Read this article in Hindi to learn about:- 1. यू.पी.एस.सी का दर्जा (Status of UPSC) 2. यू.पी.एस.सी का संरचना (Composition of UPSC) 3. यू.पी.एस.सी का पदच्युति (Removal of UPSC) 4. यू.पी.एस.सी की स्वतंत्रता (Independence of UPSC) 5. यू.पी.एस.सी की कार्य (Functions of UPSC) 6. यू.पी.एस.सी की भूमिका (Role of UPSC) 7. कर्मचारी चयन आयोग (Staff Selection Commission) 8. कार्मिक मंत्रालय (Ministry of Personnel).
Contents:
- यू.पी.एस.सी का दर्जा (Status of UPSC)
- यू.पी.एस.सी का संरचना (Composition of UPSC)
- यू.पी.एस.सी का पदच्युति (Removal of UPSC)
- यू.पी.एस.सी की स्वतंत्रता (Independence of UPSC)
- यू.पी.एस.सी की कार्य (Functions of UPSC)
- यू.पी.एस.सी की भूमिका (Role of UPSC)
- कर्मचारी चयन आयोग (Staff Selection Commission)
- कार्मिक मंत्रालय (Ministry of Personnel)
1. यू.पी.एस.सी का
दर्जा (Status of UPSC):
ADVERTISEMENTS:
संघ लोक सेवा आयोग भारत की प्रमुख भर्तीकर्ता एजेंसी है । यह स्वतंत्र संवैधानिक निकाय है । इसका गठन भारतीय संविधान द्वारा हुआ है । संविधान में इस आयोग की संरचना इसके सदस्यों की नियुक्ति और पदक्षति इसकी शक्तियों और कार्य तथा इसकी स्वतंत्रता से संबंधित प्रावधानों का विस्तृत उल्लेख है ।
संविधान में संघ लोक सेवा आयोग के प्रावधान के अतिरिक्त प्रत्येक राज्य में लोक सेवा आयोग तथा दो या दो से अधिक राज्यों के लिए संयुक्त लोक सेवा आयोग का प्रावधान भी है । राज्य लोक सेवा आयोग का गठन संघ लोक सेवा आयोग की ही भांति सीधे संविधान द्वारा किया जाता है किंतु संयुक्त राज्य लोक सेवा आयोग का गठन संबद्ध राज्यों की विधानसभाओं के अनुरोध पर संसद के अधिनियम द्वारा किया जाता है । संघ लोक सेवा आयोग ही राज्य की आवश्यकता की पूर्ति कर सकता है किंतु इसके लिए राज्य के राज्यपाल द्वारा अनुरोध किया जाना और राष्ट्रपति की स्वीकृति भी मिलनी जरूरी है ।
संघ लोक सेवा आयोग (यू.पी.एस.सी.), राज्य लोक सेवा आयोग (एस.पी.एस.सी) और संयुक्त लोक सेवा आयोग (जे.एस.पी.सी.) के संदर्भ में संवैधानिक प्रावधान ये हैं:
1. अनुच्छेद 315 – संघ और राज्यों के लिए लोक सेवा आयोग ।
ADVERTISEMENTS:
2. अनुच्छेद 316 – सदस्यों की नियुक्ति और कार्यकाल ।
3. अनुच्छेद 317 – लोक सेवा आयोग के सदस्य की पदच्युति और निलंबन ।
4. अनुच्छेद 318 – आयोग के कार्मिकों और सदस्यों की सेवाशर्तों को विनियमित करने की शक्ति ।
5. अनुच्छेद 319 – आयोग के सदस्यों की कार्यकाल की समाप्ति के बाद पद पर बने रहने का निषेध ।
ADVERTISEMENTS:
6. अनुच्छेद 320 – लोक सेवा आयोगों के कार्य
7. अनुच्छेद 321 – लोक सेवा आयोगों के कार्यक्षेत्र में विस्तार देने की शक्ति
8. अनुच्छेद 322 – लोक सेवा आयोगों से संबंधित व्यय
9. अनुच्छेद 323 – लोक सेवा आयोगों की रिपोर्ट
2. यू.पी.एस.सी का
संरचना (Composition of UPSC):
यू.पी.एस.सी में राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त एक अध्यक्ष और अन्य सदस्य होते हैं । संविधान में आयोग के सदस्यों की संख्या का उल्लेख नहीं है । इसका निर्धारण राष्ट्रपति के विवेक पर छोड़ दिया गया है । इसलिए आयोग की संरचना अर्थात सदस्यों की संख्या का निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है । आयोग में अध्यक्ष के अतिरिक्त सामान्यतः 9 से 11 सदस्य होते हैं ।
