्वयन, ईमानदार और कुशलता में है तो योजनाओं के समुचित क्रियान्वयन द्वारा वह देश और समाज को लाभान्वित कर सकता है । सामाजिक प्रगति के संदर्भ में लोक प्रशासन की मात्रात्मक सफलता की अपेक्षा गुणात्मक सफलता अधिक महत्वपूर्ण है ।

4. कार्यकुशलता का सिद्धांत (Theory of Efficiency):

लोक प्रशासकों से अपेक्षा की जाती है कि वे अधिकाधिक कार्यकुशल बनें, युक्ति एवं विवेक से काम लें तथा अपनी कार्यक्षमता को इतना बढ़ाएं कि वांछित लक्ष्यों की प्राप्ति सुगम हो जाए । प्रशासनिक कार्यकुशलता का विकास करने के लिए प्रशासन में यथासम्भव स्थिरता लाई जाए अर्थात् जल्दी-जल्दी परिवर्तन की नीति को छोड़ा जाए, अधिकारियों और कर्मचारियों के कर्तव्यों का स्पष्ट एवं निश्चित निर्धारण किया जाए, प्रशासक-उपक्रम की स्थापना की जाए, पदोन्नति के न्यायगत नियम बनाए जाएं निर्णय में शीघ्रता और सुनिश्चितता लाई जाए तथा उत्तरदायित्व एवं शीघ्रता आदि के लिए पदाधिकारियों को प्रोत्साहन दिया जाए ।

कम से कम व्यय पर अधिक से अधिक कुशलता और कार्यक्षमता के सिद्धांत का आचरण किया जाए । प्रशासनिक कार्य कुशलता बहुत कुछ राजनीतिक और स्थाई कार्यपालिका के पारम्परिक संबंध पर भी आश्रित हैं । यदि दोनों के संबंध मधुर और समन्वयात्मक हैं तो प्रशासन की गाडी सुचारू रूप से चलती है ।

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यह उचित है कि भर्ती की समुचित व्यवस्था की जाए और राजनीतिक कार्यपालिका के निर्देश और उसकी नीतियों में स्पष्टता बढ़ती जाए । राजनीतिक कार्यपालिका नीति-निर्धारण में स्थाई कार्यपालिका के कुशल कर्मचारियों से परामर्श ले और उनका सहयोग प्राप्त करें । कार्यकुशलता ही लोक प्रशासन की सफलता की कुंजी होती है ।

5. जन-सम्पर्क का सिद्धांत (Theory of Public Relations):

सुनियोजित जन-सम्पर्क लोकप्रिय प्रशासन की कल्पना के बिना निरर्थक है । लोक कल्याणकारी राज्य में लोक सम्पर्क का महत्व निर्विवाद है । प्रशासन के क्षेत्र में लोक-सम्पर्क के कुछ मूलभूत उद्देश्य होते हैं ।

यथा:

(i) सरकार द्वारा संचालित अभियानों (उदाहरणार्थ- अल्प बचत या परिवार नियोजन) में जन साधारण को सहयोग के लिए प्रेरित करना,

(ii) सरकारी नियमों और कानूनों का पालन,

(iii) सरकारी नीतियों के समर्थन के लिए जनता में प्रचार आदि ।

लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली में सरकार के लिए यह नितान्त आवश्यक है कि वह समय-समय पर राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं पर अपनी नीतियों से जनता को अवगत कराती रहे । जनता के सतर्क और सक्रिय समर्थन के अभाव में इन नीतियों का परिपालन भी कठिन है । कई बार सरकार के आन्तरिक अथवा बाह्य विरोधियों के जवाब में जवाबी प्रचार भी करना पड़ता है । इस प्रकार की भूमिका! लोक सम्पर्क को निभानी पड़ती हैं ।

पुनश्च: प्रशासन का एक मूल उद्देश्य जनता की आवश्यकताओं को समझना और उन्हें दूर करने का प्रयास करना है । लोक सम्पर्क के माध्यम से कठिनाइयों को खोजकर उनका उचित निदान करना अधिक सुगम हो जाता है ।

भारत में लोकसम्पर्क के लिए केन्द्रीय सूचना तथा प्रसार मन्त्रालय के अन्तर्गत निम्नलिखित विभाग या शाखाएँ कार्यरत हैं:

(1) आकाशवाणी,

(2) पत्र-सूचना कार्यालय,

(3) रजिस्ट्रार, न्यूजपेपर्स ऑफ इण्डिया,

(4) फिल्म डिवीजन,

(5) प्रकाशन विभाग,

(6) विज्ञापन तथा दृश्य प्रचार निदेशालय,

(7) फोटो डिवीजन,

(8) संदर्भ तथा अनुसन्धान विभाग, और

(9) क्षेत्रीय प्रचार विभाग ।

6. संगठन का सिद्धांत (Organization Theory):

प्रशासन एक सहकारी प्रक्रिया है । इसमें अनेक व्यक्ति पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार मिलकर कार्य करते हैं । योजनाबद्ध व्यवहार किसी संगठन की मूल विशेषता होती हैं । लोक प्रशासन को सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ने के लिए संगठन के सिद्धांत का अनुसरण करना चाहिए । प्रशासकीय विभागों में पारस्परिक आदान-प्रदान के साथ-साथ समन्वय होना नितान्त आवश्यक है ।

संगठन में दो बातें सम्मिलित हैं- श्रम-विभाजन और कार्य-विशेषीकरण, दोनों की सफलता इस बात में है कि किसी भी कार्य के आते ही जनता और सरकारी कर्मचारियों को यह पता लग जाए कि उसका संबंध सरकार के किस विभाग तथा संगठन के किस सोपान से हो ।

संगठन की सफलता के लिए आवश्यक है कि लाइन तथा स्टॉक अभिकरणों में स्पष्ट विभाजन हो । कोई भी प्रशासनिक क्रिया संगठन के बिना संचालित नह की जा सकती । प्रशासन और संगठन के बीच अटूट संबंध है ।

7. विकास एवं प्रगति का सिद्धांत (Theory of Development and Progress):

लोक प्रशासन सामाजिक हित के साध्य की उपलब्धि का साधन है । अत: स्वाभाविक है कि वह सामाजिक प्रगति के साथ कदम मिलाकर चले तथा सामाजिक आवश्यकताओं और परिस्थितियों के अनुरूप अपने स्वरूप, संगठन और प्रक्रियाओं में परिवर्तन एवं संशोधन के लिए तैयार रहे ।

उसमें नए मूल्यों और दृष्टिकाणों के अनुकूल ढलने का लचीलापन हो । सिद्धांत और व्यवहार में लोक प्रशासन यह मानकर चले कि लोक कल्याणकारी राज्य में उसका व्यापक दायित्व है और उसे समाज की विभिन्न समस्याओं तथा आवश्यकताओं का निदान करते हुए देश को विकास और प्रगति के पथ पर अग्रसर करना है ।

अत: लोक प्रशासन सदैव वैज्ञानिक और मानवीय दृष्टिकोण को अपनाते हुए पुराने घिसे-पिटे तर्कों के स्थान पर नवीन पद्धतियों को प्रयोग में लाए तथा लोक-सम्पर्क का अधिकाधिक विकास करें । अपनी गति और शक्ति बनाए रखने के लिए लोक प्रशासन सभी आवश्यक वैज्ञानिक और आधुनिक उपाय अपनाता रहे । वह राजनीतिक इंजन से बल प्राप्त करें और निकम्मे नौकरशाही के आवरण को हटाकर लोक-हित का जामा पहने ।

8. अन्वेषण अथवा खोज का सिद्धांत (Theory of Exploration or Discovery):

लोक प्रशासन में यद्यपि भौतिक विज्ञान की तरह प्रयोगशालाएं स्थापित नहीं की जा सकतीं तथापि मस्तिष्क और अनुभव द्वारा उसकी सामग्री अवश्य ही एकत्रित की जा सकती है जिसके आधार पर कार्योपयोगी निष्कर्ष निकाले जा सकें, प्रशासनिक कुशलता बढ़ाई जा सके तथा प्रशासनिक उद्देश्यों की पूर्ति की दिशा में तेजी से अग्रसर हुआ जा सके । भारत सरकार का दिल्ली स्थित लोक प्रशासन संस्थान प्रशासकीय खोज के क्षेत्र में प्रशंसनीय कार्य कर रहा है । उसने अनेक खोज कार्यक्रमों और योजनाओं को संचालित किया है ।