Read this article in Hindi to learn about the administration of union territories.
संविधान के भाग-8 में अनुच्छेद 239 से 241 तक केन्द्रशासित प्रदेशों के प्रशासन के संबंध में वर्णन है । इनके प्रशासन की सुचारु व्यवस्था का दायित्व राष्ट्रपति को सौंपा गया । राष्ट्रपति इन क्षेत्रों में स्वविवेक से या उसके द्वारा गठित मंत्रिमण्डल के परामर्श से प्रशासन की व्यवस्था करता है । इन क्षेत्रों का प्रशासन संसद द्वारा निर्मित नियमों के आधार पर संचालित होता है । इन केन्द्रशासित प्रदेशों के नजदीकी राज्यपालों को भी प्रशासन का भार सौंपा जा सकता है ।
प्रशासक (Administrator):
केन्द्रशासित प्रदेशों में जिन प्रशासकों को नियुक्त किया जाता है, उन्हें अलग-अलग प्रदेशों में अलग- अलग नामों से जाना जाता है । चंडीगढ़ में प्रशासक की संज्ञा मुख्य आयुक्त है, दिल्ली, पांडिचेरी, अंडमान निकोबार द्वीप समूह, दमन तथा द्वीप के प्रशासकों की संज्ञा उपराज्यपाल तथा लक्षद्वीप एवं दादर और नागर हवेली के प्रशासक की संज्ञा प्रशासक ही है ।
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अध्यादेश जारी करने का अधिकार (Right to Issue Ordinance):
केन्द्रशासित प्रदेशों के प्रशासकों को भी अध्यादेश जारी करने का अधिकार है । परन्तु इन प्रशासकों को अध्यादेश जारी करने के जो अधिकार प्रदान किए गए हैं उनका उपयोग वे राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से ही कर सकते हैं ।
विधानसभा और मंत्रिपरिषद की व्यवस्था (System of Assembly and Cabinet):
मूल संविधान में केन्द्रशासित प्रदेशों के लिए विधानसभा तथा मंत्रिपरिषद की व्यवस्था नहीं की गई थी । किन्तु 14वें संशोधन (1962) द्वारा संसद को यह अधिकार दिया गया है कि वह विधि बनाकर त्रिपुरा, मणिपुर, गोवा, हिमाचल प्रदेश, दमन तथा दीव, पांडिचेरी तथा अरुणाचल प्रदेश के लिए विधानसभा तथा मंत्रिपरिषद का गठन कर सकती है ।
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बाद के वर्षों में त्रिपुरा, मणिपुर, गोवा, हिमाचल प्रदेश और अरूणांचल प्रदेश को पृथक् राज्यों का दर्जा दे दिया गया है जहां विधानसभा निर्मित हो गयी । 1992 में ही दिल्ली और पांडिचेरी के लिए विधानसभा और मंत्रिपरिषद की व्यवस्था की गई जो कि अब भी संघ क्षेत्र है ।
संसद की विधायिनी शक्ति तथा राष्ट्रपति के विनियम बनाने की शक्ति (Power of the Legislative Power of Parliament and Power of the President to Make Regulations):
संविधान ने केन्द्रशासित प्रदेशों के संबंध में विधि बनाने की शक्ति संसद को प्रदान की है । संसद द्वारा जब किसी केन्द्रशासित प्रदेश के लिए विधानसभा या मंत्रिपरिषद के संबंध में विधि का निर्माण किया जाता है, तब उस विधि में इस बात का स्पष्ट उल्लेख रहता है कि केन्द्रशासित प्रदेशों की विधानसभा राज्यसूची के किन विषयों पर विधि बना सकती है ।
संसद द्वारा किसी केन्द्रशासित प्रदेश की विधानसभा की राज्यसूची के सभी विषयों पर कानून बनाने का अधिकार नहीं दिया गया है । राष्ट्रपति को अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, दादर और नागर हवेली, दमन और दीव आदि केन्द्रशासित प्रदेशों के लिए विनियम बनाने की शक्ति प्रदान की गयी है । परन्तु राष्ट्रपति को ऐसी शक्ति का प्रयोग करने का अधिकार विधानसभा के विघटित होने की स्थिति में ही प्राप्त है ।
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उच्च-न्यायालय की व्यवस्था (System of High Court):
केन्द्रशासित प्रदेशों के लिए उच्च-न्यायलय के संबंध में यह व्यवस्था है कि संसद किसी केन्द्रशासित प्रदेश के लिए उच्च-न्यायालय की स्थापना कर सकती है या किसी केन्द्रशासित प्रदेश को किसी राज्य के उच्च-न्यायालय के क्षेत्राधिकार में रख सकती है ।
संसद ने अपनी इस अधिकार का उपयोग करते हुए 1956 ई. में दिल्ली के लिए उच्च-न्यायालय की स्थापना की । दिल्ली एकमात्र ऐसा केन्द्रशासित प्रदेश (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) है जिनका अपना उच्च न्यायालय है । शेष सभी केन्द्रशासित प्रदेशों को राज्यों के उच्च न्यायालयों की अधिकारिता में रखा गया है ।