इसके अतिरिक्त संविधान में यह प्रावधान है कि आयोग में आधे सदस्य ऐसे व्यक्ति होंगे जिन्होंने केंद्र या राज्य सरकार के अधीन कम से कम 10 वर्ष कार्य किया हो । आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की सेवाशर्तों के निर्धारण के लिए संविधान ने राष्ट्रपति को प्राधिकृत किया गया है ।
आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष अथवा 65 वर्ष की आयु पूरी करने तक (लोक सेवा आयोग और संयुक्त लोक सेवा आयोग के मामले में 62 वर्ष), जो भी पहले हो के लिए होगा । आयोग के अध्यक्ष और सदस्य किसी भी समय राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र सौंप सकते हैं । इसके अतिरिक्त संविधान में उल्लिखित प्रावधान के अनुसार राष्ट्रपति उन्हें उनके कार्यकाल की समाप्ति से पूर्व पदच्युत भी कर सकता है ।
3. यू.पी.एस.सी का
पदच्युति (Removal of UPSC):
राष्ट्रपति, निम्नलिखित परिस्थितियों में यू.पी.एस.सी. के अध्यक्ष अथवा किसी सदस्य को उसके पद से हटा सकते हैं:
1. उसके दिवालिया घोषित होने पर; या
2. यदि उसने अपने कार्यकाल के दौरान अपनी ड्यूटी के अलावा कहीं और लाभ का पद धारण कर लिया हो; या
3. यदि राष्ट्रपति ने उसकी मानसिक या शारीरिक स्थिति ठीक न होने के आधार पर उसे पद पर बने रहने के अयोग्य घोषित कर दिया हो ।
उपर्युक्त के अतिरिक्त राष्ट्रपति यू.पी.एस.सी के अध्यक्ष या किसी सदस्य को उसके कदाचार के आरोप की जाँच के लिए उच्चतम न्यायालय भेजना होता है । उच्चतम न्यायालय यदि जाँच के बाद आरोप को सही पाता है और पद से हटाए जाने के कारण को सही ठहराता है और राष्ट्रपति को ऐसा करने की सलाह देता है तो राष्ट्रपति उसे (अध्यक्ष या किसी सदस्य को) पद से हटा सकता है । संविधान में प्रावधान के अनुसार इस संदर्भ में उच्चतम न्यायालय की सलाह को राष्ट्रपति मानने को बाध्य होता है ।
संविधान में ‘कदाचार’ शब्द की परिभाषा का इस संदर्भ में उल्लेख किया गया है । संविधान में उल्लेख है कि यू.पी.एस.सी के अध्यक्ष या किसी सदस्य को कदाचार का दोषी तब करार दिया जाएगा जब वह निगमित कंपनी के अन्य सदस्यों के साथ सम्मिलित रूप से उस करार या समझौते से होने वाले लाभ का भागीदार हो जो करार भारत सरकार या राज्य सरकार द्वारा किया गया हो । उच्चतम न्यायालय द्वारा जाँच कार्य के दौरान राष्ट्रपति यू.पी.एस.सी के अध्यक्ष या सदस्य को निलंबित कर सकते हैं ।
4. यू.पी.एस.सी की स्वतंत्रता (Independence of UPSC):
संविधन में, यू.पी.एस.सी की कार्यप्रणाली में निष्पक्षता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करने और उनके रक्षार्थ निम्नलिखित प्रावधान किए गए:
1. यू.पी.एस.सी के अध्यक्ष या किसी सदस्य को राष्ट्रपति द्वारा ही, संविधान में वर्णित आधार और ढंग से, पदच्युत किया जा सकता है । इसलिए वे अपने कार्यकाल के दौरान निश्चिन्त रहते हैं ।
2. अध्यक्ष और सदस्य की सेवाशर्तों का निर्धारण यद्यपि राष्ट्रपति द्वारा ही होता है, नियुक्ति के बाद इन सेवाशर्तों में ऐसा कोई बदलाव नहीं हो सकता है जिससे सदस्यों या अध्यक्ष को हानि होती हो ।
3. यू.पी.एस.सी के अध्यक्ष और सदस्यों के वेतन, भत्तों और पेशनों सहित सभी व्ययों की प्रतिपूर्ति भारत की समेकित निधि से की जाती है । इस प्रकार यूपीएससी का संसद निधि से की जाती है । इस प्रकार, यू.पी.एस.सी का संसद की अनुमति से कुछ लेना-देना नहीं होता है ।
