Read this article in Hindi to learn about the conventional theories of organization.

वांछित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मनुष्यों व सामग्री के बीच उचित संगठन व निर्देशन करने को प्रशासन कहा जाता है । प्रशासन में किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए अनेक व्यक्ति मिलकर कार्य करते हैं ।

यदि उनका प्रयास एक निश्चित योजना के अनुसार होता है तो ये लक्ष्य की प्राप्ति कर सकेंगे, नहीं तो उनका प्रयास विफल हो जाएगा । इसलिए यह आवश्यक है कि किसी भी कार्य को करने से पहले उसे नियोजित कर लिया जाए, इसी को संगठन कहते हैं । अत: संगठन समस्त प्रशासन की पूर्व क्रिया है ।

संक्षिप्त ऑक्सफोर्ड शब्द कोश के अनुसार- ”किसी चीज का आकार निश्चित करना व उसको कार्य करने की स्थिति में लाना ही संगठन है ।” अगर यह कहें कि हम सब संगठन मानव के युग में रह रहे हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी ।

ADVERTISEMENTS:

संगठन की शास्त्रीय विचारधारा को यांत्रिक सिद्धांत के नाम से भी जाना जाता है, यह संगठन का परंपरागत दृष्टिकोण है । लूथर गुलिक, उर्विक, मूनी और रेले इसके प्रमुख समर्थक हैं । इस दृष्टिकोण के अनुसार संगठन का अर्थ ”एक औपचारिक ढांचा जिसकी रचना विशेषज्ञों द्वारा स्पष्ट सिद्धांतों, नियमों व उपनियमों के आधार पर की जाती है” अर्थात् ढांचे की रूपरेखा तैयार करना ।

यह दृष्टिकोण मनुष्यों की अपेक्षा कार्यों पर अधिक बल देता है । अत: यह अवैयक्तिक है जिसमें दक्षता पर अत्यधिक बल दिया जाता है । 19वीं शताब्दी की औद्योगिक क्रांति के बाद आधुनिक औद्योगिक जगत में पैदा हुई जरूरतों की पूर्ति के लिए लोगों ने औद्योगिक संगठन के सिद्धांतों की रचना हेतु प्रयास किए ।

इनमें प्रमुख थे टेलर, मेक्स वेबर और फेयोल और जिन्होंने परंपरागत संगठनात्मकता या प्रबंधन का सिद्धांत दिया । इन्होंने संगठनात्मक दक्षता और उत्पादकता में वृद्धि को लक्ष्य मानकर अपने सिद्धांत विकसित किए ।

इसके बाद संगठनात्मक प्रबंधन के सिद्धांतों को विकसित करने का प्रयास अनेक ब्रिटिश और अमरीकी प्रशासनकर्ताओं ने किए जिनमें गुलिक व उर्विक का नाम प्रमुख है । इनके द्वारा 1937 में सम्पादित किताब (पेपर ऑन द साइंस ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन) “Paper on the Science of Administration” ‘प्रशासन विज्ञान के लेख’ मील का पत्थर समझी जाती है ।

गुलिक व उर्विक की प्रमुख रचनाएं व शोधपत्र (Major Compositions and Research Papers of Gulik and Urvik):

ADVERTISEMENTS:

गुलिक:

1. एडमिनिस्ट्रेटिव रिफलैक्वान फ्रॉम वर्ल्डवार टू

2. मैट्रोपॉलिटिन प्रॉब्लम्स एंड अमेरिकन आईडियाज

3. मॉर्डन मैनेजमेंट फॉर द सिटी ऑफ न्यूयार्क

ADVERTISEMENTS:

उर्विक:

1. मैनेजमेंट ऑफ टुमारों

2. द मेकिंग ऑफ साइंटिफिक मैनेजमेंट

3. द ऐलिमेंट ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन (प्रशासन के तत्व)