4. यू.पी.एस.सी का अध्यक्ष अपने कार्यकाल की समाप्ति पर अध्यक्ष न रहने की स्थिति में भारत सरकार या किसी राज्य में कोई पद ग्रहण नहीं कर सकता है ।
5. यू.पी.एस.सी का कोई भी सदस्य अपने कार्यकाल की समाप्ति पर यू.पी.एस.सी के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति का पात्र है किंतु वह भारत सरकार या किसी राज्य में कोई पद ग्रहण नहीं कर सकता है ।
6. यू.पी.एस.सी के अध्यक्ष या किसी सदस्य द्वारा प्रथम कार्यकाल पूरा कर लिए जाने पर वह उस पद पर दोबारा नियुक्ति का पात्र नहीं होगा ।
5. यू.पी.एस.सी की कार्य (Functions of UPSC):
यू.पी.एस.सी निम्नलिखित कार्य करता है:
1. यह, अखिल भारतीय सेवाओं केंद्रीय सेवाओं और केंद्र शासित राज्यों की लोक सेवाओं में नियुक्ति के लिए परीक्षाएँ आयोजित करता है ।
2. यह उन राज्यों के अनुरोध पर किसी ऐसी सेवा के लिए संयुक्त भर्ती संबंधी योजना की तैयारी और उसे संचालित करने का कार्य करता है जिस सेवा के लिए विशेष योग्यताधारी अभ्यर्थियों की आवश्यकता होती है ।
3. यह राष्ट्रपति की स्वीकृति और राज्यपाल के अनुरोध पर राज्य की किसी एक अथवा सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है ।
4. यह (आयोग) राष्ट्रपति को निम्नलिखित विषयों से संबंधित सलाह भी देता है:
(क) सिविल सेवाओं और सिविल पदों पर भर्ती की पद्धति से जुड़े सभी मामले;
(ख) सिविल सेवाओं और पदों पर की जाने वाली नियुक्तियों तथा एक सेवा से दूसरी सेवा में स्थानांतरण या पदोन्नत किए जाने के समय के अनुसरणीय सिद्धांत;
(ग) सिविल सेवाओं और पदों पर नियुक्ति के लिए एक सेवा से दूसरी सेवा में स्थानांतरण और पदोन्नति और स्थानांतरण या प्रतिनियुक्ति पर नियुक्ति के लिए अभ्यर्थियों की उपयुक्तता । पदोन्नतियों की सिफारिश संबद्ध विभाग करते हैं और यू.पी.एस.सी से उसकी पुष्टि करने का .अनुरोध करते हैं ।
(घ) भारत सरकार के अधीन सेवारत किसी व्यक्ति से संबंधित सभी प्रकार के अनुशासनिक मामले जिनमें शामिल है:
(i) निंदा या भर्त्सना ।
(ii) वेतनवृद्धि या पदोन्नति रोका जाना ।
(iii) वित्तीय हानि की वसूली ।
(iv) सेवा या रैंक के स्तर में कमी लाया जाना ।
(v) अनिवार्य सेवानिवृति ।
(vi) नौकरी से बर्खास्तगी ।
(vii) नौकरी से हटाया जाना ।
(ड) किसी सरकारी सेवक द्वारा सरकारी ड्यूटी के निष्पादन से संबंधित कानूनी कार्यवाही में होने वाले व्यय की भरपाई संबंधी कोई भी दावा ।
(च) भारत सरकार अधीन सेवारत किसी व्यक्ति के चोटग्रस्त हो जाने के फलस्वरूप पेंशन दिए जाने अथवा पेंशन की राशि से संबंधित दावा ।
(छ) एक वर्ष से अधिक अवधि तक अस्थायी नियुक्ति तथा नियुक्ति को नियमित करने से संबंधित मामले ।
(ज) सेवा विस्तार की मंजूरी तथा कुछ सेवानिवृत सिविल सेवकों को पुन: रोजगार देने से संबंधित मामले ।
(झ) आयोग को भेजे गए कार्मिक प्रबंधन से जुड़ा अन्य कोई भी मुद्दा ।
5. संघ की सेवाओं से जुड़े अन्य कार्य भी संसद द्वारा यू.पी.एस.सी को सौंपे जा सकते हैं । संसद, किसी स्थानीय प्राधिकरण नियमित निकाय या सार्वजनिक संस्थान की कार्मिक प्रणाली को भी यू.पी.एस.सी के अधिकार क्षेत्र में ला सकती है । इस प्रकार संसद के अधिनियम द्वारा यू.पी.एस.सी के अधिकार क्षेत्र में विस्तार किया जा सकता है ।
6. संघ की कार्यपालिका द्वारा बनाए गए नियमों और विनियमों तथा जारी किए गए आदेशों के अनुसार भी यू.पी.एस.सी को अधिक शक्तियाँ और कार्य दिए जा सकते हैं । ऐसा संसद को सूचना दिए बिना किया जा सकता है ।
7. यू.पी.एस.सी. द्वारा परंपरागत आधार पर भी कुछ कार्य किए जा सकते हैं । उदाहरण के तौर पर-यू.पी.एस.सी. द्वारा सैन्य बलों में चयन के लिए वर्ष 1948 से ही लिखित परीक्षा आयोजित की जाती रही है । विभिन्न क्षेत्रों में तैनाती के लिए वैज्ञानिकों और तकनीशियनों का चयन भी इसी के द्वारा किया जाता रहा है ।
8. यू.पी.एस.सी अपने कार्य निष्पादन से संबंधित रिपोर्ट प्रतिवर्ष राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है । राष्ट्रपति इस रिपोर्ट को उस विस्तृत ज्ञापन के साथ संसद के दोनों सदनों में रखता है जिसमें यह बताया गया होता है कि किसी मामले विशेष पर यदि कोई हो, आयोग की सलाह किन कारणों से नहीं मानी गई है ।
आयोग की सलाह को अस्वीकृत किए जाने संबंधी मामलों पर नियुक्ति से जुड़ी केंद्रीय कैबिनेट समिति का अनुमोदन प्राप्त होना चाहिए । किसी मंत्रालय या विभाग विशेष को यू.पी.एस.सी की सलाह को अस्वीकार करने का अधिकार नहीं है ।
निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता हैं कि यू.पी.एस.सी के कार्य के चार स्रोत हैं:
संविधान, संसदीय अधिनियम, कार्यपालिका के नियम और आदेश तथा परंपरा । यू.पी.एस.सी के इन कार्यों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है । कार्यकारी, विनियामक और अर्ध-विधायी ।
निम्नलिखित विषयों से संबंधित कार्यों को यू.पी.एस.सी के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा गया है अर्थात इन विषयों पर यू.पी.एस.सी से परामर्श नहीं लिया जाता है:
1. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित पदों से संबंधित मामले ।
2. आयोगों और अधिकरणों के अध्यक्षों और सदस्यों के चयन, कूटनीतिक प्रकृति के उच्च पदों और ग्रुप सी और ग्रुप डी की सेवाओं के लिए चयन के संबंधी मामले ।
3. अस्थायी या स्थानापन्न आधार पर नियुक्ति हेतु, उस स्थिति में, चयन के संदर्भ में जब नियुक्त व्यक्ति को उस पद पर एक वर्ष से अधिक रहने की संभावना न हो ।
राष्ट्रपति, पदों सेवाओं और विषयों को यू.पी.एस.सी के अधिकार क्षेत्र से बाहर रख सकते हैं । संविधान में यह उल्लेख है कि राष्ट्रपति अखिल भारतीय सेवा तथा केंद्रीय सेवाओं और पदों के संदर्भ में उन विषयों पर विनियम बना सकते हैं जिन पर यू.पी.एस.सी से परामर्श किया जाना आवश्यक नहीं ।
किंतु राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित ऐसे सभी विनियमों को संसद के दोनों सदनों में कम से कम 14 दिनों तक रखा जाएगा । संसद आवश्यक होने पर उन विनियमों को संशोधित या उनको रद्द कर सकती है ।
6. यू.पी.एस.सी की
भूमिका (Role of UPSC):
संविधान में यू.पी.एस.सी को भारत में योग्यता प्रणाली के संरक्षक की दृष्टि से देखा गया है । इसका संबंध अखिल भारतीय सेवाओं तथा केंद्रीय सेवाओं में ग्रुप-ए और ग्रुप-बी पदों पर भर्ती से है । सरकार को यह पदोन्नति और अनुशासनिक मामलों पर माँगने पर उचित परामर्श देता है ।
सेवाओं के वर्गीकरण, वेतन, सेवाशर्तो, संवर्ग प्रबंधन, प्रशिक्षण आदि से आयोग का कोई संबंध नहीं है । ये विषय कार्मिक, लोकशिकायत और पेंशन मंत्रालय के अधीन तीन विभागों में से एक कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग द्वारा देखे और निपटाए जाते हैं । इस प्रकार यू.पी.एस.सी केवल एक केंद्रीय भर्ती एजेंसी है जबकि कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग भारत की केंद्रीय कार्मिक एजेंसी है ।