गुलिक और उर्विक के विचारों पर प्रभाव (Influence on the Ideas of Gulik and Urvik):

गुलिक और उर्विक दोनों को नागरिक सेवा, रक्षा संगठन तथा औद्योगिक इकाइयों में काम करने का खासा अनुभव था जिसका प्रभाव उनके लेखों पर भी दिखाई देता है जिसमें अनुशासन, क्षमता, स्टाफ, लाईन आदि अवधारणाएं हैं । इन पर टेलर के मानव मशीनमाइल और फेयोल के औद्योगिक प्रबंधन का प्रभाव भी था और इसी प्रभाव के परिणाम से गुलिक और उर्विक ने संस्था के परंपरागत सिद्धांत या प्रशासनिक प्रबंध की रचना की ।

गुलिक और उर्विक ने संस्था में लोगों की अपेक्षा प्रशासन की संरचना को अधिक महत्व दिया । उनका मानना है कि संस्था बनाते समय खासकर निर्माण प्रक्रिया में किसी खाके की कमी को उर्विक न केवल गैर तथ्यात्मक, क्रूर नुकसानदायक मानते हैं अपितु अकुशल भी मानते हैं ।

लूथर गुलिक के अनुसार- “संगठन सत्ता का औपचारिक ढांचा है जिसके द्वारा निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कार्यों को विभाजित और निर्धारित किया जाता है तथा उनमें समन्वय स्थापित किया जाता है । इस संबंध में हर्बर्ट साइमन का मत है कि संगठन से हमारा अभिप्राय सहकारी कार्यों की उस नियोजित व्यवस्था से है, जिसमें प्रत्येक भागीदार का कार्य, कर्त्तव्य व उत्तरदायित्व निर्धारित हो ।”

लूथर गुलिक का ‘पोस्डकोर्ब’ (POSDCORB) संबंधी विश्लेषण (Luther Gulick’s POSDCORB Analysis):

गुलिक ने कार्यकारी कारणों को पहचाना और इन सभी कारणों को समाहित करने वाला एक शब्द गढ़ा जिसे ‘पोस्डकोर्ब’ (POSDCORB) कहा जाता है ।

इस शब्द का प्रत्येक अक्षर प्रबंध के एक महत्वपूर्ण कार्य को इंगित करता है इसका विवरण इस प्रकार है:

P. (Planning) प्लानिंग अर्थात् योजना के लिए:

योजना का काम संगठन में उपलब्ध मानवीय और भौतिक संसाधनों का अनुमान लगाना, कम खर्च पर एक प्रभावशील ढंग का लक्ष्य रखते हुए उपयुक्त तरीके से संगठन के उद्देश्यों तक पहुंचने के साधन और रास्तों की खोज करना है ।

O. (Organization) ‘ओ’ आर्गेनाइजेशन संगठन के लिए:

प्राधिकार या सत्ता के औपचारिक स्वरूप की स्थापना करना और उससे निश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कार्य को विभिन्न भागों में व्यवस्थित, परिभाषित और समन्वित करना । इसमें संगठन के स्तर, अधिकार सौंपने, क्रमिकता, नियंत्रण का विस्तार और कार्य विभाजन आदि तत्त्व शामिल होते हैं ।

S. (Staffing) ‘एस’ स्टाफिंग कार्मिक संगठन:

सभी प्रशासनिक अधिकारियों को कार्मिकों की भर्ती, नियुक्ति, अनुशासन, सेवानिवृत्तियां, प्रशिक्षण की व्यवस्था और कार्य के अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करने पर ध्यान देना चाहिए ।

D. (Directing) निर्देशन करना:

इसका संबंध प्रशासनिक गतिविधियों के संचालन के लिए शासन संबंधी निर्णय लेना और उन्हीं के अनुरूप अपने मातहत (नीचे) काम करने वालों को आदेश जारी करना ।

Co (Co-Ordination) ‘को’ कॉर्डिनेशन ‘समन्वय करना’:

इसका संबंध कार्य के विभिन्न अंगों में परस्पर संबंध करना और उनमें समन्वय स्थापित करना है जिससे संगठन में दुहराव और संकट की मौजूदगी को रोकने के साथ कर्मचारियों में सहयोग स्थापित किया जा सके ।

R. (Reporting) ‘आर’ रिपोर्टिंग प्रतिवेदन देना:

इसका संबंध अधिकारियों को संगठन में हो रही गतिविधियों की प्रगति के बारे में जानकारी देने से है जिससे अधिकारी संगठन की समस्याओं की जानकारी पाते हैं और उन्हें सुधारने की कार्यवाही प्रारंभ करते है और आवश्यक निर्देश देते हैं ।

B. (Budgeting) ‘बी’ बजटिंग-बजट तैयार करना:

इसमें वितीय प्रशासन का संपूर्ण क्षेत्र आता है । प्रशासन के लिए वित अनिवार्य होने के कारण अधिकारियों को बजट बनाने, वित्तीय प्रक्रिया, लेखा आदि मामलों पर पर्याप्त ध्यान देना पड़ता है ।

पोस्डकोर्ब विचार वर्ग की मान्यता है कि उपर्युक्त मौलिक तत्वों का ज्ञान किसी भी प्रशासन के लिए अनिवार्य है और यदि पोस्डकोर्ब की इन प्रक्रियाओं का मौलिक ज्ञान किसी व्यक्ति को है तो वह सभी प्रकार के संगठनों में किसी भी प्रकार के क्षेत्र का प्रशासन चला सकता है ।

लूथर गुलिक की मान्यता है कि लोक प्रशासन एक प्रकार का विज्ञान है और इसे एक विज्ञान की तरह पढा जाना चाहिए । आज इसी विशिष्टीकृत ज्ञान के विचार को लेकर प्रबंध विज्ञान आगे बढ रहा है । पोस्डकोर्ब सिद्धांत का विचार अमरीकी प्रशासन संबंधी अध्ययन में एक पीढ़ी से भी अधिक समय तक प्रभावशाली रहा है ।

1937 में ‘Presidential Committee of Administrative Management’ ने अपनी रिपोर्ट में और उसके बाद 1949 और 1955 में ‘Report of Committee on Organization of Executive Branch’ ने अपनी रिपोर्ट में पोस्डकोर्ब के सिद्धांत को अपनाया ।

यह दृष्टिकोण पोस्डकोर्ब दो विचारों का परिणाम है:

1. प्रथम:

कुछ सिद्धांत ऐसे होते हैं जिनके अनुरूप संगठन की योजना बनाई जा सकती है जिससे कि संगठन उपेक्षित प्रयोजन अथवा क्रिया के अनुरूप बन सके ।

2. द्वितीय:

इस पूर्व निर्धारित योजना को वांछनीय कर्मचारियों द्वारा पूरा किया जाता है । अतः यह स्पष्ट है कि यांत्रिकी दृष्टिकोण संगठन को एक यंत्र और उसके संचालन करने वाले व्यक्ति को मशीन के पुर्जे की भांति मानता है ।

लूथर गुलिक के सिद्धांत:

1. विशिष्टीकरण का सिद्धांत

2. विभागीयकरण का सिद्धांत:

विभागीयकरण का सिद्धांत उन आधारों की समस्या से जूझता है जो काम को विभाजित करने और विभाग बनाने में इस्तेमाल होते हैं । लूथर गुलिक ने ऐसे चार आधार पहचाने हैं जिनकी मदद से काम सौंपने की समस्या का समाधान हो सकता है ।

ये इस प्रकार है:

(i) कार्य अथवा उद्देश्य

(ii) प्रक्रिया

(iii) व्यक्ति

(iv) जगह ।

इन्हें गुलिक के चार ‘पी’ (Four ‘P’) के नाम से जाना जाता है जिसका विस्तार इस प्रकार है:

(i) कार्य अथवा उद्देश्य (Function or Purpose):

गुलिक के अनुसार काम का विभाजन प्रमुख उद्देश्य और प्रकार्य आधार पर होना चाहिए क्योंकि संगठन के प्रमुख उद्देश्य और कार्य पहचानकर प्रत्येक कार्य के लिए एक विभाग बनाने की आवश्यकता है क्योंकि इससे खर्च कम होता है ।

(ii) प्रक्रिया (Process):

इसमें गुलिक कहता है कि एक-सी प्रक्रिया और कौशलवाले कामों को एक साथ रखा जाना चाहिए क्योंकि इससे एक से ज्ञान, कौशल एवं प्रक्रिया प्रयुक्त होती है ।

(iii) व्यक्ति (Persons):

गुलिक की मान्यता है कि किसी विशेष समूह की सेवा करते हुए किसी विभाग के सदस्य एक विशेष कौशल प्राप्त कर लेते हैं लेकिन यह सिद्धांत सार्वभौमिक तौर पर लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि इससे संगठनों के बीच दुहराव और एक दूसरे पर छा जाने के कारण सहयोग में भी मुश्किल होती है ।

(iv) क्षेत्र (Place):

गुलिक के अनुसार यहां एक क्षेत्र में किए गए सभी कार्य एक साथ जोड़ दिए जाते हैं और विभाग बना दिए जाते हैं । यह आधार किसी क्षेत्र में गहन विकास के लिए लाभदायक तरीके से प्रयोग में लाया जा सकता हे । ऐसे विभाग के सदस्य क्षेत्र विशेषज्ञ भी बन जाते हैं ।

अतः विभागीयकरण के सिद्धांत ऐसे सामान्य सिद्धांत पर आधारित है कि काम के विभाजन के आधारभूत सत्य को झुठलाया नहीं जा सकता । आज भी जब काम को विभाजित किया जाता है और उन्हें अनेक इकाइयों में बांटा जाता है तब यह विभागीयकरण सिद्धांत सही जान पड़ता है ।

3. समन्वय का सिद्धांत

4. विकेन्द्रीकरण का सिद्धांत

5. आदेश की एकता का सिद्धांत

6. स्टाफ तथा लाईन अथवा मंत्रणा एवं सूत्र अभिकरण

7. नियंत्रण के विस्तार का सिद्धांत

8. प्रत्यायोजन का सिद्धांत

9. सचेतन समायोजन का सिद्धांत

10. पदसोपान के तहत समायोजन का सिद्धांत

उर्विक द्वारा प्रस्तुत सिद्धांत:

गुलिक की तरह ही उर्विक ने भी संगठन के आठ सिद्धांत दिए जो निम्न हैं:

1. उद्देश्य का सिद्धांत

2. अधिकार का सिद्धांत

3. जिम्मेदारी (उत्तरदायित्व) का सिद्धांत

4. मापक सिद्धांत

5. नियंत्रण के विस्तार का सिद्धांत

6. विशेषज्ञता का सिद्धांत

7. संयोजन का सिद्धांत

8. परिभाषा का सिद्धांत या क्रियात्मक व्याख्या का सिद्धांत ।

इसके बाद गुलिक और उर्विक ने क्रेयोल के प्रशासन के चौदह सिद्धांतों, भूरी और रेले के सिद्धांत, प्रक्रिया एवं प्रभाव, टैलर के प्रबंध सिद्धांत और फोले एवं ग्रेक्युनास के विचारों को मिलाकर 29 सिद्धांत और उनके उप-सिद्धांत बनाए ।

यह सिद्धांत इस प्रकार हैं:

1. जांच-पड़ताल,

2. पूर्वानुमान,

3. योजना,

4. उपयोगिता,

5. संगठन,

6. संयोजन,

7. निर्देश,

8. आदेश,

9. नियंत्रण,

10. संयोजन सिद्धांत,

11. अधिकार,

12. मापक प्रक्रिया,

13. काम का विभाजन,

14. नेतृत्व,

15. दायित्व सौंपना,

16. कार्य की परिभाषा,

17. दृढ़ता,

18. कार्यान्वयन की क्षमता,

19. विश्लेषणात्मक,

20. सामान्य हित,

21. केंद्रीयकरण,

22. कर्मचारी तय करना,

23. भावना,

24. चयन और नियुक्ति,

25. पुरस्कार और दंड,

26. पहल,

27. बराबरी,

28. अनुशासन,

29. स्थिरता ।

लोक प्रशासन में समय और मानवीय घटक:

गुलिक ने अपने अद्यतन लेख में लिखा है कि जब मैंने 50 वर्ष पहले ‘पेपर्स ऑन साइंस एंड एडमिनिस्ट्रेशन’ का प्रतिपादन किया था तब से अब तक लोक प्रशासन और उसकी प्रकृति को प्रभावित करने वाली कई बातें हुई हैं । अपने 50 वर्षों के विश्लेषण के आधार पर वह लिखते हैं कि, ”कुछ भी हो, सरकारें आदमियों से बनती हैं, आदमी ही उन्हें चलाते हैं और इनका प्रमुख काम आदमियों को मदद करना, उनकी सेवा करना और उन पर नियंत्रण करना ही है ।”

(i) मानवीय घटक:

गुलिक इस बात पर जोर देते हैं कि राज्य का प्रमुख काम मानव कल्याण, संरक्षण और सुधार करना होना चाहिए न कि युद्ध, ताकि हरदम बदलते माहौल की चुनौतियों का सामना किया जा सके । गुलिक ने लोक प्रशासन के क्षेत्र में राज्य के आधारभूत संगठन के लिए एक नई दृष्टि की आवश्यकता पर जोर दिया है जिसमें वर्तमान केंद्रीयकृत, पदसोपान वाली सैनिक संरचना की जगह ज्यादा विकेंद्रीयकरण लागू किया गया है ताकि मानव कल्याण ज्यादा से ज्यादा हो सके ।

(ii) समय घटक:

गुलिक के अनुसार ‘समय’ हर घटना का महत्वपूर्ण घटक होता है । इसके बिना न परिवर्तन हो सकता है, न विकास, न कार्य-कारण और न प्रबंध के लिए जिम्मेदारी । वह कहता है कि लोक नीति के हर पहलू की जड़ें समय से होती हैं और जनतांत्रिक समय ही शासन-कला का प्रमाण चिह्न है लेकिन उनकी शिकायत है कि लोक प्रशासन में समय हमेशा ही नजर अंदाज किया गया है ।

गुलिक ने समय के पाँच पहलू बताए हैं:

1. समय निवेश के तौर पर

2. समय निर्गत के तौर पर

3. समय की घटनाओं के बहाव के रूप में

4. समय दो या ज्यादा महत्वपूर्ण घटनाओं या प्रक्रियाओं के बीच के अंतराल के रूप में

5. समय प्रबंध की नीति के तौर पर ।

गुलिक कहते हैं कि लोक प्रशासन में समय का व्यवहारिक और महत्वपूर्ण अर्थ है । समय किसी भी संगठन के लिए अनिवार्य है क्योंकि वह कोई मशीन नहीं बल्कि एक अवयवी संस्थान है । वे कहते हैं कि समय को लोक प्रबंध में केंद्रीय रणनीति और नैतिक चिंता का विषय होना चाहिए । इसीलिए सरकार को समय को लेकर और समय में बहाव के साथ योजना बनाना और काम करना चाहिए ।

पोस्डकोर्ब की आलोचना:

इसकी निम्नलिखित आधार पर आलोचना की जा सकती है:

1. प्राविधिक क्रियाओं की अनदेखी:

पोस्डकोर्ब क्रियाएँ न तो समस्त प्रशासन की प्रतिनिधि है और न ही वे उसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग ही है । प्राविधिक क्रियाओं की उपेक्षा करके यदि प्रबंधकीय क्रियाओं पर अधिक बल दिया जाए तो प्रशासन का मूल स्वरूप ग्रहण नहीं हो पाएगा ।

2. पाठ्‌य-विषय संबंधी विचारधारा की अनदेखी:

पोस्डकोर्ब सिद्धांत के विरुद्ध यह कहा जाता है कि वह अत्यंत स्वेच्छाचारी और काल्पनिक है और जिसके अंतर्गत प्रशासन के वास्तविक तत्व को छोड़ दिया गया है । इसके अंतर्गत इस सिद्धांत की आलोचना इस आधार पर की जाती है कि इसमें लोक प्रशासन से संबद्ध एक महत्वपूर्ण तत्त्व की उपेक्षा की गई है । वह तत्त्व है- पाठ्‌य विषय का ज्ञान ।

इस आलोचना के प्रमुख प्रतिपादक लेविस मेरियम हैं । उन्हीं के शब्दों में ”किसी भी प्रशासकीय अभिकरण के प्रभावशाली एवं बुद्धिमतापूर्ण प्रशासन के लिए उससे संबंधित पाठ्‌य विषय का गहरा ज्ञान प्राप्त कर लेना नितांत अनिवार्य है ।” पोस्डकोर्ब दृष्टिकोण केवल प्रशासन की तकनीकों से संबंधित है, उसके पाठ्‌य विषय से नहीं ।

3. एकांकी सिद्धांत:

पोस्डकोर्ब को यदि प्रशासन का सामान्य तत्व स्वीकार कर लिया जाए तो उसका अर्थ होगा-प्रशासन के हृदय को बाहर निकाल फेंकना, क्योंकि उसका संबंध प्रबंध तक ही सीमित नहीं है वरन् शिक्षा, चिकित्सा, कानून एवं व्यवस्था, कृषि सामाजिक सुरक्षा आदि सजातीय क्रियाओं से भी है ।

‘पोस्डकोर्ब’ विचार और ‘पाठ्‌य विषय’ विचार दोनों को मिलाने से ही लोक प्रशासन का कार्य-क्षेत्र पूर्ण रूपेण निर्धारित होता है । लेविस मेरियम के शब्दों में, ”कैंची के दो फलकों के समान लोक प्रशासन दो फलकों वाला औजार है, उस औजार का एक फलक है ‘पोस्डकोर्ब’ के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों का ज्ञान और दूसरा फलक है उस ‘पाठ्‌य-विषय का ज्ञान’ जिसमें कि ये तकनीकें लागू की जाती हैं । उस औजार को प्रभावशाली बनाने ‘के लिए यह आवश्यक है कि उसके दोनों ही फलकें ठीक हों ।”

4. मानवीय अवधारणा की अनदेखी:

वे विद्वान भी ‘पोस्डकोर्ब’ विचार की आलोचना करते है जो प्रशासन के क्षेत्र में मानवीय संबंधों के दृष्टिकोण के समर्थक हैं । हार्थोन प्रयोग प्रशासन को मानवीय पहलू से ही देखता है । इन प्रयोगकर्ताओं (मायो आदि) का कहना है कि उत्पादकता काम करने वालों की सेवा की दशाओं पर निर्भर करती है । प्रशासन में इस तथ्य की उपेक्षा करना ठीक नहीं ।

पोस्डकोर्ब धारणा इस तत्व के प्रति उदासीन है । लोक प्रशासन के अंतर्गत केवल प्रशासन की तकनीकों एवं विधियों का ही अध्ययन नहीं किया जाना चाहिए बल्कि इसको अपना ध्यान उन मनुष्यों पर भी केंद्रित करना चाहिए जो कि उन तकनीकों एवं विधियों को प्रयुक्त करते हैं ।