यू.पी.एस.सी. की भूमिका ही सीमित नहीं है, इसकी सिफारिशें भी परामर्शी प्रकृति की हैं जिन्हें मानने के लिए सरकार बाध्य नहीं है । दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि यू.पी.एस.सी. का कार्य परामर्श देने का है न कि निर्णय लेना का ।
यह केंद्र सरकार पर निर्भर करता है कि उन परामर्शों को माने या अस्वीकार करें । इसके अतिरिक्त, केंद्र सरकार यू.पी.एस.सी, के परामर्श संबंधी कार्यों को विनियमित करने के लिए ‘यू.पी.एस.सी (परामर्श से छूट) विनियमावली’ नाम से नियम भी बना सकती है ।
इसके अतिरिक्त, वर्ष 1964 में केंद्रीय सतर्कता आयोग के आविर्भाव से भी अनुशासनिक मामलों में यू.पी.एस.सी. की भूमिका प्रभावित हुई है । ऐसा इसलिए है कि किसी सिविल सेवक के विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाही करते समय सरकार द्वारा दोनों से परामर्श किया जाता है । समस्या तब पैदा होती है जब दोनों निकाय परस्पर विरोधी परामर्श देते हैं ।
तथापि, यू.पी.एस.सी. को स्वतंत्र संवैधानिक निकाय होने के कारण केंद्रीय सतर्कता आयोग से ऊपर माना गया है क्योंकि केंद्रीय सरकार आयोग का गठन सरकार द्वारा पारित कार्यकारी प्रस्ताव द्वारा हुआ है और जिसे अगस्त 1998 में संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ है ।
7. कर्मचारी चयन आयोग (Staff Selection Commission):
संघ लोक सेवा आयोग को उच्चतर लोक सेवाओं के लिए अर्थात् केंद्र सरकार के अधीन न्यूनतम 10,500 रु के वेतनमान के ग्रुप-ए और ग्रुप-बी पदों के लिए अभ्यर्थियों के चयन का कार्य सौंपा गया है ।
दूसरी ओर कर्मचारी चयन आयोग को (क) केंद्र सरकार के मंत्रालयों/विभागों तथा इनसें संबद्ध और इनके अधीनस्थ कार्यालयों में 10,500 रु. से कम के वेतनमान के ग्रुप बी के पदों के लिए अभ्यर्थियों के चयन; और (ख) केंद्र सरकार के मंत्रालयों विभागों और इनमें संबद्ध और इनके अधीनस्थ कार्यालयों में गैर तकनीकी ग्रुप सी के पदों (उन पदों को छोड़कर जिन्हें इस आयोग के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा गया है) के लिए अभ्यर्थियों के चयन का कार्य सौंपा गया है । इस प्रकार कर्मचारी चयन आयोग केंद्र सरकार के मध्यम और निचले दर्जे के पदों के लिए कार्मिकों की भर्ती करने वाली केंद्रीय एजेंसी है ।
कर्मचारी चयन आयोग की स्थापना भारत के प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिश पर केंद्र सरकार के कार्यकारी प्रस्ताव द्वारा वर्ष 1975 में हुई थी । पहले इसे अधीनस्थ सेवा आयोग के नाम से जाना जाता था, किंतु वर्ष 1976 में इसका नामकरण कर्मचारी चयन आयोग के रूप में हुआ । इस आयोग को कार्मिक मंत्रालय से संबद्ध रखा गया है अर्थात यह आयोग कार्मिक मंत्रालय के अधीन संबद्ध कार्यालय है जो परामर्श निकाय के रूप में कार्य करता है ।
इस आयोग में एक अध्यक्ष, दो सदस्य और एक सचिव सहपरीक्षा नियंत्रक होता है । आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल पाँच वर्ष का या उनकी आयु 62 वर्ष होने तक जो भी पहले हो के लिए होता है । अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है ।
कर्मचारी चयन आयोग के अधिकार क्षेत्र में रेलवे, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक कार्यालय, पोस्ट और टेलीग्राफ विभाग, रक्षा क्षेत्र और केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रम नहीं आते हैं । रेलवे में ऐसे पदों पर भर्ती रेल भर्ती बोर्डों द्वारा की जाती है ।
कर्मचारी चयन आयोग का मुख्यालय नई दिल्ली में है तथा क्षेत्रीय कार्यालय देशभर में फैले हैं । उत्तरी, मध्य, पश्चिमी, पूर्वी, पूर्वोत्तर, दक्षिणी और कर्नाटक-केरल क्षेत्र के कार्यालय क्रमशः नई दिल्ली, इलाहाबाद, मुंबई, कोलकाता, गुवाहाटी, चेन्नई और बंगलौर में है । मध्यप्रदेश और उत्तर-पश्चिमी उपक्षेत्रीय कार्यालय क्रमशः रायपुर और चंडीगढ़ में हैं ।
यू.पी.एस.सी (उच्च सेवाओं के लिए) और एस.एस.सी, (मध्यम और निचली सेवा के लिए) के अतिरिक्त ‘लोक उद्यम चयन बोर्ड’ भी है जो केंद्र सरकार के लोक उद्यमों में मुख्य कार्यकारी और कार्यकारी निदेशकों के पूर्णकालिक बोर्ड स्तर के पदों और अल्पकालिक अध्यक्ष के पद पर नियुक्ति की सिफारिश करता है ।
8. कार्मिक मंत्रालय (Ministry of Personnel):
इस मंत्रालय का पूरा नाम कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय है । यह देश के कार्मिक और प्रशासनिक सुधार मामलों की केंद्रीय एजेंसी है । इस मंत्रालय का राजनीतिक प्रमुख प्रधानमंत्री (जिनकी सहायता राज्यमंत्री करता है) तथा प्रशासनिक प्रमुख कार्मिक सचिव हैं ।
इस मंत्रालय के गठन से संबंधित विभिन्न घटनाएँ कालक्रमानुसार इस प्रकार हैं:
1. वर्ष 1954 में, पी.एच. एप्पलबी रिपोर्ट 1953 की सिफारिश पर मंत्रिमंडल सचिवालय में संगठन एवं व्यवस्था प्रभाग की स्थापना हुई थी ।
2. वर्ष 1964 में, गृह मंत्रालय के अधीन एक नए विभाग प्रशासनिक सुधार विभाग की स्थापना हुई तथा संगठन और पद्धति प्रभाग को इस विभाग में शामिल कर लिया गया ।
3. वर्ष 1970 में, भारत के प्रशासनिक सुधार आयोग (1966-70) की सिफारिश पर कैबिनेट सचिवालय में कार्मिक विभाग की स्थापना हुई । उस समय तक गृह मंत्रालय के सेवा स्कंध द्वारा किए जा रहे कार्यों को इस विभाग को सौंप दिया गया ।
4. वर्ष 1973 में, प्रशासनिक सुधार विभाग को कार्मिक विभाग में शामिल कर कैबिनेट सचिवालय में कार्मिक और प्रशासनिक सुधार विभाग का गठन किया गया ।
5. वर्ष 1977 में, कार्मिक और प्रशासनिक सुधार विभाग को कैबिनेट सचिवालय से अलग कर गृह मंत्रालय के अधीन कर दिया गया ।
6. वर्ष 1985 में, कार्मिक लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के नाम से एक पूरा नया मंत्रालय गठित हुआ जिसे तीन विभागों में विभक्त किया गया, यथा-
(क) कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग
(ख) प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग
(ग) पेंशन और पेंशनभोगी कल्याण विभाग ।
इस मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करने वाली विभिन्न एजेंसियों के नाम इस प्रकार हैं:
1. संघ लोक सेवा आयोग (UPSC)
2. कर्मचारी चयन आयोग (SSC)
3. लोक उद्यम चयन बोर्ड (PESB)
4. केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC)
5. केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI)
6. केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT)
7. राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी (NAA)
8. भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (IIPA)
9. सचिवालय प्रशिक्षण और प्रबंध संस्थान (ISTM)
10. संयुक्त सलाहकार परिषद (JMC)