उर्वीक और गुलिक की सामान्य आलोचना:

आलोचकों ने शास्त्रीय सिद्धांत को विद्वानों व लोक प्रशासकों के मार्गदर्शन के लिए अनुपयुक्त बताया है । लूथर गुलिक एवं उविंक के परम्परागत सिद्धांत (Classical Theory) में संरचना के विभिन्न संबंधों की समस्याओं पर बल दिया गया है । इसमें मनुष्य के कार्मिक तत्व पर नहीं बल्कि संगठन में उसके योगदान पर बल दिया जाता है ।

शास्त्रीय सिद्धांत के अनुसार चार्ट, नियम पंजिका, नियमावली तथा कार्य पद्धति के नियमों में स्पष्टता होती है । इसका संबंध औपचारिक संगठन से होता है । औपचारिक संगठन से तात्पर्य विवेकी और जानबूझकर योजना के अनुसार निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बनाए गए संगठन से ही शास्त्रीय विचारधारा यह मानती है कि एक संगठन अपने बाह्य वातावरण से सर्वथा पृथक और अप्रभावित होता है । इसका संबंध ‘क्या है’ से न होकर ‘क्या होना चाहिए’ से है । इस विचारधारा में संगठन के वास्तविक व्यवहार पर बल नहीं दिया जाता है ।

कुछ अन्य आलोचनाएँ इस प्रकार हैं:

1. अत्यंत सरलीकरण:

इसमें संगठन के विज्ञान का अत्यंत सरलीकरण क२ दिया गया है और यह मान लिया गया है कि कार्यों की संज्ञा देने से संगठन का संपूर्ण उत्तरदायित्व पूरा हो जाएगा । आधुनिक संगठन-सिद्धांत अनिश्चितता के सिद्धांत को महत्व देता है क्योंकि किसी भी संगठन को चाहे कितने भी कार्य लिखित रूप में दे दिए जाए फिर भी वे कार्य करते समय उसके कार्यों की संख्या और अधिक विस्तृत हो जाती हैं । आधुनिक काल में संगठन के समक्ष आने वाली अधिकांश परिस्थितियां अनिश्चित रहती हैं ।

2. लोकोक्तियां:

कार्यात्मक प्रबंध मनौवैज्ञानिक और व्यावहारिक अध्ययन के विरुद्ध जाता है । यह मनुष्य का अत्यधिक सीमित, संकीर्ण और संकुचित दृष्टिकोण हैं । हर्बर्ट साइमन ने इन वैज्ञानिक सिद्धांतों को अवैज्ञानिक बताते हुए लोकोक्तियों के तुल्य बताया है ।

3. लचीलापन नहीं:

इन सिद्धांतों में विभिन्न अनिश्चित परिस्थितियों से निपटने के लिए लचीलापन नहीं है । इसीलिए प्रबंधक परिस्थिति प्रबंध नहीं कर पाता है । हर्बर्ट साइमन ने इसीलिए कार्यात्मक प्रबंध को ‘मान्यताओं की कट्टरता’ कहा है ।

4. असार्वजनिक:

परम्परावादियों का प्रत्येक संगठन संगठनात्मक कार्य में अनुभव द्वारा मान्य नहीं है, और न ही उसका सार्वजनिक प्रयोग हो सकता है । इसी कारण हर्बर्ट साइमन ने उन सिद्धांतों को मजाक में कहावतें अर्थात् लोकोक्तियां कहा है ।

5. व्यवहार मूलक विश्लेषण का अभाव:

परम्परावादियों में व्यवहार मूलक विश्लेषण का अभाव है तथा प्रशासन में मानवीय तत्वों की अवहेलना की गई है । उनकी पद्धतियां विवरणात्मक होने की बजाय निदेशात्मक है ।

6. मानवीय पक्ष की अवहेलना:

उन्होंने प्रबंध के मानवीय पक्ष को घटाया है जिससे उन्होंने औपचारिक संरचना पर अधिक जोर दिया है लेकिन संगठन के अनौपचारिक पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया है । एंडरसन एवं स्वैनिंग, ”मानवीय तत्व की उपेक्षा से संगठन का ढांचा केवल चित्र, रेखाचित्र, दैनिक कार्य की परिपाटी, नियमावली, अनुदेशों अथवा शब्दों का समूह-मात्र ही बनकर रह जाएगा ।”

7. बद प्रणाली समाज:

इस सिद्धांत में संगठन को एक अलग-थलग (बंद डिब्बों की) प्रणाली के रूप में देखा गया है जिसमें बाहरी वातावरण से न कोई संबंध बताया गया है, न बाहरी वातावरण के प्रभाव की चिंता की गई है । संगठन के कार्य संचालन के मानवीय पक्षों के प्रति दुराग्रह के कारण औपचारिक सांगठनिक संरचना में वास्तविक और अनौपचारिक व्यवहार प्रणालियों के अध्ययन को टाल दिया गया है ।

8. यंत्रवादी दृष्टिकोण इस तथ्य की उपेक्षा कर देता है कि, ”मनुष्य संगठन के लिए नहीं है वरन् संगठन मनुष्य के लिए है, तथा मनुष्य और मशीन के पुर्जों की स्थिति एक-सी नहीं है ।”

सिद्धांत की उपयोगिता:

फिर भी लूथर गुलिक के औपचारिक संगठन की ये धारणा महत्वहीन नहीं है । कोई भी देश चाहे संयुक्त राज्य अमेरिका जैसा पूंजीवादी हो या सोवियत संघ जैसा साम्यवादी या भारत जैसा मिश्रित अर्थव्यवस्था वाला, प्रशासन, चाहे उसमें निजी हो या लोक प्रशासन वह लूथर गुलिक के पद-सोपान से ही प्रारंभ होता है । अतः उपर्युक्त कमियों के होते हुए भी प्रशासन के क्षेत्र में शास्त्रीय सिद्धांत (Classical Theory) का महत्वपूर्ण अनुदेय है जिसकी सहज ही उपेक्षा नहीं की जा सकती ।

उदाहरणार्थ:

1. इस विचारधारा ने उत्पादन की वृद्धि में विवेकपूर्ण भूमिका निभायी है ।

2. इस विचारधारा ने ही सर्वप्रथम इस बात पर बल दिया कि प्रशासन को एक स्वतंत्र क्रिया मानकर उसका बौद्धिक अन्वेषण किया जाना चाहिए ।

3. प्रशासन के क्षेत्र में इसके द्वारा सर्वप्रथम, अवधारणाओं और शब्दावली पर बल दिया गया था जो इस क्षेत्र में परिवर्ती शोध का आधार बनी ।

4. शास्त्रीय दृष्टिकोण की कमियों ने संगठन और उसके व्यवहार के भावी शोध की प्रेरणा प्रदान की और इस प्रकार यह विचारधारा संगठन की विचारधाराओं के विकास में मील का पत्थर सिद्ध हुई ।

5. इन्होंने संगठन के कुछ सार्वजनिक सिद्धांत बनाने की चेष्टा की है । इससे प्रशासनिक परिचालकों में सार्थकता तथा समन्वय की वृद्धि का समावेश हुआ है तथा लोगों की भूमिकाओं के विशिष्टीकरण से प्रशासनिक-सुविधा के बारे में भविष्यवाणी करना तथा उसमें स्थिरता लाना संभव हो गया है ।

अतः विभिन्न आलोचनाओं के बाद भी पारम्परिक, शास्त्रीय प्रशासनिक सिद्धांत, प्रशासनिक साहित्य में उत्कृष्ट स्थान रखता है तथा इसके महत्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता ।